Saturday 7 September 2019

सेवा सद्कर्म होने से कर्तव्य है


“निर्धन, निर्बल और रोगी मनुष्यों की सेवा सद्कर्म होने से कर्तव्य है”
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प्राचीन काल में ही हमारे देश के मनीषियों ने जन्म व कर्म विषय का विषद विवेचन किया था और इसके लिए ईश्वरीय ज्ञान चार वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद से मार्गदर्शन व सहायता ली थी। विवेचन व विश्लेषण करने पर यह निष्कर्ष सामने आया था कि हमारे जन्म का कारण हमारे पूर्वजन्म के कर्म हुआ करते हैं। संसार में मनुष्य एवं पशु-पक्षी आदि अनेक योनियां हैं। सभी योनियों में सभी प्राणियों के गुण, कर्म एवं स्वभाव सहित उनके विचारों, व्यवहारों एवं परिवेश में भी अन्तर होता है। इसका समाधान पूर्वजन्म के कर्मों व संस्कारों से स्पष्ट होता है। पूर्वजन्म में जिन मनुष्यों ने अधिक शुभ कर्म किये होते हैं उन्हें मनुष्य जन्म मिलता है। शुभ व पुण्य कर्म जितनी अधिक मात्रा में किसी मनुष्य ने किये होते हैं उसे परजन्म में उतनी ही अधिक सुखद स्थिति प्राप्त होती है। इसके अनुसार उसे धार्मिक व शिक्षित माता-पिता व परिवार मिलता है जहां किसी प्रकार का अभाव व दुःख नहीं होता। कर्म जितने अधिक अच्छे होंगे उतना अधिक जीवन सुखद होता है और जितने कम अच्छे होते हैं उतना हमारा वर्तमान जीवन कम सुखद व ज्ञान विज्ञान की प्राप्ति की दृष्टि से निम्नतर होता है। यही कारण था कि प्राचीन काल से ऋषि व विद्वान लोग वेदाध्ययन कर शुभ कर्मों का आचरण करते थे जिसमें दूसरे मनुष्यों को शिक्षित करना, उनके प्रति अच्छा व्यवहार करना, किसी के साथ क्रोध व अहंकार अथवा अन्याय का आचरण न करना, सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझना, अविद्या का नाश करना और विद्या की वृद्धि करना, निर्धनों, दुर्बलों, अनाश्रितों, अभावग्रस्त व रोगियों की तन, मन व धन से सेवा व सहायता करना धर्म माना जाता था। परोपकार को भी धर्म का एक अंग माना जाता है। जिस मनुष्य के जीवन में दया व करूणा का गुण नहीं है और जो दुर्बल, निर्धन तथा रोगी मनुष्यों की सेवा व सहायता नहीं करता वह धार्मिक मनुष्य नहीं कहलाता। वेद व भारत के सभी प्राचीन धर्मग्रन्थ सभी मनुष्यों एवं पशु आदि प्राणियों के प्रति भी दया व करुणा सहित सेवा का भाव रखने व सबको सुख पहुंचाने की आज्ञा व परामर्श देते हैं। यही धर्म का एक भाग होता है और इसके अनुरूप कर्म ही हमारा प्रारब्ध भी कहलाता है। सेवा रूपी श्रेष्ठ कर्म से मनुष्य की मृत्यु होने के बाद पुनः श्रेष्ठ मनुष्य योनि व अच्छे परिवेश में जन्म मिलता हैं जहां माता-पिता ज्ञानी व धार्मिक होते हुए सुखी व समृद्ध होते हैं। अतः सभी मनुष्यों को मननशील होकर कर्म का विवेचन करते हुए सद्कर्मों का आचरण कर निर्धन, दुर्बल, रोगी एवं अनाश्रितों मनुष्यों की तन, मन व धन से सेवा करनी चाहिये जिससे परमात्मा उन मनुष्यों पर प्रसन्न होकर अपना ऐश्वर्य एवं शारीरिक व आत्मिक शक्तियां उन्हें प्रदान करें। 


किसी दूसरे मनुष्य की जो अपना रक्त-सम्बन्धी नहीं है, उसकी सेवा वही मनुष्य कर सकता है जिसके हृदय में दूसरों के प्रति दया, प्रेम, स्नेह, ममता, करूणा व परमार्थ की भावना हो। इन गुणों की प्राप्ति मनुष्य को ईश्वर की उपासना व वेद आदि ग्रन्थों के स्वाध्याय व अध्ययन से प्राप्त होती है। महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़ने से भी मनुष्य की आत्मा पर श्रेष्ठ संस्कार उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार वृद्धों की संगति व सेवा सहित सच्चे महापुरुषों के सत्संग में जाने से भी मनुष्य को सेवा आदि गुण संस्कार रूप में प्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति अपने व परायों सभी की निष्पक्ष भाव से सेवा व सहायता करते हैं, समाज में उन व्यक्तियों को सभी महत्व देते हैं और उनका आदर करते हैं। सरकार की ओर से भी वह पुरस्कृत होते हैं। सेवा के अनेक उदाहरण हमें स्वाध्याय करते हुए मिलते हैं। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने देश व समाज से अन्धकार दूर करने के लिये सन् 1902 में गुरुकुल कांगड़ी विद्यालय की स्थापना की थी। यहां सभी बच्चे आवासीय शिक्षा पद्धति से पढ़ते थे। स्वामी श्रद्धानन्द जी विद्यालय के सर्वेसर्वा आचार्य व प्राचार्य थे। एक बार गुरुकुल का एक विद्यार्थी बीमार हो गया। स्वामी जी उसे देखने पहुंचे तो उस समय उसको उल्टी वा कै आने वाली थी। उन्होंने दूसरे विद्यार्थी को उल्टी कराने के लिये एक पात्र लाने को कहा। वह लेने गया परन्तु उस बालक को उल्टी आ गई। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने अपने दोनों हाथों की अंजलि उस बालक के आगे कर दी और अपने हाथों में उल्टी कराकर सेवा का एक अनूठा उदाहरण दिया। स्वामी जी के बारे में कहा जाता है कि वह गुरुकुल में किसी बच्चे को अपने माता-पिता के वहां न होने का अभाव अनुभव नहीं होने देते थे। माता-पिता के समान व उनसे बढ़कर सभी बच्चों का ध्यान रखते व सेवा करते थे।  


एक ऐसा ही अन्य उदारण महात्मा रुलिया राम जी के जीवन का है। पंजाब में एक गांव में एक बार प्लेग का रोग फैला। वहां लोग धड़ाधड़ मर रहे थे। परिवार के सदस्य भी अपने घर के रोगियों को छोड़कर गांव से पलायन कर रहे थे। महात्मा रुलियाराम जी अपने कुछ साथियों सहित दयाईयां व अन्न आदि लेकर सहायतार्थ उस गांव में पहुंच गये। एक घर में गये तो वहां एक रोगी पड़ा हुआ कराह रहा था। उसके गले में प्लेग की गिल्टी थी। महात्मा जी ने उसे देखा तो अनुभव किया कि शीघ्र ही इसके प्राण निकलने वाले हैं। उसका तत्काल आपरेशन करना होगा। उन्होंने अपने साथी को एक चाकू लाने को कहा। चाकू नहीं मिला तो उनका साथी पड़ोसियों के घरों में गया। तभी महात्मा जी ने देखा कि उस रोगी के प्राण निकलने को हैं। उनसे रहा न गया। उन्होंने अपने दातों से उसके गले की गिल्टी को काट डाला जिससे गिल्टी का पीप व मवाद पिचकारी बनकर उनके सारे चेहरे पर फैल गया। इतनी ही देर में उनका साथी चाकू लेकर आया। उसने महात्मा जी का चेहरा देखा तो बोला महात्मा जी आपने अपना जीवन संकट में डाल दिया है। यह आपने ठीक नहीं किया। महात्मा जी बोले कि इस जीवन को तो एक दिन नष्ट होना ही है। यदि इससे किसी को कुछ सुख मिलता है तभी इसका होना सार्थक है। मुझे अपने जीवन की चिन्ता नहीं है। यह आज नष्ट हो या कालान्तर में। मुझे तो अपने जीवन से दूसरों के दुःखों को दूर करना और उन्हें सुख प्रदान करना है। जिस व्यक्ति की गिल्टी को महात्मा जी ने अपने दांतों से काटा था उस व्यक्ति की गिल्टी के खून, पीप व मवाद को भी महात्मा जी अपने हाथों से दबा कर व अपने मुंह से खंीच-खींच कर निकालते रहे और थूकते रहेे। इससे उसके प्राण बच गये। इससे महात्मा जी को सन्तोष हुआ। डीएवी स्कूल व कालेज के संस्थापक महात्मा हंसराज जी को लाहौर में इस घटना का पता चला तो वह भी इससे अत्यन्त प्रभावित हुए और उन्होंने महात्मा रुलियाराम जी के इस कृत्य की भूरि भूरि प्रशंसा की। वह रोगी व्यक्ति भी महात्मा जी की इस सेवा व उपकार से उनका सदा-सदा के लिये कृतज्ञ व ऋणी हो गया। यह सच्ची घटना सेवा का अत्युत्तम उदाहरण है। ऐसा उदाहरण इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलता। 


महात्मा हंसराज जी ने अपना सारा जीवन दयानन्द ऐंग्लो-वैदिक स्कूल व कालेज को दान दिया था। उन्होंने स्कूल से कभी एक पैसा भी वेतन नहीं लिया। अत्यन्त अभावों में उनका व उनके परिवार का जीवन व्यतीत हुआ। उनके पढ़ाये बच्चे बहुत ऊंचे-ऊंचे पदो पर आसीन हुए। आज वही डी0ए0वी0 स्कूल व कालेज सरकार के बाद देश का शिक्षा प्रदान करने वाला सबसे बड़ा संगठन है। एक अनुमान के अनुसार डी0ए0वी0 स्कूलों में पंचास लाख से अधिक बच्चे अध्ययन कर रहे हैं। यह साधारण बात नहीं है। सेवा व त्याग से हम अपना जीवन ऊंचा उठा सकते हैं और इससे हमारे देशवासी बन्धुओं का जीवन सुखी होने सहित देश व समाज उन्नति को प्राप्त होता है। 
 
मनुष्य जीवन हमें परमात्मा से सद्कर्म अर्थात् ज्ञानपूर्वक सेवा व परोपकार आदि कार्यों को करने के लिये ही मिला है। ईश्वर सबसे बड़ा सेवक एवं परोपकारी है। उसने सभी जीवों के लिये यह सृष्टि बनाई और इसमें सभी प्राणियों के सुख के लिये नाना प्रकार के साधन बनाये हैं। हमारे सबके शरीर भी परमात्मा ने ही बनाकर हमें प्रदान किये हैं। ईश्वर हमारा स्वामी व उपास्य देव है। हमें ईश्वर के समान ही कर्म यथा सेवा, परोपकार आदि निरन्तर करने चाहियें। इससे हम अपने कर्म के बन्धनों से मुक्त होकर अपने जीवन को उन्नति की ओर ले जाकर दुःखों से मुक्त हो सकते हैं और जीवन भर आत्म-सन्तोष के सुख से लाभान्वित हो सकते हैं। यदि संसार में सभी लोग दूसरों की सेवा को अपना धर्म बना कर उसका आचरण करने लग जाये, तो यह संसार स्वर्ग बन सकता है। हमारे महापुरुषों ने हमें सेवा व परोपकार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा व शिक्षा दी है। हमें उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करना है और अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना है। एक कहावत है 'सेवा करने से मेवा मिलता है'। यह कहावत निःसन्देह सत्य एवं यथार्थ हैं। हमें इसका पालन करना चाहिये।  


-मनमोहन कुमार आर्य


आचार्य रामदेव जी के जीवन के कुछ प्रमुख गुण


“गुरुकुल कांगड़ी में स्वामी श्रद्धानन्द जी के सहयोगी आचार्य रामदेव जी के जीवन के कुछ प्रमुख गुण”
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आचार्य रामदेव जी गुरुकुल कागड़ी के संचालन में स्वामी श्रद्धानन्द जी के प्रमुख सहयोगी थे। आपने स्वामी श्रद्धानन्द जी के साथ मिलकर व उनके गुरुकुल से पृथक हो जाने पर भी गुरुकुल की महत्ता को बनाये रखा था और उसका सफलतापूर्वक संचालन किया था। श्री गंगाप्रसाद चीफ-जज ने उन पर एक प्रभावशाली लेख लिखा था। इसी लेख से हम उनके जीवन व व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं को यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। 


श्री आचार्य रामदेव जी आर्यसमाज के एक उज्जवल रत्न थे। पं0 गंगा प्रसाद, रिटायर्ड चीफ जज का परिचय उनके साथ कांगड़ी गुरुकुल की स्थापना से पहले से, अर्थात् लगभग 50 वर्ष से था, जब कि वे जालन्धर में किसी स्कूल के मुख्य अध्यापक थे। पं0 गंगाप्रसाद जी ने यह लेख आचार्य जी मृत्यु के कुछ समय बाद लिखा था। कांगड़ी गुरुकुल की स्थापना के बाद दोनों महापुरुषों में परस्पर परिचय बढ़ता ही गया, क्योंकि उस समय सन् 1902 से 1905 तक पं0 गंगाप्रसाद जी जिला गढ़वाल के लैंसडौन इलाके के डिवीजन अफसर थे, जिसकी सीमा कांगड़ी से मिली हुई है। इसलिए गुरुकुल स्थापित होने के 3 या 4 वर्ष तक वह गुरुकुल के वार्षिक उत्सव में जिसने उस समय आर्य जगत् में अत्यन्त आकर्षक नवीन मेले का रूप धारण कर लिया था, अवश्य सम्मिलित होते थे। इस प्रकार महात्मा मुंशीराम जी तथा आचार्य रामदेव जी से उन्हें अनायास मिलने का अवसर सुलभ होता था। 


आचार्य रामदेव जी अपार विद्वता--आचार्य जी के स्वाध्याय और विद्यता की कोई थाह नहीं थी। गुरुकुल कांगड़ी का विशाल पुस्तकालय, जिसके बनाने में उन का विशेष हाथ था, उन के लिए पर्याप्त न था और उसके बाहर की भी अनेक पुस्तकों का वे पाठ करते रहते थे। जहां कहीं जाते थे वहां वह नवीन पुस्तकों की तलाश में रहते थे और जहां जो पुस्तकें उन्हें मिलती थीं उनको बड़ी रुचि के साथ पढ़ते थे। पं0 गंगा प्रसाद जी ने आगरे में उन्हें रद्दी व पुरानी पुस्तक बेचने वालों के यहां से भी पढ़ने योग्य पुस्तकें निकाल कर संग्रह करते देखा था। स्वाध्याय में उनका बहुत समय लगता था। 


उनकी विचित्र स्मरण-शक्ति--आचार्य जी की स्मरण शक्ति अद्भुत और विलक्षण थी। जो पुस्तकें एक बार पढ़ लीं वह याद हो गईं। पं0 गंगा प्रसाद चीफ जज ने अपने सुदीर्घ काल के अनुभव में केवल एक और ऐसा विद्वान् देखा था जिनकी स्मरणशक्ति की तुलना श्री रामदेव जी से की जा सकती थी। वे थे श्री ए.सी.वाई. चिन्तामणि। वह प्रयाग के सुप्रसिद्ध दैनिक पत्र लीडर के मुख्य सम्पादक थे। 


आचार्य रामदेव जी की विलक्षण भाषण-शक्ति--श्री रामदेव जी को भारतवर्ष के सभी भागों में व्याख्यान देने के लिए जाना पड़ता था। कोई बड़ा आर्यसमाज उनको अपने वार्षिक उत्सव पर अथवा अन्य अवसरों पर निमंत्रित करने से नहीं चूकता था और उनको ऐसे निमंत्रण बहुत अंश में स्वीकार ही करने पड़ते थे। व्याख्यान में प्रमाणों की झड़ी लग जाती थी। उनके व्याख्यानों में बहुधा ऐसे नये प्रमाण मिलते थे, जिनको सुनकर सुशिक्षित श्रोता भी कभी-कभी भौचक्का रह जाता था। यह आचार्य जी के अपार स्वाध्याय और अद्भुत स्मरणशक्ति का ही फल था। किसी बड़ी संस्था या समाज के मुख्य उत्सव पर वे बहुधा कोई नया व्याख्यान तैयार करने का यत्न करते थे। 


उनकी लेखन शक्ति--श्री आचार्य जी की लेखनी में भी कुछ कम शक्ति न थी। उनकी रची हुई पुस्तकों के नाम हैं, 1-पुराणमत पर्यालोचन, 2- भारतवर्ष का इतिहास 3 भागों में एवं 3- आर्य और दस्यु। आचार्य रामदेव जी ने गुरुकुल कांगड़ी से प्रकाशित प्रसिद्ध पत्रिका वैदिक मैगजीन का सम्पादन भी किया था। आचार्य जी अंग्रेजी के भी उच्च कोटि के लेखक थे। 


गुरुकुल कांगड़ी में उनकी सेवा--श्री रामदेव जी ने सन् 1905 से 1932 तक अर्थात् 27 वर्ष गुरुकुल कांगड़ी में कार्य किया। इस बीच में सन् 1927 से 1932 तक अर्थात् 6 वर्ष तक वे गुरुकुल के आचार्य पद पर रहे। श्री स्वामी श्रद्धानन्द जी के पश्चात गुरुकुल की सेवा में दूसरा स्थान श्री आचार्य जी का ही है। यदि स्वामी श्रद्धानन्द जी गुरुकुल की आत्मा थे तो आचार्य रामदेव उस के प्राण रूप थे। 


आचार्य जी का रहन-सहन--श्री आचार्य जी का रहन-सहन बहुत सीधा-सादा था। दिखावट या बनावट उनको छू तक नहीं गई थी। वेशभूषा और केशों को संवारना आदि काम उन्होंने अपने लिए वर्जित कर रखे थे, शायद उनको ऐसे कामों के लिए अवकाश भी नहीं मिलता था। वे बड़े परिश्रमी थे। कहा जाता है कि आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब में दलबन्दी होने के कारण उनका परिश्रम अन्तिम वर्षों में बहुत बढ़ गया था। पं0 गंगाप्रसाद जी लिखते हैं कि यदि उस के कारण उनका रोग भी बढ़ गया हो तो आश्चर्य की बात नहीं। 


आचार्य रामदेव जी कन्या गुरुकुल देहरादून के प्राण थे। उनका अन्तिम 5 वर्षों का समय इसी गुरुकुल में व्यतीत हुआ। शरीर छोड़ने से पूर्व उनको तीव्र पक्षाघात का रोग हो गया था। कन्या गुरुकुल, देहरादून के उनके जीवन के अन्तिम वार्षिकोत्सव में भी वह एक आराम कुर्सी पर गुरुकुल के वार्षिकोत्सव में लेटे हुए उपस्थित रहे थे। उस अवस्था में उनकी आंखों से आंसु बहते थे। इसका कारण शायद उनकी रुग्णावस्था थी। 


