-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
हम मनुष्य हैं। मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। सृष्टि में असंख्य प्राणी योनियां हैं जिसमें एकमात्र मनुष्य ही मननशील प्राणी है। अतः हम सबको मननशील होना चाहिये। विचार करने पर लगता है कि सभी लोग मननशील नहीं होते। अधिकांश लोगों को अपने बारे में व इस सृष्टि के बारे में अनेक तथ्यों व रहस्यों का ज्ञान नहीं होता। हम कौन हैं, हम कहां से आये हैं व कहां जाना है, कौन हमें इस सृष्टि में लाया है और उससे हमें क्या क्या व कैसे सुखकारी वस्तुयें प्राप्त हो सकती हैं? हम मननशील होने के कारण ऐसे सभी प्रश्नों को जान सकते हैं और इनके आधार पर अपने जीवन के भविष्य की योजना बना सकते हैं। हमें स्वयं के साथ इस सृष्टि के रचयिता व पालक परमेश्वर को भी जानना है। जानने के बाद हमें उसे अपने अनुकूल व हितकारी भी बनाना है जिससे हमारा यह जीवन व इसके बाद का दूसरा व उसके बाद के सभी जीवन भी सुखद व उन्नति को प्रदान कराने वाले हों। ऐसा करके हम अपनी आत्मा के गुण ‘ज्ञान व कर्म’ का उचित लाभ प्राप्त करने के साथ मननशील होकर मनुष्य जीवन की उच्च स्थिति को प्राप्त हो सकेंगे। मनुष्य को उच्चतम स्थिति ईश्वर को जानकर उसका साक्षात्कार करने, वेदों का ज्ञान प्राप्त करने, ईश्वरोपासना व अग्निहोत्र यज्ञ सहित पंच महायज्ञों को करने, परोपकार, दान करने सहित देश हित के कार्यों को करने और ऐसा करते हुए अपने गृहस्थ जीवन के सभी दायित्वों का भली प्रकार से निर्वाह करने से ही प्राप्त होती है। यह स्थिति सबके प्राप्त करने योग्य है।
मनुष्य का प्रथम कर्तव्य तो उसे स्वयं का यथार्थ परिचय प्राप्त करना चाहिये और उसे जानकर आत्मा की सर्वांगीण उन्नति के लिए प्रयत्न करने चाहिये। ऐसा करना ही मनुष्य का कर्तव्य व धर्म भी होता है। आत्मा एक चेतन, अल्पज्ञ, एकदेशी, ससीम, अनादि, नित्य, अजर, अमर, अविनाशी, जन्म व मरण धर्मा, वेद ज्ञान को प्राप्त होकर सत्कर्मों व धर्म कार्यों को करने वाला तथा इनसे ईश्वर के साक्षात्कार तथा मुक्ति को प्राप्त करने वाली एक सूक्ष्म सत्ता है जो ज्ञान व कर्म करने की क्षमता से युक्त होती है। हमारी जैसी अनन्त आत्मायें इस संसार में हैं। मनुष्यों सहित पशु, पक्षी व इतर प्राणी योनियों की सभी आत्मायें भी हमारी आत्माओं के समान हैं। पूर्वजन्मों में जिस आत्मा ने मनुष्य योनि में जो शुभ व अशुभ कर्म किये थे, उनका फल भोगने के लिये ही परमात्मा ने न्यायपूर्वक उन्हें भिन्न भिन्न योनियों व परिस्थितियों में जन्म दिया है। हम शुभ व सत्कर्मों को करते हुए अपनी स्थिति को निरन्तर सुधार व संवार सकते हैं। एक बच्चा जन्म के 20-25 वर्षों में युवा बन जाता है। उसे माता, पिता तथा गुरुजन जो अध्ययन कराते हैं तथा समाज में जैसा वातावरण उसे मिलता है, वैसा ही वह बन जाता है। यदि सभी मनुष्यों को वेदज्ञान से पूर्ण वातावरण तथा वैदिक परम्पराओं का ज्ञान व अभ्यास कराया जाये तो उनका जीवन वैदिक जीवन के समान ही बनेगा। आज के मनुष्यों को यह ज्ञान नहीं होता कि वह जो भी शुभ व अशुभ कर्म करते व करेंगे, उसका फल उन्हें इस जन्म व परजन्म में भोगना पड़ेगा। इससे अनभिज्ञ रहकर कर्म करने से उनके कार्यों में लोभ व स्वार्थवश अनुचित कर्म भी हो जाते हैं जो उनका भविष्य व परजन्म बिगाड़ देते हैं। अतः मनुष्य को सावधान रहकर शुद्ध व पवित्र जीवन बनाने तथा वेद विहित सत्य व परिणाम में सुख देने वाले कर्मों को ही करना चाहिये। ऐसा करके ही मनुष्य अपने जीवन को सुधार व संवार सकते हैं तथा दूसरों को प्रेरणा भी दे सकते हैं।
