समीक्षा न्यूज नेटवर्क
मनुस्मृति एक प्रसिद्ध एवं चर्चित ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ की शिक्षायें मनुष्य जीवन का कल्याण करने वाली है। यह सत्य है कि मनुस्मृति अति प्राचीन ग्रन्थ है। मध्यकाल में कुछ वाममार्गी लोगों ने मनुस्मृति में महाराज मनु के आशय के विपरीत स्वार्थपूर्ति एवं अज्ञानता के कारण इस ग्रन्थ में अनेक स्थानों पर प्रक्षेप किये जिससे इसका शुद्ध स्वरूप विकृति को प्राप्त हुआ। यह अच्छा रहा कि प्रक्षेपकर्ताओं द्वारा मनुस्मृति के शुद्ध व लोकोपकारी श्लोकों को नहीं छेड़ा व हटाया। वह लाभकारी श्लोक मनुस्मृति में विद्यमान रहे व आज भी हमें उपलब्ध हैं। आर्यसमाज ने वेदों को ईश्वर का ज्ञान न केवल स्वीकार ही किया अपितु इसके पक्ष में अनेक तर्क एवं युक्तियां देकर इसे प्रमाणित भी किया है। आर्यसमाज के विद्वान पं. राजवीर शास्त्री जी ने श्री डा. सुरेन्द्र कुमार जी के सहयोग से तथा ऋषिभक्त महात्मा दीपचन्द आर्य जी की प्रेरणा से विशुद्ध मनुस्मृति का सम्पादन किया जिसमें प्रक्षिप्त श्लोको की समीक्षा करके उन्हें हटा दिया। इस प्रकार जो विशुद्ध मनुस्मृति उपलब्ध है वह संसार के सभी मनुष्यों, न केवल ब्राह्मणों अपितु दलितों, के लिये भी सर्वप्रकार से लाभकारी है। सबको इसका अध्ययन करने के साथ इसकी प्राणी मात्र की हितकारी शिक्षाओं से लाभ उठाना चाहिये। ऐसा तभी हो सकता है कि जब लोग इस ग्रन्थ का निष्पक्ष होकर अध्ययन करें। आश्चर्य है कि जो लोग मनुस्मृति की आलोचना करते हैं उनमें से किसी ने इसको निष्पक्ष होकर पढ़ा नहीं होता। हमने विशुद्ध मनुस्मृति को पढ़ा है और हम सभी बन्धुओं विशेषकर दलित बन्धुओं को इस ग्रन्थ को पढ़ने की प्रेरणा करते हैं। इस विशुद्ध-मनुस्मृति से मध्यकाल व उसके बाद अद्यावधि प्रक्षेपकर्ताओं व उनके अनुयायियों द्वारा फैलाये गये सभी भ्रम व विसंगतियां दूर हो जाती हैं। यह विशुद्ध मनुस्मृति ग्रन्थ अत्यन्त लाभकारी है। ऐसा इसको पढ़कर अनुभव होता है। संसार का कोई भी निष्पक्ष मनुष्य इसे पढ़ेगा तो इसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहेगा। लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व अति प्राचीन काल में इतना महत्वपूर्ण ग्रन्थ भारत भूमि पर विद्यमान था, यह देखकर इस देश के पूर्वजों के ज्ञान व कार्यों के प्रति हमारा मन आदर व गौरव से भर जाता है।
प्रस्तुत लेख में हम मनुस्मृति के दूसरे अध्याय के एक श्लोक की चर्चा कर रहे हैं जिसमें कहा गया है कि सब मनुष्य विद्या पढ़कर, विद्वान व धर्मात्मा होकर, निर्वैरता से सब प्राणियों के कल्याण का उपदेश करें। वह उपदेशक अपने उपदेश में मधुर और कोमल वाणी बोलें। सत्योपदेश से धर्म की वृद्धि और अधर्म का नाश जो पुरुष करते हैं वह धन्य होते हैं। मनुस्मृति का यह श्लोक है ‘अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम्। वाक् चैव मधुरा श्लक्ष्णा प्रयोज्याधर्ममिच्छता।।’ इस श्लोक में अतीव उत्तम उपदेश किया गया है। इसको व्यवहार में लाने पर हम एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकते हैं। आदर्श समाज वह होता जिस समाज में सब मनुष्य सत्य का ग्रहण व धारण करने वाले होते हैं। सत्य व असत्य का यथार्थस्वरूप हमें वेद व ऋषियों के ग्रन्थों उपनिषद, दर्शन तथा मनुस्मृति सहित सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि से प्राप्त होता है। मध्यकाल में इन ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन तथा आचरण न होने के कारण ही समाज में विकृतियां आई थी। इसी कारण देश व विश्व में अविद्यायुक्त मत-मतान्तर उत्पनन हुए थे। यदि वेदों की सत्य शिक्षाओं का समाज में प्रचार व उपदेश होता रहता तो जो अज्ञान, अन्धविश्वास, पाखण्ड, वेदविरुद्ध कृत्य तथा सामाजिक कुरीतियां वा परम्परायें समाज में उत्पन्न हुईं, वह कदापि न होती। महाभारत