मेरा दिल तोड़ने का यारों ठेका वो लिए बैठे है
पूछा जो हमनें तो बोले मौका मिला, लिये बैठे है
पूछ ली हमनें की कीमत क्या तय है ठेके की
हुजूर के ख़्वाब ऐसे जैसे खोके लिये बैठे है
ज़ख्म दिखा डाला हमने भी झूठो के शहर में
लोगों को देखा नमक के फाकें लिए बैठे है
आज के बाद दिल टूटेगा तो जुड़ जाये न कही
हमारे दुःख पर लोग तो ठहाके लिए बैठे है
आज के बाद इस दिल मे नहीं रहेगा कोई औऱ
यह कहकर हम सरकार से टोल नाके लिए बैठे है
यह कहकर हम सरकार से ,....
कविता अशोक सपड़ा की
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