मनुष्य का स्वयं को तथा इस संसार के स्वामी परमात्मा को भी जानना कर्तव्य है। इसी लिये परमात्मा ने उसे मनुष्य जन्म देकर उसे बुद्धि दी है। अपने शरीर व ज्ञान इन्द्रियों का सदुपयोग कर मनुष्य को शिक्षा प्राप्त करते हुए अनात्म के साथ आत्म तत्वों का ज्ञान भी प्राप्त करना चाहिये। इन दोनों विषयों का अच्छा संतुलित ज्ञान सत्यार्थप्रकाश सहित वेद व वैदिक साहित्य के अध्ययन से होता है। वेदों में तृण से लेकर परमात्मा सहित सभी पदार्थों का ज्ञान दिया गया है। अतः वेदों का स्वाध्याय करने से मनुष्यों को लाभ होता है। अन्य कार्यों को करते हुए सब मनुष्यों को वेद व वेदज्ञानी ऋषियों के ग्रन्थों का स्वाध्याय भी नित्य प्रति अनिवार्य रूप से करना चाहिये। इसी से मनुष्य की सर्वांगीण उन्नति होती है। स्वाध्याय से मनुष्य परमात्मा, आत्मा सहित सभी सांसारिक विषयों को उत्तम रीति से जान जाता है और इनका सदुपयोग करते हुए जीवन व्यतीत करता है। सत्यार्थप्रकाश में सत्य के अर्थ का प्रकाश तो किया ही गया है इसके साथ संसार में प्रचलित अविद्यायुक्त मत-मतान्तरों की मान्यताओं का प्रकाश व उनकी समीक्षा भी की गई है जिससे लोग सत्यासत्य को जानकर सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग कर सके। अतः सभी मनुष्यों को सत्यार्थप्रकाश सहित उपनिषद, दर्शन, विशुद्ध मनुस्मृति एवं वेदभाष्यों के अध्ययन को अपने जीवन का अंग बनाना चाहिये। इससे ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि होगी और मनुष्य को उन सत्यकर्मों जिनसे मनुष्य जीवन में सुखों का विस्तार होता है, उनका ज्ञान होगा और उन्हें करके जीवन निश्चय ही सन्तुष्ट एवं यशस्वी बनेगा।
हम प्राचीन वैदिक साहित्य पर दृष्टि डालते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि हमारे पूर्वज अति बुद्धिमान व्यक्ति सांसारिक मार्ग के विपरीत योग व वैराग्य के मार्ग पर चलते थे। जीवन में अधिक राग व मोह आदि का होना उचित नहीं होता। सबका सन्तुलन ही उचित होता है। इसके लिये हमें ऋषियों तथा महापुरुषों राम, कृष्ण, दयानन्द जी आदि के जीवन पर भी दृष्टि डालनी चाहिये। इससे हमें प्रेरणायें प्राप्त होंगी और हम जीवन में सत्य का धारण कर जीवन में ऊपर उठ सकते हैं। रामचन्द्र जी तथा कृष्णचन्द्र जी सहित ऋषि दयानन्द का जीवन धर्म की मर्यादाओं के अनुकूल जीवन था। उनके जीवन में जो गुण हमें दिखाई दें, उनको हमें अपने जीवन में भी धारण करना चाहिये। सभी मनुष्य को सत्य का पालन करते हुए देश व धर्म के हित के कार्य करने चाहिये। अपने हित व स्वार्थ के लिये कभी असत्य कर्मों व आचरणों का सहारा नहीं लेना चाहिये। यह शिक्षा हमें ऋषियों व महापुरुषों के जीवन में मिलती है। हमारे लिये भी यही मार्ग प्रशस्त एवं अनुकरणीय है।
मनुष्य जीवन की पूर्णता ईश्वर को जानकर तथा उसकी उपासना आदि साधना को करने से होती है। इसकी प्राप्ति सत्यार्थप्रकाश, पंचमहायज्ञविधि, आर्याभिविनय, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका, संस्कारविधि सहित उपनिषद, दर्शन एवं वेदों के स्वाध्याय से हो जाती है। सभी मनुष्यों को आर्यसमाज संगठन से भी जुड़ना चाहिये। इससे हमें आर्य विद्वानों की संगति का लाभ मिलता है। सभी आर्य विद्वान वेद एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन किये हुए होते हैं। उनकी संगति से हम भी वैदिक गुणों से युक्त हो सकते हैं। उन सब विद्वानों के सद्गृणों को धारण कर हम भी अपने जीवन को ऊपर उठा सकते हैं और अपना व अपने समाज का कल्याण कर सकते हैं।
