सामाजिक जागरुकता: विधवाओं की समस्या का समाधान है
डॉ मनोज कुमार तिवारी
वरिष्ठ परामर्शदाता
एआटी सेंटर, एसएस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू (उ.प्र)
मो.न. : 9415997828
जीवन साथी की मृत्यु हो जाने पर व्यक्ति की हालत काफी चिंताजनक हो जाती है आज भी विधवाओं को अनेक प्रकार के लांछन, ब्यंग व उलाहने सहन करना पड़ता है। यह स्थिति पूरे विश्व में है। अधिकांश समाज में सभी धन- संपत्तियों पर मालिकाना हक पुरुषों का होता है, इसीलिए विदुर की तुलना में विधवाओं की हालत अधिक चिंताजनक होती है। विधवाओं की समस्याओं एवं उनके अधिकारों के प्रति लोगों को जागरूक करने हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा ने औपचारिक रूप से 23 जून को अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा किया है। विश्व विधवा दिवस विधवाओं को पूर्ण अधिकार व मान्यता प्राप्त करने के लिए कार्यवाही का अवसर प्रदान करता है। इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस 2023 का नारा (थीम) : "लिंग समानता के लिए नवाचार एवं प्रौद्योगिकी" दिया गया है। आधुनिक दुनिया में सर्वोत्तम अवसरों को हासिल करने के लिए तकनीकी ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है। विधवाओं को समाज में प्राचीन काल से ही अनदेखा किया जाता है। विधवाओं को अक्सर संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। जीवन साथी के मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति हड़प ली जाती है। विश्व में लगभग 25 करोड़ 80 लाख विधवाएं है। प्रत्येक 10 में से एक विधवा गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है।
भारत में अनुमानतः 5.6 करोड विधवाएं रहती हैं जिसमें 78% जनसंख्या महिला विधवाओ की हैं इसका मुख्य कारण पुरुषों का आसानी से पुनर्विवाह होना तथा महिलाओं की जीवन प्रत्याशा पुरुषों की अपेक्षा अधिक होना है। भारत में विदुर पुरुषों की अपेक्षा महिला विधवाओं की संख्या अधिक होने का एक बड़ा कारण लड़कियों की शादी सदैव उनके उम्र से बड़े लड़कों के साथ किया जाना भी है। अकेले लगभग 20 हजार विधवाएं उत्तर प्रदेश के मथुरा में रहती है। 2021 की जनगणना के अनुसार देश में 1.94 लाख बाल विधवा है जिनका उम्र 10-19 वर्ष है, 9% विधवाएं 20- 30 वर्ष, 32% विधाएं 40-59 वर्ष तथा 58% विधवाएं 60 वर्ष से अधिक उम्र की हैं। एक सर्वे के अनुसार भारत में मात्र 18% विधवाओं को ही अच्छी देखभाल मिल पाती है।
*प्रमुख समस्याएं:-
# संपत्ति में अधिकार न मिलना
# पुनर्विवाह की सामाजिक स्वीकार्यता की कमी
# आर्थिक निर्भरता
# हिंसा की शिकार
# यौन शोषण
# शुभ कार्यों में शामिल न किया जाना
# मनपसंद कपड़े/श्रृंगार करने की मनाही
# भेदभाव
# लांक्षित जीवन
# गरीबी
# न्याय प्रणाली तक पहुंच की कमी
# स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अन्य सेवाओं तक पहुंच से वंचित।
# समाज का नकारात्मक दृष्टिकोण
शारीरिक समस्या:-
# वजन में कमी
# भूख में कमी
# कमजोरी
# दर्द
# कब्ज
मनोवैज्ञानिक समस्याएं:-
# उच्च स्तर की चिंता
# नींद संबंधी समस्याएं
# उदासी
# अवसाद (1/3 विधवाएं अवसाद से ग्रस्त हैं)
# आत्महत्या के विचार
# रुचिकर कार्यों में भी अरुचि
# नकारात्मक सोच
# प्रेरणा की कमी
# असहाय महसूस करना
# हीन भावना
समाधान:-
# विधवा पुनर्विवाह अधिनियम को सामाजिक स्वीकार्यता हेतु जन जागरूकता एवं प्रोत्साहन प्रदान किया जाए
# पति की संपत्ति पर विधवा स्त्री के स्वामित्व की गारंटी सुनिश्चित की जाए
# जन जागरूकता के माध्यम से सरकार द्वारा संचालित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ विधवाओं तक पहुंचाया जाए
# विधवाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने हेतु हथकरघा एवं शिल्प कला इत्यादि का प्रशिक्षण प्रदान किया जाए
# विधवा पेंशन की राशि बढ़ाई जाए
# विधवाओं को नौकरी की आयु में छूट प्रदान की जाए
# स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराया जाए
# स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराया जाए
# पति की मृत्यु हो जाने पर उसकी नौकरी विधवा पत्नी को अनिवार्य रूप से प्रदान किये जाने की व्यवस्था की जाय।
विधवाओं की स्थिति में सुधार लाना हर नागरिक का नैतिक दायित्व है। किसी भी देश की सरकार केवल अधिनियम पारित कर सकती है उस अधिनियम को प्रभावशाली बनाने में उस देश के नागरिकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। विधवाओं की स्थिति में सुधार का एकमात्र रास्ता जनजागृति है।
Comments
Post a Comment