हमने इस लेख की सामग्री पं0 गंगाप्रसाद जी चीफ जज के एक लेख से ली है। यह लेख डाॅ0 विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी द्वारा सम्पादित होकर ''आर्य संस्कृति के संवाहक आचार्य रामदेव” पुस्तक में प्रकाशित हुआ है। पुस्तक हितकारी प्रकाशन समिति, हिण्डोन सिटी से प्रकाशित है। पाठको को इस पुस्तक से लाभ उठाना चाहिये। ओ३म् शम्।  


-मनमोहन कुमार आर्य


दो पाय और चार पाय में भेद


“मनुष्य और पशु में अन्तर”
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मनुष्य और पशुओं में अनेक समानतायें हैं। मनुष्य भोजन करते हैं और पशु भी घास आदि चारा खाकर अपना पेट भरते हैं। मनुष्य श्रम करने के बाद थक जाते हैं और विश्राम करने सहित निद्रा आने पर सो जाते हैं। इसी प्रकार पशु भी श्रम करते और निद्रा लेते है। मनुष्य गृहस्थी बन कर सन्तानों को जन्म देते हैं और पशु व पक्षी आदि मनुष्येतर योनियों में भी सन्तानोत्पत्ति की प्रक्रिया होती है। इन सब बातों में मनुष्य और पशु लगभग समान हैं। मनुष्य को परमात्मा ने कुछ चीजें पशुओं से अतिरिक्त भी दी हैं। मनुष्य के पास दो हाथ हैं परन्तु पशुओं के पास मनुष्य जैसे दो हाथ नहीं हैं जिससे वह मनुष्य जैसे काम नहीं कर सकते। मनुष्य को परमात्मा ने सत्य व असत्य का विवेचन वा मनन करने के लिए बुद्धि दी है जो पशुओं के पास नहीं है। मनुष्य बोल सकता है। अलग-अलग स्थानों पर रहने वाले मनुष्यों के पास अपनी-अपनी अनेक भाषायें हैं जिनसे वह अपने मन व हृदय के भावों को अपने परिवारजनों व मित्रों आदि में अभिव्यक्त कर सकता है। पशुओं को परमात्मा ने इस भाषा की सुविधा से वंचित रखा है। हर बात का कोई न कोई कारण होता है। परमात्मा परम विद्वान है, अतः उसने जिसके साथ जो किया व जिसको जो दिया, वह सब कारण-कार्य के सिद्धान्त के अनुसार है। संसार में भी हम देखते हैं कि जो मनुष्य जिस चीज का दुरुपयोग करता है, उससे वह चीज छीन ली जाती है। आत्मा अनश्वर है, अनादि व सनातन है। इस जन्म से पूर्व भी उसका अस्तित्व था और वह किसी मनुष्य व अन्य योनि में रहती थीं। जिस आत्मा ने पूर्वजन्म में अच्छे शुभ कर्म किये, उन्हें परमात्मा ने मनुष्य का शरीर दे दिया और जिसने पूर्वजन्म में अपने ज्ञान, इन्द्रियों व शक्तियों का दुरुपयोग किया, उनसे परमात्मा ने वह शक्तियां छीन लीं। मनुष्य को परमात्मा ने बुद्धि दी है तो इसका उसे सदुपयोग करना है। यदि वह इसका सदुपयोग नहीं करेगा तो निश्चय ही इससे यह सब इन्द्रियां, करण व यन्त्र आदि छीन लिये जायेंगे। पशु व पक्षी आदि योनियों को देखकर परमात्मा के इस न्याय की पुष्टि होती है।   


मनुष्य और पशुओं में एक प्रमुख अन्तर उनकी वैचारिक प्रणाली है। मनुष्य विचार कर सकता है और सत्य व असत्य का निर्णय कर सकता है। विचार करने के लिये भाषा की आवश्यकता होती है। संसार में अनेक भाषायें हैं परन्तु इन सभी भाषाओं का उद्गम वेदों की संस्कृत भाषा है। वेद संसार के प्रथम व आदि ग्रन्थ हैं। वेद में सब सत्य विद्याओं का भण्डार है। वेदों का ज्ञान सृष्टि के आरम्भ मे ंपरमात्मा से प्राप्त हुआ था। परमात्मा यदि सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों को वेदों का ज्ञान न देता तो सभी मनुष्य भाषा एवं ज्ञान से वंचित रहते। ईश्वर की सबसे बड़ी कृपाओं में से एक उसका मनुष्यों को वेदों का ज्ञान देना है। वह लोग जो मनुष्य जन्म लेकर भी वेदों का अध्ययन नहीं करते, ईश्वर, जीवात्मा और सृष्टि के सत्यस्वरूप को जानने का प्रयास नहीं करते और सत्याचरण नहीं करते, वह सब मनुष्य सिद्ध नहीं होते। वह संसार में भाररूप हैं। ऐसे लोग सत्य के विपरीत जो-जो आचरण करते हैं वह पशुओं से भी हीन व निम्नतर प्राणी होते हैं। परमात्मा ने सूर्य को प्रकाश और ताप देने तथा संसार की ऋतुओं के परिवर्तन करने सहित रात्रि व दिवस आदि को वर्तमान करने के लिये किया है। जिस प्रयोजन से सूर्य, चन्द्र व पृथिवी आदि ग्रह-उपग्रह बनाये गये हैं, यह सब अपने नियमों व उद्देश्यों का पूरा-पूरा पालन कर रहे हैं। मनुष्य को भी अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का सुख व दुःख रूपी फल भोगने के लिये बनाया गया है। इसके साथ उसे अपने भविष्य और भावी पुनर्जन्म के लिये भी सद्कर्मों का संग्रह करना है। जो ऐसा करते हैं वह प्रशंसा के पात्र होते हैं और जो नहीं करते, वह ईश्वर प्रदत्त मानव योनि का सदुपयोग न करने के कारण भविष्य में इस मनुष्य जन्म से वंचित किये जाने के पात्र बनते हैं। अतः मनुष्य को चिन्तन व मनन कर अपने कर्तव्य एवं अकर्तव्य का अवश्य विचार करना चाहिये और कर्तव्यों का पालन करने के साथ अकर्तव्यों का त्याग करना ही मनुष्य का प्रमुख धर्म होता है। ऐसा करने से हमें सुख व उन्नति का लाभ होता है। हम संसार में जिन उन्नत, सुखी व सफल व्यक्तियों को देखते हैं वह प्रायः अपने ज्ञानयुक्त परिश्रम व तप से ही आगे बढ़े हैं। पुरुषार्थ करके धन व सम्पत्ति तो अर्जित की जा सकती है और यश भी अर्जित होता है परन्तु वेदविहित ईश्वरोपासना और देवयज्ञ अग्निहोत्र कर्म न करने से मनुष्य के जीवन का उद्देश्य अधूरा रहता है। अतः मनुष्य के लिये वेदाध्ययन अनिवार्य है। वह यदि वेदाध्ययन करेगा तो उसे इसका लाभ मिलेगा अन्यथा वह इससे वंचित होकर भावी जन्मों में हानि को प्राप्त होगा। 


मनुष्य का अपना एक धर्म है जिसका अर्थ है सत्य का आचरण। कर्तव्य पालन को भी धर्म कहते हैं। मनुष्य जिन श्रेष्ठ गुणों को धारण कर सकता है, उनको धारण करना भी धर्म कहलाता है। जो निन्दित गुण होते हैं उनको जीवन में स्थान नहीं देना चाहिये क्योंकि यह मनुष्य को धर्म पालन से दूर करते हैं। मनुष्य जिन गुणों का ग्रहण, धारण व आचरण करता है वह अपनी बुद्धि और अर्जित ज्ञान के आधार पर सोच विचार कर करता है। मनुष्य से इतर पशु आदि किसी योनि की आत्माओं को चिन्तन मनन कर सत्य व ज्ञानपूर्व अपने कर्तव्यों का निर्धारण करने की सामथ्र्य नहीं है। वह वही करते हैं जिसका ज्ञान परमात्मा ने उनकी आत्माओं में कर रखा है। सभी पशु व पक्षियों के कर्म प्रायः ईश्वर के द्वारा नियत हैं। अतः वह या तो वनों में विचरण करते हैं या अपने मनुष्य रूपी स्वामियों के घरों पर बन्धे रहते हैं और उनसे जो काम लिया जाता है उसे वह करते हैं। यह सभी पशु हमें यह शिक्षा देते हैं कि हमने पूर्वजन्म में कुछ अनुचित वा अशुभ किये थे जिस कारण परमात्मा ने हमें सजा व दण्ड के रूप में पशु आदि योनि में जन्म दिया है। तुम मनुष्य हमसे शिक्षा लेकर कभी कोई अनुचित काम मत करना अन्यथा तुम्हारी भी हमारे समान दशा होगी। इन सब बातों पर विचार कर ही वेद के विद्वान व बुद्धिमान विवेकी जन सद्कर्मों में ही अपने जीवन को लगाते रहे हैं। ऋषि दयानन्द के जीवन पर दृष्टि डालते हैं तो हमें लगता है कि वह बौद्धिक दृष्टि से बहुत अधिक विकसित थे। उन्होंने वेद व समस्त प्राचीन उपलब्ध साहित्य को पढ़कर अपने भविष्य को लक्ष्य मोक्ष तक पहुंचाने का निर्णय किया था और श्रेष्ठ कर्मों को करके हमारे सामने एक आदर्श उपस्थित किया है। हमें राम, कृष्ण, दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, पं0 लेखराम, पं0 गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा हंसराज, पं0 चमूपति, स्वामी विद्यानन्द सरस्वती, पं0 युधिष्ठिर मीमांसक, डाॅ0 आचार्य रामनाथ वेदालंकार आदि जैसे महान पुरुषों का अनुकरण एवं अनुसरण करना चाहिये। ऐसा करके ही हम भविष्य में सुखी व सन्तुष्ट रह सकते हैं। ऐसा न करने पर और धनोपार्जन व सम्पति संग्रह आदि में फंसे रहकर हम अपने भावी जीवन में अपने लिये अनेक कठिनाईयां एवं दुःख उत्पन्न करेंगे। धर्म ही मनुष्यों को अभ्युदय एवं निःश्रेयस प्रदान करता है। धर्महीन मनुष्य पशु से भी निम्नतर होता है। आतंकवादियों पर यह बात शतप्रतिशत लागू होती है जो मानवता एवं मानव के कर्तव्यों से सर्वथा दूर होते हैं और मत-पंथ-मजहब की मिथ्या मान्यताओं के दुष्चक्र में फंस कर सज्जन धार्मिक लोगों को दुःख देते हैं। यह ईश्वर के दण्ड से बच नहीं सकते। किसी भी बुरे काम करने वाले मनुष्य को चाहे वह किसी भी मत का अनुसरण करें, उसके दुष्कर्मों के परिणामस्वरूप किंचित भी सुख नहीं मिल सकता। अज्ञानी मनुष्य का सुख उसके किसी भावी बड़े दुःख का कारण हो सकता है। 


पशुओं एवं पक्षियों सहित हम वृक्षों व जड़ पदार्थों से भी जीवन में अनेक शिक्षायें ले सकते हैं। गाय दूध देकर हमारा पालन करती है। उसके उपकारों से मनुष्य कभी उऋण नहीं हो सकता। भेड़, बकरी, अश्व व हस्ति आदि से भी हमें नाना प्रकार के लाभ होते हैं। इनके भी हम ऋण होते हैं। जड़ पदार्थों में जिन्हें हम देवता कहते हैं वह सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, अग्नि, वायु, जल, आकाश आदि भी हमें अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए हमारे जीवन को सुखद बनाते हैं। इनके भी हम ऋणी हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम पृथिवी के भौतिक पदार्थों का सदुपयोग करते हुए इन्हें किसी प्रकार से दूषित न करें। इनका अल्प मात्रा में सदुपयोग करें और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिये इसे स्वच्छ एवं उतनी ही मात्रा में छोड़कर जाने का प्रयत्न करें जितनी मात्रा यह हमें प्राप्त हुए थे। यदि हम वायु व जल आदि का प्रदूषण करते रहे और वनों को काटकर भूमि पर भवन, उद्योग एवं सड़के आदि बनाते रहे तो आने वाली पीढ़ियों को इससे असुविधा होगी। इसका अर्थ होगा कि हमने अपनी भावी पीढ़ियों के हितों की अनदेखी की और प्रकृति के साधनों का अन्धाधुन्ध उपभोग किया है। ऐसा करना उचित नहीं जबकि वर्तमान व्यवस्था हमें अधिक से अधिक आवश्यकता की वस्तुओं का उपभोग करने की प्रेरणा करती है। 


मनुष्य एवं पशुओं में बहुत सी समानतायें हैं। हमारा महत्व तभी है जब हम पशुओं की तुलना में अपने ज्ञान एवं आचरण से श्रेष्ठता सिद्ध करें। यदि हम वेद, सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों का नियमित स्वाध्याय करते हैं और तर्क एवं युक्ति से सिद्ध होने वाले सत्य कर्मों व उद्देश्यों की पूर्ति के लिये श्रेष्ठ सत्य आचरण करते हैं तो हम मनुष्य होने पर पशुओं से श्रेष्ठ कहे जा सकते हैं। भ्रष्टाचार, देश के अहित करने वाले विचारों व कार्यों में फंसकर तथा स्वार्थों में पड़कर हम पशुओं से भी निम्न कोटि के प्राणी सिद्ध होते हैं। ओ३म् शम्। 


-मनमोहन कुमार आर्य


रसम द्वारा आयोजित शिक्षक दिवस के अवसर पर राज पब्लिक स्कूल घूकना में सम्मान समारोह का आयोजन


रसम द्वारा आयोजित शिक्षक दिवस के अवसर पर राज पब्लिक स्कूल घूकना में सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें चर्चा का विषय गाजी शब्द को देशनिकाला हो अभियान रहा व गाजियाबाद हो या गाजीपुर स्थानीय जन भावनाओं के अनुरूप नाम बदलकर पूर्वजों को सम्मान दो पर टीचर्स डे के अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा नेता आदरणीय श्री अशोक भारतीय चेयरमैन संयुक्त व्यापार मंडल गाजियाबाद ने अपने संबोधन में गुरु के महत्व पर प्रकाश डाला व उपस्थित सभी टीचर का सम्मान करते हुए उनके हाथो देश के नौनिहालो के बेहतर भविष्य के निर्माण की कामना की व गाजियाबाद का नाम बदलने हेतु पहल पर संदीप त्यागी रसम का माला पहनाकर स्वागत किया व हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया 
घूकना व्यापार मंडल के अध्यक्ष अमित चौधरी ने  बोलते हुए कहा कि शिक्षक ही देश का निर्माता है गाजी शब्द को देशनिकाला हो अभियान के समर्थन में 
हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया व सरकार से मांग की गई कि गाजियाबाद का नाम बदलकर कोई अन्य सर्वमान्य नाम प्रदान करो 
सामाजिक कार्यकर्ता 
संदीप त्यागी रसम राष्ट्रीय संयोजक रसम
ने डा सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्मदिन को टीचर्स डे के रूप में मनाने व राधा कृष्णन जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए प्रेरणा लेकर कार्य करना चाहिए ऐसा कहते हुए उपस्थित समस्त गणमान्य जन से हाथ उठवाकर गाजी शब्द को देशनिकाला हो अभियान के समर्थन में सहयोग मांगा 
गाजियाबाद का नाम बदलकर कोई अन्य सर्वमान्य नाम प्रदान करने की मांग पर सबसे सहयोग मांगा जिसे सभी सम्मानित साथियों ने स्वीकार कर तन मन धन से सहयोग का आश्वासन दिया 
संदीप त्यागी ने शिक्षक शब्द का अर्थ समझाते हुए बताया 
शि - शब्द शिखर पर ले जाने 
क्ष - क्षमा की भावना रखने वाले
 क - कमजोरी दूर करने वाले 
ऐसे अनेको महान गुण धारण कर अपने जीवन में उतार कर उदाहरण प्रस्तुत करने वाले व्यक्तित्व ही वास्तविक अर्थ में गुरू बनने की गुरू होने की योग्यता रखते हैं 
तमन्ना दीपांशी सोनम अनामिका सोनी मनीषा रजनी शिवानी सिमरन काजल सुमित अभिनव आदि
विद्यार्थियों ने शिक्षक के रूप में आज अध्यापन कार्य किया जिन्हे सम्मानित किया गया 
11 शिक्षको को सम्मान प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया जिनके नाम मंजू तोमर सुधा सीमा ज्योति संगीता कुसुम सावन हिमांशु मुख्य रुप से हैं
उपस्थित अतिथिगण को सम्मान प्रतीक चिन्ह भेंट कर स्वागत किया गया 
इस अवसर पर प्रमुख रुप से डा शरद गौतम शर्मा अमित चौधरी अजय वर्मा राजकुमारी त्यागी एम के त्यागी ऋषिक त्यागी 
पंडित अशोक भारतीय संदीप त्यागी रसम  
अमित वर्मा वीरेंद्र कँडेरे प्रमुख रुप से उपस्थित रहे 


बेटी सुरक्षा दल की कोर कमेटी की मीटिंग कृष्णा सागर रेस्टोरेंट में संम्पन


6 सितम्बर बेटी सुरक्षा दल की कोर कमेटी की मीटिंग कृष्णा सागर रेस्टोरेंट में संम्पन हुई । बेटी सुरक्षा दल के केंद्रीय संयोजक डॉ एस के शर्मा जी व बेटी सुरक्षा दल की संरक्षक शिक्षाविद व समाजसेवी डॉ सुधा सिंह जी के नेतृत्व में सभी कोर कमेटी के सदस्यों ने । सर्वसम्मति से मोदी नगर निवासी मोदी नगर  की पूर्व पार्षद बबिता शर्मा को बनाया बेटी सुरक्षा दल (रजिo) का राष्ट्रीय अध्यक्ष  इस अवसर पर कोर कमेटी के सदस्यों ने आशा व्यक्त की कि बबिता शर्मा जी सम्पूर्ण भारत मे बेटियो की सुरक्षा, शिक्षा, चिकित्सा, गारंटी कानून बनवाने के लिए सम्पूर्ण भारत मे जनजागरण कर देश के हर नागरिक को जागरूक करेगी 
इस अवसर पर उपस्थित रहे --
   कोर कमेटी सदस्य 
डॉ एस के शर्मा  डॉ राजाराम आर्य डॉ जमील खान डॉ जुबेर त्यागी डॉ सुनील वसिष्ठ डॉ आर के शर्मा डॉ सुधा सिंह डॉ संजय सिंह संदीप शर्मा अमित सिंघल प्रमोद जेन नरेश अग्रवाल डॉ अनिल कोरी आदि उपस्थित रहे 


