Sunday 18 October 2020

रामायण अशोक सपड़ा लिखित

राम सिया के संग आये है केसरीनन्दन
राम राम मेरा सबको सबका अभिनंदन


राम सिया राम सिया राम जय जय राम


अयोध्यावासियों की आखँ का तारा
राजा दशरथ के आंगन में अवतारा
श्रृंगी ऋषि ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया
प्रकट हो अग्निदेव से खीर जो पाया
कैकयी ओर कौशल्या ने अपनाया
अपने हिस्से से सुमित्रा को खिलाया
राम लखन भरत शत्रुघ्न भाई लाया
राम लखन देख ,आँखें न ले विश्राम
राम सिया राम ,,,,,


अंजनी माता भी करती यही पुकार
पुत्र प्रप्ति का वर दो प्रेतो के सरकार
इच्छाओं में इच्छा मेरी गोद में आओ
आओ प्रभु घर मेरे लेकर रुद्र अवतार
अंजनी मईया ले लो यही तुम वरदान
मारुति रूप में आयें तेरे शंकर भगवान
ले जन्म से ह्रदय में ज्योति जागृत राम
राम सिया राम,,,,,,,


पुर्नजन्म का था सुनलो किस्सा महान
मनु शतरूपा को विष्णु जी का वरदान
जन्म लेकर आऊँगा मै लक्ष्मी सँग शेष
पिता दशरथ मां कौशल्या का दूँ स्थान
मृर्यादा स्थापित कर रखुँ कुल का मान
माँ पिताजी के चरणों में रहेगा भगवान
संसार मे रघुकुल रीति का हो बड़ा नाम
राम सिया राम,,,,,,


विष्नु शेष बिन क्या रही अपनी कहानी
मां लक्ष्मी की आँखों मे अब थोड़ा पानी
जनकपुरी में राजा जनक बने शेतीकार
हल जोते जोते मटके में है बिटिया रानी
वैदेही नाम दे मां सुनयना ने है अपनानी
घर आई लक्ष्मी बन लक्ष्मी कहें ऋषि मुनि
जनक पूरी ख़ुशी से जनक हुए बड़े दानी
अयोध्या ,जनकपूरी अंजन खुशी इस कदर
नज़र न लगे मेरी भगवन को इधर या उधर
इन खुशियों का ठहरा यहाँ कोई भी दाम
मारुति सिया की धड़कन बोले है श्री राम
राम सिया राम,,,,,


राजा दशरथ जी को पुत्र रत्न हो जिसके लिए प्रेरणा बनी माता अरुंधती जो गुरु राजगुरू वशिष्ठ की पत्नी थी
कैसे उनकी बात चीत है बीच मे देखिये


माता अरुंधती बोले गुरु प्रियवर ये बतलाओ
राजगुरु इस अयोध्यापति के तुम कहलाओ
टूटी पिता की लाठी कौन बने ये समझाओ
धैर्य शांति बहुत हुई आँगन में फूल खिलाओ


गुरु वशिष्ठ उवाच पत्नि अन्धतीजी से कहें


पुत्रकामेष्टि यज्ञ के लिए हो दशरथ का मन
सन्तान उतपत्ति हो फिर उसके भी ऑंगन
कौशल्या सुमित्रा कैकयी आस में रहे बैठी
कुछ तुम भी करो ये उपकार गुरु माता बन
मां का अपना दायित्व स्वीकार करो जो तुम
देता नरेंद्र को पुत्रकामेष्टि यज्ञ का तुम्हें वचन
थाम बागड़ोर हाथ में माता चली जो निष्काम
राम सिया राम,,,,,,


माँ अरुंधति चली दशरथजी के महल के द्वार
गोद मे सन्तान अपनी लेकर मन मे ये उदगार
राजा दशरथ जी ने जो गोद में बालक उठाया
पीछे से माता अरुंधती ने चूकोटी दी उसे मार
बालक रोये पूछे राजा जी ये रोये क्यो बार बार
माता कहती बालक कहें मैँ किसका सेवादार
राजा जी तो निसन्तान ठहरे कैसे होगा उद्धार
राजा दषरथ ग्लानि से गुरुदेव बुलाये उस शाम
बोले गुरु जी चार पुत्र होंगे राजा तेरे इस धाम
राम सिया राम जय,,,,,,



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