समीक्षा न्यूज—मनमोहन आर्य
आर्यसमाज धामावाला, देहरादून का आज दिनाक 26-2-2023 का सत्संग श्री श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम में आयोजित किया गया। हम जब वहां पहुंचे तो आर्यसमाज के धर्माधिकारी पंडित विद्यापति शास्त्री जी के भेजन वा गीत हो रहे थे। उनका गाया गया एक मुख्य गीत था ‘गुरुदेव प्रतिज्ञा है मेरी पूरी करके दिखलाउगां, इस वैदिक धर्म की वेदी पर मैं जीवन भेंट चढ़ा दूंगा।’ शास्त्री जी के गीत के बाद आर्यसमाज के युवा विद्वान आचार्य अनुज शास्त्री जी का प्रभावशाली सम्बोधन हुआ।
अपने सम्बोधन के आरम्भ में श्री अनुज शास्त्री ने कहा कि लोगों ने महर्षि दयानन्द और उनकी वैदिक विचारधारा को समझने का प्रयत्न नहीं किया। उन्होंने बताया कि महर्षि दयानन्द की प्रमुख देन उनके द्वारा दिया गया वेदों का सत्य वेदार्थ वा ज्ञान है। आचार्य अनुज शास्त्री जी ने ऋषि की भावना वेदों की ओर लौटने की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि विद्या का दान सबसे बड़ा दान होता है। आचार्य जी ने कहा कि वेदों का मार्ग सत्य मार्ग है। आचार्य जी ने यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय के आठवें मन्त्र के आधार पर ईश्वर के सत्य स्वरूप पर प्रकाश भी डाला।
आचार्य अनुज शास्त्री जी ने यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय के मन्त्र संख्या 9, 10 और 11 का उल्लेख किया तथा उनके अर्थों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने त्रैतावाद अर्थात् जगत में विद्यमान् तीन अनादि व नित्य सत्ताओं ईश्वर, जीव एवं प्रकृति की सही व्याख्या की है। उन्होंने मन्त्र में आये सम्भूति शब्द का अर्थ बताते हुए कहा कि इसका अर्थ ठीक प्रकार से बनाई गई सृष्टि होता है। उन्होंने कहा कि अम्भूति मूल प्रकृति को कहते हैं। विद्वान आचार्य अनुज शास्त्री ने कहा कि वैज्ञानिकों की 2 प्रतिशत खाजें ही लाभप्रद तथा शेष हानिप्रद हैं। उन्होंने बताया कि संसार की सभी वस्तुओं में चार प्रकार का दुःख छिपा है। यह दुःख परिणाम दुःख, ताप दुःख, संस्कार दुःख तथा गुणवृत्ति निरोध दुःख कहलाते हैं। आचार्य जी ने चारों दुःखों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
आचार्य अनुज शास्त्री जी ने कहा कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं के लिए नहीं जी रहा है अपितु वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए जी रहा है। उन्होंने कहा कि विवेकी व्यक्ति संसार की सभी वस्तुओं में दुःख देखता है। वह संसार की वस्तुओं का अल्प मात्रा में जीवनयापन करने हेतु ही प्रयोग व उपयोग करता है। आचार्य जी ने कहा कि धीर अर्थात् विवेकी व्यक्ति समाज की उन्नति के लिए जीवन व्यतीत करते हैं। आचार्य जी ने उपासना के यथार्थ स्वरूप पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अग्नि व जल की उपासना का अर्थ उनके समीप जाना व उनसे लाभ उठाना है। इसी प्रकार ईश्वर की उपासना का अर्थ भी सर्वव्यापक ईश्वर के निकट बैठकर उसका ध्यान, चिन्तन व उसकी स्तुति, प्रार्थना व उपासना करना है।
आचार्य अनुज शास्त्री जी ने कहा कि हमें सृष्टि और इसके गुण, कर्म तथा स्वभाव को जानना है। विनाश का अर्थ बताते हुए आचार्य जी ने कहा कि पदार्थों का टूटना और अपने मूल स्वरूप जिसे कारणस्वरूप कहते है, उसे प्राप्त होना होता है। आचार्य जी ने कहा कि प्रकृति के सत्यस्वरूप को जानकर मनुष्य अपने जीवन के विनाश से बचता वा छूटता है। आचार्य जी ने आगे कहा कि परमात्मा मृतक मनुष्य वा प्राणी को नया शरीर, नये माता-पिता व परिवार के सदस्य तथा ऐश्वर्य देते हैं। आचार्य जी ने बताया कि प्रकृति का कभी विनाश वा अभाव नहीं होगा। विद्वान आचार्य जी ने बताया कि सृष्टि में बनने व बिगड़ने की प्रक्रिया चलती रहती है। उन्होंने कहा कि प्रकृति में विकार उत्पन्न कर ईश्वर द्वारा सृष्टि का निर्माण किया जाता है। सृष्टि की आयु पूरी होने पर इसकी प्रलय होती है। प्रलय होने पर सृष्टि पुनः अपने मूल स्वरूप ‘प्रकृति’ को प्राप्त होती है। आचार्य जी ने कहा कि हमारी इस सृष्टि की रचना सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान परमात्मा ने प्रकृति के द्वारा ही की थी व आगे भी अनन्त काल तक वह प्रलय व सृष्टि करते रहेंगे। अपने व्याख्यान की समाप्ति पर आचार्य जी ने कहा कि मनुष्य को समाधि प्राप्ति के लिए शरीर की आवश्यकता होती है। समाधि अवस्था में ही मनुष्य को ईश्वर के सत्यस्वरूप का साक्षात्कार होता है। व्याख्यान की समाप्ति पर आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने आचार्य जी के व्याख्यान की प्रशंसा की और उनका धन्यवाद किया। इसके बाद शान्ति पाठ हुआ और सत्संग की समाप्ति की घोषणा की गई। सत्संग की समाप्ति के पश्चात जलपान की व्यवस्था की गई थी।
हमें आचार्य अनुज शास्त्री जी से आज पहली बार मिलने का अवसर मिला। वह व्हटशप पर हमारे लेखों के कारण हमें वर्षों से जानते हैं। आचार्य जी ने अपना व्याख्यान आरम्भ करने से पूर्व श्रोताओं को हमारा परिचय भी दिया। आचार्य अनुज शास्त्री जी देहरादून के एक केन्द्रिय विद्यालय में संस्कृत के आचार्य हैं। आचार्य जी की वय 32 वर्ष है। वह आर्यसमाज का भविष्य व आशा है। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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