Tuesday 18 August 2020

वेदज्ञान और वेदानुकूल आचरण से ही मनुष्य धार्मिक बनता है


धार्मिक मनुष्य के विषय में समाज में अविद्या पर आधारित अनेक आस्थायें असद्-विश्वास प्रचलित हैं। इन पर विचार करते हैं तो इसमें सत्यता की कमी अनुभव होती है। सच्चा धार्मिक मनुष्य कौन होता है? इसका उत्तर यह मिलता है कि सच्चा धार्मिक वही मनुष्य हो सकता है जिसको वेदज्ञान उपलब्ध वा प्राप्त होता है। जो सोच-विचार कर सत्य असत्य का ग्रहण करता है। अपने प्रत्येक कर्म को सत्य की कसौटी पर कसकर उसे ग्रहण धारण कर उसे क्रियान्वित रूप देता है। किसी भी आचार्य व्यक्ति के कहने से किसी विचार मान्यता को जीवन में धारण करना सच्ची धार्मिकता की कसौटी विवेकवान मनुष्य की पहचान नहीं है। मनुष्य जीवन में सत्य व असत्य का महत्व होता है। सत्य को जानकर उसे ग्रहण व धारण करने से मनुष्य जीवन की उन्नति होती है। इसके विपरीत जाने अनजाने असत्य कर्म व आचरण करने से मनुष्य की हानि, पतन व अवनति होती है। कोई भी मनुष्य असत्य का आचरण कर जीवन में सुख व शान्ति को प्राप्त नहीं कर सकता। सुख व शान्ति की उपलब्धि मनुष्य को वेद ज्ञान के अनुरूप कर्म व पुरुषार्थ करने से ही होती है। संसार में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं जो अपनी मत की पुस्तकों का प्रचार कर उसके अनुरूप कर्म करने की प्रचार करते हैं। वेद व वेदानुयायी संसार के सभी मनुष्यों से यही अपेक्षा करते व आग्रह करते हैं कि वह किसी भी मत व विचारधारा को माने व आचरण करें, परन्तु उन्हें किसी भी धार्मिक, सामाजिक व अन्य कर्म को करते समय सत्य को सामने रखकर व उसकी परीक्षा कर ही उसे करना चाहिये। उन्हें यह विचार करना चाहिये कि उनके द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक कर्म सत्य, हितकर, पक्षपातरहित व न्यायपूर्ण है अथवा नहीं। ऐसा नहीं है कि संसार की पुस्तकों की सभी बातें पूर्णतया विद्यायुक्त वा सत्य ही हों।


महर्षि दयानन्द ने संसार में प्रचलित प्रायः सभी मतों की पुस्तकों की समीक्षा अपने विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘‘सत्यार्थप्रकाश” में की है। इस ग्रन्थ के उत्तरार्ध के चार अध्यायों में मत-मतान्तरों की पुस्तकों की समीक्षा कर उनमें विद्यमान कुछ असत्य मान्यताओं कथनों से परिचित कराया गया है। असत्य को छोड़ना, सत्य का ग्रहण करना तथा सत्य को ही आचरण में लाना मनुष्य का कर्तव्य धर्म कहलाता है। आर्यसमाज के अनुयायियों में यह गुण विशेष रूप से पाया जाता है। इसका कारण वेद एवं सत्यार्थप्रकाश सहित ऋषियों के प्राचीन ग्रन्थों उपनिषद, दर्शन आदि की सभी बातों का प्रायः सत्य पर आधारित होना है। हम भी इन ग्रन्थों को पढ़कर अपने विवेक एवं अन्य विद्वानों की समीक्षाओं से सत्य व असत्य का निर्णय कर सत्य का ग्रहण व असत्य का त्याग कर सकते हैं। ऋषि दयानन्द का धन्यवाद है कि उन्होंने मानव जाति को आर्यसमाज के श्रेष्ठ दस नियम दिये हैं जिनमें से एक चौथा नियम है ‘‘सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये।” यह मनुष्य जीवन में धारण करने योग्य आदर्श वाक्य है। इसे अपना लिया जाये तो हम अपने जीवन को उच्च व महान गुणों एवं आदर्शों वाला बना सकते हैं। ऐसा ही संसार में कुछ महापुरुषों एवं सभी वैदिक ऋषियों व मनीषियों ने किया था। वह वेदभाष्य, उपनिषद, दर्शन, शुद्ध मनुस्मृति तथा सत्यार्थप्रकाश आदि जो ग्रन्थ हमें प्रदान कर गये हैं उससे हमें सत्य का ज्ञान व सत्य के ग्रहण करने की प्रेरणा मिलती है और इनके अध्येता व हम सच्चे अर्थों में मननशील मनुष्य बनते हैं। ऐसे मनुष्यों का जीवन सत्य का ग्रहण व असत्य के त्याग का एक नमूना व उदाहरण होता है।