ऋषि दयानन्द ने अपनी लघु पुस्तक ‘आयोद्देश्यरत्नमाला’ में मनुष्य के विषय में कहा है कि जो सत्यासत्य का विचार किये बिना किसी काम को न करे, उसका नाम ‘मनुष्य’ होता है। ‘कर्म’ के विषय में उन्होंने बताया है कि जो मन, इन्द्रिय और शरीर में जीव वा आत्मा चेष्टा विशेष करता है सो ‘कर्म’ कहलाता है। वह कर्म शुभ, अशुभ और मिश्रभेद से तीन प्रकार का होता है। मनुष्य शरीर में निवास करने वाली एक चेतन आत्मा के कारण मनुष्य कहलाता है। ऋषि दयानन्द ने जीव के सत्यस्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि जो चेतन, अल्पज्ञ, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख और ज्ञान गुणवाला तथा नित्य है, वह ‘जीव’ वा आत्मा कहलाता है। हम जो साहित्य पढ़ते हैं उसमें यह ज्ञान की बातें कहीं देखने को दृष्टिगोचर नहीं होती। अतः ऋषि दयानन्द के लघु व वृहद ग्रन्थों को पढ़कर हम ज्ञानवान बनते हैं जो अन्यथा नहीं बन सकते। ऋषि दयानन्द के ईश्वर व धर्म विषयक विचार व परिभाषायें भी हम प्रस्तुत कर इस लेख को विराम देंगे। ईश्वर के बारे में ऋषि दयानन्द ने कहा है कि जिसके गुण-कर्म-स्वभाव और स्वरूप सत्य ही हैं, जो केवल चेतनमात्र वस्तु तथा जो एक, अद्वितीय, सर्वशक्तिमान, निराकार, सर्वत्र, व्यापक, अनादि और अनन्त, सत्य गुणवाला है ओर जिसका स्वभाव अविनाशी, ज्ञानी, आनन्दी, शुद्ध, न्यायकारी, दयालु और अजन्मादि है, जिसका कर्म जगत् की उत्पत्ति, पालन और विनाश करना तथा सब जीवों को पाप-पुण्य के फल ठीक-ठीक पहुंचाना है, उसको ईश्वर कहते हैं। धर्म के विषय में ऋषि कहते हैं कि जिसका स्वरूप ईश्वर की आज्ञा का यथावत् पालन, पक्षपातरहित न्याय, सर्वहित करना है, जो कि प्रत्यक्षादि प्रमाणों से सुपरीक्षित और वेदोक्त होने से सब मनुष्यों के लिए एक और मानने योग्य है, उसको ‘धर्म’ कहते हैं। ऋषि दयानन्द ने अधर्म को भी परिभाषित किया है। इसके विषय में वह कहते हैं कि जिसका स्वरूप ईश्वर की आज्ञा को छोड़ना और पक्षपातसहित अन्यायी होके बिना परीक्षा किये अपना ही हित करना है, जो अविद्या, हठ, अभिमान, कू्ररतादि दोषयुक्त होने के कारण वेदविद्या के विरुद्ध है और सब मनुष्यों को छोड़ने के योग्य है, वह ‘अधर्म’ कहालाता है।
ईश्वर व आत्मा सहित सृष्टि को जानने से मनुष्य का ज्ञान व व्यक्तित्व पूर्ण होता है। ज्ञान के अनुरूप कर्म करना भी अत्यावश्यक होता है। यदि हम इन विषयों का ज्ञान प्राप्त किये और सदाचार से रहित जीवन व्यतीत करेंगे तो निश्चय ही हमारा जीवन अधूरा व व्यर्थ सिद्ध होगा।
"समीक्षा न्यूज" is the place where you will find all types of samikshanews & samiksha news & sameekshanews for beginners. If you are interested in samiksha newspaper then this Blog is for you.
Thursday 22 October 2020
ईश्वर को यदि न जाना व पाया तो मनुष्य जीवन अधुरा व व्यर्थ है
-
गाजियाबाद। महात्मा गांधी सभागार, कलैक्ट्रेट में जनपद स्तर पर प्राप्त जाति से सम्बन्धित शिकायतों के सत्यापन / सुनवाई हेतु जनपद स्तर पर गठित ज...
-
समीक्षा न्यूज नेटवर्क गाजियाबाद। वरिष्ठ समाजसेवी और उत्तर प्रदेश कांग्रेस सेवादल के प्रदेश कोषाध्यक्ष ऋषभ राणा ने हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ...
-
माननीय राज्यपाल महोदया श्रीमती आनंदीबेन पटेल द्वारा किया गया ग्राम मोरटी, ब्लॉक रजापुर, विधानसभा मुरादनगर, जनपद गाजियाबाद में देश की प्रथम ए...
No comments:
Post a Comment