हिन्दी संस्थान के अध्यक्ष राजनारायण शुक्ल ने महफ़िल-ए-बारादरी को बताया महानगर की आत्मा
"खुदाई चल रही है दिल जमीन की, पुराना शहर जिंदा हो रहा है" : रहमान मुसव्विर
धनसिंह—समीक्षा न्यूज
गाजियाबाद। महफ़िल-ए-बारादरी को संबोधित करते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के अध्यक्ष राज नारायण शुक्ल ने कहा कि कोई भी शहर शरीर की तरह होता है। जबकि वहां होने वाले साहित्यिक व सांस्कृतिक आयोजन उसकी आत्मा होते हैं। वही शहर जीवंत होते हैं जिनमें साहित्यिक आयोजनों की आत्मा बसती है। अपने संबोधन में श्री शुक्ल ने कहा कि बारादरी और मीडिया 360 लिट्रेरी फाउंडेशन की बिरादरी साहित्य, कला और संस्कृति को पोषित करने के साथ निरंतर समृद्ध कर रही है। जिसके चलते कंक्रीट के जंगल की साहित्यिक भूमि दिनों दिन उर्वरक हो रही है।
नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री शुक्ल ने कहा कि महफ़िल-ए-बारादरी में आकर उनका मन, मस्तिष्क, आत्मा और शरीर चारों तृप्त हो गए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और मशहूर शायर जनाब रहमान मुसव्विर ने अपने अशआरों पर दाद बटोरते हुए फरमाया "खुदाई चल रही है दिल जमीन की, पुराना शहर जिंदा हो रहा है।" "मेरे कमरे में भरा रहता है दस्तकों का गुबार, यह वो घुन है जो किवाड़ों को खा जाता है। रात करती है खामोशी से हिफाजत दिन की, दिन मगर चांद सितारों को भी खा जाता है। ये तो पानी पर है कि दरिया से बना कर रखे, वर्ना सैलाब तो किनारों को भी खा जाता है।" महफ़िल-ए-बारादरी की संस्थापक अध्यक्ष डॉ. माला कपूर 'गौहर' ने अपने शेरों "रंग जुल्फों के सुनहरे क्यूं हैं, इतने रंगीन अंधेरे क्यूं हैं। उसको शिकवा है मेरी आंखों से, अर्थ बातों के इकहरे क्यूं हैं। आंखें गूंगी तो नहीं हैं 'गौहर', सिर्फ आवाजों पर पहरे क्यूं हैं" पर खूब वाहवाही बटोरी। संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने मशहूर शायर जनाब कृष्ण बिहारी नूर साहब के जन्म दिवस की पूर्व संध्या को समर्पित महफिल में उन्हें याद करते हुए उनके चुनिंदा शेर यूं कहे "लब क्या बताएं कितनी अजीम उसकी जात है, सागर के सीपियों से उलचने की बात है।" अपने अशआर पेश करते हुए उन्होंने कहा "आंखें जब खामोशी गाने लगती हैं, दर्पण से आवाजें आने लगती हैं। दिल में कैद तमन्नाओं को मत करना, दीवारों से सर टकराने लगती हैं।" मीडिया 360 लिट्रेरी फाउंडेशन के "नवदीप" सम्मान से पुरस्कृत माधवी शंकर ने कहा "किसी ने पूछ लिया उसका नाम तब आया, नहीं तो इतने बरस अपना ध्यान कब आया? मिटा के सारे निशां कल के बढ़ चुके आगे, उसे ख़याल भी आया मेरा तो अब आया, ज़रूर काम कोई मुझसे पड़ गया होगा, नहीं तो कैसे उसे बात का ये ढब आया"। सुरेन्द्र सिंघल ने कहा "तेरी चुटकी में जो तितली फंसी हुई है दोस्त, सोच