संसार में तीन सत्तायें अनादि नित्य अस्तित्व वाली है। यह तीन सत्तायें हैं ईश्वर, जीव प्रकृति। ईश्वर एक है और वह सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान तथा सर्वान्तर्यामी है। सभी जीव, जो कि संख्या में अनन्त वा असंख्य हैं, अल्पज्ञ एवं अल्पशक्तियों से युक्त होते हैं। सभी जीवों का ज्ञान पूर्णता से युक्त नहीं होता। वह माता, पिता, आचार्या तथा ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना उपासना से अपने ज्ञान की वृद्धि कर सकते हैं। पूर्ण ज्ञान ईश्वर वेदों में ही प्राप्त होता है। यही कारण था कि हमारे प्राचीन सभी पूर्वज ऋषि मुनि मुख्यतः वेदाध्ययन वेदानुकूल ग्रन्थों का अध्ययन, उनका चिन्तन, मनन तथा उनके अनुसार ही आचरण करते थे। वेदाध्ययन से ही मनुष्य के ज्ञान की न्यूनता दूर होती है और वह कुछ कुछ पूर्णता को प्राप्त करते हंै। वेदाध्ययन से ही मनुष्य ईश्वर व जीवात्मा सहित प्रकृति के स्वरूप व गुणों को यथार्थरूप में जान पाते हंै। जिन लोगों ने वेद व वैदिक साहित्य का अध्ययन नहीं किया, वह ज्ञान की वृद्धि नहीं कर सकते और न ही ज्ञान से सम्भावित पूर्णता को ही प्राप्त कर सकते है। ज्ञान की पूर्णता होने पर मनुष्य ऋषि, विद्वान व योगी बनता है। ऐसा हम कहीं देखने को नहीं मिलता। अतः सभी ग्रन्थों, चाहें वह धार्मिक हों, साहित्यिक, सामाजिक, राजनैतिक या अन्य श्रेणी के, उन्हें किसी भी आचार्य व महापुरुष ने लिखा हो, उसकी प्रत्येक बात की परीक्षा कर ही सत्य होने पर स्वीकार की जानी चाहिये। ऐसा करके ही हम सत्य मत को प्राप्त हो सकते हैं और अपने जीवन को सफल कर सकते हैं। ऐसा करने से ही हमें ईश्वर व उसकी कृपा प्राप्त हो सकती है। हमारा मनुष्य जन्म लेना सफल हो सकता है। इसके विपरीत किसी भी पुस्तक पर अपनी बुद्धि से परीक्षा किये बिना विश्वास कर लेना मननशील मनुष्य होने का लक्षण नहीं है।वेदर्षि ऋषि दयानन्द का कोटिशः धन्यवाद है कि उन्होंने संसार को यह नियम दिया है वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेदों का पढ़ना पढ़ाना तथा उनका सुनना-सुनाना, उनका प्रचार करना ही मनुष्यों का परम धर्म है। वेदों की इस महत्ता का कारण वेदों का ईश्वर प्रदत्त ज्ञान होना है। हमें वेद की सत्यता की परीक्षा का भी अधिकार प्राप्त है। इसके लिये हमें वेदांगों का ज्ञान प्राप्त करना होगा, सच्चा योगी बनकर ईश्वर का साक्षात्कार करना होगा तभी हम वेदों की परीक्षा कर सकेंगे। ऐसे विद्वानों ऋषियों के कथनों की परीक्षा कर ही जो निभ्र्रान्त सत्य सामने आता है, उसे स्वीकार किया जाता है। ऐसा करके