जीआरपी पुलिस द्वारा दो शातिर चोर गिरफ्तार


   थाना जीआरपी ग़ाज़ियाबाद द्वारा रेलवे स्टेशन गाजियाबाद से 02  शातिर चोर अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है। जिनके कब्जे से 08 अदद चोरी के एंड्रॉइड मोबाइल तथा 500 रुपये नकद बरामद हुए है,,अभियुक्तो के नाम मदन पुत्र रवीन्द्रपाल निवासी ग्राम बबूल थाना हाथरस जंक्शन  जिला हाथरस,,सलमान पुत्र नईम निवासी ग्राम हतई थाना धामपुर जिला बिजनोर है,,पुलिस की माने तो उपरोक्त अभियुक्त शातिर किस्म के अपराधी है।जो लगातार चोरी की घटनाएं कर रहे थे।अभियुक्त मदन आदतन अपराधी है,जो पूर्व में भी थाना जीआरपी मुरादाबाद तथा जीआरपी गाजियाबाद से जेल जा चुका है। ओर जिनपर चोरी के दर्जनों मुकंदमे दर्ज है।।


जनसभा का आयोजन


आरपीआई पार्टी के अल्पसंख्यक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय हाजी शकील सैफी जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में एक जनसभा को संबोधित करते हुए हाजी शकील सैफी जी के नेतृत्व में हजारों लोगों ने थामा आरपीआई पार्टी का दामन हजारों अल्पसंख्यक अन्य समुदाय के लोगों ने भी आरपीआई पार्टी जॉइन की आरपीआई पार्टी अल्पसंख्यक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हाजी शकील सैफी ने कहा अल्पसंख्यक को आरपीआई पार्टी से जोड़ने की मुहिम छेड़ी है पूरे भारत में यह मुहिम चलाई जाएगी इस दौरान मुख्य रूप से उपस्थित रहे सरफराज सैफी नदीम खान फहीम खान सरफराज सैफी नदीम खान फहीम खान सुनीता शर्मा रमेश कुमार अरविंद बजाज फजलु सैफी नरेंद्र सिंह जाहिद अहमद वाहिद खान आमिर खान परवेज सलमानी नाजिम मेवाती इसुब आरिफ सलमानी आदि लोग उपस्थित रहे


ग्रीन शिक्षक दिवस मनाया


मनीष पाण्डेय
शिक्षक दिवस के मौके पर आईआईएचएस इन्द्रापुरम मे ग्रीन शिक्षक दिवस मनाया गया, इस मौके पर इन्सिचुट के सभी प्रोफ़ेसर, निदेशक, बच्चे मौजूद थे, उन्होने 50पौधे पिपल, नीम, बेल के लगाये और उन्हें पालने के लिए संकल्प लिया, प्रकृति रुपा भाई ने सभी लोगों से अनुरोध किया कि ये जो पौधे आज हम लगा रहे हैं, उनके 5 साल तक शिक्षक दिवस के दिन जन्म दिन मनायेन्गे, कारण लगाना काम छोटा है, पालना बडा काम है, और पर्यावरण के रक्षा हेतु हमे पौधे से पेड़ बनाना है, तब जा के हमारा सम्पूर्ण काम पूरा होता है, 
    सभी उपस्थित लोगो ने इस बात पर अपनी सहमति जताइ कि हम सभी इन पौधों के जन्मदिन मनायेन्गे,


Friday 6 September 2019

चौधरी अवनीत पवार बने भारतीय किसान यूनियन अंबावता के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष


आज दिनांक  6/9/19 को भारतीय किसान यूनियन अंबावता ने अपने संगठन का विस्तार किया जिसमें किसानों के मसीहा राष्ट्रीय अध्यक्ष  श्री चौधरी ऋषि पाल अंबावत जी के द्वारा  चौधरी अवनीत पवार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष  नियुक्त किया और युवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक नागर जी ने अवनीत पवार जी को शुभकामनाएं दी 


और उन्होंने आशा जताई कि चौधरी अवनीत पवार भारतीय किसान यूनियन अंबावता को किसानों के बीच में ले जाने का कार्य करेगे जिसमें चौधरी  अवनीत पवार ने कहा वह सच्ची निष्ठा से किसानों के बीच किसानों की लड़ाई लड़ते रहेंगे और सरकार की गलत नीतियों की आवाज भारतीय किसान यूनियन  के छतरी के नीचे उठाते रहेंगे  


इस अवसर पर (प्रदेश अध्यक्ष) सचिन शर्मा  ने कहा बिजली के बढ़े हुए डरो को भारतीय किसान यूनियन  किसी भी तरीके से सहन नहीं करेगी किसान पहले ही त्रस्त है ऊपर से बिजली के दर बढ़ाए जा रहे हैं जिससे किसानों के तो कमर ही टूट जाएगी वहां उपस्थित 


राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण शर्मा (नीटू) ने कहा पहले गन्ने की पेमेंट का इंतजाम सरकार करें सरकारी सरकारी स्कूलों की स्थिति को सुधारें प्रदेश में हो रहे बच्चे चोरों को पकड़ने का काम करें



प्रदेश सचिव ठाकुर मुकेश सोलंकी जी ने कहा भारतीय किसान यूनियन अंबावता द्वारा किसानों की विभिन्न समस्याओं को लेकर  ग्राम- कदौली जिला अलीगढ़ में जनसंपर्क महासभा का आयोजन  8 तारीख रविवार को किया जा रहा है 


इस अवसर पर उपस्थित रहे संगठन महामंत्री रामपाल अंबावता जी अवनीश चौधरी चौधरी महिपाल राठी लोकेंद्र चौधरी उपस्थित रहे


दो पाय और चार पाय में भेद


“मनुष्य और पशु में अन्तर”
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मनुष्य और पशुओं में अनेक समानतायें हैं। मनुष्य भोजन करते हैं और पशु भी घास आदि चारा खाकर अपना पेट भरते हैं। मनुष्य श्रम करने के बाद थक जाते हैं और विश्राम करने सहित निद्रा आने पर सो जाते हैं। इसी प्रकार पशु भी श्रम करते और निद्रा लेते है। मनुष्य गृहस्थी बन कर सन्तानों को जन्म देते हैं और पशु व पक्षी आदि मनुष्येतर योनियों में भी सन्तानोत्पत्ति की प्रक्रिया होती है। इन सब बातों में मनुष्य और पशु लगभग समान हैं। मनुष्य को परमात्मा ने कुछ चीजें पशुओं से अतिरिक्त भी दी हैं। मनुष्य के पास दो हाथ हैं परन्तु पशुओं के पास मनुष्य जैसे दो हाथ नहीं हैं जिससे वह मनुष्य जैसे काम नहीं कर सकते। मनुष्य को परमात्मा ने सत्य व असत्य का विवेचन वा मनन करने के लिए बुद्धि दी है जो पशुओं के पास नहीं है। मनुष्य बोल सकता है। अलग-अलग स्थानों पर रहने वाले मनुष्यों के पास अपनी-अपनी अनेक भाषायें हैं जिनसे वह अपने मन व हृदय के भावों को अपने परिवारजनों व मित्रों आदि में अभिव्यक्त कर सकता है। पशुओं को परमात्मा ने इस भाषा की सुविधा से वंचित रखा है। हर बात का कोई न कोई कारण होता है। परमात्मा परम विद्वान है, अतः उसने जिसके साथ जो किया व जिसको जो दिया, वह सब कारण-कार्य के सिद्धान्त के अनुसार है। संसार में भी हम देखते हैं कि जो मनुष्य जिस चीज का दुरुपयोग करता है, उससे वह चीज छीन ली जाती है। आत्मा अनश्वर है, अनादि व सनातन है। इस जन्म से पूर्व भी उसका अस्तित्व था और वह किसी मनुष्य व अन्य योनि में रहती थीं। जिस आत्मा ने पूर्वजन्म में अच्छे शुभ कर्म किये, उन्हें परमात्मा ने मनुष्य का शरीर दे दिया और जिसने पूर्वजन्म में अपने ज्ञान, इन्द्रियों व शक्तियों का दुरुपयोग किया, उनसे परमात्मा ने वह शक्तियां छीन लीं। मनुष्य को परमात्मा ने बुद्धि दी है तो इसका उसे सदुपयोग करना है। यदि वह इसका सदुपयोग नहीं करेगा तो निश्चय ही इससे यह सब इन्द्रियां, करण व यन्त्र आदि छीन लिये जायेंगे। पशु व पक्षी आदि योनियों को देखकर परमात्मा के इस न्याय की पुष्टि होती है।   


मनुष्य और पशुओं में एक प्रमुख अन्तर उनकी वैचारिक प्रणाली है। मनुष्य विचार कर सकता है और सत्य व असत्य का निर्णय कर सकता है। विचार करने के लिये भाषा की आवश्यकता होती है। संसार में अनेक भाषायें हैं परन्तु इन सभी भाषाओं का उद्गम वेदों की संस्कृत भाषा है। वेद संसार के प्रथम व आदि ग्रन्थ हैं। वेद में सब सत्य विद्याओं का भण्डार है। वेदों का ज्ञान सृष्टि के आरम्भ मे ंपरमात्मा से प्राप्त हुआ था। परमात्मा यदि सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों को वेदों का ज्ञान न देता तो सभी मनुष्य भाषा एवं ज्ञान से वंचित रहते। ईश्वर की सबसे बड़ी कृपाओं में से एक उसका मनुष्यों को वेदों का ज्ञान देना है। वह लोग जो मनुष्य जन्म लेकर भी वेदों का अध्ययन नहीं करते, ईश्वर, जीवात्मा और सृष्टि के सत्यस्वरूप को जानने का प्रयास नहीं करते और सत्याचरण नहीं करते, वह सब मनुष्य सिद्ध नहीं होते। वह संसार में भाररूप हैं। ऐसे लोग सत्य के विपरीत जो-जो आचरण करते हैं वह पशुओं से भी हीन व निम्नतर प्राणी होते हैं। परमात्मा ने सूर्य को प्रकाश और ताप देने तथा संसार की ऋतुओं के परिवर्तन करने सहित रात्रि व दिवस आदि को वर्तमान करने के लिये किया है। जिस प्रयोजन से सूर्य, चन्द्र व पृथिवी आदि ग्रह-उपग्रह बनाये गये हैं, यह सब अपने नियमों व उद्देश्यों का पूरा-पूरा पालन कर रहे हैं। मनुष्य को भी अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का सुख व दुःख रूपी फल भोगने के लिये बनाया गया है। इसके साथ उसे अपने भविष्य और भावी पुनर्जन्म के लिये भी सद्कर्मों का संग्रह करना है। जो ऐसा करते हैं वह प्रशंसा के पात्र होते हैं और जो नहीं करते, वह ईश्वर प्रदत्त मानव योनि का सदुपयोग न करने के कारण भविष्य में इस मनुष्य जन्म से वंचित किये जाने के पात्र बनते हैं। अतः मनुष्य को चिन्तन व मनन कर अपने कर्तव्य एवं अकर्तव्य का अवश्य विचार करना चाहिये और कर्तव्यों का पालन करने के साथ अकर्तव्यों का त्याग करना ही मनुष्य का प्रमुख धर्म होता है। ऐसा करने से हमें सुख व उन्नति का लाभ होता है। हम संसार में जिन उन्नत, सुखी व सफल व्यक्तियों को देखते हैं वह प्रायः अपने ज्ञानयुक्त परिश्रम व तप से ही आगे बढ़े हैं। पुरुषार्थ करके धन व सम्पत्ति तो अर्जित की जा सकती है और यश भी अर्जित होता है परन्तु वेदविहित ईश्वरोपासना और देवयज्ञ अग्निहोत्र कर्म न करने से मनुष्य के जीवन का उद्देश्य अधूरा रहता है। अतः मनुष्य के लिये वेदाध्ययन अनिवार्य है। वह यदि वेदाध्ययन करेगा तो उसे इसका लाभ मिलेगा अन्यथा वह इससे वंचित होकर भावी जन्मों में हानि को प्राप्त होगा। 


मनुष्य का अपना एक धर्म है जिसका अर्थ है सत्य का आचरण। कर्तव्य पालन को भी धर्म कहते हैं। मनुष्य जिन श्रेष्ठ गुणों को धारण कर सकता है, उनको धारण करना भी धर्म कहलाता है। जो निन्दित गुण होते हैं उनको जीवन में स्थान नहीं देना चाहिये क्योंकि यह मनुष्य को धर्म पालन से दूर करते हैं। मनुष्य जिन गुणों का ग्रहण, धारण व आचरण करता है वह अपनी बुद्धि और अर्जित ज्ञान के आधार पर सोच विचार कर करता है। मनुष्य से इतर पशु आदि किसी योनि की आत्माओं को चिन्तन मनन कर सत्य व ज्ञानपूर्व अपने कर्तव्यों का निर्धारण करने की सामथ्र्य नहीं है। वह वही करते हैं जिसका ज्ञान परमात्मा ने उनकी आत्माओं में कर रखा है। सभी पशु व पक्षियों के कर्म प्रायः ईश्वर के द्वारा नियत हैं। अतः वह या तो वनों में विचरण करते हैं या अपने मनुष्य रूपी स्वामियों के घरों पर बन्धे रहते हैं और उनसे जो काम लिया जाता है उसे वह करते हैं। यह सभी पशु हमें यह शिक्षा देते हैं कि हमने पूर्वजन्म में कुछ अनुचित वा अशुभ किये थे जिस कारण परमात्मा ने हमें सजा व दण्ड के रूप में पशु आदि योनि में जन्म दिया है। तुम मनुष्य हमसे शिक्षा लेकर कभी कोई अनुचित काम मत करना अन्यथा तुम्हारी भी हमारे समान दशा होगी। इन सब बातों पर विचार कर ही वेद के विद्वान व बुद्धिमान विवेकी जन सद्कर्मों में ही अपने जीवन को लगाते रहे हैं। ऋषि दयानन्द के जीवन पर दृष्टि डालते हैं तो हमें लगता है कि वह बौद्धिक दृष्टि से बहुत अधिक विकसित थे। उन्होंने वेद व समस्त प्राचीन उपलब्ध साहित्य को पढ़कर अपने भविष्य को लक्ष्य मोक्ष तक पहुंचाने का निर्णय किया था और श्रेष्ठ कर्मों को करके हमारे सामने एक आदर्श उपस्थित किया है। हमें राम, कृष्ण, दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, पं0 लेखराम, पं0 गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा हंसराज, पं0 चमूपति, स्वामी विद्यानन्द सरस्वती, पं0 युधिष्ठिर मीमांसक, डाॅ0 आचार्य रामनाथ वेदालंकार आदि जैसे महान पुरुषों का अनुकरण एवं अनुसरण करना चाहिये। ऐसा करके ही हम भविष्य में सुखी व सन्तुष्ट रह सकते हैं। ऐसा न करने पर और धनोपार्जन व सम्पति संग्रह आदि में फंसे रहकर हम अपने भावी जीवन में अपने लिये अनेक कठिनाईयां एवं दुःख उत्पन्न करेंगे। धर्म ही मनुष्यों को अभ्युदय एवं निःश्रेयस प्रदान करता है। धर्महीन मनुष्य पशु से भी निम्नतर होता है। आतंकवादियों पर यह बात शतप्रतिशत लागू होती है जो मानवता एवं मानव के कर्तव्यों से सर्वथा दूर होते हैं और मत-पंथ-मजहब की मिथ्या मान्यताओं के दुष्चक्र में फंस कर सज्जन धार्मिक लोगों को दुःख देते हैं। यह ईश्वर के दण्ड से बच नहीं सकते। किसी भी बुरे काम करने वाले मनुष्य को चाहे वह किसी भी मत का अनुसरण करें, उसके दुष्कर्मों के परिणामस्वरूप किंचित भी सुख नहीं मिल सकता। अज्ञानी मनुष्य का सुख उसके किसी भावी बड़े दुःख का कारण हो सकता है। 


पशुओं एवं पक्षियों सहित हम वृक्षों व जड़ पदार्थों से भी जीवन में अनेक शिक्षायें ले सकते हैं। गाय दूध देकर हमारा पालन करती है। उसके उपकारों से मनुष्य कभी उऋण नहीं हो सकता। भेड़, बकरी, अश्व व हस्ति आदि से भी हमें नाना प्रकार के लाभ होते हैं। इनके भी हम ऋण होते हैं। जड़ पदार्थों में जिन्हें हम देवता कहते हैं वह सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, अग्नि, वायु, जल, आकाश आदि भी हमें अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए हमारे जीवन को सुखद बनाते हैं। इनके भी हम ऋणी हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम पृथिवी के भौतिक पदार्थों का सदुपयोग करते हुए इन्हें किसी प्रकार से दूषित न करें। इनका अल्प मात्रा में सदुपयोग करें और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिये इसे स्वच्छ एवं उतनी ही मात्रा में छोड़कर जाने का प्रयत्न करें जितनी मात्रा यह हमें प्राप्त हुए थे। यदि हम वायु व जल आदि का प्रदूषण करते रहे और वनों को काटकर भूमि पर भवन, उद्योग एवं सड़के आदि बनाते रहे तो आने वाली पीढ़ियों को इससे असुविधा होगी। इसका अर्थ होगा कि हमने अपनी भावी पीढ़ियों के हितों की अनदेखी की और प्रकृति के साधनों का अन्धाधुन्ध उपभोग किया है। ऐसा करना उचित नहीं जबकि वर्तमान व्यवस्था हमें अधिक से अधिक आवश्यकता की वस्तुओं का उपभोग करने की प्रेरणा करती है। 


मनुष्य एवं पशुओं में बहुत सी समानतायें हैं। हमारा महत्व तभी है जब हम पशुओं की तुलना में अपने ज्ञान एवं आचरण से श्रेष्ठता सिद्ध करें। यदि हम वेद, सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों का नियमित स्वाध्याय करते हैं और तर्क एवं युक्ति से सिद्ध होने वाले सत्य कर्मों व उद्देश्यों की पूर्ति के लिये श्रेष्ठ सत्य आचरण करते हैं तो हम मनुष्य होने पर पशुओं से श्रेष्ठ कहे जा सकते हैं। भ्रष्टाचार, देश के अहित करने वाले विचारों व कार्यों में फंसकर तथा स्वार्थों में पड़कर हम पशुओं से भी निम्न कोटि के प्राणी सिद्ध होते हैं। ओ३म् शम्। 


