Thursday 1 October 2020

मोहन दास कर्मचन्द गाँधी से महात्मा गाँधी तक का सफ़र


महात्मा गाँधी के, जन्म दिन 2 अक्टूबर 2020 के अवसर पर विशेष:-
सरलता, सादगी, सत्य, अहिंसा की विलक्षण मूर्ति, सत्याग्रह, उपवास के अद्भुत शक्ति पुंज, समता, समानता, न्याय व बंधुत्व के लिए जीवन भर संघर्षरत महामानव, देश भक्त, स्वतंत्रता सेनानी मोहनदास कर्मचन्द गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 में काठियावाड गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था उनकी माता का नाम पुतलीबाई तथा पिता कर्मचन्द पोरबन्दर के दीवान थे, उनके पिता सत्यप्रिय, साहसी, दृढ चरित्र, व्यवहारिक सहज बुद्धि के व्यक्ति तथा माता धार्मिक, सज्जन व अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा रखने वाली महिला थी जिसका प्रभाव मोहनदास पर पड़ना स्वाभाविक था स्वयं महात्मा गाँधी ने यरवदा जेल में अपने मित्र से कहा था कि मेरे अन्दर जो सत्यता, नैतिकता है मेरी माता जी की देन है उनका प्रभाव पिता जी से अधिक मेरे पर पड़ा|
  मोहन बहुत प्रतिभावान छात्र नहीं थे, जब उनका दाखिला राजकोट के हाई स्कूल में हुआ, वे औसत दर्जे के छात्र थे उनमे कई दुर्व्यसन छात्र जीवन से लग गये थे, जिसका वर्णन स्वयं महात्मा गाँधी ने “सत्य के साथ मेरा प्रयोग” पुस्तक में किया है| छात्र जीवन में ही जब वे 13 वर्ष के थे उनका विवाह कस्तूरबाई से हुआ, आर्थिक तंगी झेलते हुए मोहनदास 1891 में इंग्लॅण्ड से बैरिस्टरी पास कर पहले राजकोट, फिर बम्बई में वकालत करने लगे 1893 में उन्हें एक मामले में दक्षिणी अफ्रीका जाने का अवसर मिला वहाँ अंग्रेजों द्वारा अफ्रीका व भारत के लोगों के साथ रंगभेद नीति के विरुद्ध विरोध प्रकट किया तथा जेल भी गये लेकिन उनका सविनय अवज्ञा आन्दोलन जारी रहा, अंग्रेजों को 1914 में भारतीयों के विरुद्ध अधिकतर कानूनों को रद्द करना पड़ा इसके लिए मोहनदास को गम्भीर यातनाएं झेलनी पड़ी तथा कातिलाना हमला सहन करना पड़ा लेकिन अपमानित होते हुए भी उन्होंने कभी सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह की राह नहीं छोड़ी| 
     महात्मा गाँधी दो दशक से अधिक समय तक अन्याय, अत्याचार व शोषण के विरुद्ध अफ्रीका में संघर्ष कर उन्हें अधिकार दिलाया, 1915 में स्वदेश लौट आये| शांति निकेतन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ के आश्रम में मिले वहीँ पर गुरुदेव ने प्रथम संबोधन मोहनदास के लिए महात्मा किया वे मोहनदास कर्मचन्द गाँधी से महात्मा गाँधी हो गये, महात्मा गाँधी गोपाल कृष्ण गोखले के विचारों से बहुत प्रभावित थे, गुरूजी के आश्रम में जब उन्होंने सुना कि गोखले जी का निधन हो गया तो वे शांति निकेतन से पूना आ गये, तथा गोखले को दिये गये बचन का पालन करते हुए एक साल तक भारत का भ्रमण करते हुए देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक तथा धार्मिक स्थिति का अध्ययन करते रहे|
    1917 में एक साधारण किसान राज कुमार शुक्ल के अनुरोध पर नील की खेती करने वाले किसानों को संगठित कर उनका शोषण कर रहे यूरोपीय व्यापारियों से सत्याग्रह के बल पर मुक्त कराया इस सफलता ने महात्मा गाँधी में उत्साह का बीजारोपण कर दिया कि अंग्रेज जो भारत को गुलाम बना देश का आर्थिक शोषण कर रहे हैं अजेय नहीं है| 1919 में रौलट एक्ट पारित होने तथा जलियाँ वाले बाग में हजारों निहत्थे लोगों को गोलियों से भून डालने के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन 1920में पारित किया, 1921 में 30000 से अधिक भारतीय जेल गये इसी बीच 1922 में उ0प्र0 के चौरी-चौरा में पुलिस चौकी में जनता ने आग लगाकर पुलिस वालों, बच्चों व महिलाओं को जला दिया| महात्मा गाँधी ने आन्दोलन वापस ले लिया तथा कहा कड़े अनुशासन से ही सत्याग्रह सफल होता है हिंसा से नहीं| 1930 को नमक कानून को तोड़ने का कार्य किया 78 सहयोगियों के साथ दांडी मार्च कर अवैध नमक बनाया, हजारों लोग मार्च में शामिल हो गये| गाँधी जी ने कहा कि “सत्ता के सामने अधिकार के लिए लड़ी जा रही इस लड़ाई में मै दुनिया भर के सभी लोगों की सहानुभूति मांगता हूँ| अंग्रेजी सरकार आश्चर्यचकित रह गयी जबकि वह इस अभियान का मजाक उड़ा रही थी 