ही हम वेदों की पूर्ण सत्यता को गहराई से जान सकते हैं। सृष्टि की आदि से ऋषि दयानन्द तक जितने भी ईश्वर का प्रत्यक्ष किये हुए तथा वेदांगों के ज्ञाता ऋषि हुए हैं, उन सबने वेदों की पूर्ण सत्यता की घोषणा की है। उन्होंने अपने-अपने जीवन को वेदमय बनाया था और इससे उन्हें आत्मिक बल व मृत्यु पर विजय वा अमृत जिसे मोक्ष कहते हैं, प्राप्त हुआ है। संसार के सब लोगों को, क्योंकि सब एक ईश्वर की सन्तानें हैं, एक सनातन, सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान ईश्वर की ही उपासना कर उसके वेदाज्ञान का नित्य प्रति स्वाध्याय कर सत्य सिद्धान्तों को प्राप्त होकर उसका पालन करते हुए अपने जीवन को व्यतीत करना चाहिये।वेदज्ञान को प्राप्त कर ही मनुष्य सच्चा ज्ञानी और विद्वान बनता है। वेद ज्ञान रहित मनुष्य को सच्चा विद्वान नहीं कह सकते। वेदज्ञान रहित मनुष्य ईश्वर आत्मा के स्वरूप को सत्य-सत्य नहीं जान सकता तो फिर उसे विद्वान कहें तो किस आधार कहें? अतः वेदज्ञान की प्राप्ति सब मनुष्यों के लिए अनिवार्य है। वेदज्ञान प्राप्त कर ही मनुष्य सच्चे विद्वान ज्ञानी बनते हैं। वेदज्ञान को प्राप्त होकर मनुष्य का वेदज्ञान के अनुकूल आचरण करना कर्तव्य होता है। इस कर्तव्य पालन को ही धर्म कहा जाता है। इस धर्म के पालन से ही मनुष्य सही अर्थों में धार्मिक बनता है। हम अपना समय वैदिक साहित्य के अध्ययन, चिन्तन तथा मनन में लगाते हैं। हमें इस बात का विश्वास है कि संसार में सभी मनुष्य एक ही परमात्मा सृष्टिकर्ता ईश्वर की सन्तानें हैं। संसार में एक ही ईश्वर है, दो व अधिक नहीं हैं। यह अटल सत्य है कि सभी मत मतानतर जो ईश्वर का होना स्वीकार करते हैं, उन सबका ईश्वर एक ही है। जब ईश्वर एक है तो उसका ज्ञान भी एक होगा। वह किसी भी अवस्था में परस्पर विरोधी नहीं हो सकता। यदि कहीं विरोध होता है, तो वह ईश्वर के मानने वाले लोगों की अल्पज्ञता के कारण होता है। यह अल्पज्ञता वेदाध्ययन से ही दूर होती है। जो लोग वेदों से दूर हैं और वेदों का विरोध करते हैं, वह कदापि सत्य ज्ञान व ईश्वर के सत्य स्वरूप का साक्षात्कार कर उसको प्राप्त नहीं हो सकते। उनको ईश्वर का साक्षात्कार होना सम्भव नहीं है। जीवन के अन्तिम लक्ष्य ‘‘अमृत व मोक्ष” की प्राप्ति मनुष्य को वेदज्ञान की प्राप्ति, उसके अनुकूल आचरण सहित उपासना करने ईश्वर का साक्षात्कार करने पर होती है। इस स्थिति को प्राप्त मनुष्य ही सच्चे अर्थों में धार्मिक महान होते हैं। सबको वेदाध्ययन कर वेदानुकूल आचरण करना चाहिये और धार्मिक बनकर अमृतमय मोक्ष को प्राप्त करना चाहिये। 



