Saturday 17 October 2020

योग निद्रा एवं ध्यान के सम्बंध में अर्चना शर्मा (योग शिक्षिका व रेकी मास्टर हीलर) की राय


सुशील शर्मा—समीक्षा न्यूज
गाजियाबाद। आप योग निद्रा को आध्यात्मिक नींद भी कह सकते हैं। योग निद्रा सोने व जागने के बीच की ऐसी अवस्था है जिसमें आप अपने शरीर को आराम पहुंचाते हुए नवीन ऊर्जा को संरक्षित करते हैं। इसके अभ्यास के शुरूआती दौर में आप कुछ समय के लिए सो भी सकते है, परंतु धीरे-धीरे आपको इसे करने का सही तरीका आ जाएगा। इसको करते समय आप जमीन पर आराम से लेट जाएं और अपनी सांसों पर ध्यान देते हुए, अंर्तमन में झांकने का प्रयास करें। कुछ समय बाद आप शांति महसूस करने लगेंगे। इसी अवस्था को योग निद्रा कहा जाता है। कुछ समय की योग निद्रा आपकी घंटों की नींद से प्राप्त हुए आराम के सामान ही होती है। योग निद्रा को लगातार करने से आपका मस्तिष्क पहले की अपेक्षा अधिक सक्रिय हो जाता है। योग के अन्य आसनों के पश्चात् जब आप योग निद्रा करते हैं, तो आपका शरीर थकान रहित हो जाता है और आपकी ऊर्जा का स्तर नियत्रंण में आ जाता है।
ध्यान  को समझने के लिए  आपको समझना होगा हमारे  मन में एक साथ असंख्य कल्पना और विचार चलते रहते हैं।  इससे मन-मस्तिष्क में कोलाहल-सा बना रहता है। हम नहीं चाहते हैं फिर भी यह चलता रहता है। आप लगातार सोच-सोचकर स्वयं को कम और कमजोर करते जा रहे हैं। ध्यान अनावश्यक कल्पना व विचारों को मन से हटाकर शुद्ध और निर्मल मौन में चले जाना है।ध्यान जैसे-जैसे गहराता है व्यक्ति साक्षी भाव में स्थित होने लगता है। उस पर किसी भी भाव, कल्पना   और विचारों का क्षण मात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता। मन और मस्तिष्क का मौन हो जाना ही ध्यान का प्राथमिक स्वरूप है। विचार, कल्पना और अतीत के सुख-दुख में जीना ध्यान विरूद्ध है।ध्यान में इंद्रियां मन के साथ  ,मन बुद्धि के साथ और बुद्धि अपने स्वरूप आत्मा में लीन होने लगती है। जिन्हें साक्षी या दृष्टा भाव समझ में नहीं आता उन्हें शुरू में ध्यान का अभ्यास आंख बंद करने करना चाहिए। फिर अभ्यास बढ़ जाने पर आंखें बंद हों या खुली, साधक अपने स्वरूप के साथ ही जुड़ा रहता है और अंतत: वह साक्षी भाव में स्थिति होकर किसी काम को करते हुए भी ध्यान की अवस्था में रह सकता है।


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