क्रमश: पृष्ठ 2.......
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खेडा के किसानों की लगान माफ़ करवाने का कार्य सरदार पटेल जी के नेतृत्व में किया| मलिन बस्तियों में रहकर स्वच्छता का सन्देश तथा छुवा-छूत के विरोध में जन-जागरण अभियान चलाया तथा मानव को शिक्षा का सन्देश दिया| सविनय अवज्ञा आन्दोलन भी असफल रहा लेकिन 1934 तक यह आन्दोलन सर्व साधारण जनता का आन्दोलन बन गया|
   1939 में द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ हो गया बिना भारत के नेताओं की मंत्रणा के जनता को बिना बताये अंग्रेजों ने युद्ध में झोक दिया| कांग्रेस सम्मलेन में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि हम न इस युद्ध में एक भाई देंगें न एक पाई देंगें तथा 1942 में “अंग्रेजों भारत छोडो” “करो या मरो” का नारा दिया कि हम आजाद होंगें या सत्याग्रह करके मर जायेंगें, सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गये जेल में ही 1944 में कस्तूरबा जी का देहावसान हो गया, 1945 आते-आते द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्र विजय की ओर बढ़ रहे थे इसी समय जून 1945 में शिमला में सम्मलेन बुलाया गया लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका अंग्रेज प्रधानमन्त्री ने भारत की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया तथा अंतरिम सरकार के प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू को बनाया गया, लेकिन बंगाल में सांप्रदायिक दंगा फ़ैल गया जिसकी लपट पूरे देश में फ़ैल गयी| 1947 में माउन्ट बैटन वाइसराय बने लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनी कि देश का बटवारा भारत तथा पाकिस्तान के रूप में हुआ, जन-धन की हानि हुई, खून खराबे से सनी आजादी भारत को मिली गाँधी जी आहत हो कई-कई दिन दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर हिन्दू-मुसलमानों में भाई-चारा स्थापित हो लगातार प्रयत्न करते रहे, देश शांति हो चाहे मेरी जान चली जाय व्यथित गाँधी ऐसा सोच कर बिहार, बंगाल में शांति की अलख जगाते रहे, लेकिन आजाद भारत ने इस सन्त को जो जीवन भर अन्याय, शोषण, असमानता के लिए लड़ता रहा तथा भारत को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी उसे भी सम्भाल नहीं पाया 30 जनवरी 1948 को महात्मा गाँधी को सिरफिरे ने गोली मारकर हत्या कर दी| शहादत के पहले गाँधी जी ने कहा था कि “मै तो गरीब साधू हूँ, छह चरखे, जेल की थाली, बकरी के दूध का एक बासन, खादी के छह लंगोट, तौलिया ही मेरी एहिक पूँजी है, मेरी कीर्ति की अधिक कीमत नहीं हो सकती|
एक भजन भी मनू ने कहा 
          “ऐ मनुष्य, तू थका हो या नहीं, आराम मत कर” |
  महात्मा गाँधी ने सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह उपवास से शक्तिशाली साम्राज्य से संघर्ष कर भारत को आजादी दिलाई, आजादी के लिए लाखों भारत माँ के सपूतों ने अपनी जान दी, तथा यातनाएं झेली, विश्व इतिहास में महात्मा गाँधी का नाम अग्रिम पंक्ति में इसलिए है कि उन्होंने न केवल भारत को गुलामी व शोषण से मुक्त करने का कार्य किया बल्कि सामाजिक असमानता, स्वच्छता पर जोर, शिक्षा के प्रसार, छुवा-छूत के विनास तथा भाई-चारा को बढ़ाने के लिए दिन-रात एक कर दिया, आधी धोती पहनने वाला महात्मा “मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है” त्याग की अद्भुत मिसाल समाज को दे पंचत्व में विलीन हो गया| सन्त को शत-शत नमन, हम एक भी कदम महात्मा के साथ चलें यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी|
                                                                       
लेखक:-
राम दुलार यादव
समाजवादी चिन्तक 
संस्थापक / अध्यक्ष
लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट 
       


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