-मनमोहन कुमार आर्य


वेदाध्ययन और ईश्वर की उपासना क्या प्राप्त होता है?


मनुष्य के जीवन वेदाध्ययन का क्या महत्व है? उसे वेदाध्ययन क्यों करना चाहिये? मनुष्य जीवन में यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिस पर सबको विचार करके सार्थक व लाभप्रद निष्कर्ष निकाल कर उसे अपने जीवन में धारण कर लाभ उठाना चाहिये। वेदों का महत्व अन्य सभी सांसारिक ग्रन्थों से सर्वाधिक है। इसका कारण यह है कि वेद सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि में ईश्वर द्वारा उत्पन्न चार ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को प्राप्त हुए थे। यह ज्ञान इन चार ऋषियों ने ब्रह्मा जी नाम के ऋषि को दिया था। यहीं से इन ऋषियों द्वारा अन्य मनुष्यों को भाषा सहित ज्ञान देने की परम्परा आरम्भ हुई। आज भी हमारे पूर्वजों के पुरुषार्थ से वेद अपनी उत्पत्ति के लगभग 1.96 अरब वर्ष बाद भी सर्वथा शुद्ध स्थिति में हमें प्राप्त हैं। वेद का दूसरा प्रमुख महत्व यह है कि वेदों से हमें ज्ञात होता है कि ईश्वर ही इस सृष्टि का रचयिता, धारक, पालक तथा संहारक है। ईश्वर का सृष्टि रचना व मनुष्यों को बनाने का सत्य उद्देश्य व रहस्य विदित है। उसी से चार वेद प्राप्त हुए हैं। अतः सभी विषयों का वेदों से अधिक सत्य व पुष्ट ज्ञान अन्य किसी सत्ता व उसके बनाये ग्रन्थ से नहीं हो सकता। हमारे ऋषियों ने वेदाध्ययन कर व इसके माध्यम से ईश्वर का साक्षात्कार कर इस रहस्य को जाना था। वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है और वेदों का पढ़ना व पढ़ाना तथा सुनना व सुनाना ही संसार के सभी मनुष्यों का परम धर्म है। वेदों में संसार की सबसे उत्तम व श्रेष्ठ भाषा वैदिक संस्कृत उपलब्ध होती है। वेदों को नष्ट करने के अपने व परायों ने अनेक प्रयत्न व षडयन्त्र किये। सत्य अविनाशी होता है, इस सिद्धान्त के अनुसार वेद आज भी हमें सुरक्षित प्राप्त हैं व कालान्तर में भी वेद सुरक्षित रहेंगे, ऐसी आशा हम करते हैं। वर्तमान समय में हमें वेदों की जो उपलब्धि हो रही है, उसका मुख्य श्रेय वेदर्षि स्वामी दयानन्द के पुरुषार्थ को ही है। यदि वह जन्म न लेते तो आज हमें वेद सुरक्षित रूप में वेदमन्त्रों के संस्कृत व हिन्दी अर्थों सहित प्राप्त न होते। अतः ऋषि दयानन्द का उपकार मानना तथा वेदों के संरक्षण हेतु वेदों का प्रचार व प्रसार करना सभी ईश्वर को मानने वाले आस्तिक बन्धुओं का परम कर्तव्य है। वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेदों में हमें न केवल ईश्वर व आत्मा का सत्य व यथार्थ ज्ञान प्राप्त होता है अपितु संसार विषयक ज्ञान भी प्राप्त होता है। मनुष्य के कर्तव्यों वा धर्म का ज्ञान भी वेदों से ही प्राप्त होता है। संसार में मनुष्यों के सर्वांगीण धर्म का यदि कोई अविद्या से सर्वथा मुक्त ग्रन्थ है, तो वह केवल वेद ही है। वेदों से ही शब्द लेकर हमारे सृष्टि के आदिकालीन पूर्वजों ने स्थानों, पर्वतों एवं नदियों सहित सभी पदार्थों के नाम रखे थे। वेदों से ही हमें ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभाव सहित आत्मा के गुण, कर्म व स्वभाव तथा जीवात्मा के जन्म का उद्देश्य व मनुष्य जीवन के लक्ष्य का भी बोध होता है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य पूर्व जन्म-जन्मान्तरों में किये हुए कर्मों का भोग करना तथा सृष्टिकर्ता ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना सहित देश, समाज तथा संसार के उपकार के लिये किये गये कर्मों को करके जन्म-मरण से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होना होता है। मनुष्य को अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिये सात्विक साधनों का ज्ञान भी वेद व वेद के ऋषियों द्वारा बनाये गये साहित्य वा शास्त्रों से ही होता है। वेदों को पढ़कर तथा उसके वास्तविक अर्थों व अभिप्राय को समझ कर ही हम वेदों के महत्व को जान सकते हैं तथा उससे लाभ उठा सकते हैं। मनुष्य जहां अनेकानेक सांसारिक कार्यों को करता है, वहीं उसे जीवन का कुछ समय नियमित रूप से वेदों के स्वाध्याय व अध्ययन के लिये भी देना चाहिये। वेदाध्ययन से लाभ ही लाभ है। मनुष्य यदि अधिक न भी करे तो केवल सन्ध्या के मन्त्रों सहित ईश्वर, प्रार्थना, उपासना, स्वस्तिवाचन, शान्तिकरण तथा अग्निहोत्र के मन्त्रों के अर्थों सहित उपनिषद एवं दर्शनों का अध्ययन करके ही अपने जीवन को उन्नत व महान बना सकता है। स्वाध्याय के लिये ऋषि दयानन्द का ‘‘सत्यार्थप्रकाश” भी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसका अध्ययन करने से वेद, उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों वा समस्त वैदिक साहित्य व शास्त्रों के मूल भूत सिद्धान्तों व आशय का ज्ञान हो जाता है। ऐसा करके हम वेदों सहित ईश्वर की उपासना का महत्व जान जाते हैं जिससे हमें स्वस्थ जीवन, दीर्घायु, आरोग्यता, शारीरिक सुख व मानसिक शान्ति तथा परमगति मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष प्राप्ति परम आनन्द की प्राप्ति का एकमात्र उपाय है। हमारे सभी ऋषि, मुनि, योगी तथा महापुरुष राम, कृष्ण तथा दयानन्द ने वेदाध्ययन एवं वेदाचरण का आचरण कर ही परमगति को प्राप्त किया था। इस जीवन में एक स्वर्णिम अवसर परमात्मा ने हमें भी दिया है। इस अवसर से हम सभी को लाभ उठाना चाहिये। महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश आदि अनेक ग्रन्थ लिखकर व सभी शंकाओं का समाधान कर हमें मोक्ष प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील होने का सन्देश दिया है और इसकी प्राप्ति के साधन, उपायों तथा मनुष्य के आचरण पर भी प्रकाश डाला है जिसे हमें जानना व अपनाना है। वेदाध्ययन करने से मनुष्य का जन्म लेना सार्थक होता है। मनुष्य का जन्म खाने, पीने व सुख भोगने मात्र के लिये प्राप्त नहीं हुआ है। मनुष्य जन्म हम सबको अपनी आत्मा और इस संसार के रचयिता, पालक व प्रलयकर्ता ईश्वर को जानने व उसकी उपासना कर दुःखों से सर्वथा मुक्त होने के लिये भी मिला है। सन्ध्या में हमें प्रतिदिन यह विचार करना चाहिये कि हम अपने