-मनमोहन कुमार आर्य


योग महोत्सव आयोजित


ललित चौधरी—
गाजियाबाद मे गाजियाबाद प्रथम योग महोत्सव श्री एम.के.सेठ जी,  संचार रत्न, मुख्य महाप्रबंधक, ALTTC सेन्टर के सानिध्य मे, अखिल भारतीय योग संस्थान और राष्ट्रीय स्तर की संस्थाए जैसे क्रीड़ा भारती ,दिव्य योग संस्थान के सहयोग से मनाया गया । इस महोत्सव मे  8 वर्ष के बच्चो से लेकर 65 वर्ष के साधकों ने 6 केटेगरी के साधकों ने प्रतिभाग किया । इसमे under-11, under-14, under-19 under-25, under-50, under-65 उम्र तक के साधकों ने भाग लिया ।  लगभग 50 स्कूलो के बच्चो ने और पी.एस.यू. के 500-600 बच्चो और साफ्ह्कौ .ने प्रतिभाग किया । इसमे केटेगरी वाईज प्रथम, द्वितिय और तृतीय आने वाले बच्चो और साधकों को मेडल, ट्रॉफी और सर्टिफिकेट बांटे गये और योग के क्षेत्र मे सराहनीय काम करने वाले साधकों और पदाधिकारियों को "गाजियाबाद योग रत्न सम्मान और गेस्ट ऑफ होनर से नवाजे गये ।  जिनके प्रमुख नामो मे श्री एम.के.सेठ, संचार रत्न, ए.एल.टी.टी.सी. सेन्टर, श्री ललित भूषन, श्री हृदयेश कुमार, श्री डी.के.गौतम, अखिल भारतीय योग संस्थान के अध्यक्ष श्री के .के अरोड़ा, श्री राजेन्द्र मदान, मुख्य संयोजक, गाजियाबाद प्रथम योग महोत्सव, श्री राजेश शर्मा, श्रीमती सीमा शर्मा, क्रीड़ा भर्ती से ऋचा सूद, श्री सुदर्शन, पतान्जलि योग से श्री राजवीर सिंह, भारतीय योग संस्थान से श्री योगेश शर्मा आदि थे ।   यह कार्यक्रम दिनांक 06/09/2019 को सुबह 8:30 बजे से 3 बजे तक चला ।                                                                                                                अंत मे सिंगल मयूजिकल योग कार्यक्रम और ग्रुप   मयूजिकल योग कार्यक्रम भी हुआ । यह इस प्रकार का गाजियाबाद मे एक अनूठा योग महोत्सव हुआ । जिससे लोगो मे योग के प्रति ध्यान आकर्षित होगा । और लोगो मे योग के प्रति रुचि बढ़ेगी ।  यह गाजियाबाद का प्रथम योग महोत्सव और अखिल भारतीय योग संस्थान के सहयोग से हो रहा है । आए हुये अतिथिगणों, बच्चो और साधकों ने इस आयोजन की काफी तारीफ की । और कहा, कि ऐसे कार्यक्रम बार-बार होने चाहिये । जिससे लोगो मे योग के प्रति जागरूकता हो । इस कार्यक्रम की कुछ झलकियां निम्न है । मुख्य संयोजक का यह सपना है, कि गाजियाबाद के हर छोटे-बड़े पार्क मे योग की क्लास खुले । अगर किसी को योग क्लास खुलवानी हो, तो निम्नलिखित मो.7982815554 पर सम्पर्क कर सकता है ।


रसम द्वारा आयोजित शिक्षक दिवस के अवसर पर राज पब्लिक स्कूल घूकना में सम्मान समारोह का आयोजन


ललित चौधरी—


रसम द्वारा आयोजित शिक्षक दिवस के अवसर पर राज पब्लिक स्कूल घूकना में सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें चर्चा का विषय गाजी शब्द को देशनिकाला हो अभियान रहा व गाजियाबाद हो या गाजीपुर स्थानीय जन भावनाओं के अनुरूप नाम बदलकर पूर्वजों को सम्मान दो पर टीचर्स डे के अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा नेता आदरणीय श्री अशोक भारतीय चेयरमैन संयुक्त व्यापार मंडल गाजियाबाद ने अपने संबोधन में गुरु के महत्व पर प्रकाश डाला व उपस्थित सभी टीचर का सम्मान करते हुए उनके हाथो देश के नौनिहालो के बेहतर भविष्य के निर्माण की कामना की व गाजियाबाद का नाम बदलने हेतु पहल पर संदीप त्यागी रसम का माला पहनाकर स्वागत किया व हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया 
घूकना व्यापार मंडल के अध्यक्ष अमित चौधरी ने  बोलते हुए कहा कि शिक्षक ही देश का निर्माता है गाजी शब्द को देशनिकाला हो अभियान के समर्थन में 
हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया व सरकार से मांग की गई कि गाजियाबाद का नाम बदलकर कोई अन्य सर्वमान्य नाम प्रदान करो 
सामाजिक कार्यकर्ता 
संदीप त्यागी रसम राष्ट्रीय संयोजक रसम
ने डा सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्मदिन को टीचर्स डे के रूप में मनाने व राधा कृष्णन जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए प्रेरणा लेकर कार्य करना चाहिए ऐसा कहते हुए उपस्थित समस्त गणमान्य जन से हाथ उठवाकर गाजी शब्द को देशनिकाला हो अभियान के समर्थन में सहयोग मांगा 
गाजियाबाद का नाम बदलकर कोई अन्य सर्वमान्य नाम प्रदान करने की मांग पर सबसे सहयोग मांगा जिसे सभी सम्मानित साथियों ने स्वीकार कर तन मन धन से सहयोग का आश्वासन दिया 
संदीप त्यागी ने शिक्षक शब्द का अर्थ समझाते हुए बताया 
शि - शब्द शिखर पर ले जाने 
क्ष - क्षमा की भावना रखने वाले
 क - कमजोरी दूर करने वाले 
ऐसे अनेको महान गुण धारण कर अपने जीवन में उतार कर उदाहरण प्रस्तुत करने वाले व्यक्तित्व ही वास्तविक अर्थ में गुरू बनने की गुरू होने की योग्यता रखते हैं 
तमन्ना दीपांशी सोनम अनामिका सोनी मनीषा रजनी शिवानी सिमरन काजल सुमित अभिनव आदि
विद्यार्थियों ने शिक्षक के रूप में आज अध्यापन कार्य किया जिन्हे सम्मानित किया गया 
11 शिक्षको को सम्मान प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया जिनके नाम मंजू तोमर सुधा सीमा ज्योति संगीता कुसुम सावन हिमांशु मुख्य रुप से हैं
उपस्थित अतिथिगण को सम्मान प्रतीक चिन्ह भेंट कर स्वागत किया गया 
इस अवसर पर प्रमुख रुप से डा शरद गौतम शर्मा अमित चौधरी अजय वर्मा राजकुमारी त्यागी एम के त्यागी ऋषिक त्यागी 
पंडित अशोक भारतीय संदीप त्यागी रसम  
अमित वर्मा वीरेंद्र कँडेरे प्रमुख रुप से उपस्थित रहे 


 रणजीत मिक्स मार्शल आर्ट्स के खिलाड़ियों ने जीते 6 मेडल


ललित चौधरी— 


प्रतापविहार के एस एस के पब्लिक स्कूल में एक दिवसीय आयोजित अंतर जनपदीय स्कूल कराटे प्रतियोगिता में खिलाड़ियों ने 3 रजत व 3 कांस्य पदक हासिल कर के अपने अपने स्कूल का नाम रोशन किया।।                       रणजीत मिक्स मार्शल आर्ट्स एंड सेल्फ डिफेंस अकैडमी ऑफ इंडिया के संस्थापक व अध्यक्ष रेन्शी तरुण शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रतियोगिता में काफी स्कूलों के तकरीबन 600 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था । जिसमे अपने 6 खिलाड़ी कुमिते/फाईट इवेंट में शिवानी, ज्योति व अनंत मावी ने रजत पदक और छवी शर्मा, सूर्या त्यागी व अमित शिकारवार ने कांस्य पदक अपने अपने भारवर्ग में हासिल किया।               सभी खिलाड़ियों को पदक  हासिल कर लौटने पर लाल कुआं स्थित रणजीत मिक्स मार्शल आर्ट्स अकैडमी में रेन्शी तरुण शर्मा व असिस्टेंट प्रशिक्षक केशव शर्मा द्वारा  भव्य स्वागत किया गया।।।             दिनाँक: 06/09/2019             भवदीय। तरूण शर्मा (संस्थापक व अध्यक्ष  : रणजीत मिक्स मार्शल आर्ट्स एंड सेल्फ डिफेंस अकैडमी ऑफ इंडिया) मो. 7292000543, 8800475422    ईमेल: rmmasdaindia2019@gmail.com


दरों में रिकॉर्ड तोड़ वृध्दि किए जाने का विरोध, लालटेन प्रदर्शन


ललित चौधरी—


शुक्रवार को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के आह्वान पर जिला कांग्रेस कमेटी  ने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा   बिजली, पेट्रोल ,डीजल ,की दरों में रिकॉर्ड तोड़ वृध्दि किए जाने के विरोध में आज खोडा कालोनी में लालटेन प्रदर्शन किया और खोडा के नवनीत बिहार, आदर्श नगर में जुलूस निकाला और उत्तर प्रदेश की तानाशाह सरकार का विरोध किया 


भरौसा चेरिटेबल ट्रस्ट के नेतृत्व में कैंप आयोजित


भरौसा चेरिटेबल ट्रस्ट की चेयरपर्सन श्रीमति अन्नू कुमारी जी के नेतृत्व में संगम विहार दिल्ली में एक कैंप आयोजित किया गया जिसमें भारतीय सभ्यता की एक अनूठी कला मधुबनी पेंटिंग के बारे में विस्तार से बताया गया । श्रीमती अन्नू जी और टीम के द्वारा मधुबनी पेंटिंग को लेकर पूर्ण शिक्षा दी गयी एवं कार्यशाला का आयोजन किया गया । जिसमे सभी वर्ग की महिलाओं एवं बहन बेटियो ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया व् भारतीय सभ्यता की ऐतिहासिक मधुबनी पेंटिंग के बारे में जाना । मधुबनी पैंटिंग बिहार  सहित अन्य राज्यो में काफी महत्व रखती है । ये अनूठी कला हमारी संस्कृति को अलग ही अंदाज में बयां करती है ।


 


 


 


बेटी सुरक्षा दल की कोर कमेटी की मीटिंग कृष्णा सागर रेस्टोरेंट में संम्पन


6 सितम्बर बेटी सुरक्षा दल की कोर कमेटी की मीटिंग कृष्णा सागर रेस्टोरेंट में संम्पन हुई । बेटी सुरक्षा दल के केंद्रीय संयोजक डॉ एस के शर्मा जी व बेटी सुरक्षा दल की संरक्षक शिक्षाविद व समाजसेवी डॉ सुधा सिंह जी के नेतृत्व में सभी कोर कमेटी के सदस्यों ने । सर्वसम्मति से मोदी नगर निवासी मोदी नगर  की पूर्व पार्षद बबिता शर्मा को बनाया बेटी सुरक्षा दल (रजिo) का राष्ट्रीय अध्यक्ष  इस अवसर पर कोर कमेटी के सदस्यों ने आशा व्यक्त की कि बबिता शर्मा जी सम्पूर्ण भारत मे बेटियो की सुरक्षा, शिक्षा, चिकित्सा, गारंटी कानून बनवाने के लिए सम्पूर्ण भारत मे जनजागरण कर देश के हर नागरिक को जागरूक करेगी 
इस अवसर पर उपस्थित रहे --
   कोर कमेटी सदस्य 
डॉ एस के शर्मा  डॉ राजाराम आर्य डॉ जमील खान डॉ जुबेर त्यागी डॉ सुनील वसिष्ठ डॉ आर के शर्मा डॉ सुधा सिंह डॉ संजय सिंह संदीप शर्मा अमित सिंघल प्रमोद जेन नरेश अग्रवाल डॉ अनिल कोरी आदि उपस्थित रहे 


डॉ राधा कृष्णन शिक्षाविद, दर्शन शास्त्री, प्रखर वक्ता, आदर्श, शिक्षक बेजोड़ समाज सेवक विशिष्ट प्रतिभा संपन्न थे: राम दुलार यादव


साहिबाबाद। भारत रत्न , शिक्षा विद, विश्व के प्रख्यात दर्शन शास्त्री भारत के द्रितीय राष्ट्र्पति श्रद्धेय सर्वपल्ली डॉ. राधा कृष्णन का जन्म दिवस समारोह कोणार्क पब्लिक स्कूल, शालीमार गार्डन के प्रागण में धूम धाम से अयोजित किया गया | समारोह में आदर्श शिक्षिका गण को प्रतीक चिन्ह, दीप, शाल व श्री फल देकर सम्मानित किया गया | मुख्य अतिथि समाज सेवी राम दुलार यादव को भी संस्था के चेयरमैंन पूर्व प्रचार्य पं. गणेश दत्त शर्मा ने शाल , प्रतीक चिन्ह, श्री फल देकर सम्मानित किया | कार्यक्रम की अधक्षयता पण्डित गणेश दत्त शर्मा , आयोजन पंकज शर्मा , तथा संचालन नीरज शर्मा , प्रधानाचार्य ने किया | कोणार्क पब्लिक स्कूल के छात्र, छात्राओ ने देश समाज को प्रेरणा देने वाले गीत , नाटक , व सांस्कृतिक कार्यक्रम कर कला का  बेजोड़ व अदभुत प्रदर्शन किया गया | सैकोड़ो शिक्षिक - शिक्षिकाओं अभिभावक गणों व बच्चों ने कार्यक्रम में भाग लिया |
शिक्षक दिवस समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि राम दुलार यादव ने कहा कि डॉ राधा कृष्णन शिक्षाविद, दर्शन शास्त्री, प्रखर वक्ता, आदर्श, शिक्षक बेजोड़ समाज सेवक विशिष्ट प्रतिभा संपन्न थे उन्हें उप राष्ट्र्पति कार्य काल में ही भारत रत्न से सम्मानित किया गया था जो भारत देश का सर्वोच्च सम्मान है हम सभी साथी गण इस अवसर पर आपको श्रधा सुमन अर्पित करते हुए गौरान्वित हो रहे है यह इस बात को ओर भी प्रमाणित करता है की आप का जन्मदिन देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है | दार्शनिक बट्रेड रसेल जो विश्व के महान दार्शनिक ने डॉ. राधा कृष्णनन के राष्ट्र्पति बनाने पर कहा की भारत में दार्शनिक का राष्ट्र्पति बनना विश्व के दार्शनिको का सम्मान है | आप सत्य व समता के प्रबल पक्षधर रहे आप जब भारत के राष्ट्र्पति बने तो बिना किसी स्वीकृत के आम जनता से दो दिन बेरोक, टोक मिलते थे तथा उनकी कठिनाइयोँ को सुन निदान की व्यवस्था करते थे शिक्षक के रूप में भी बच्चो की रूचि के अनुरुप ही उन्हें शिक्षित करते थे तथा कठिन दर्शन शास्त्र का आप ने सरलीकरण किया समाज में भेद – भाव , ऊँच , नीच, नफरत के प्रबल विरोधी रहे तथा समता भाईचारा प्रेम व सत्य के प्रबल पक्ष धर रहे है | आज 21वी शदी में भी देश . समाज में नफरत बढ़ रही है आप के द्वारा बताए मार्ग पर चल कर ही  समाज में सदभाव समरसता पैदा होगी हम आप से प्रेरणा ले कर एक कदम चल सके आप के प्रति सच्ची श्रधांजलि होगो |
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. गणेश दत्त शर्मा जी ने डॉ. राधा कृष्ण के व्यक्तिव व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए समारोह में आये अतिथियों , सम्मानित शिक्षको , शिक्षकाओं , सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले बच्चो को आशीर्वाद दिया तथा कहा कि हमे डॉ. राधा कृष्ण जी के जीवन से प्रेरणा ले कर बच्चो में नैतिकता, अनुशासन के साथ , माता – पिता, आचार्य व अतिथि को देवतुल्य मानते हुए उनका सम्मान करने की शिक्षा देनी चाहिए व सत्य अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए , सैकड़ो साथियो ने द्रितीय राष्ट्र्पति के चित्र पर माल्यार्पण कर पुष्पांजलि दी | प्रमुख रहे विमला पांडये , विजय भाटी , मंगल सिंह चौहान , अंशु मान , रुविमन , दीपिका मान , संजय सर , बच्चो ने संस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया प्रमुख है  अशी, अरिश, राधा, मानसी, तानू, कहक ,मुस्कान , वंशिका, यवनीशा, गाथा, कुशांग, अर्जुन, अरिश, तनिष्क, कैफ , अंशिका, भूमिका, मानशी, दिपांशी, धनराज, अंजलि, राज कुमार , चहक , फिजा आदि |


सेंट जॉन्स पूर्वांचल स्कूल वाली कच्ची गली  का उद्घाटन

 



वार्ड 64 गरिमा गार्डन के J ब्लॉक् में सेंट जॉन्स पूर्वांचल स्कूल वाली कच्ची गली और अंगद सिंह वाली गली में नाली व इंटरलॉकिंग टाईल्स के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया !जिसकी लागत 12.92 लाख है !
तेजपाल सिंह राणा
         निगम पार्षद
वार्ड64गरिमा गार्डन
नगर निगम ग़ाज़ियाबाद


शिक्षक सम्मान समारोह' का आयोजन


गाजियाबाद: पुराना विजय नगर, रविदास कालोनी स्थित 'इन्दु शिशु विद्या सदन' संचालित 'ममता की छांव सेवा ट्रस्ट' में  'शिक्षक दिवस' पर 'शिक्षक सम्मान समारोह' का आयोजन हुआ। इस शुभ अवसर पर ट्रस्ट की चैयरमेन इन्दु बाला अरोड़ा ,संरक्षक मेघ राज  अरोड़ा व श्याम बाबू , मंत्री अमोद कपूर,  उपाध्यक्ष  यतीन्द्र शर्मा ,कार्यालय प्रमुख  सागर जी,  मीडिया प्रभारी  सुशील शर्मा ,  ट्रस्टी  सतीश जी, लख्मी चन्द,  बरनवाल जी, ममता की छाँव सेवा ट्रस्ट की महिला समिति की उपाध्यक्ष  पिंकी कपूर,  मंजू शर्मा, मंत्री  सुशीला सागर,  सहमंत्री  सुधा जी, समिति प्रभारी   अर्चना शर्मा व विद्यालय की प्रधानाचार्य  सीमा शर्मा व शिक्षक राजेश,  मंजू,  संगीता, बबिता,बबिता,गीता व शिवानी मौजूद थे।


हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया शिक्षक दिवस 


के के मिश्रा / हरीश सिंह 
सन्त कबीर नगर - प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालय गुलरिहा मे भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं शिक्षाविद स्वर्गीय श्री डां सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिन स्कूली बच्चो प्रधानाध्यापक अध्यापिकाओ के द्वारा केक काटकर हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया । इस अवसर पर छोटे - छोटे बच्चो द्वारा रंगारंग कार्यक्रम किया गया , प्रभारी प्रधानाध्यापक चंद्रप्रकाश मौर्या द्वारा शिक्षाविद डां सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी व उनकी शिक्षा / समाज मे किये गये कार्य वृत्तियो का विस्तृत उल्लेख करते हुए कहा कि आज हम इनके द्वारा बताये गये पद चिन्हो से हट गये है । काश ! अपने जीवन मे शिक्षक समुदाय अनुशरण करता तो शिक्षा का महत्व कुछ और ही होता । आज मार्डन विद्यालयो का नाम देकर जहां एक तरफ सिस्टम शिक्षक और छात्रो को भारतीय संस्कृति उसकी भव्यता और उसकी विरासत से दरकिनार कराते हुए पाश्चात्य सभ्यता ठोकी जा रही है । जिसमे नम्रता सहनशीलता आपसी प्रेम व सौहार्द की शिक्षा न देकर बल्कि गुड मार्निंग टीचर , गुड मार्निंग मैम , गुड मार्निंग पापा , गुड मार्निंग मेम की शिक्षा दी जा रही है , जिसमे हिन्दी शिक्षा व संस्कार दिखायी नही दे रहा है । दूसरी तरफ सरकारी मिशनरिया अगर अंग्रेजी का विरोध कर रही है और हिन्दी को राष्ट्रभाषा मान रही है तो इन मासूम पाल्यो के ऊपर ऐसी अंग्रेजियत शिक्षा क्यो थोपी जा रही है ? इस अवसर पर सहायक अध्यापक नीलम यादव , विजय लक्ष्मी , सुरेश्वर , श्याम लाल यादव , सृष्टि श्रीवास्तव , शीला देवी , सुधा शर्मा , व वरिष्ठ पत्रकार के के मिश्रा , वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा , जी एल वेदान्ती , हरीश सिंह आदि मौजूद रहे ।


Thursday 5 September 2019

सृष्टि की रचना व संचालन क्यों


'ईश्वर सृष्टि की रचना व संचालन क्यों व किसके लिए करता है?'
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मनुष्य, आस्तिक हो या नास्तिक, बचपन से ही उसके मन में सृष्टि व इसके विशाल भव्य स्वरूप को देखकर अनेक प्रश्न व शंकायें होती हैं। इसका रचयिता कौन है और उसने किस उद्देश्य से इसकी रचना की है? इसका उत्तर या तो मिलता नहीं है और यदि मिलता भी है तो प्रायः यह होता है कि ईश्वर ने इस सृष्टि को बनाया है अथवा यह अपने आप बनी है। सृष्टि को बनाने वाला वह ईश्वर कौन है, कैसा है, कहां है, वह क्या करता है, आदि प्रश्नों का उत्तर हमें अपने घर के बड़ो व मनीषियों से भी मिलता नहीं है। हमारे अनेक मतों के धर्माचार्य व उनकी पुस्तकें भी इस विषय पर यथार्थ रूप में प्रकाश नहीं डालती हैं। इन सभी प्रश्नों का समाधान न होने से मनुष्य के भीतर ही यह शंकायें व प्रश्न विलीन होकर खो जाते हैं। संसार में लाखों व करोड़ों में से कोई एक जिज्ञासु ऐसा भी होता है कि जो इन प्रश्नों की उपेक्षा नहीं करता और इनके हल ढूंढने में ही अपना जीवन लगा देता है। ऐसे ही एक महापुरुष का नाम था स्वामी दयानन्द सरस्वती। ऋषि दयानन्द को अपनी आयु के चैदहवें वर्ष में शिवरात्रि के दिन शिव की पूजा व उपासना करते हुए शिव मन्दिर में स्थित शिव की पिण्डी वा मूर्ति के सच्चे शिव होने में शंका हुई थी। उन्होंने अपने पिता व धर्म के आचार्यों से अपनी शंकाओं के उत्तर जानने का प्रयास किया था परन्तु उनको किसी से उत्तर नहीं मिले। इस कारण अध्ययन करते हुए उन्हें अपने माता-पिता के गृह व परिवारजनों को छोड़कर सच्चे ईश्वर के स्वरूप को जानने सहित मृत्यु रूपी क्लेश पर विजय पाने जैसे अनेक रहस्यमय प्रश्नों की खोज में जाना पड़ा था। सन् 1836 से सन् 1863 तक वह अपनी सभी शंकाओं के समाधान तथा विद्या प्राप्ति में लगे रहे। इस अवधि में उनको न केवल अपने प्रश्नों के उत्तर मिले अपितु वह योग विद्या में निष्णात भी हुए। वह ईश्वर साक्षात्कार व प्रत्यक्ष करने की ध्यान व समाधि की प्रक्रिया के अभ्यासी भी बन गये। उनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान से हम ईश्वर व सृष्टि से जुड़े सभी प्रश्नों के समाधान जानते हैं। हमारे ज्ञान का आधार ऋषि दयानन्द के सत्यार्थप्रकाश व ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि अनेक ग्रन्थ हैं। ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों में जो विद्या व ज्ञान है उसका आधार ईश्वरीय ज्ञान वेद, दर्शन, उपनिषद, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों के वेदानुकूल कथन, मान्यतायें व सिद्धान्त हैं जिन्हें महाभारत युद्ध के बाद लोगों ने विस्मृत कर दिया था। इस काल में अवैदिक, अज्ञान व अन्धविश्वासों से युक्त मूर्तिपूजा, अवतारवाद की कल्पना, मृतक श्राद्ध व फलित ज्योतिष आदि की कृत्रिम मिथ्या मान्यताओं तथा विधि विधानों ने समाज में स्थान बना लिया था जो आज भी बना हुआ है। ऋषि दयानन्द ने इन्हीं अवैदिक विधानों व परम्पराओं को मनुष्य जाति की अवनति सहित देश की परतन्त्रता एवं अन्य दुःखों का कारण बताया है जो कि उचित ही है। 


यह विशाल सृष्टि मनुष्य एवं सभी प्राणियों के जीवन का आधार है। सृष्टि की रचना एवं संचालन अपौरूषेय कार्य है। अपौरूषेय का अर्थ है जिस कार्य को मनुष्य नहीं कर सकते तथा जिसे मनुष्य के अतिरिक्त अन्य चेतन सत्ता सम्पन्न करती है। इस सत्ता जो कि ईश्वर की सत्ता है, उसका विस्तृत उल्लेख व परिचय वेदों में कराया गया है। वेदों के अतिरिक्त भी जब हम वैज्ञानिक रीति से तर्क व वितर्क पूर्वक विचार करते हैं तो हमें ईश्वर का सत्यस्वरूप उपस्थित होता है। वेदों में ईश्वर को सत्य, चेतन और आनन्दस्वरूप बताया गया है। ईश्वर निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सवार्वधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। वह जीवों को उनके पूर्वजन्मों के कर्मानुसार भिन्न भिन्न योनियों में जन्म देकर उनके पूर्वकर्मों का सुख व दुःखरूपी भोग कराने वाला है। वह सृष्टि की उत्पत्ति, पालन व प्रलय सहित सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि को करके चार ऋषियों को उत्पन्न करता है और उन्हें एक-एक वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का ज्ञान देता है। वेदज्ञान के मिलने और ऋषियों द्वारा उनके प्रचार से ही मनुष्य ईश्वर, आत्मा, कर्तव्य व अकर्तव्य सहित ईश्वर की उपासना, परोपकार तथा दान आदि के अपने श्रेष्ठ कर्तव्यों से परिचित होते हैं। इस प्रकार से सृष्टि प्रचलन में आती है और मनुष्य ईश्वर प्रदत्त शरीर व इसमें विद्यमान बुद्धि, मस्तिष्क, ज्ञान व कर्मेन्द्रियों के सहयोग से पुरुषार्थ के द्वारा अपने ज्ञान में वृद्धि करते रहते हैं और उनके द्वारा देश व समाज के लोगों के जीवन को सुख व सुविधाओं से युक्त करते रहते हैं। 


ईश्वर ने सृष्टि क्यों बनाई है, इसके लिये हमें ईश्वर, जीव और प्रकृति की अनादि और नित्य सत्ताओं तथा उनके गुण, कर्म, स्वभाओं सहित इनके द्वारा हो सकने व की जाने वाली सम्भव क्रियाओं व समझना होगा। इस ब्रह्माण्ड में एक ही ईश्वर है। उसके मुख्य गुण, कर्म व स्वभाव वहीं है जो उपर्युक्त पंक्तियों में दिये गये हैं। जीवात्मा ईश्वर से पृथक अस्तित्व, कार्य व व्यवहार की दृष्टि से एक स्वतन्त्र सत्ता है। जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है परन्तु उनके फल भोगने में ईश्वर के अधीन वा परतन्त्र हैं। जीवात्मा सत्य व चेतन पदार्थ है। यह अल्पज्ञ, अल्पशक्तिमान, आकार रहित, सूक्ष्म, एकदेशी, ससीम, ईश्वर से व्याप्य, अनादि, नित्य, अविनाशी, अमर, शस्त्रों से अकाट्य, अग्नि में न जलने वाला, वायु से न सूखने वाला, कर्म-बन्धनों में बंधा हुआ, जन्म-मरण धर्मा, वैदिक मार्ग पर चल कर वा विद्या प्राप्त कर मृत्यु से पार होने वा मोक्ष प्राप्त करने वाली सत्ता है। जीवों की संख्या अनन्त हैं। इन्हीं जीवों के पूर्वजन्म के कर्मों का सुख व दुःखरूपी फल देने के लिये ईश्वर प्रकृति नामक पदार्थ व सत्ता से जो कि अत्यन्त सूक्ष्म है, इस सृष्टि को बनाता है। 


प्रकृति सत्व, रज व तम गुणों वाली त्रिगुणात्मक सत्ता है। प्रलय अवस्था में यह पूरे ब्रह्माण्ड में फैली हुई होती है। ईश्वर प्रकृति के सूक्ष्म कणों में भी व्यापक रहता है। वह अपनी सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता और सर्वशक्तिमत्ता से इस इस प्रकृति में विकार उत्पन्न कर इसे महत्तत्व आदि अनेक पदार्थों में परिवर्तित करता है। ऋषि दयानन्द ने सांख्यसूत्रों के आधार पर सत्यार्थप्रकाश में मूल प्रकृति की सत्ता में सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया आरम्भ होने पर होने वाली विकृतियों का सारगर्भित वर्णन किया है। वह लिखते हैं कि (सत्व) शुद्ध (रजः) मध्य (तमः) जाड्य अर्थात् जड़ता यह तीन वस्तु मिलकर इनका जो एक संघात है उस का नाम प्रकृति है। इस से महत्तत्व बुद्धि, उस से अहंकार, उससे पांच तन्मात्रा सूक्ष्म भूत और दश इन्द्रियां तथा ग्यारहवां मन, पांच तन्मात्राओं से पृथिव्यादि पांच भूत ये चैबीस और पच्चीसवां पुरुष अर्थात् जीव और परमेश्वर है। इन में से प्रकृति साम्यवस्था में अविकारिणी और महत्तत्व अहंकार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य और इन्द्रियां मन तथा स्थूल भूतों का कारण है। पुरुष न प्रकृति का उपादान कारण है और न वह प्रकृति और उसके किसी विकार का कार्य है। इस प्रक्रिया से ईश्वर ने सत्व, रजः व तमः गुणों वाली त्रि़गुणात्मक प्रकृति से इस सृष्टि व इसके सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, ग्रह व उपग्रहादि नाना लोकों का निर्माण किया है। यह भी जानने योग्य है कि बिना किसी सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, चेतन सत्ता के इस सृष्टि की रचना व निर्माण नहीं हो सकता। यदि हो भी जाये, जो कि असम्भव है, तो फिर इसका संचालन ईश्वर के समान चेतन सत्ता के नहीं हो सकता। प्रलय के लिए भी ईश्वर की सत्ता का होना व उसे स्वीकार करना आवश्यक है। अतः सृष्टि की उत्पत्ति प्रक्रिया का सम्पादन सांख्य दर्शन व ऋषि दयानन्द द्वारा किये गये उसके सूत्रों के अनुवाद व क्रम के अनुरूप ही होता है। 


सृष्टि की उत्पत्ति अनन्त व अगण्य जीवों के कल्याण वा उनके पूर्वकल्प व पूर्वजन्मों में किये शुभ अशुभ व पाप पुण्य कर्मों का सुख व दुःख रूपी फल समस्त जीवों को प्रदान करने के लिये की गई है। यही ईश्वर का सृष्टि बनाने का प्रयोजन है। ईश्वर सृष्टि की रचना वा उत्पत्ति करने में समर्थ है, यह भी सृष्टि की रचना का कारण है। इस प्रकार से सृष्टि की रचना किसने, क्यों व किसके लिये की है, इन सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है। यही इसका सत्य व यथार्थ उत्तर है। हमें नहीं पता कि संसार के किसी बड़े वैज्ञानिक ने कभी इस सृष्टि उत्पत्ति के वर्णन को पढ़ने व समझने का प्रयास किया है और यदि किया है तो उसने इसके पक्ष-विपक्ष में क्या टिप्पणी की है? जो भी हो वेद के दसवें मण्डल में सृष्टि की रचना का वर्णन किया गया है। वही वर्णन सृष्टि की रचना का सत्य वर्णन है। इसको स्वीकार कर ही जीवों के जन्म-मरण व मनुष्य जन्म के लक्ष्य 'मोक्ष' का भी ज्ञान होता है। 


सृष्टि की उत्पत्ति कब हुई इसका उत्तर भी वैदिक साहित्य से मिलता है। इस विषय में यह जानना महत्वपूर्ण है कि ईश्वर का एक दिन 4.32 अरब वर्षों का होता है। इतनी ही अवधि की रात्रि होती है जिसे प्रलय काल कहते हैं। पूरी सृष्टि का काल 14 मन्वन्तरों में विभाजित किया गया है। 1 मन्वन्तर में 71 चतुर्युगी होती हैं। इस प्रकार एक कल्प में कुल 994 चतुर्युगी होती हैं। शेष 6 चतुर्युगी का काल 4.32 करोड़ x 6 = 25.92 करोड़ वर्ष होता है यह समय सृष्टि की उत्पत्ति में लगने वाला समय है। इस अवधि में सृष्टि बनने के बाद मानव की सृष्टि व आविर्भाव होता है। सृष्टि के आदि काल से ही अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न मनुष्यों वा ऋषियों ने मानव सृष्टि संवत् की गणना आरम्भ कर दी थी। इस समय मानव सृष्टि व वदोत्पत्ति संवत् 1,96,08,53,120 वां वर्ष चल रहा है। इतने वर्ष पूर्व ही हमारी यह सृष्टि वा समस्त ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आये हैं। 4.32-1.96-0.26=2.10 अरब वर्षों बाद इस सृष्टि की प्रलय होनी है। प्रलय तक इस सृष्टि में मनुष्य एवं अन्य प्राणियों की उनके पूर्वजन्मों के शुभाशुभ कर्मों के अनुसार जन्म व मरण होते रहेंगे। इस प्रकार हमें सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता वा निमित्त कारण ईश्वर, सृष्टि के उपादान कारण प्रकृति तथा जिसके लिये सृष्टि बनाई गई उन जीवों का सत्य व यथार्थ उत्तर मिल जाता है। 


लेख का जो विषय है, उसमें सम्मिलित सभी शंकाओं का समाधान हो गया है। सृष्टि विषयक इन प्रश्नों का समाधान केवल वैदिक धर्म में ही उपलब्ध होता है। वैज्ञानिक भी अभी इस जानकारी को प्राप्त कर इसकी पुष्टि व खण्डन नहीं कर सके हैं। हम ईश्वर, वेद, वेदर्षियों सहित ऋषि दयानन्द के भी आभारी हैं जिन्होंने हमें विलुप्त व विस्मृत इन सभी प्रश्नों व शंकाओं का युक्ति संगत समाधान प्रदान किया है। हम उन्हें सादर नमन करते हैं। ओ३म् शम्।


-मनमोहन कुमार आर्य


मांसाहार मनुष्य के लिए अनुचित


“मांसाहार मनुष्य के लिए अनुचित एवं हानिकर है”
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मनुष्य की उत्पत्ति अपनी आत्मा तथा परमात्मा सहित इस सृष्टि को जानने तथा सद्कर्म करने के लिये हुई है। क्या हम अपनी आत्मा, ईश्वर और इस सृष्टि को यथार्थरूप में जानते हैं? इसका उत्तर हमें यह मिलता है कि हम व संसार के प्रायः सभी लोग जिनमें सभी मतों के आचार्य व अनुयायी भी सम्मिलित है, इस कसौटी को पूरा नहीं करते हैं। इसके अनेक कारण हैं जिनमें प्रमुख अज्ञानता है। अज्ञानता के साथ ही कुसंस्कार भी मनुष्य को अपने जीवन के उद्देश्य व लक्ष्य पर बढ़ने में बाधक होते हैं। परमात्मा ने मनुष्यों सहित सभी प्राणियों को उनकी आत्मा के पूर्वजन्मों के शुभ व अशुभ कर्मों के आधार पर उन्हें भोग व न्याय प्रदान करने के लिये भिन्न भिन्न योनियों में जन्म दिया है। उनके पूर्वजन्मों के जो कर्म हैं उन्हें सभी प्राणियों को भोग करना होता है। यदि हम किसी प्राणी को बीच में ही मार देते हैं, उसका कारण भले ही मांस खाना हो तो यह परमात्मा के न्याय व कार्यों में बाधा पहुंचाना होता है जिस कारण हम परमात्मा व उन प्राणियों के अपराधी व दोषी होते हैं और इसका दण्ड हमें ईश्वरीय न्याय व्यवस्था से मिलता है क्योंकि हमारे देश की व्यवस्था में पशु हत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं है। हमारे देश व विश्व में अहिंसा का प्रचार किया जाता है परन्तु दूसरी ओर अहिंसा की धज्जियां पशुओं की हत्या करके और उनका मांस खाकर शिक्षित व अशिक्षित सभी लोग उड़ाते हैं। 


