श्रद्धा पूर्वक जीवित माता पिता की सेवा ही श्राद्ध है---डा.आर.के.आर्य
मृतकों का श्राद्ध अशास्त्रीय एवं वेद विरुद्ध होने से त्याज्य कर्म --सत्यवीर चौधरी
समीक्षा न्यूज नेटवर्क
गाज़ियाबाद। आर्य केंद्रीय सभा महानगर के तत्वावधान में वर्चुअल श्राद्ध तर्पण का वैदिक स्वरूप कार्यक्रम भव्यता के साथ मनाया गया जिसकी अध्यक्षता करते हुए डॉ.आर के आर्य पूर्व प्रधान भूड भारत नगर ने बताया की श्रद्धा पूर्वक जीवित माता पिता आचार्य अर्थात जो हमारी रक्षा करते हैं उनकी सेवा करना ही सच्चा श्राद्ध है जो हमें प्रतिदिन करना चाहिए।
मुख्य वक्ता आचार्य वीरेंद्र शास्त्री सहारनपुर ने अपने उद्बोधन में बताया कि आज देश में पाखंड अंधविश्वास चरम पर है जिसके कारण व्यक्ति बिना सोचे समझे अज्ञानता के साथ जीवित माता के पिता के साथ दंगम दंगा और मरे पीछे पहुचाये गंगा अर्थात जीवित माता-पिता के साथ लडाई झगड़ा उनका सम्मान ना करना और मरने के बाद आश्विन माह के 16 दिनों में जिस तिथि में उनका देहांत हुआ है उसी तिथि में पंडित इत्यादि को बुलाकर खीर पूरी हलवा इत्यादि खिला कर के दान देकर श्राद्ध करते हैं जोकि अंधविश्वास है,जो भी रक्षा करते हैं वे सब पितर हैं अर्थात हम अपने रक्षा करने वालों की श्रद्धा पूर्वक सेवा प्रतिदिन करें चाहे रक्षा करने वाले माता पिता, आचार्य,गुरु हो और पति-पत्नी भाई बहन जो भी हमारी रक्षा करते हैं उन सब की हम सेवा करें और जिस चीज को खाने से जिस वस्तु को लेने से वह तृप्त होते हो उसी को उनको देंगे तो यह तर्पण है।
मुख्य अतिथि दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के महामंत्री श्री विनय आर्य ने बताया की यदि इन दिनों के अंदर हम गुरुकुल मंदिर इत्यादि में भी कोई दान या खाद्य पदार्थ देते हैं तो यह भी अंध विश्वास है।
विशिष्ट अतिथि श्री सुभाष गर्ग प्रसिद्ध उद्योगपति समाजसेवी ने बताया की मुझे आज यह कहते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही है मैंने कभी भी अंधविश्वास पाखंड नहीं किया जब मेरे जीवित माता-पिता थे पूरी श्रद्धा के साथ उनकी सच्ची सेवा करता था।
सभी विद्वानों का और श्रोताओं का धन्यवाद आर्य केंद्रीय सभा के प्रधान श्री सत्यवीर चौधरी ने किया ओर कहा कि आश्विन मास का कृष्ण पक्ष मृत पितरों का श्राद्ध कर्म करने के लिए प्रसिद्ध सा हो गया है।इन दिनों पौराणिक नाना प्रकार के नियमों का पालन करते हैं।अनेक पुरुष दाढ़ी नहीं काटते,बाल नहीं कटाते,नये कपड़े नहीं खरीदते व सिलाते,यहां तक की विवाह आदि का कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं।कहा जाता है कि इन दिनों मृतक माता-पिता, दादी-दादा और परदादी-परदादा अपने अपने परिवारों में भोजन के लिए आते हैं और भोजन करके सन्तुष्ट होते हैं।आज के वैज्ञानिक युग में यह देखकर आश्चर्य होता है। कि लोग मध्यकालीन इस मिथ्या परम्परा को बिना सोचे विचारे मानते व पालन करते आ रहे हैं।महर्षि दयानन्द ने मृतक श्राद्ध के विरुद्ध अनेक शास्त्रीय विधान भी दिये थे जिससे यह सिद्ध होता था कि श्राद्ध मृत पितरों का नहीं अपितु जीवित माता-पिता,दादी-दादा व अन्य वृद्धों का किया जाना चाहिये। मृतक का तो दाह संस्कार कर देने से उसका शरीर नष्ट हो जाता है।उस मृतक का उसके कुछ समय बाद ही पुनर्जन्म हो जाता है।वह अपने कर्मानुसार मनुष्य या पशु-पक्षी आदि अनेक योनियों में से किसी एक में जन्म ले लेता है व यही क्रम चलता रहता है।आरम्भ में वह बच्चा होता है और समय के साथ उसमें किशोरावस्था,युवावस्था,वृद्धावस्था आती है और उसके बाद उसकी पुनः मृत्यु होकर पुनर्जन्म होता है।अतः हो सकता है कि वर्तमान में वह किसी अन्य प्राणी योनि में वह जीवन निर्वाह कर रहा होगा।जिस प्रकार हम अपने पूर्व जन्मों के परिवारों में श्राद्ध पक्ष में नहीं जा सकते,उसी प्रकार हमारे मृत पितर भी हमारे यहां भोजन करने नहीं आ सकते।यह भी असम्भव है,धार्मिक व वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से,की जन्मना ब्राह्मण का खाया हुआ हमारे पितरों को प्राप्त हो जाये।अतः किसी के भी द्वारा अपने मृत पितरों का श्राद्ध करना अनुचित व अवैदिक कार्य होने से अधार्मिक कृत्य ही है जिसका कोई तर्क, युक्ति व वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह असत्य व अविवेकपूर्ण है एवं अन्धविश्वास से युक्त कृत्य है।
सभा का कुशल संचालन आर्य केंद्रीय सभा के मंत्री श्री नरेंद्र पांचाल ने किया।
इस अवसर पर सर्वश्री श्रद्धानन्द शर्मा,ओमप्रकाश आर्य,सुभाष गुप्ता,सन्त लाल मिश्रा,कोशल गुप्ता,विजय आर्य,देवेन्द्र गुप्ता आदि उपस्थित रहे।
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