जीवन में अपने कर्तव्यों व उद्देश्यों को पूरा कर रहे हैं अथवा नहीं? अकरणीय कार्यों का त्याग व करणीय को अपनाना ही सुधी मनुष्य का कर्तव्य है। ऐसा करके हम निश्चय ही वेदाध्ययन से प्राप्त होने वाले सद्गुणों को अपनी आत्मा में धारण कर सुखी व आनन्दित होंगे और परजन्म में हमें श्रेष्ठ मनुष्य योनि में उत्तम परिवेश में जन्म प्राप्त होने सहित आत्मा की मुक्ति की संभावनायें बनती है। यही सभी मनुष्यात्माओं के लिये प्राप्तव्य व करणीय है। इसी ओर परमात्मा तथा हमारे विद्वान वैज्ञानिक ऋषियों ने हमारा मार्गदर्शन व ध्यान दिलाया है। हमने परमात्मा व अपने पूर्वज ज्ञानी ऋषियों की आज्ञाओं की उपेक्षा नहीं करनी है अपितु उनसे लाभ उठाना है। ऐसा करके हम अपना, समाज, देश, संसार व समस्त मनुष्यजाति का उपकार व कल्याण कर पायेंगे। अपने-अपने समय में मर्यादापुरुषोंत्तम राम, योगेश्वर कृष्ण तथा वेदर्षि दयानन्द जी ने भी यही कार्य किया। ऋषि दयानन्द ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। ऋषि दयानन्द के समय में वैदिक धर्म व संस्कृति को जो चुनौतियां थीं, वह पूर्ववर्ती महापुरुषों के समय में नहीं थी। ऋषि दयानन्द ने ही सनातन वैदिक धर्म तथा संस्कृति को विधर्मी शक्तियों से बचाया है। उनके समय में वेद लुप्त हो रहे थे। उनका उन्होंने उद्धार व प्रचार किया। उन्होंने सभी शास्त्रों के तत्वज्ञान को अपनी पुस्तक सत्यार्थप्रकाश में साधारण हिन्दी पठित मनुष्यों के लिए सृष्टि के इतिहास में प्रथम बार प्रस्तुत किया। सत्यार्थप्रकाश ‘न भूतो न भविष्यति’ ग्रन्थ है। विधर्मियों से शास्त्रार्थ कर ऋषि दयानन्द ने उनके मतों की अविद्या का प्रकाश किया। ऋषि दयानन्द ने वैदिक धर्मियों के धर्मान्तरण वा मतान्तरण का निवारण किया, देश को आजादी दिलाने प्रेरणा की तथा देश से अविद्या का नाश तथा विद्या का प्रकाश करने के लिये गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत की। उनके अनुयायियों ने वेदों व वैदिक धर्म की रक्षा के लिए गुरुकुल खोले तथा आधुनिक शिक्षा के अध्ययन व अध्यापन के लिए डीएवी स्कूल व कालेजों का देश भर में प्रसार कर देश से अविद्या को दूर किया। समाज सुधार सहित अन्धविश्वासों को दूर करने में भी आर्यसमाज की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ऋषि दयानन्द ने ही सामाजिक असमानता दूर करने के लिये लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने जन्मना जातिवाद को वेदविरुद्ध बताया। उनके अनुसार वैदिक धर्म के अनुसार संसार के सभी मनुष्यों की एक ही जाति होती है। मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है। उन्होंने स्त्री व शूद्रों सहित मनुष्य मात्र को वेदाध्ययन, वेद प्रचार, पण्डित बनने, यज्ञ का ब्रह्मा बनने तथा अपने गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार अपने अभीष्ट सात्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रेरणा की। सारा संसार उनके देश व समाज हित में किये गये कार्यों के लिये उनका ऋणी एवं कृतज्ञ है। 