मनुष्य मननशील प्राणी होने के कारण ही मनुष्य कहते हैं। मनन का अर्थ किसी विषय का ज्ञानपूर्वक चिन्तन व विवेचन करना होता है। मनन के द्वारा हम करणीय व अकरणीय कार्यों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। कर्तव्य व अकर्तव्यों का बोध भी हमें मनन करने से होता है। मांसाहार पर जब विचार करते हैं तो यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं दिखाई देता। परमात्मा ने मनुष्य के भक्षण के लिये अनेक प्रकार के स्वादिष्ट, पौष्टिक एवं हितकारी पदार्थ बनाये हैं। भोजन के लिये नाना प्रकार के अन्न बनाये हंै, फल बनाये हैं, दुग्ध और अनेक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक पदार्थ हमें परमात्मा की सृष्टि से सुलभ होते हैं। रोगी होने पर प्रायः सभी रोगों की ओषधियां भी वनों व खेतों से उपलब्ध होते हैं। जो मनुष्य मांसाहार करते हैं उन्हें पहले हिंसक बनना पड़ता है। यह मनुष्य के लिये किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। मांस खाने वाले लोग उक्ति दे सकते हैं कि वह पशुओं को काटते नहीं हैं अपितु पशु वध करने वाले कसाई वा कातिल तो दूसरे लोग होते हैं। मनन करने से हमें यह ज्ञात होता है कि मुख्य अपराधी वह होता है जिसके लिये अपराध किया जाता है व जो अपराध कराता है। मांसाहार में कसाई अपने लिये नहीं अपितु मांसाहार करने वाले लोगों के लिये ही मांस काटता है व निर्धन व अशिक्षित रसोईया अपना पेट भरने के लिये उसे अपने स्वामी की आज्ञा से पकाता है। कानून में हत्या का मुख्य अपराधी मारने वाला उतना नहीं होता जितना हत्या कराने वाला अधिक होता है। अतः इस कानूनी विधान से मांसाहारी मनुष्य ही पशुओं की हत्या का वास्तविक अपराधी व हत्यारा सिद्ध होता है। मांसाहारी व पशु हत्या करने वाले कसाई भले ही हमारी कानून व्यवस्था के अनुसार अपराधी न माने जायें, परन्तु हमारे कानून तो हमारे अल्पज्ञ व अनेक विषयों में ज्ञानशून्य लोगों के बनाये हुए हैं। ईश्वर ने पशु हत्या की किसी को अनुमति नहीं दी है। मांसाहारी मनुष्यों को चाहिये कि वह अपना पक्ष सिद्ध करने के लिये परमात्मा का विधान या उसकी अनुमति दिखायंे। वह ऐसा नहीं कर सकते अतः वह स्वयं को निर्दोष सिद्ध नहीं कर सकते। हम वैदिक धर्मियों के प्रायः सभी कर्तव्य वेद की आज्ञाओं के अनुकूल होते हैं। वेद ईश्वर का ज्ञान है जो उसने सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न मनुष्यों को दिया था। वेदों से ही मनुष्य को अपने कर्तव्य व अकर्तव्यों का बोध होता है। सृष्टि के आरम्भ से हमारे देश के सभी विद्वान, मनीषी, ऋषि व योगी वेद को ईश्वरीय विधान मानते रहे हैं तथा उसी के अनुसार आचरण भी करते आये हैं। वेद निषिद्ध कर्मों को करना वह पाप समझते रहे हैं। यह तर्क व युक्ति से भी सत्य सिद्ध होता है। 


यदि मांसाहार पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये तो इससे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है। गाय, बकरी व भेड़ आदि की संख्या अधिक होने से दुग्ध व खाद आदि की जो अतिरिक्त मात्रा मिलेगी उससे देश में यह पदार्थ शुद्ध रूप में तथा सस्ते प्राप्त होंगे। इससे नाना रोगों पर भी प्रभाव पड़ेगा और देश के नागरिकों के स्वास्थ्य में सुधार होगा। रोगों में कमी आयेगी और देशवासी स्वस्थ एवं बलवान तथा बुद्धिमान होगे। भेड़ से हमें अधिक मात्रा में ऊन मिलेगा जिससे हमें सर्दियों के गर्म वस्त्र सस्ते दामों में मिलेंगे और इससे लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार भी मिलेगा। देश पर गोहत्या और पशु हत्या का जो कलंक लगा हुआ है, जिससे देश में अनेक आपदायें समय-समय पर आती हैं, वह भी दूर होगा। ऐसे अनेक लाभ मांसाहार व पशु वध पर प्रतिबन्ध लगाकर किये जा सकते हैं। हमें यह सुनकर अत्यन्त पीड़ा होती है कि भारत गोमांस का निर्यात भी करता है। यह बहुत बड़ा कलंक है। जो लोग गोहत्या का विरोध नहीं करते वह सब भी गोहत्या के पाप के भागी हैं। गोरक्षा के लाभों को जानने के लिये सभी को ऋषि दयानन्द की पुस्तक ''गोकरूणानिधि” अवश्य पढ़नी चाहिये।


वेदों में पशुओं को अकारण कष्ट न देने का उल्लेख किया गया है। वेद के किसी मन्त्र या शब्द में मांसाहार का विधान न होने से मांसाहार उचित नहीं है। परमात्मा ने जो पशु आदि बनाये हैं उसमें शाकाहारी व मांसाहारी दोनों प्रकार के पशु हैं। शाकाहारी पशुओं में गाय, बकरी, भेड़, घोड़ा, हाथी, हिरण आदि पशु आते हैं। यह शाकाहारी पशु जीवन भर मांस का सेवन नहीं करते भले ही भूखे क्यों न मर जायें। परमात्मा ने इनको स्वाभाविक ज्ञान के रूप में क्या खाना है और क्या नहीं खाना है, इसका ज्ञान इनकी आत्माओं में दिया हुआ है। दूसरी ओर परमात्मा ने कुछ मांसाहारी पशु भी बनायें हैं। इनके दांत व पैर के पंजे शाकाहारी पशुओं से भिन्न होते हैं। इनको अपने भोजन का ज्ञान है। यह उन्हीं पशुओं को मारकर खाते हैं जो वनों में इन्हें सुलभ होते व शाकाहारी होते हैं। आश्चर्य है कि मनुष्य मननशील व विवेकशील होकर भी शाकाहारी पशुओं का अनुकरण न कर अधिकांशतः मांसहारी पशुओं का अन्धानुकरण कर रहा है। ऐसा करने से हमारी दृष्टि में वह मनुष्य होने का अधिकार व कर्तव्य खो रहा है। मनुष्य मनुष्य तभी तक रहता है जब तक की वह सृष्टि क्रम व ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करता है। यही कारण था कि सृष्टि के आदि काल से महाभारत काल तक हमारे पूर्वज व ऋषि, जो परम विद्वान होते थे, मांसाहार का सेवन नहीं करते थे। हमें भी अपने उन विद्वान व ज्ञानी पूर्वजों का ही अनुकरण करते हुए पूर्ण शाकाहारी बनना है जिससे हम स्वस्थ रहें, हमारी आयु लम्बी हो और हम दुःखों व रोगों का शिकार न होंवे। मांसाहार करने से मनुष्य को परजन्म में मनुष्य का जन्म नहीं मिलता जो कि श्रेष्ठ योनि है। मांसाहारी मनुष्य तम व रजो गुण वाला होता है जिन्हें पशु, पक्षियों व कीट पतंगों का निकृष्ट जन्म मिलता है। पढ़े लिखे अज्ञानी बन्धुओं को यह बात समझ में नहीं आती परन्तु यह सर्वांश में सत्य है। इसे जानने व समझने के लिये हमें वेद व सत्यार्थप्रकाश आदि वैदिक साहित्य का अध्ययन करना होगा, व ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभावों को भी जानना होगा। ऐसा करने पर ही हम भक्ष्य व अभक्ष्य पदार्थों के भेद को समझ पायेगे और शाकाहारी भोजन से हम अपने जीवन को रोग व दुःखों से दूर रखकर दीर्घायु होकर साधना करते हुए अपने परजन्म का सुधार कर सकते हैं। जीवन का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष है, वह भी केवल वेद मार्ग पर चलकर ही प्राप्त हो सकता है। मोक्ष प्राप्ति व मृत्यु से पार जाने का अन्य कोई मार्ग व उपाय नहीं है। 


परमात्मा ने हमारे शरीर को बनाया है। हमारे शरीर का पाचन तन्त्र शाकाहारी पशुओं से मिलता जुलता है तथा दांतों की बनावट भी उनके ही समान है। मांसाहारी पशुओं का पांचन तन्त्र व दांतों की बनावट भिन्न होती है। इसी से सृष्टिकर्ता का मनुष्य को शाकाहारी प्राणी बनाना सिद्ध हो जाता है। हम जिन वस्तुओं को खाते हैं उनसे पे्रम नहीं करते। मांसाहारी परिवारों के छोटो बच्चे गाय, बकरी आदि के बच्चों से प्रेम करते हैं व दोनों आपस में प्रसन्न होकर खेलते हैं। क्या यह उचित है कि जिस प्राणी व उसके बच्चे को हम व हमारे बच्चे प्रेम करते हैं, हमने भी बचपन में किया है, उसको हम अकारण अपने जिह्वा के स्वाद् के लिये मार कर उसके मांस का सेवन करें? यदि ऐसा करते हैं तो यह मानवीयता नहीं अपितु अमानवीयता है और गहरी असंवेदनशीलता है। गाय आदि पशुओं से हमें दुग्ध व गोमूत्र तथा अपने खेतों के लिये गोबर से बनी सर्वोत्तम खाद मिलती है। इन पशुओं का यह उपयेाग कोई कम नहीं है। बकरी का दुग्ध भी बच्चों व बड़ों के लिये अत्यन्त गुणकारी होता है। बच्चों व बड़ों के अनेक रोग बकरी के दुग्धपान से दूर होते हैं व बच्चों की बुद्धि तीव्र करने में भी इसकी बहुत महत्ता है। गाय का बछड़ा हमारे खेतों की जुताई करने के काम आता है और अन्न उत्पन्न करने तथा बैल गाड़ी में उसका योगदान महत्वपूर्ण है। गाय व बैल प्रदुषण नहीं करते जबकि ट्रैक्टर से खेती से वायु प्रदुषण होता है। हाथी व गाय भी मनुष्य के अनेक कार्यों में प्रयुक्त होते हैं। पुराने समय में हमारे राजा घोड़े व हाथी पर बैठ कर ही युद्ध करते व शत्रुओं का दमन करते थे। हाथी आज भी वनों में बड़े-बड़े वृक्षों को उठाने व एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने का काम करते हैं जिन्हें मनुष्य नहीं कर सकते। 


घोड़े की सवारी प्राचीन काल की जाती थी तथा वर्तमान समय में भी लोग करते हैं। हमारी किशोरावस्था में कारें व स्कूटर आदि बहुत कम होते थे और बहुत मुश्किल से सड़कों पर यत्र-तत्र दिखाई देते थे। ऐसे समय में हम घोड़ा गाड़ी का ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में प्रयोग करते थे। हमने गांवों में अपने परिवारों की बारातें बैलगाड़ी में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हुए देखी हैं व स्वयं भी उससे लाभान्वित हुए हैं। घोड़ा शक्ति का प्रतीक है। यह बहुत तेज दौड़ता है। शक्ति की ईकाई को हार्स पावन नाम भारतीयों ने नहीं अपितु विदेशियों ने दिया है। घोड़ा घास व दाना खाकर भी तेज गति से दौड़ता है। महाराणा प्राप्त ने अनेक युद्ध लड़े और अकबर जैसे शासक से कभी पराजित नहीं हुए। यदि मानसिंह जैसे लोग हिन्दू जाति से गद्दारी न करते तो अकबर का दिल्ली में शासनारूढ़ रहना संदिग्ध था। महाराणा प्रताप व उनका घोड़ा शाकाहारी थे और उन्होंने अकबर जैसे दुष्ट शासक को युद्ध में विजयी नहीं होने दिया। जो आत्मबल व साहस शाकाहारी मनुष्यों व पशुओं में होता है वह मांसाहारी मनुष्यों व पशुओं में नहीं देखा जाता। शाकाहारी भोजन का विकल्प मांसाहार कभी नहीं हो सकता। शाकाहारी पदार्थों में परमात्मा ने जो स्वाद व आनन्द का रस भरा है वह किसी पशु के मांस में नहीं है। मांस को हमेशा पका कर ही खाते हैं। कच्चा मांस खाना मनुष्य के बस की बात नहीं है। इससे भी सिद्ध होता है मांसाहार मनुष्य का भोजन नहीं है। मांसाहार एक कुसंस्कार है और हर स्थिति में त्याज्य है। मांसाहार का संस्कार इतना हानिकारक है कि भारत में अतीत में सूखा पड़ने और अन्न उपलब्ध न होने के कारण कई दिनों भूखी रहने पर एक माता ने अपने ही घर के बच्चे को मार कर खा लिया था। शाकाहार के पक्ष और मांसाहार के विरोध में बहुत कुछ कहा जा सकता है। अनेक विद्वानों ने मांसाहार के विरोध एवं शाकाहार के पक्ष में अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी हैं। ऐसी ही एक पुस्तक आर्यसमाज के विद्वान नेता रहे पं0 प्रकाशवीर शास्त्री लिखित 'गो-हत्या राष्ट्र-हत्या' है। हमें स्वाध्यायशील होना चाहिये। ऐसा होने पर ही हम अपना ज्ञान बढ़ाकर अपने जीवन को सन्मार्गगामी बना सकते हैं। ओ३म् शम्।


गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा


5 सितंबर को श्रीमती उषा चंद्र जी वरिष्ठ समाज सेविका एवं प्रत्याशी एमएलसी स्नातक ने  देशवासियों को शिक्षा दिवस की बधाई एवं हार्दिक शुभकामना देते हुए कहा की गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। कहा जाता है कि जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं इस दिन स्कूलों में पढ़ाई बंद रहती है। स्कूलों में उत्सव, धन्यवाद और स्मरण की गतिविधियां होती हैं। बच्चे व शिक्षक दोनों ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। स्कूल-कॉलेज सहित अलग-अलग संस्थाओं में शिक्षक दिवस पर विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। छात्र विभिन्न तरह से अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं, तो वहीं शिक्षक गुरु-शिष्य परंपरा को कायम रखने का संकल्प लेते हैं। 


नवनियुक्त महामंडलेश्वर भैया जी दास महाराज का फूल माला पगड़ी पहनाकर सोल भेंट


हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष  नवनियुक्त महामंडलेश्वर भैया जी दास महाराज का दिल्ली जाते हुए ट्रोनिका सिटी में भव्य स्वागत फूल माला पगड़ी पहनाकर सोल भेंट किया
 नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष महामंडलेश्वर भैया जी दास महाराज ने कहा जितना सम्मान संत महात्माओं को योगी सरकार में मिला है अब तक किसी और सरकार में नहीं मिला और संत समाज उनका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार व्यक्त करता है
 इस मौके पर मुख्य रूप से भाजपा जिला अध्यक्ष बसंत त्यागी जी मानव कल्याण सेवा संस्था  राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मेंद्र त्यागी रामभुल शर्मा जी युवा वाहिनी जिला मंत्री प्रवीण बैसोया युवा मोर्चा जिला उपाध्यक्ष नितिन तयागी जी महेश कुमार  एडवोकेट लवी त्यागी हर्ष चौहान ओमपाल त्यागी जी सतीश शर्मा जी आदि सैकड़ों की संख्या में भारी तादात में लोग मौजूद रहे


परिचय सम्मेलन


08-09- 2019 दिन रविवार दोपहर 2:00 बजे से परिचय सम्मेलन होगा जिनके फॉर्म नहीं भरे गए हैं वह फॉर्म जल्दी से जल्दी भरवाएं !!
                 सौजन्य से -
                           प्रेमचंद गुप्ता 
                          दुर्गा वॉशिंग पाउडर
                               गाजियाबाद
                         मो न.-9810320748


गढ़मुक्तेश्वर क्षेत्र में सिडीकेट  बैंक ने परोसे नकली नोट

अतुल त्यागी 


दोताई गांव में नकली नोटों का सिलसिला जारी नकली नोटों को लेकर कुछ दिन पहले हुई मुजम्मिल हयात की गिरफ्तारी अपने घर छुट्टी पर आए हुए फौजी ने बिजली का बिल जमा करने के लिए बैंक से निकाले 30 हजार रुपे 2000 का एक नोट बैंक ने दिया नकली शिकायत करने पर बैंक मैनेजर ने फौजी को बैंक से टरकाया


ग्राहकों का कहना है कोई ना कोई बैंक कर्मचारी नक़ली नोटों के कारोबार में हो सकता है लिप्त


एनएचआई के खिलाफ किसानों का धरना प्रदर्शन

अतुल त्यागी ब्यूरो चीफ
उत्तर प्रदेश के जनपद हापुड़ में नेशनल हाईवे पर बाईपास निर्माण का कार्य चल रहा है। जिस निर्माण कार्य के दौरान जा एन एच आई द्वारा किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया। वही हाईवे निर्माण में पड़ने वाले गावो को भी एनएचआई ने कोई रास्ता नहीं छोड़ा जिसको लेकर ग्रामीणों में अत्यंत रोष फेल गया। आपको बता दें कि ग्रामीणों के रोज के लिए किसान यूनियन ने आगे आते हुए विगत 15 दिन से हाईवे पर बैठकर अपना धरना प्रदर्शन शुरू कर गांव के रास्ते में कट देने की मांग करते हुए जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंप 5 तारीख में जिलाधिकारी कार्यालय के घेराव की चेतावनी दी थी। आपको बता दें आज 5 तारीख में करीब ढाई सौ से तीन सौ ट्रैक्टरों के साथ किसान यूनियन जिलाधिकारी कार्यालय पहुंची जहां जिलाधिकारी कार्यालय के चारों रास्तों को सील करते हुए उन्होंने कार्यालय का घेराव किया। इस दौरान किसान यूनियन जिलाधिकारी आदित्य सिंह के कार्य से संतुष्ट नजर आए परंतु एन एच आई द्वारा की जा रही नजर अंदाज कार्यवाही से असंतुष्ट हो लिखित आश्वासन मांग पर अड़ी दिखाई दी। इस मौके पर प्रशासनिक अधिकारी अभी तक किसानों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं वही किसान नेता एनएचआई द्वारा लिखित आश्वासन मिलने के बाद ही जिलाधिकारी कार्यालय हटने की बात कर रहे हैं। धरने के दौरान जब हमारे संवाददाता ने किसान नेताओं से बात की तो किसान नेताओं ने जब तक रास्ता नही मिलेगा तब तक हाईवे निर्माण कार्य के दौरान एनएचआई द्वारा रास्ता नही दिया जायेगा तब तक नहीं हटेंगे की बात की इसके लिए उन्होंने अपने खाने-पीने तक का इंतजाम जिलाधिकारी कार्यालय में करने की बात भी कही है।


