धनसिंह—समीक्षा न्यूज
समाजसेवा, साहित्य और संस्कृति को समर्पित 'साक्षी' संस्था के फेसबुक पेज 'जश्न-ए-हिन्द' के साप्ताहिक आयोजनों की श्रृंखला में कल रविवार रात 8 बजे लघुकथा गोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें देश के जाने माने लघुकथाकारों ने भाग लिया।
हर चीज का एक समय होता है, पिछली सदी में लघुकथा ने संघर्ष किया, अपनी पहचान बनाई| इक्कसवीं सदी में वह फैलाव ले रही है। और अब लघुकथा का समय चल रहा है।- यह उदगार हैं करनाल (हरयाणा) से वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. अशोक भाटिया के। अपनी बात कहते हुए डॉ. भाटिया ने अपनी लघुकथाएँ ‘जिंदगी’ और ‘स्त्री कुछ नहीं करती’ सुनाया जिसमें मजदूरों के जीवन के कठोर सत्य एवं स्त्री की दिनचर्या में छुपी अनेक अनचीन्हीं विसंगतियों को रेखांकित किया गया था।
सहभागी रचनाकारों में सर्वप्रथम दिल्ली से सुश्री शोभना श्याम ने अपनी लघुकथाएँ ‘बक्शीश’, ‘कुतरे हुए नोट का’ एवं ‘बेटी’ का पाठ किया जिसमें रिक्शावाले के प्रति सवारी की मानवीय भावना, कॉर्पोरेट जगत की वितृष्णा एवं बस में सफ़र करती लड़की के प्रति कुत्सित भावनाओं को रेखांकित किया गया था।
तत्पश्चात भोपाल (मध्यप्रदेश) से सुश्री कान्ता रॉय ने अपनी लघुकथाएँ ‘बैकग्राउंड’, ‘विलुप्तता’ और ‘कागज का गाँव’ का वाचन किया जिसमें मानवीय मूल्य, पर्यावरण एवं सरकारी योजनाओं से सम्बंधित विसंगतियों का चित्रण किया गया था।
दिल्ली से वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने अपनी दो लघुकथाएँ ‘लाभार्थी’ और ‘मानुष गंध’ का पाठ किया। इन दोनों कथाओं में भ्रष्टाचार में लिप्त सिस्टम पर तीखा व्यंग्यात्मक शैली में एवं अकेलेपन का दर्द का मार्मिकता से चित्रण किया गया था। उल्लेखनीय है कि कविता सहित साहित्य की अन्य विधाओं के महारथी वाजपेयी की पहली लघुकथा का प्रकाशन सन 1975 में हुआ था। इसके तुरंत बाद हिसार (हरियाणा) से वरिष्ठ लघुकथाकार कमलेश भारतीय ने ‘सात ताले और चाबी’, ‘खोया हुआ कुछ’ और ‘जन्मदिन’ का पाठ किया। भारतीय की लघुकथाओं में स्त्री विमर्श, प्रेम एवं बेटियों के प्रति सहृदयता को रेखांकित किया गया था। वाचन की श्रृंखला में दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकार महेश दर्पण ने अपनी तीन लघुकथाएँ ‘नंबर’, ‘मासूम’ और ‘प्रकृति, पौधा और प्यार’ में जीवन से जुड़ी विविध दशाओं का चित्रण किया। इन लघुकथाओं में मृत्यु के बाद मानवीय रिश्ते का द्वंद्व मोबाइल नम्बर, बालमन का विश्लेषण एवं पर्यावरण सम्बन्धी चेतना संपन्न कथ्य का समावेश किया गया था।
मंच का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार सुश्री ममता किरण ने किया। इस गोष्ठी का समापन करते हुए सुश्री ममता बढ़ती कतारों पर तुलनात्मक दृष्टि डालते हुए मांगने वाले गरीब गुरबे की मन्नतें क्यों पूरी नहीं होती, जैसे अनेक प्रश्न उठाए गए।
अंत में अतिथियों एवं श्रोताओं का आभार दशकों से समाज सेवा व साहित्य और संस्कृति को समर्पित डा० मृदुला सतीश टंडन ने किया|
इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में देश-विदेश के जाने माने रचनाकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित रहे और लगातार अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियां देते रहे।
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