Saturday 10 October 2020

“लोक नायक जयप्रकाश नारायण के जन्म-दिन 11 अक्टूबर 2020 पर विशेष”


प्रखर समाजवादी, स्वाभिमानी राजनीतिज्ञ, भारत रत्न लोक नायक जय प्रकाश नारायण का जन्म गाँव सिताब दियरा, जनपद सारण, बिहार प्रान्त में पिता हरसू दयाल माता फूलरानी के यहाँ 11 अक्टूबर 1902 को सुशिक्षित कायस्थ परिवार में हुआ| यद्यपि इनके पिता सरकारी नौकरी में थे फिर भी वे देश की आजादी के लिए कांग्रेस द्वारा आयोजित पटना सम्मेलन में सन 1912 में शामिल थे| इनकी माता फूलरानी सादगी, सरलता, निर्मलता की प्रतिमूर्ति थी, जय प्रकाश नारायण अपने माता पिता के उदात्त गुणों से बहुत ही प्रभावित रहे| गाँव की प्राथमिक पाठशाला में पढ़ने के बाद आप का पटना के कालेजिएट स्कूल में सातवीं कक्षा में नामांकन कराया गया, जय प्रकाश नारायण के शिक्षक ही भविष्यवाणी कर दिये थे कि यह कुशाग्र बुद्धि बालक आगे चलकर विश्व में देश का नाम रोशन करेगा| मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा उच्च अंक प्राप्त किया| 15/= रुपये प्रतिमाह छात्रवृति मिलने लगी| उन्ही दिनों असहयोग आन्दोलन देश में जोर पकड़ रहा था, हर ओर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हो रहा था|
    जय प्रकाश जी ने गाँधी जी उनके सिद्धान्त पर लिखी पुस्तक का अध्ययन किया तथा मौलाना अबुल कलाम आजाद का भाषण सुना, उसका गहरा प्रभाव उनके तरुण  मन पर पड़ा और वे प्रभावित हो कालेज छोड़ सत्याग्रही बन गये| राष्ट्रीय कालेजों की स्थापना  ‘बिहार विद्यापीठ’ के नाम से हुई, जय प्रकाश जी यहीं से आई0एस0सी0 की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की| इनका विवाह स्वभाव से सरल, अत्यंत मृदुल, कुशाग्र बुद्धि प्रभावती जी से हुआ, जय प्रकाश जी उन्हें साबरमती आश्रम में छोड़ दिया, वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गये, उनकी पत्नी कस्तूरबा गाँधी के साथ रहने लगी| कैलिफोर्निया विश्व विद्यालय में प्रवेश लिया, लेकिन शिक्षा ग्रहण करते हुए इन्हें अनेकों तरह के आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा| इन्होने फार्मों, कंपनियों, रेस्टोरेंटों में काम किया तथा जूते पालिश भी किये, दृढ निश्चयी जे0 पी0 ने हार नहीं मानी परानास्तक की डिग्री प्राप्त कर 7 साल बाद स्वदेश लौट आये|
    इण्डिया लीग ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की वास्तविक स्थिति जानने के लिए एक शिष्ट मण्डल भेजा, जय प्रकाश जी ने उन्हें अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे शोषण और अन्याय, भारतीयों के साथ किये जा रहे थे, उससे बहुत ही समझदारी से अवगत कराया, ब्रिटिश सरकार की बहुत ही बदनामी हुई, सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हें 1 साल की जेल हो गयी  यह उनकी पहली जेल यात्रा थी| जेल में ही जय प्रकश नारायण ने कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी बनाने में महत्वपूर्ण  भूमिका निभायी, द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों ने बिना किसी विचार-विमर्श के भारतीयों को युद्ध में झोंक दिया, जे0 पी0 ने कडा विरोध किया उन्हें फिर गिरफ्तार कर हजारी बाग जेल में डाल दिया गया| भारत छोडो आन्दोलन में भाग लेने के लिए योजनाबद्ध तरीके से साथियों सहित जेल की दीवार फांदकर कठिनाइयों को सहते हुए बहार आ गये, तथा जनता से अपील की कि अंग्रेजों के विरुद्ध यह अन्तिम लड़ाई है, चूँकि कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता पहले ही जेल चले गये थे, इसलिए भारत छोडो आन्दोलन का नेतृत्व जय प्रकाश जी कर रहे थे, जगह-जगह जाकर आन्दोलन में जन भागीदारी का आह्वान तथा तोड़-फोड़ के लिए लोगों को सक्रिय कर रहे थे, कि इन्हें फिर लाहौर में गिरफ्तार कर लिया गया| 12 अप्रैल 1946 को इन्हें रिहाकर दिया गया|