अधिवक्ताओं के सामने कानून के रखवाले नतमस्तक

अतुल त्यागी ब्यूरो चीफ
हापुड़ में पुलिस कार्यप्रणाली से नाराज अधिवक्ताओं ने आज तीसरे दिन हड़ताल की घोषणा करते हुए कचहरी परिसर का मेन गेट बंद कर दिया। तथा पुलिस प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। आपको बता दें कि अधिवक्ता एसोसिएशन में आज हड़ताल के तीसरे दिन जहां कचहरी का मेन गेट बंद कर अपना विरोध प्रदर्शन जताया। वही मौके पर पहुंचे नगर कोतवाल महावीर चौहान अधिवक्ताओं की एकता के सामने झुकते नजर आए तथा मात्र 2 घंटे में अधिवक्ताओं के पक्ष में कार्यवाही करने का आश्वासन देते नजर आए नगर कोतवाली प्रभारी के काफी अनुनय विनय के बाद अधिवक्ता एसोसिएशन के अध्यक्ष द्वारा मुख्य गेट खुलवा दिया गया। जिसके बाद जिला न्यायाधीश किसान अधिवक्ताओं की आगामी रणनीति को लेकर बैठक शुरू हो गई है। साथी नगर कोतवाली प्रभारी महावीर चौहान 2 घंटे के आश्वासन के तहत कार्रवाई के सबूत लेने वापस चले गए। मुख्य गेट का ताला खुलने पर अधिवक्ता एसोसिएशन के अध्यक्ष से कुछ अधिवक्ता भी नाराज दिखाई दिए तथा बिना कार्रवाई के गेट खोलने के लिये अध्यक्ष से नाराजगी भी जताते दिखाई दिये।


चुनाव आयोग से अपील-अमित पँवार


भाजपा नेता अमित पँवार ने चुनाव आयोग से अपील की चुनाव लडने वाले बहुत से लोग अयोग्य होकर भी चुनाव लडते है। व कुछ लडने की तैयारी भी कर रहे होते है। जिनमे से कुछ चुनाव भी जीत जाते है। लेकिन अयोग्यता के कारण व अपने क्षेत्र मे विकाश कार्य करवा ही नही पाते है। और क्षेत्र की जनता अपने आप को ठगा सा महसूस करती है। महोदय चुनाव लडने वाले सभी प्रत्याशी की परीक्षा होनी चाहिए ताकि योग्य जनप्रतिनिधि जनता के बीच रहकर अधिक विकास कार्य करवा पाये हमारे देश मे छोटे से छोटी जिम्मेदारी के लिऐ भी परीक्षा का आयोजन किया जाता है। मे  देश का एक जिम्मेदारी नागरिक होने कारण मे आप से निवेदन करता हू प्रत्याशी का चुनाव लडने से पहले कम से कम एक इन्टरव्यू तो जरूर हो आप इस की शुरुआत छोटे चुनावो से जरूर करे


शिक्षक दिवस मनाया


भारत विकास परिषद ने श्री सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती एवं शिक्षक दिवस मनाया: -


ग़ाज़ियाबाद, इंदिरापुरम स्थित स्काई लाईन एडुकेशनल एकेडमी में भारत विकास परिषद ने संस्कार प्रकल्प के तहत "भारत के बिसरे मोती" महान शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती एवं शिक्षक दिवस मनाया।
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री बृजेश श्रीवास्तव ने बच्चों को संबोधित करते हुए राधाकृष्णन जी के योगदान की व्याख्या की व हम अपने द्वितीय राष्ट्रपति के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में क्यों मनाते हैं इसका व्याख्यान प्रस्तुत किया।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्प अर्पण एवं उनके जीवन एवं राष्ट्र योगदान पर उदबोधन के पश्चात राष्ट्रगान और अंत में सूक्ष्म अल्पाहार वितरण किया गया।
इस अवसर पर परिषद की तरफ से एकेडमी की तीन शिक्षिकाओं एवं तीन छात्रों को प्रशस्ति पत्र एवं शील्ड देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर लगभग 200 बच्चों समेत नीरज सक्सेना, अनिल भारद्वाज,  अरुन शर्मा, सरला बगाती, एकेडमी के संरक्षक श्री गुप्ता, प्रधानाचार्या समेत समस्त शिक्षिकाएं उपस्थित रहीं।


शिक्षक दिवस के मौके पर स्कूल में पंखे लगवाए


 शिक्षक दिवस के मौके पर वार्ड 64 गरिमा गार्डन स्थित प्राइमरी स्कूल में 1से लेकर 5वी तक के क्लास रूम में छत के पंखे लगवाए गए !अभी पिछले हफ्ते मैंने स्कूल का निरीक्षण किया था! तो देखा क्लास रूम में बच्चे जमीन पर बैठे हैं!और गर्मी से उनका बुरा हाल है! आज उनकी क्लास रूम में मैंने निजी खर्च से पंखे लगवा दिए हैं! अतः मेरी जिला प्रशासन व सीनियर प्रतिनिधियों से अपील है कि इस पिछड़े क्षेत्र में आने वाले इस प्राथमिक विद्यालय में भी अपनी कृपा दृष्टि डालें!और 376 बच्चों के बैठने के लिए बैंच की व्यवस्था और 2 जर्जर अवस्था में पड़े कमरों की मरम्मत करवाने की कृपा करें!
तेजपाल सिंह राणा
         निगम पार्षद
वार्ड64गरिमा गार्डन
नगर निगम ग़ाज़ियाबाद


पावन चिंतन धारा चैरिटेबल ट्रस्ट (आश्रम) अध्यात्म, देश सेवा तथा भारतीय ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित


ललित चौधरी—


पावन चिंतन धारा चैरिटेबल ट्रस्ट (आश्रम) अध्यात्म, देश सेवा तथा भारतीय ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित संस्थान है जिसकी स्थापना श्रीगुरु पवन सिन्हाजी द्वारा 17-फरवरी-2010 को हुई | आश्रम की प्रथम पूज्या भारत माता और अधिष्ठात्री मां दुर्गा हैं | आश्रम के प्रेरणास्रोत परम पूजनीय-प्रातः स्मरणीय स्वामी विवेकानंदजी हैं | स्वामी विवेकानंद जी को अपना मानस गुरु मानने वाले श्रीगुरु पवन सिन्हाजी स्वामी जी की तरह अपना संपूर्ण जीवन देश व समाज के कल्याण के लिए समर्पित कर चुके हैं और बच्चों तथा राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के लिए निरंतर कार्यरत हैं| आश्रम ने गत 9 वर्षों से शिक्षा, बच्चों के तन-मन के विकास, युवाओं के व्यक्तित्व विकास, पर्यावरण, समाजिक समता, धर्मशास्त्र अध्ययन तथा ध्यान प्रशिक्ष्ण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है|      
आश्रम का एक मह्त्वपूर्ण प्रकल्पहै 'युवा अभ्युदय मिशन' (YAM), जिसका उद्देश्य युवाओं में आत्मविश्वास, संकल्प शक्ति, ज्ञान, कौशल, तर्क, मूल्य, नेतृत्व क्षमता और देशभक्ति का विकास करना है, जिससे वे अपने जीवन तथा समाज को न केवल बेहतर बल्कि उपयोगी भी बना सकें| इस मिशनमें 18 से 40 वर्ष तक के युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें समाज सेवा, व्यक्तित्व विकास,  शिक्षण कार्य, भारतीय संस्कृति, तथा आद्यतन समाज की गतिविधियों का अध्ययन शामिल है | 
पावन चिंतन धारा चैरिटेबल ट्रस्ट (आश्रम) युवा अभ्युदय मिशन युवाओं के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करता  है तथा उन्हें भारतीय संस्कृति , राजनीति , अर्थव्यवस्था आदि विषयों में जागरूक करने के साथ-साथ ध्यान का भी अभ्यास कराता है। युवाओं को समाज की समझ हो तथा वो समाज के मुख्या धारा  से  सीधे जुड़ सकें,  इसके लिए इस मिशन के युवा पर्यावरण तथा शिक्षा के क्षेत्र में सार्थक प्रयास कर रहे हैं । युवा अभ्युदय मिशन में युवाओं को एक दायित्व भी सौंपा जाता है , जिसका नाम है ऋषिकुलशाला| ऋषिकुलशाला प्रकल्प देश भर में हाशिए पर सिमटे और गरीबी से जूझते बच्चों को शिक्षित कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास है | इस ऋषिकुलशाला के 10 केंद्र दिल्ली,ग़ाज़ियाबाद, मेरठ, मुंबई में खोले जा चुके हैं और कई अन्य शहरों में खुलने की प्रक्रिया में हैं| देश के अलग अलग प्रान्तों से सरे युवाओं को एक मंच पर लाकर, आश्र्मिस वर्ष National Youth Summit का आयोजन कर रहा है | 
आश्रम ने इस वर्ष नवें ज्ञानोत्सव को मनाते हुए दो दिवसीय कार्यक्रम को नाम दिया है, National Youth Summitजिसका उद्घाटन 7 सितंबर 2019 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में माननीय राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी करेंगे तथा इसका समापन 8 सितंबर 2019 को ए.एल.टी. सेंटर,गाज़ियाबाद में देश के रक्षा मंत्री माननीय श्री राजनाथ सिंह जी करेंगे।


यह Summit आश्रम द्वारा 8 वर्ष से आश्रम द्वारा किये जा रहे कार्यक्रम 'ज्ञानोत्सव' के अंतर्गत की जा रही है |
11 सितम्बर 1893 को स्वामी जी ने शिकागो में भारतीय धर्म पर अपना वक्तव्य दिया था जिसके उपरांत विश्व ने भारतीय ज्ञान को सिर आँखों पर बैठाया| इस दिवस को आश्रम 8 वर्षों से 'ज्ञानोत्सव' के नाम से मनाता रहा है | 7 सितंबर को जहाँ केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी नयी शिक्षा नीति पर युवाओं को संबोधित करेंगे वहीं  केंद्रीय युवा मामलों के राज्य मंत्री माननीय श्री किरेन रिजिजू केंद्र सरकार की युवाओं के लिए बनी नीतियों पर चर्चा करेंगे|'युवा और देशभक्ति'इस सत्र में परमवीरचक्र कैप्टन बाना सिंह जी अपने अनुभवों को साझा करते हुए श्री गुरु पवन सिन्हा जी के साथ चर्चा करेंगे|एक संत और सैनिक के बीच का यह संवाद युवाओं को देशभक्ति के लिए जहाँ एक और उत्साहवर्धनकरेगा वहीं देश को समझने का एक नया नजरिया भी देगा|7सितम्बर शाम को ग़ाज़ियाबाद के RKGIT College में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी होगा जहाँ 11 राज्यों से आये युवा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे|
8 सितम्बर को कार्यक्रम का आरम्भ ग़ाज़ियाबाद केए.एल.टी. सेंटर में आश्रम द्वारा आयोजित दूसरे मोबाइल फिल्म फेस्टिवलसे होगा,जहाँ 'अपराध'विषय पर बनाई गयी फिल्मों का प्रदर्शन किया जायेगा तथा उत्कृष्ट फिल्मों को पुरस्कृत किया जायेगा|विशिष्ट अतिथि एवं निर्णायक मंडल के रूप में प्रसिद्ध टी.वी. एंकरश्रीमती निधि अस्थाना एवं वरिष्ठ पत्रकार, शायर एवं गीतकार श्री अलोक श्रीवास्तव जी की उपस्थिति रहेगी|
तत्पश्चात समापन समारोह में केंद्रीय रक्षा मंत्री माननीय राजनाथ सिंह जी एवं डॉ नीलकंठ तिवारी जी (राज्य मंत्री-पर्यटन, सांस्कृतिक व धर्मार्थ कार्य (स्वतंत्र प्रभार)की उपस्थिति कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाएगी|कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री एवं गाजियाबाद के लोकसभा सांसद माननीय जनरल (रिटायर्ड) वी. के. सिंह जी करेंगे|


Wednesday 4 September 2019

हमें कहां जाना है


'हम कहां से आये हैं और हमें कहां जाना है'
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हम सब मनुष्यों का कुछ वर्ष पूर्व इस संसार में जन्म हुआ है और तब से हम इस शरीर में रहते हुए अपना समय अध्ययन-अध्यापन अथवा कोई व्यवसाय करते हुए अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं। जब हमारा जन्म हुआ था तो हम अपने माता के शरीर से इस संसार में आये थे। माता के शरीर में हम कब व कैसे प्रविष्ट हुए थे, हममे से किसी को भी ज्ञात नहीं है? हम विज्ञान के उस नियम से परिचित हंै जो यह बताता है संसार में अभाव से भाव की उत्पत्ति नहीं होती और भाव का कभी अभाव नहीं होता। हम रचे हुए जो भी पदार्थ संसार में देखते हैं उनकी उत्पत्ति के उपादान एवं निमित्त कारण अवश्य होते हैं। भौतिक पदार्थों का उपादान कारण सूक्ष्म प्रकृति है जो सत्व, रजः व तमः गुणों वाली है। इस मूल तत्व  प्रकृति से ही यह समस्त भौतिक जगत निमित्त कारण परमात्मा के द्वारा मानव सृष्टि के आरम्भ होने से पूर्व बनाया गया है। संसार में ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जिसका निर्माण बिना अन्य किसी पदार्थ के हुआ हो। मूल त्रिगुणात्मक प्रकृति पर विचार करते हैं तो यह किसी अन्य पदार्थ का विकार न होकर मूल द्रव्य व पदार्थ है जो अनादि, नित्य एवं भाव सत्ता व पदार्थ है। परमात्मा और आत्मा भौतिक पदार्थ न होकर अनादि और नित्य पृथक पदार्थ हैं। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप है और जीवात्मा भी सत्य और चेतन स्वभाव वाला अनादि व नित्य पदार्थ है। ईश्वर एक है परन्तु जीवात्मा संख्या की दृष्टि से अनन्त व असंख्य हैं जिसकी मनुष्यों के द्वारा गणना सम्भव नहीं है। इसके लिये अनन्त शब्द का प्रयोग किया जाता है जो कि उचित एवं यथार्थ है। 


ईश्वर की दृष्टि में सभी जीवात्माओं की संख्या सीमित व गण्य कह सकते हैं। यह जीवात्मा अनादि, नित्य, सूक्ष्म, चेतन, अल्पज्ञ, एकदेशी, ससीम, जन्म-मरण धर्मा, कर्मशील तथा अपने पुण्य व पाप कर्मों का भोक्ता है। जीवात्मा को अपने किए हुए नए व पुराने कर्मों का फल ईश्वर की व्यवस्था से मिलता है। ईश्वर अपने सर्वान्तर्यामी स्वरूप से जीवों के सभी कर्मों का साक्षी होता है। ईश्वर की व्यवस्था से सभी जीव अपने सभी कर्मों का याथातथ्य फल भोगते हैं भले ही वह उन्होंने सबसे छुपकर या फिर रात्रि के अन्धकार में ही क्यों न किये हों। उपनिषदों में बताया गया है कि जिस प्रकार सद्यःजात गाय का बछड़ा हजारों गायों में अपनी मां को खोज लेता व पहचान लेता है, इसी प्रकार जीव के कर्म तब तक जीव का पीछा करते हैं जब तक कि वह उनका फल न भोग लें। जीव को कर्मों का फल ईश्वर देता है। कोई जीव अपने कर्मों का स्वयं फल भोगने के लिये तैयार नहीं होता जैसे कोई चोर यह नहीं कहता कि उसने चोरी की है, उसे दण्डित किया जाये। कर्म-फल विधान को जान लेने पर ही मनुष्य दुष्कर्मों का त्याग कर सद्कर्मों में प्रवृत्त होते हैं और देश व समाज अपराधों से रहित बनता है। ईश्वर ने जीवात्मा के सुधार व उसे सद्कर्मों में प्रेरित करने के लिए ही सृष्टि के आरम्भ में वेदज्ञान दिया है और वह अनादि काल से जीवों को उनके शुभाशुभ कर्मों का फल देता आ रहा है। हमारे कर्म ही हमारे जन्म व सुख-दुःखों का कारण होते हैं। 


हम कहां से आये हैं? इस प्रश्न का उत्तर इस तथ्य में निहित है कि हम अनादि सत्ता हैं और इसी संसार व ब्रह्माण्ड में रहते आ रहे हैं। जीवात्मा जन्म-मरण धर्मा तथा कर्मों को करने वाला तथा कर्मों के फलों का भोगने वाला है। अतः इस जन्म से पूर्व हम मनुष्य या किसी अन्य योनि में रहते थे और वहां मृत्यु होने के बाद ही इस जन्म में अपने माता-पिता के पास व उनके द्वारा अपने कर्मों को फल भोगने व नये कर्मों को करने के लिये भेजे गये हैं। पूर्व जन्म में हम सब कहां व किस-किस योनि में थे, और कौन हमारे माता-पिता थे, इन सभी बातों को हम भूल चुके हैं। इसका एक कारण यह है कि पूर्वजन्म में हमारा जो शरीर था वह मृत्यु होने पर अग्नि के द्वारा व अन्य प्रकार से नष्ट हो चुका है। पूर्वजन्म में मृत्यु होने के बाद हमें भावी व नये माता-पिता के शरीर में प्रवेश करने में भी कुछ समय लगा होगा। माता के गर्भ में भी हम दस मास रहते हैं। इस अवधि में हमारी आत्मा व सूक्ष्म शरीर पर पूर्वजन्म के जो संस्कार व स्मृतियां होती हैं, वह विस्मृत होती रहती है। हम अपने इस जीवन में भी देखते हैं कि हमें अपने जीवन की सभी स्मृतियां स्मरण नहीं रहतीं। हमने कल, परसो व उससे पहले क्या क्या भोजन के पदार्थ खाये, किस रंग के कौन से वस्त्र किस दिन पहने, किन लोगों से मिलें, किनसे क्या-क्या बातें की व सुनी वह सब हमें स्मरण नहीं रहतीं। कुछ समय पूर्व हमारे मन में क्या क्या विचार आये व हमने किससे क्या बातें कीं, उन्हें शब्दशः स्मरण कर हम उनकी शब्दशः पुनरावृत्ति नहीं कर सकते। यह इंगित करता है कि हम जीवन में अनेक बातों को भूलते रहते हैं। जब हमें आज व कल की ही बहुत सी बातें स्मरण नहीं है तो फिर पूर्वजन्म की स्मृतियां न होना, हमारे पूर्वजन्म न होने आधार नहीं कहा जा सकता। हमारी आत्मा सनातन है और जिस प्रकार इसका यह जन्म हुआ है, और अपनी ही तरह अन्य आत्माओं के जन्म व मृत्यु को हम अपने दैनन्दिन जीवन में देख रहे हैं, उसी प्रकार से इस जन्म से पूर्व भी हमारी आत्मा के जन्म व मृत्यु की निरन्तर घटनाओं वा आवृत्तियों को हमे मानना होगा। 


