यह कैसे चली री​त: खून हुआ सस्ता, पानी हुआ महंगा


संजय त्रिपाठी—वरिष्ठ पत्रकार
जिला गाजियाबाद! जी हां, यही है जिला गाजियाबाद। इसी जिले कि फिल्म आपने पर्दे पर देखी होगी। अगर ना देखी है तो एक बार जरूर देख ले। फिल्मकार ने इस जिले को हमेशा के लिए अमर कर दिया। हालांकि जब फिल्म रीलिज होने वाली थी तब कुछ सामाजिक संस्थाओं ने इसका विरोध किया था। उस समय यह मामला भी सुर्खियों में था। मैं तो डायरेक्टर का तहे दिल से शुक्रिया आदा करना चाहता हूं कि उसने इस जिले की वास्तविकता दर्शाने की हिम्मत तो की। 90 की दशक की घटना जो लोगों के दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ जाती थी। एक तरफ गैंगवार, एक तरफ अपहरण तो रोज लूट, डांका और हत्या से यह शहर दहल सा गया था। यहां की घटना जम्मू - कश्मीर तक अपनी छाप छोड़ गई थी। प्रदेश में जिसका भी शासन होता उसकी नजर राष्ट्रीय राजधानी के नजदीक गाजियाबाद ही होती थी। आंतकवादियों का भी यही पसंदीदा जगह होता था। कई ऐसी घटनाओं की गवाह बनी थी यह गाजियाबाद जिला। कुलदीप सिंह कीपा, हरदीप सिंह, अब्दूल करीम उर्फ टूडा जैसे आतंकवादियों की शरणस्थली थी यह जिला। उस समय रोज हत्याओं से यह शहर दहला रहता था। कई तेज - तर्रार शैलजा कांत मिश्र, अरविन्द कुमार जैन, बी के गुप्ता जैसे अफसर यहां आये। हां, यह माननी पडेगी कि उन्होंने अपराध पर अंकुश लगाकर इस जिले को आईटी, और शिक्षण क्षेत्र में स्वालंबी बनाया, जैसे भी हुआ अपराधियों का सफाया किया। आज सबसे बड़ा प्रश्न है कि वैसे अपराधी तो जिला गाजियाबाद में नजर नहीं आ रहे हैं जो एक और फिल्म तैयार कराने के लिए किसी डायरेक्टर को तैयार कर दे। लेकिन अपराध तो आज भी वैसा ही नजर आ रहा। बस उस समय के अपराध को अपराधी अंजाम देते थे और आज के अपराध को सिस्टम अंजाम दे रहा है। क्या नन्दग्राम के कृष्णाकुंज सद्दीकनगर में सीवर में बिना सेफ्टी उपकरण के उतरे ठेकेदार समेत 5 मजदूरों की हत्या नहीं हुई है। यह दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या है और इस हत्या की जिम्मेदारी यहां मौजुद अधिकारियों की है। इससे डीएम साहब और एसएसपी साहब भी मुक्त नहीं है। खासतौर से डीएम साहब को तो इसकी जिम्मेदारी लेनी ही होगी और आगे की अपनी सर्विस सेवा में यह निश्चित करनी ही होगी की जहां भी तैनाती हो ऐसी घटना उनके समक्ष या उनकी तैनाती के जिला में न हो। सिर्फ प्रशासक बन जाना ही नहीं होता, बल्कि अपनी जिम्मेदारी तय करनी पड़ती है। हम लोग सीधे अंगुली आप पर या एसएसपी साहब पर तो नहीं उठा सकते क्योंकि आप लोगों के पास अधिकार बहुत है हमें सजा देने के लिए। लेकिन सच को सच कहना भी अगर हम छोड़ दे तो यह हम अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ रहे है। ऐसे सच के लिए हम एक बार नहीं कई बार सजा भुगतने के लिए तैयार है। जरा सोचे उन पांचों मजदूरों का क्या दोष था ? क्यों उनकी अपरोक्ष हत्या नहीं हुई ? आप नही ंतो कौन जिम्मेदार है इसका ? सिर्फ निलंबन और डाट - फटकार से काम नहीं चलने वाला कोई ठोस हल निकाले तभी हमारे जैसे लोगों में आप का विश्वास कायम होगा। आखिर 21 वीं सदी में भी सीवर सफाई के लिए मजदूरो व कमजोर वर्ग के लोगों को सीवर में क्यों उतरना पड़ता है, जबकि आज हम लोग चांद और मंगल की सफर करने, नये - नये शोध कर विश्व में अपनी डंका बजा रहे है। कुछ तो पहल करें। यह जिला एकटक अपनी नजरें गड़ा आपकी पहल का इंतजार कर रहा है, ताकि आगे किसी की मांग की सिंदूर न धूले, किसी मां की कोख न उजड़े । यह जिला स्वागत भी बहुत भव्य करता है और विदाई भी ................... ।  धन्यवाद


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