भाई-बहन के धर्म-आस्था व अटूट बंधन का संवाहक है राखी-डा० प्रमोद


डा० प्रमोद उनियाल
वरिष्ठ भाजपा नेता एवं मीडिया प्रभारी 


वाचस्पति रयाल

नरेन्द्रनगर। रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की अटूट डोर का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार देश भर में हर वर्ष सावन के महीने की पूर्णिमा को बड़ों धूम-धाम से मनाया जाता है।

   हिंदू परंपराओं के अनुसार यह पर्व भाई-बहन के स्नेह के साथ सामाजिक बंधन को मजबूत बनाता है।

बहन,भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं तो भाई बहन के सभी दायित्वों को निभाने का वचन देता है।

   रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट आस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक तथा सामाजिक महत्व को संजोए रखने में बेहद अहम है।

  

वरिष्ठ भाजपा नेता एवं मीडिया प्रभारी डा० प्रमोद उनियाल रक्षा सूत्र की पौराणिक कथाओं का सार मार्मिक शब्दों में बयां करते हुए कहते हैं,रक्षाबंधन पर आस्था अन्य धर्मों के मानने वालों की भी रही है,इसके प्रमाण इतिहास के अजर -अमर दस्तावेज में निहित हैं।उनियाल का कहना है कि भाई-बहन के धर्म-आस्था व अटूट बंधन का संवाहक है रक्षा सूत्र

  रक्षाबंधन की पौराणिक कथाओं का सार बताते हुए डॉ प्रमोद उनियाल कहते हैं कि:- 

1 भविष्य पुराण कथा के अनुसार वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षा सूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा कि दिन इंद्र की कलाई पर बाँध दिया। इस रक्षा सूत्र ने देवराज की रक्षा की और वे युद्ध में विजयी हुए। घटना सतयुग  की मानी जाती है।


2:- राजा बलि और लक्ष्मी मां कथा अनुसार राजा बलि बहुत दानी थे,वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे।राजा बलि के यज्ञ में भगवान विष्णु राजा की परीक्षा लेने बावन अवतार धारण कर पहुंच गए।और 3 पग भूमि देने को कहा। दो पग में पूरी पृथ्वी व आकाश नाप लिया। राजा बलि समझ गए भगवान परीक्षा ले रहे हैं,तो उन्होंने तीसरा पग सर पर रखवा दिया। भक्तों के अधीन भगवान विष्णु बलि की विनती पर बैकुंठ छोड़कर पाताल चल दिए, परेशान माता लक्ष्मी,गरीब महिला के रूप में बलि के सामने जा पहुंची,और राजा बलि को राखी बाँधी।बलि बोले कुछ भी तो नहीं बचा मेरे पास देने के लिए। माता लक्ष्मी अपने वास्तविक रूप में आई और कहा आपके पास तो साक्षात भगवान हैं।उन्हें ही लेने आयी हूँ।बलि निरूत्तर हुए व भगवान विष्णु को जाने दिया माता लक्ष्मी के साथ।


3:-जब द्रोपदी को भगवान कृष्ण बोले मुँहबोली बहन इस कथा का सार बताते हुए डॉ प्रमोद उनियाल कहते हैं कि जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ कर रहे थे,उस समय सभा में शिशुपाल भी मौजूद था, अभद्रता की सीमा लांघने पर भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का बध कर डाला। सुदर्शन चक्र के वापसी में कृष्ण की अंगुली चोटिल हो, रक्त बहने लगा। यह देख द्रोपदी ने साड़ी का पल्लू फाड़कर श्री कृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। श्री कृष्ण भगवान ने वचन दिया कि एक- एक धागे का वे ऋण चुकाएंगे।

कौरवों द्वारा द्रोपदी के चीर हरण के दौरान श्री कृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रोपदी की लाज रखी। द्रोपदी द्वारा साड़ी का पल्लू फाड़ने व कृष्ण की उंगली पर बांधने की घटना भी श्रावण पूर्णिमा दिन की बताई जाती है।

4:- जब युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को बांधी राखी पांडवों कोे महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षा सूत्र की योगदान कथा सर्वविदित है। युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से संकटों से पार पाने की बात कही तो कृष्ण ने कहा अपनी सारी सेना को रक्षा सूत्र बांधें। विजय सुनिश्चित होगी।युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और वे युद्ध जीत गए। यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा की तिथि पर घटित हुई मानी जाती है।


5:- सिकंदर महान और महाराजा पुरू के बीच भी है रक्षा सूत्र की कहानी सिकंदर जब पूरे विश्व को फतह करने निकला और भारत आ पहुंचा तो यहां उसका सामना राजा पुरू से हुआ।पुरू वीर व शक्तिशाली राजा था।उसने युद्ध में  सिकंदर को धूल चटा दी। इसी दौरान सिकंदर की पत्नी को भारतीय त्योहार रक्षाबंधन के बारे में पता चला तब उन्होंने अपने पति सिकंदर की जान बक्शीश के लिए राजा पुरु को राखी भेजी। राजा पुरु आश्चर्य में पड़ गए। लेकिन राखी के धागों का सम्मान करते हुए उन्होंने युद्ध के दौरान जब सिकंदर पर हाथ उठाया तो हाथ पर बंधी राखी को देखकर वे ठिठक गये। और इसी का फायदा उठाकर सिकंदर ने उन्हें बंदी बना लिया। दूसरी ओर पुरू की कलाई पर राखी बंधी देख सिकंदर ने भी धर्म निभाते हुए, पुरू का राज्य वापस लौटा दिया।

6:- पन्ना की राखी ने दो मुगल साम्राज्यों में कराई मैत्री पन्ना जो मुगलों के घेरे में थी, दूसरे रियासत की शासकों को राखी भेजी मुगल पराजित हुए, मगर दोनों रियासतों के बीच मैत्री और सद्भाव का वातावरण कायम हो गया। यह सब कुछ एक राखी से ही संभव हुआ।


7:- राखी के धागों ने कर्मवती व हुमायूं के बीच स्थापित किया भाई बहन का प्यार मध्यकालीन इतिहास की यह घटना बताती है कि चित्तौड़ की हिंदू रानी कर्मावती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को अपना भाई मान कर उनके पास राखी भेजी थी,हुमायूं ने रानी कर्मावती की भेजी राखी एक भाई की तरह स्वीकार की और रानी के सम्मान को बचाने के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध कर डाला।

  रक्षा बंधन भाईचारे की एक अनूठी मिशाल है।यह पवित्र परंपरा न शिर्फ हिन्दुओं में बल्कि मुसलमानों में भी मान्य रही है।आज के विकृत होते जा रहे समाज में ये रक्षाबंधन के पुरानी घटनाएं आज के समाज के लिए प्रेरणाप्रद उदाहरण हैं।

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