समीक्षा न्यूज
गाजियाबाद। विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक/राष्ट्रीय अध्यक्ष बीके शर्मा हनुमान ने बताया कि प्रत्येक जीव प्रकृति के 5 महाभूतों अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, तथा आकाश से निर्मित है। इसके साथ शरीर में पांच ज्ञानेंद्रियां आंख, कान, नाक, जीभ एवं त्वचा, पांच कर्मेद्रियां-हाथ, पैर, मुंह, गुदा एवं लिंग और चार अंतःकरण-मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार होती हैं। इनके विषय होते हैं इच्छा, द्वेष, सुख, दुख, कामनाएं, क्रोध, मोह इत्यादि हैं। मनुष्य इनके जरिये अपने कर्म क्षेत्र में कार्य करता है। इसी के साथ शरीर में ब्रह्म स्वयं भी विराजमान रहते हैं. जो इस कर्म क्षेत्र के ज्ञाता के रूप में रहते हैं। ब्रह्म संसार के समस्त प्राणियों में ज्ञाता के रूप में हर समय मौजूद हैं। वे जीव के सारे क्रियाकलापों को बिना कोई दखल दिए देखते रहते हैं। इसलिए परम ब्रह्म पूरे संसार के ज्ञाता हैं।
साफ है कि ईश्वर हमारे शरीर में ही विद्यमान है। हम उसे अपने कर्म और सोच द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। भगवान ने गीता में कहा है, 'जो अपने सारे कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अविचलित भाव से मेरी भक्ति और पूजा करते हैं एवं अपने चित्त को मुझ पर स्थिर करके निरंतर मेरा ध्यान करते हैं वे मुझे शीघ्र प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार मैं उन्हें जीवन-मृत्यु के सागर से शीघ्र मुक्त करके उन्हें मोक्ष प्रदान करता हूं।'
मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। उसे अपने विवेक द्वारा अपने इंद्रिय विषयों को नियंत्रित करते हुए कर्म करना चाहिए और कर्मों का फल ईश्वर को समर्पित करते हुए अपनी जीवन यात्रा पूरी करनी चाहिए। साथ में अपने चित्त को हमेशा ईश्वर में स्थित करके भक्ति करनी चाहिए। इस प्रकार बिना किसी आडंबर और दिखावे के उसे अंत में मोक्ष और ईश्वर प्राप्ति हो जाएगी। ईश्वर की प्राप्ति ही हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य है।
Comments
Post a Comment