ऋषि दयानन्द जी ने पूर्वजन्म के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात यह कही है कि मनुष्य को एक समय में एक ही बात का ज्ञान होता है। हमारा मन ऐसा है कि इसे एक समय में एक से अधिक बातों का ज्ञान नहीं होता। हमें हर समय अपने होने का व अपनी सत्ता का ज्ञान रहता है। अतः हम पूर्व समय की व उससे भी सुदूर पूर्वजन्म की बातों को भूले हुए रहते हैं। इससे हम सबका पूर्वजन्म नहीं है यह सिद्ध नहीं होता। हम इस जन्म से पूर्व मनुष्यादि किसी योनि में रहे हैं, यह सुनिश्चित है। हमारे न होने का कोई प्रमाण किसी के पास नहीं है। अतः इस जन्म से पूर्व हम किसी योनि में इस संसार में अवश्य रहे हैं। हम जहां भी रहे हैं, वहां हमारे माता-पिता, भाई बन्धु आदि सम्बन्धी एवं मित्र भी रहे हैं और वहां से मृत्यु होने पर ही हम इस संसार में आये हैं। जैसे इस संसार में हम मनुष्यों एवं अन्य प्राणियों की मृत्यु होकर परजन्म के लिये प्रस्थान होते देखते हैं वैसे ही हम भी अपने-अपने पूर्वजन्मों में मृत्यु होने पर ही परमात्मा की व्यवस्था से इस जन्म में यहां आये हैं। यह क्रम चलता आ रहा है और प्रलय तक ऐसा ही चलता रहेगा। गीता में योगेश्वर कृष्ण जी ने एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही है कि जिस प्रकार जन्म लेने वाले प्राणी की मृत्यु निश्चित है उसी प्रकार मृतक आत्मा का पुनर्जन्म भी निश्चित है। यह जन्म-मरण चक्र अनादि काल से चला आ रहा है और सदैव चलता रहेगा। 


हमें इस जन्म में मृत्यु होने पर कहां जाना है, इसका उत्तर भी उपर्युक्त पंक्तियांे में कुछ-कुछ आ गया है। मरने के बाद हम सबका पुनर्जन्म अवश्य होगा। हमारे जन्म का आधार हमारे इस जन्म के कर्म होंगे। योगदर्शन में ऋषि पतंजलि ने बताया है कि मरने के बाद हमारे शुभ व अशुभ कर्मों का जो संचय होता है वह प्रारब्ध कहलाता है। उस प्रारब्ध के आधार पर परमात्मा हमारी जाति अर्थात् जन्म तथा आयु सहित सुख-दुःखादि भोग निश्चित करते हैं। पूर्वजन्म के मृत्यु के समय प्रारब्ध कर्मों के अनुसार ही हमारा पुनर्जन्म होता है और हम सुख व दुःख भोगने सहित नये कर्मों को करके अपने भविष्य के पुनर्जन्म के लिये प्रारब्ध व भावी जन्म का आधार बनाते हैं। इस जन्म में मृत्यु होने पर आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर के साथ शरीर का त्याग कर ईश्वर की प्रेरणा से पुनर्जन्म के लिए प्रस्थान करता है। शरीर छोड़ने की यह प्रक्रिया परमात्मा द्वारा की जाती है और वही इस आत्मा को इस ब्रह्माण्ड की किसी पृथिवी पर हमारे कर्मों के अनुकूल माता-पिता के यहां जन्म देता है। यह प्रक्रिया जटिल है जिसका ज्ञान हमें नहीं होता। इसका पूरा ज्ञान केवल परमात्मा को ही होता है और वही इसे सम्पन्न करते हैं। यदि हमें इस प्रक्रिया का पूरा ज्ञान होता तो मनुष्य का जीवन सुखों के स्थान पर दुःखों से पूरित होता। परमात्मा की महती कृपा है कि हमें उन अनेक अनावश्यक बातों का ज्ञान नहीं है जिससे हमें दुःख प्राप्त हो सकता है। उदाहरण के रूप में हम यह कह सकते हैं कि यदि पिछले जन्म में हम पशु थे, वहां हमें जो सुख व दुःख हुए, उन सभी बातों का ज्ञान होता तो उन्हें स्मरण करके ही हम दुःखी रहते और हमारा यह जीवन नरक बन जाता। यदि पूर्वजन्म में हम किसी धनाड्य परिवार में रहे होते और इस जन्म में हम निर्धन परिवार में जन्म लेते तो भी हम पूर्वजन्म को स्मरण करके दुःखी रहते। परमात्मा ने सभी जीवों पर यह कृपा की है कि किसी को अपने पूर्वजन्म, पूर्वजन्म के कर्मों तथा घटनाओं का ज्ञान नहीं है। इसके लिये भी हम सबको ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिये। 


हम पूर्वजन्म में किस योनि में थे जहां मृत्यु होने पर हम इस जीवन में आये हैं? इसकी हमे स्मृति नहीं है। इस जीवन में हमारी मृत्यु अवश्य होनी है। सभी उत्पन्न प्राणियों की मृत्यु व पुनर्जन्म जन्म होना संसार का अटल नियम है। मृत्यु होने के बाद हमारी आत्मा हमारे कर्मानुसार इसी पृथिवी व इस ब्रह्माण्ड के किसी अन्य पृथिवी जैसे ग्रह पर जन्म लेगी और अपना जीवन व्यतीत करते हुए ज्ञान प्राप्त कर जीवन के उद्देश्य को जानकर, जो कि दुःखों से पूर्ण मुक्ति है, वेदानुसार ईश्वरोपासना व सद्कर्मों को करते हुए पुनः पुनर्जन्म व मोक्ष की ओर अग्रसर होगी। हमें इस जन्म को सार्थक करने के लिये वेदाध्ययन करना चाहिये और वेदविहित कर्म करते हुए धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति करनी चाहिये। यही मनुष्य जीवन का उद्देश्य व लक्ष्य है। ओ३म् शम्। 


-मनमोहन कुमार आर्य


आयुष्मान भारत के कैम्प का उद्घाटन


लोनी विधायक प्रतिनिधि पं ललित शर्मा ने वार्ड नम्बर 45 में किया आयुष्मान भारत के कैम्प का उद्घाटन, कहा नंदकिशोर गुर्जर जी के अथक प्रयास से सुधर रही है लोनी की स्वास्थ्य व्यवस्था:


बुधवार को लोनी के वार्ड नम्बर 45  में  डूडा विभाग द्वारा आयुष्मान योजना व मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत बनने वाले बीमा कार्ड के कैम्प काविधायक प्रतिनिधि पंडित ललित शर्मा ने उद्घाटन किया। 


विशेष सरकारी बैठक के कारण विधायक नंदकिशोर गुर्जर की अनुपस्थिति में प्रतिनिधि पं ललित शर्मा ने विधायक के संदेश से लाभार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि इस योजना से लाभार्थियों को 5 लाख तक का मुफ्त ईलाज किसी भी सरकारी एवं गैरसरकारी चिकित्सालय केंद्रों में हो सकेगा। लोनी के गिरी मार्किट में स्थित चौधरी मल्टी हॉस्पिटल में भी इस कार्ड के तहत लाभार्थी ईलाज करवा सकते हैं। इस योजना का मूलमंत्र है कि देश का गरीब, शोषित, वंचित एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को भी एक स्वस्थ्य एवं सुरक्षित जीवन की गारंटी प्रदान की जा सकें।जब किसी भी घर का सदस्य गंभीर बीमारी की चपेट में आता है तो नौबत घर ज़मीन बेचने तक कि पड़ जाती थी लेकिन अब यह बात गुजरें वक्त की बात होगी क्योंकि लोक कल्याण के लिए दिन रात कार्य करने वाले देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आर्थिक रूप से पिछड़ी जनता को आयुष्मान भारत का सुरक्षा कवच प्रदान किया है।  मोदी जी के इस योजना की विश्व भी तारीफ कर रहा है। अकेले पूरे लोनी में हजारों आयुष्मान भारत का कार्ड वितरित किया गया है। इसके अतिरिक्त सामुदायिक केंद्र का विस्तारीकरण कर उसे 100 बेड का किया जा रहा है,  100 बेड का अत्याधुनिक सुविधा से लैस नाईपुरा में अस्पताल बनाया जा रहा है, पिछले दिनों अत्याधुनिक जीवन रक्षण प्रणाली से लैस एम्बुलेंस माननीय विधायक जी के अथक प्रयास से जनता को समर्पित किया गया है। आज हम लोनी में चिकित्सा व्यवस्था को सुधरते हुए देख रहे हैं, आने वाले दिनों में लोनी वासी को ईलाज के लिए दिल्ली जाने की जरूरत नहीं होगा ऐसा लक्ष्य माननीय विधायक का है। 


इस दौरान स्थानीय सभासद जीतू भाई सहित सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोग मौजूद रहे।


पं ललित शर्मा


इको फ्रेंडली गणपति की पूजा: -


ग़ाज़ियाबाद, इंदिरापुरम की ऋषभ प्लेटिनम सोसायटी ने इस वर्ष पर्यावरण का ध्यान रखते हुए एक सार्थक क़दम उठाया। सोसायटी ने इको फ्रेंडली गणेश चतुर्थी कार्यक्रम का आयोजन किया। सोसायटी में रहने वाली शेता सरकार ने बताया कि इस साल हम लोगों ने चॉकलेट केक से निर्मित गणपति की स्थापना की। पूजा के बाद गणपति को दूध में विसर्जित किया गया। विसर्जन के पश्चात केक को ग़रीब बच्चों में वितरित कर दिया गया। इस प्रकार से पर्यावरण का भी ध्यान रखा गया और गरीब बच्चों के साथ त्योहार मनाने से त्योहार की खुशी भी दुगुनी हो गई। शेता ने कहा कि आगे भी हम कोई भी त्योहार मनाते समय पर्यावरण का विशेष ध्यान रखेंगे।


सरकारी स्कूल को बारहवीं तक कराने के लिए प्रदर्शन


साहिबाबाद:- कड़कड़ मॉडल वार्ड 43 के सरकारी स्कूल को बारहवीं कक्षा तक कराने के लिए प्रदर्शन किया गया। मॉडल को बसे हुए लगभग 200 साल से भी जयादा हो चुके हैं। ये विद्यालय बारहवीं तक ना होने के कारण इस क्षेत्र से अनेक  बच्चे मजबूरी में दिल्ली राजधानी के स्कूलों की ओर रुख करते हैं।जहां उनको 3से4 रेलवे ट्रैक व चार पांच मुख्य मार्ग व भारी ट्रैफिक से होकर गुजरना होता है ।


हमारे ख़बर एक्स्पर्ट संवाददाता से फोन कर बातचीत के दौरान  स्थानीय निवासी व समाजसेवी अरुण तोमर ने बताया। कि बच्चों को दिल्ली से आने व जाने में कई बड़े हादसे होने की आशंका बनी रहती है ।  अनेक बच्चे गंभीर दुर्घटनाओं का शिकार हुए हैं। और कई अपनी जान भी गवां चुके हैं। जब भी कभी इलेक्शन का दौर आता है। तब नेता गण झूठे आश्वासन देकर के चले जाते हैं। उसके पश्चात कभी भी मुड़ कर  वापस भी नहीं देखते। हमारा उत्तर प्रदेश सरकार व संबंधित अधिकारियों से कहना है। कि जल्द ही इस विद्यालय को 12वीं तक किया जाए। अन्यथा उनके खिलाफ हम ऐसे प्रदर्शन करते रहेंगे।


मुख्य रूप से प्रदर्शन करने वालों में अरुण तोमर,शीला राघव, किशोर कुमार, चांद तोमर, फतन राघव, आशी, कदम राघव, सुशील राणा, परमजीत कौर, रेणु राणा, जय वीर राणा, मीनाक्षी, रिंकू पाल, हितेश पाल, व रवि राघव  मौजूद रहे।


रिपोर्ट:- अजय सोलंकी


लाइफसेवर एंड हैल्थ वर्कर सोसायटी( LHWS )ने गरीब व अनाथ बच्चों को जरूरत का सामान  दिया

 



आसरा आश्रम में लाइफसेवर एंड हैल्थ वर्कर सोसायटी( LHWS )ने गरीब व अनाथ बच्चों को दवाइयां व खाने की चीजें मुहैया कराई,अन्य जरूरत का सामान भी दिया


ग़ाज़ियाबाद।जहा सड़क दुर्घटना व अन्य नई नई  से हो रही मौत से बचने के लिए लाइफ़सेवर एंड हेल्थ वर्कर सोसाइटी,ने मंगलवार को नेहरू नगर बने आसरा आश्रम संस्थान में जाकर अनाथ व बेसहारा बच्चों के बीच जाकर बच्चों को तरह तरह की होने वाली बीमारियों के बारे में बताया।लाइफसेवर एंड हेल्थ वर्कर सोसायटी ने अपने कार्य को आगे बढ़ाते हुए।मंगलवार को नेहरू नगर के आसरा आश्रम संस्थान में जाकर अपने पहले कदम को बढ़ते हुए लक्ष्य है की और बढ़ाने का काम सुरु किया।जानकारी के अनुसार आपको बता दे लाइफसेवर एंड हेल्थ वर्कर सोसायटी ने बताया कि किस तरह से लाइफ को सेव करना है,और अपने शहर में पानी कैसे  सेव हो व बढ़ते जहरीले पर्यावरण को कैसे शुद्ध पर्यावरण बनाए,ट्रैफिक के जरिए दुर्घटना से अपने जीवन को कैसे सेव करे।और अन्य  लोगों को कैसे उनके जीवन को सेव किया जाए।लाइफसेवर एंड हैल्थ वर्कर सोसायटी की टीम ने एक कदम जनता की लाइफ सेव करने के लिए बढ़ाया। मंगलवार को ग़ाज़ियाबाद के आसरा आश्रम में लाइफ सेवर हेल्थ वर्कर सोसाइटी की टीम ने जाकर बच्चों के बीच उन्हें गुड मैनर्स बैड मैनर्स के बारे समझाया एवं बच्चों को सेंट्रलाइजर चीज चॉकलेट एवं बॉर्नविटा दिया एवं बच्चों को हैंड सेंट्रलाइजर के बारे समझाया गया तथा आश्रम की मैडम व आश्रम के कोषाध्यक्ष हैदर को आश्रम के बच्चों के लिए जरूरतमंद  कुछ दवाइयां मुहैया कराई गई। जैसे कि बच्चों की क्रोसिन बच्चों की एमसेट सिरप बच्चों की कप सिरप इत्यादि लाइफ़सेवर की टीम ने अपने तरफ से आश्रम को मुहैया कराई।इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए लाइफसेवर एंड हैल्थ वर्कर सोसायटी एनजीओ के अध्यक्ष  एम डी मोबीन खान,उपाध्यक्ष एम आसिफ सैफी, कोषाध्यक्ष शहजाद पाशा, सचिव समाप्ति मजूमदार खान, उपसचिव फिरोज खान, मीडिया प्रभारी समीर मलिक, बोर्ड मेंबर मनीष कुमार मौजूद रहे !!!


विकास कार्यों का निरीक्षण


वार्ड 64 गरिमा गार्डन में कई जगह विकास कार्यों का निरीक्षण किया ! मास्टर कॉलोनी में हनुमान मंदिर वाली गली व H ब्लॉक और L ब्लॉक् में ,अशोक वाटिका गली न 5 में पानी की लाइन बिछाने का कार्य चल रहा है!और भल्ला कॉलोनी में बिजेंद्र यादव वाली गली और J ब्लॉक में सेंट थॉमस पूर्वांचल स्कूल वाली और मास्टर कॉलोनी में  राहुल ठाकुर, सुरेंदर सिंह वाली गली, और J ब्लॉक् में ही त्यागी एलुमिनियम वाली गली में नालियों का निर्माण कार्य का प्रगति पर है !
तेजपाल सिंह राणा
         निगम पार्षद
वार्ड64गरिमा गार्डन
नगर निगम ग़ाज़ियाबाद


Tuesday 3 September 2019

भारतीय किसान यूनियन (अंबावता) मैं महिला मोर्चा का विस्तार


आज भारतीय किसान यूनियन (अंबावता) मैं महिला मोर्चा का विस्तार प्रदेश अध्यक्ष पं. सचिन शर्मा बने इस पल के साक्षी


आज भारतीय किसान यूनियन (अ) की बैठक का आयोजन महिला जिला अध्यक्ष श्रीमती रागिनी  जी के निवास dlf अंकुर विहार मैं किया गया 


जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में (प्रदेश अध्यक्ष) पं. सचिन शर्मा मौजूद रहे इस अवसर पर पं सचिन शर्मा ने कहा कि आज समाज सेवा में महिलाओं के आ जाने से बहुत ज्यादा बल मिला है और अब जनसेवा समाज सेवा ईमानदारी और निष्ठा से की जा रहे हैं किसान यूनियन से हजारों की तादाद में लोनी गाजियाबाद बुलंदशहर मेरठ हापुड़ अमरोहा आगरा बागपत शामली मुजफ्फरनगर व अन्य प्रदेश के सभी जिलों में गरीब मजदूर एवं किसान भाइयों की समस्याओं को लेकर सैकड़ों हजारों धरने प्रदर्शन व ज्ञापन दिए हैं 


बिना किसी राजनीतिक मंशा के हर जरूरतमंद की मदद भारतीय किसान यूनियन द्वारा की जाती है आज जो संगठन का विस्तार होता है तो देख कर बहुत खुशी होती है और आज उससे भी ज्यादा खुशी का दिन इसलिए है कि अब किसान यूनियन में महिला मोर्चा भी बहुत ताकतवर होता जा रहा है और अब मातृशक्ति के साथ अत्याचारी भ्रष्टाचारियों पर मजबूती से प्रहार कर सकेंगे हम सभी मिलकर मैं सभी महिला मोर्चा की टीम को बधाई देता हूं और शुभकामनाएं देता हूं कि वह हमेशा निरंतर यूं ही आगे बढ़ते 


इस मौके पर भाकियू अंबावता के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण शर्मा नीटू प्रदेश सचिव मुकेश सोलंकी महिला मोर्चा की जिला प्रभारी श्रीमती ज्योत्सना सिंह सोलंकी देवेंद्र पाठक सुगीर झा किरण बंसल हेमा भट्ट गीता पांडे पुष्पा सुषमा तोमर शालिनी पाठक लक्ष्मी देवी रजनी देवी बबीता सिंह तमाम किसान नेता और कार्यकर्ता मौजूद रहे।