युद्ध के बाद मध्यकाल में हमारे देश में पूर्णज्ञानी वेद प्रचारक विद्वान नहीं थे। अकेले ऋषि दयानन्द (1825-1883) ने देश में वेद-प्रचार करके संसार से अविद्या दूर करने में अनेक प्रकार से सफलता पाई। आज हमें ईश्वर व आत्मा सहित प्रकृति का यथार्थ स्वरूप विदित है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य व लक्ष्य का ज्ञान भी है तथा लक्ष्य की प्राप्ति के लिये आवश्यक साधनों का ज्ञान भी है जिनका हम आश्रय लेते हैं। यदि महाभारत युद्ध के बाद देश में एक सत्यार्थप्रकाश व इस जैसा किसी विद्वान का लिखा कोई विद्या का ग्रन्थ होता और उसका प्रचार रहा होता तो देश को दुर्दशा के जो दिन देखने पड़े, वह देखने न पड़ते।
मनुस्मृति के उपुर्यक्त श्लोक में प्रथम बात यह कही गई है कि सब मनुष्यों को विद्या पढ़नी चाहिये और सबको धर्मात्मा होना चाहिये। विद्या वेदों के ज्ञान को कहते हैं। इसके साथ ही जो भी सत्य पर आधारित ज्ञान व विज्ञान है वह भी ज्ञान व विद्या के अन्तर्गत आता है। वेद ज्ञान पूर्ण ज्ञान है और बीज रूप में उपलब्ध है तथा इतर सांसारिक ज्ञान व विज्ञान अधूरा है। सांसारिक ज्ञान से मुनष्य को ईश्वर व आत्मा का यथार्थ ज्ञान नहीं होता और न ही ईश्वर व आत्मा सहित समाज व देश के प्रति अपने कर्तव्यों की प्रेरणा मिलती है। आधुनिक शिक्षा को पढ़कर मनुष्य चरित्रवान व सभ्य मनुष्यों के गुणों से युक्त नहीं होते। आधुनिक शिक्षा को पढ़कर मनुष्य में भोग व सम्पत्ति के संग्रह की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न होता है। आधुनिक मनुष्य को यह ज्ञात नहीं होता कि जिन उचित व अनुचित साधनों से वह धन का अर्जन कर रहा है उसमें होने वाले पाप व पुण्य का फल उसे परमात्मा की व्यवस्था से भोगना पड़ता है। वेद व वैदिक साहित्य में इन सभी प्रश्नों का यथार्थ समाधान मिलता है। इसलिये वेदों की सर्वाधिक महत्ता है। मत-मतान्तर के ग्रन्थों से भी मनुष्यों की पाप की प्रवृत्तियों पर अंकुश नहीं लगता है। अनेक मतों के कारण समाज अनेक अनेक सम्प्रदायों व पन्थों में बंट गया है। मत-मतान्तर लोगों को आपस में पृथक कर मत, सम्प्रदाय व पन्थ की संकीर्ण दीवारों में बांटते हैं जबकि वेद व वैदिक साहित्य सबको एक ईश्वर की सन्तान बता कर सबके हित व कल्याण का मार्ग बताते हैं। इसी कारण से वेदों का सर्वोपरि महत्व है। वेद व मनुस्मृति दोनों की ही शिक्षा है कि मनुष्यों को वेद व विद्या का अध्ययन करना चाहिये और ऐसा करके उसे धर्मात्मा बनना चाहिये। धर्मात्मा सत्य ज्ञान के अनुरूप कर्म करने वाले ईश्वरोपासक तथा दूसरों का हित करने वाले मनुष्यों को कहते हैं। ऐसा मनुष्य अपना भी कल्याण करता है और देश, समाज व विश्व का भी कल्याण करता है। हमारे सभी ऋषि मुनियों, राम व कृष्ण सहित ऋषि दयानन्द और उनके अनुयायी विद्वानों ने भी विश्व समुदाय के कल्याण का काम किया था जिस कारण उनका यश आज भी सर्वत्र विद्यमान है। अतः सभी मनुष्यों को वेद व वैदिक साहित्य का अध्ययन कर अपनी अविद्या व अज्ञान को दूर कर विद्वान बनना चाहिये और इसके साथ उन सबको धर्मात्मा भी होने चाहियें। पाठक स्वयं विचार करें कि आज संसार में पढ़े लिखे ज्ञानी लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं परन्तु क्या वह सब धर्मात्मा हैं? यदि वह धर्मात्मा होते तो निश्चय ही यह सृष्टि सुख का धाम होती। अतः आज भी वेदों को पढ़कर मनुष्य का विद्वान व धर्मात्मा बनना आवश्यक है। वेदों का अध्येता परजन्म में मिलने वाले दुःखों का विचार कर कभी कोई गलत काम नहीं करता है।