कुछ सोच जो इस पर गुजर रही है दोस्त।" मासूम गाजियाबादी ने कहा "जो हम से बच गई बच्चों तुम ही गिरा देना, तास्सुब की यह दीवारें हिला तो हम ही जाएंगे।" " बही की लाश को नेकी के दरिया में बहा दीजे, फिर उसके बाद अच्छे बुरे का मशवरा दीजिए।" अनिमेष शर्मा ने कहा "धोखा खाकर भी हम ही शर्मिंदा रहते हैं, इस उस पर इल्जाम लगाना छोड़ दिया हमने।" रवि पाराशर ने कहा "सेठ के घर की दुधारू गाय है बापू, तब कहीं जाकर हमारी चाय है बापू।" तारीफ़ नियाजी ने भी अपने शेरों "कभी कभी उन्हें करना करम भी आते हैं, सितम के वक्त सही, याद हम ही आते हैं। मोहब्बतों में दिल की ख़ुशी तो मिलती है, मगर कहीं से दबे पांव गम भी आते हैं" पर दाद बटोरी।
कार्यक्रम का सफल संचालन करने वाली तरुणा मिश्रा ने फरमाया "इश्क वो भी सोच कर हमशे नहीं हो पाएगा, यानी किस्सा मुख्तसर हमसे नहीं हो पाएगा।" मनु लक्ष्मी मिश्रा ने कविता में कहानी कुछ यूं बयान की "वह तोते की कहानी, वह मैना के किस्से, वह राजा और रानी संग रोटी के गस्से, शबो रोज लोरी गुनगुना कर सुलाना तुमको, या फिर गुदगुदा कर हंसाना तुमको।" नेहा वैद के गीत की पंक्तियों "कह तो देता मैं अपना दुख लेकिन चंद्र-मुखी! मेरे दुख से तेरा सुंदर मुख कुम्हला जाता" और इंद्रजीत सुकुमार के गीत की पंक्तियां "रिश्तों की सीमा से आगे उर से कोई रिश्ता जागे, संबंधों की उड़े पतंगें, उलझ रहे रिश्तों के धागे, फिर भी हमको बांध रही एक अंजानी सी डोर, संभाले आओ मन के छोर हवाएं पागल हैं मुंहजोर" भरपूर सराही गईं। तूलिका सेठ की पंक्तियों "दिए बन कर जो तूफ़ानों में जलना सीख जाते हैं, वो हर हालत में मुश्किल से निकलना सीख जाते हैं, जहांं बचपन में छिन जाता है साया मां के आंचल का, वो बच्चे धूप की गर्मी में पलना सीख जाते हैं" और सोनम यादव की पंक्तियों "उल्फत के चांद ने फिर आवाज़ दी फलक से,
चंदा की चांदनी में देखेंगे आज जल के। गुंचे गुलों से मिलकर करते हैं गुफ्तगू सी, अफसाने बन रहे हैं सोनम तेरी ग़ज़ल के" को श्रोताओं की भरपूर दाद मिली। सुभाष चंदर, आलोक यात्री, सिनीवाली शर्मा, रूपा राजपूत, आशीष मित्तल, अशोक पंडिता आदि के गीत, गजल और कविताएं भी सराही गईं। कार्यक्रम में डॉ. रमा सिंह, रविन्द्रकांत त्यागी, डॉ. ज्ञान प्रकाश गर्ग, डॉ. वी.के. रस्तौगी, वागीश शर्मा, अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव, नरेश वत्स, तिलकराज अरोड़ा, राममूर्ति शर्मा, राकेश सेठ, रवि शंकर पांडेय, सुशील शर्मा, अशहर इब्राहिम, ललित चौधरी, सोनिया चौधरी, तुलिका गुप्ता, संजय कश्यप, टेक चंद, राकेश मिश्रा, पी.पी. पांडेय, इंदू पांडेय, शशि, कविता अरोड़ा, निरंजन शर्मा, आशीष मैत्रेय सहित बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित थे।
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