वेदाध्ययन और ईश्वर की उपासना से मनुष्य को ईश्वर व आत्मा सहित संसार का यथावत ज्ञान होता है तथा उपासना से आत्मा की उन्नति होकर ईश्वर की प्राप्ति व ईश्वर का साक्षात्कार होता है। उपासक मनुष्य के सभी अभीष्ट सिद्ध होते हैं। सबसे बड़ा लाभ उसे जन्म व मरण के दुःखों से मुक्ति मिल जाती है। वह मोक्ष को प्राप्त होकर ईश्वर के सान्निध्य में रहता हुआ सुख व आनन्द का उपभोग करता है और 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्षों से अधिक समय तक जन्म-मरण व दुःखों से सर्वथा मुक्त रहता है। यह कोई छोटी बात नहीं है। अपने जीवन के कल्याण के लिये हमें वेदों की ओर लौटना ही होगा। जीवन कल्याण का संसार में अन्य कोई उपाय नहीं है। 



-मनमोहन कुमार आर्य


चौहान मार्शल आर्ट एकेडमी में बेल्ट टेस्ट कार्यक्रम आयोजित


समीक्षा न्यूज
गाज़ियाबाद। चौहान मार्शल आर्ट एकेडमी में बेल्ट टेस्ट किया गया जिसमे एकेडमी के छात्रों ने  गाजियाबाद का नाम रोशन करते हुए शत प्रतिशत सफलता हासिल की। शहीद नगर रामस्वरूप कॉलोनी स्थित एकेडमी में बेल्ट टेस्ट लेने के लिए आए परीक्षक मेहरबान राजपूत (ब्लैक बेल्ट 8 डेन), रिहान राजपूत और शाहनवाज चौहान ने बच्चों की तारीफ करते हुए कहा कि बच्चों ने इस परीक्षण के लिए जो अभ्यास किया था उसी का परिणाम है सभी खिलाड़ी बेहतर अंकों के साथ पास हुए हैं वह कुछ खिलाड़ियों ने तो 90% से भी अधिक अंक प्राप्त किए हैं। एकेडमी कोच शाहनवाज चौहान ने बताया कि एकेडमी से सचिन कुमार, लोकेश कुमार, ब्लैक बेल्ट सरफराज चौहान ब्राउन बेल्ट प्रशांत, कमल राजबंशी, अजय कुमार, को ऑरेंज बेल्ट देखकर सम्मानित किया गया | इस अवसर पर मेहरबान राजपूत जी ने सभी खिलाड़ियों का धन्यवाद देते हुए कहा कि गाजियाबाद में काफी समय से खिलाड़ियों में कराटे के प्रति रुचि बहुत बढ़ रहा है ऐसे ही होता रहा तो एक दिन हमारा भारत कराटे में स्वर्ण पदक प्राप्त करते हुए प्रथम स्थान पर आएगा ।


Monday 17 August 2020

कठिन परिश्रम ही सफलता का आधार: मनोज धामा 


 



लोनी। भाजपा नेता मनोज धामा ने बहेटा हाजीपुर मे एक्सपीरियंश इंस्टीटयूट का उद्घाटन किया । 
इस अवसर पर कोचिंग सेंटर के डायरेक्टर नरेन्द्र पाल के दूारा मनोज धामा जी का फूल -माला पहनाकर स्वागत किया। 
पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष मनोज धामा ने रिबन काटकर कोचिंग सेंटर का उद्घाटन किया। 
इस अवसर पर कोचिंग सेंटर से पढाई करने वाले होनहार बच्चों को मनोज धामा ने उपहार देकर सम्मानित किया तथा सभी के उज्जवल भविष्य की कामना की। 
मनोज धामा ने सभी बच्चों को प्रेरक प्रसंग सुनाये तथा जीवन मे हमेशा ईमानदारी के साथ मेहनत करने व परिश्रम से कभी भी पीछे नही हटने की सलाह बच्चों को दी। एवं कहा कि अभी आप सभी के जीवन का बेहद ही मूल्यवान समय चल रहा है आप सभी इस समय का सदुपयोग करे तथा अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिये जी-तोड मेहनत करे आपके दूारा आज की गयी कठिन मेहनत ही आपके भविष्य के सुगम होने का आधार बनेगी।
सभी बच्चे मन लगाकर पढाई करे तथा कोशिश करे कि आप सभी सरकार के उच्च पदों पर पहुंचे तथा समाज के प्रति जो एक नागरिक का दायित्व है उसका निर्वाह करे तथा अपने माता-पिता के साथ अपने अध्यापकों के साथ अपने क्षेत्र का नाम रोशन करे। 
इस अवसर पर हरिकिशन, मामचन्द, ताराचन्द, राजकुमार, हरीश, मिंटु, नरेन्द्र, सचिन पाल आदि लोग उपस्थित रहे।



वेदाध्ययन और ईश्वर की उपासना क्या प्राप्त होता है?