मनुस्मृति के उपर्युक्त उद्धृत श्लोक में सब मनुष्यों को विद्वान व धर्मात्मा बनने सहित सबको सबके प्रति वैर त्याग की प्रेरणा भी की गई है। यह भी कहा गया है कि ऐसे मनुष्य देश व समाज में सब प्राणियों के कल्याण का उपदेश करें। मनुष्य का निर्वैर होना भी अत्यन्त आवश्यक होता है। जो मनुष्य दूसरों लोगों व मत-मतान्तरों से वैर रखते हैं वह देश व समाज की अत्यन्त हानि करते हैं। समाज में समय समय पर ऐसे उदाहरण मिलते रहते हैं। यदि देश में वेदों के आधार पर एक सत्यधर्म का प्रचार व पालन होता तो देश में होने वाली साम्प्रदायिक हिंसा व आतंकवाद जैसी समस्यायें न होती। कुछ लोग देश को साम्प्रदायिक आधार पर अपने मत का शासन स्थापित करने के लिये प्रयत्नशील न होते। इन सब समस्याओं से बचने के लिये सब मनुष्यों को एक दूसरे के प्रति पूर्णतः निर्वैर होकर सबको सब प्राणियों का कल्याण करने की प्रेरणा की जानी चाहिये। यह काम मनुस्मृति सृष्टि के आरम्भ से करती आ रही है। जो ऐसा न करें वह अपराधी माने जाने चाहिये। यह काम मनुस्मृति सृष्टि के आरम्भ से करती आ रही है। किसी मत व सम्प्रदाय को किसी से घृणा व अनावश्यक विरोध करने की अनुमति भी नहीं होनी चाहिये। मतान्तरण जैसी प्रवृत्तियों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगना चाहिये। यदि देश में अज्ञानी व भोले भाले लोगों, मुख्यतः आर्य हिनदुओं का मतान्तरण होता रहा तो इससे सत्य धर्म व संस्कृति की बहुत हानि होगी। देश के सद्ज्ञानी मनुष्यों को इन समस्याओं पर विचार करना चाहिये।
जब हम निर्वैर होकर सब प्राणियों के कल्याण का उपदेश करते हैं तो इससे हमारा समाज व देश बलवान बनता है। अतः मनुस्मृति की यह शिक्षा सबके लिये स्वीकार्य एवं हितकारी है। उपर्युक्त श्लोक में एक महत्वपूर्ण शिक्षा यह भी दी गई है कि उपदेश करने वाले लोग अपनी वाणी को मधुर व कोमल रखे। मनुस्मृति का यह अत्यन्त महत्वपूर्ण उपेदश है। लाखों वर्ष पहले जब किसी मत-सम्प्रदाय का अस्तित्व भी नहीं था, तब मनुस्मृति वा वेदों के द्वारा इतने उत्तम विचार प्रचारित थे। यदि पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के बाद भी मनुस्मृति के शुद्धस्वरूप्स का प्रचार होता तो किसी मत सम्प्रदाय की आवश्यकता ही नहीं थी। शुद्ध मनुस्मृति की विस्मृति के कारण ही देश देशान्तर में मत व सम्प्रदाय बढ़े हैं। मनुस्मृति की शिक्षा है कि सभी व्यक्तियों व उपदेशकों को अपनी वाणी को मधुर व कोमल रखना चाहिये। यह मनुस्मृति का अत्यन्त उपयेागी उपदेश है। मनुस्मृति ने एक महत्वपूर्ण बात यह कही है कि जो मनुष्य व विद्वान सत्य का उपदेश कर धर्म की वृद्धि और अधर्म का नाश करते हैं वह पुरुष धन्य होते हैं। यह सन्देश भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है और स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य है। ऐसे ही उत्मोत्तम उपदेशों के कारण मनुस्मृति का महत्व है। हम सबको पक्षपात रहित होकर मनुस्मति के विशुद्ध संस्करण का अध्ययन करना चाहिये और इससे लाभ उठाना चाहिये। इससे पूरी मानवता को लाभ होगा। ऐसा करने से हमारी धर्म कर्म में रुचि बढ़ेगी और हम अपने कर्तव्यों का बोध प्राप्त कर उनको करते हुए अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
"समीक्षा न्यूज" is the place where you will find all types of samikshanews & samiksha news & sameekshanews for beginners. If you are interested in samiksha newspaper then this Blog is for you.
Tuesday 22 September 2020
“सब विद्या पढ व धर्मात्मा होकर सद्धर्म का उपदेश करें: महाराज मनु”
-
गाजियाबाद। महात्मा गांधी सभागार, कलैक्ट्रेट में जनपद स्तर पर प्राप्त जाति से सम्बन्धित शिकायतों के सत्यापन / सुनवाई हेतु जनपद स्तर पर गठित ज...
-
समीक्षा न्यूज नेटवर्क गाजियाबाद। वरिष्ठ समाजसेवी और उत्तर प्रदेश कांग्रेस सेवादल के प्रदेश कोषाध्यक्ष ऋषभ राणा ने हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ...
-
माननीय राज्यपाल महोदया श्रीमती आनंदीबेन पटेल द्वारा किया गया ग्राम मोरटी, ब्लॉक रजापुर, विधानसभा मुरादनगर, जनपद गाजियाबाद में देश की प्रथम ए...
No comments:
Post a Comment