   15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ इनका सपना पूरा हुआ आचार्य नरेन्द्र देव के साथ मिलकर आल इण्डिया कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की स्थापना की, प्रथम आम चुनाव में 12 सीटें 1952 में जीत ली, लेकिन चुनावी राजनीति में इनका मन नहीं लगा वे सर्वोदय आन्दोलन में विनोवा भावे  के साथ काम करने लगे, हजारों एकड़ भूमि बड़े भूस्वामियों से दान में लेकर भूमिहीनों में वितरित की गयी, भूमिहीनों ने जब जमीन को उपजाऊ बना दिया तो अधिकतर भूस्वामियों ने उनसे जमीन छीन ली, इससे इन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी, 1972 में इनकी पत्नी प्रभावती जी जो कई बार स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल गयी थी, निधन हो गया, फिर भी व्यथित जय प्रकाश ने देश, समाज की सेवा को ही सर्वोपरि माना|
   1974 में बढ़ी फीस के विरोध में छात्रों का आन्दोलन गुजरात में चल रहा था, उसकी चिंगारी बिहार तक पहुँच गयी थी| सरकार तानाशाही पूर्ण तरीके से आन्दोलन को दबाना चाहती थी| जय प्रकाश जी को आभास हो रहा था कि इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त अलोकतांत्रिक कार्य कर रही है, 1975 में राजनारायण की चुनाव याचिका में अदालत ने चुनावों में भ्रष्टाचार के आरोप को इन्दिरा गाँधी के खिलाफ फैसला सुना दिया, जय प्रकाश जी ने उनको त्यागपत्र देने को कहा लेकिन उन्होंने तानाशाही पूर्ण आचरण करते हुए 25 जून 1975 को देश में आपातकाल घोषित कर दिया, विपक्षी पार्टियों के महत्वपूर्ण नेताओं को जेल में डाल दिया गया, 19 महीने बाद जब आपातकाल समाप्त हुआ, जय प्रकाश जी के नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन हुआ, 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी, जय प्रकाश जी में कभी पद की लालसा नही रही, वे निर्लिप्त भाव से देश की सेवा करना चाहते थे| अब वे लोक नायक से विभूषित हो गये थे, उन्होंने सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान किया, कि सभी को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, अध्यात्मिक, समान अवसर प्राप्त की स्वतंत्रता, समानता का अधिकार मिले, इनकी विलक्षण प्रतिभा, दृढ निश्चय, कर्तव्यपरायणता, निष्ठावान नैतिक आचरण की तारीफ स्वयं महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू भी करते थे| वे सच्चे देश भक्त थे, भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अपार कष्ट झेला, वे कर्मयोगी थे, उनके मन में सबके प्रति आदर का भाव था, वे ऊँच-नीच के भेद-भाव से परे एक आदर्श पुरुष थे, 8 अक्टूबर 1979 को पटना में उन्होंने अन्तिम साँस ली| 
    लोक नायक जय प्रकाश को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया, हम सभी उनके विचार के वाहक उन्हें स्मरण कर गौरव का अनुभव करते है कि उन्होंने देश और समाज के सर्वांगीण विकास के लिए सम्पूर्ण जीवन लगा दिया, यद्यपि उन्होंने सन्तान न पैदा करने का वचन ब्रह्मचर्य व्रत का पत्नी प्रभावती जी के साथ पालन करने का लिया था, लेकिन उनके विचार-आचार पर चलने वाली करोड़ों संतान उन्हें नमन, वन्दन, अभिनन्दन करते हुए स्मरण करतीं रहेंगीं| उनके सम्मान में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने जय प्रकाश शीर्षक से काव्य लिखा:-


                                “वह सुनो भविष्य पुकार रहा,
                                वह दलित देश का त्राता है|
                                स्वपनों का दृष्टा जय प्रकश,
                                भारत का भाग्य विधाता है”||  



लेखक:                                                                                                                                                           राम दुलार यादव 


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