मनुष्य के जीवन वेदाध्ययन का क्या महत्व है? उसे वेदाध्ययन क्यों करना चाहिये? मनुष्य जीवन में यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिस पर सबको विचार करके सार्थक व लाभप्रद निष्कर्ष निकाल कर उसे अपने जीवन में धारण कर लाभ उठाना चाहिये। वेदों का महत्व अन्य सभी सांसारिक ग्रन्थों से सर्वाधिक है। इसका कारण यह है कि वेद सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि में ईश्वर द्वारा उत्पन्न चार ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को प्राप्त हुए थे। यह ज्ञान इन चार ऋषियों ने ब्रह्मा जी नाम के ऋषि को दिया था। यहीं से इन ऋषियों द्वारा अन्य मनुष्यों को भाषा सहित ज्ञान देने की परम्परा आरम्भ हुई। आज भी हमारे पूर्वजों के पुरुषार्थ से वेद अपनी उत्पत्ति के लगभग 1.96 अरब वर्ष बाद भी सर्वथा शुद्ध स्थिति में हमें प्राप्त हैं। वेद का दूसरा प्रमुख महत्व यह है कि वेदों से हमें ज्ञात होता है कि ईश्वर ही इस सृष्टि का रचयिता, धारक, पालक तथा संहारक है। ईश्वर का सृष्टि रचना व मनुष्यों को बनाने का सत्य उद्देश्य व रहस्य विदित है। उसी से चार वेद प्राप्त हुए हैं। अतः सभी विषयों का वेदों से अधिक सत्य व पुष्ट ज्ञान अन्य किसी सत्ता व उसके बनाये ग्रन्थ से नहीं हो सकता। हमारे ऋषियों ने वेदाध्ययन कर व इसके माध्यम से ईश्वर का साक्षात्कार कर इस रहस्य को जाना था। वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है और वेदों का पढ़ना व पढ़ाना तथा सुनना व सुनाना ही संसार के सभी मनुष्यों का परम धर्म है। वेदों में संसार की सबसे उत्तम व श्रेष्ठ भाषा वैदिक संस्कृत उपलब्ध होती है। वेदों को नष्ट करने के अपने व परायों ने अनेक प्रयत्न व षडयन्त्र किये। सत्य अविनाशी होता है, इस सिद्धान्त के अनुसार वेद आज भी हमें सुरक्षित प्राप्त हैं व कालान्तर में भी वेद सुरक्षित रहेंगे, ऐसी आशा हम करते हैं। वर्तमान समय में हमें वेदों की जो उपलब्धि हो रही है, उसका मुख्य श्रेय वेदर्षि स्वामी दयानन्द के पुरुषार्थ को ही है। यदि वह जन्म न लेते तो आज हमें वेद सुरक्षित रूप में वेदमन्त्रों के संस्कृत व हिन्दी अर्थों सहित प्राप्त न होते। अतः ऋषि दयानन्द का उपकार मानना तथा वेदों के संरक्षण हेतु वेदों का प्रचार व प्रसार करना सभी ईश्वर को मानने वाले आस्तिक बन्धुओं का परम कर्तव्य है। 
वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेदों में हमें न केवल ईश्वर व आत्मा का सत्य व यथार्थ ज्ञान प्राप्त होता है अपितु संसार विषयक ज्ञान भी प्राप्त होता है। मनुष्य के कर्तव्यों वा धर्म का ज्ञान भी वेदों से ही प्राप्त होता है। संसार में मनुष्यों के सर्वांगीण धर्म का यदि कोई अविद्या से सर्वथा मुक्त ग्रन्थ है, तो वह केवल वेद ही है। वेदों से ही शब्द लेकर हमारे सृष्टि के आदिकालीन पूर्वजों ने स्थानों, पर्वतों एवं नदियों सहित सभी पदार्थों के नाम रखे थे। वेदों से ही हमें ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभाव सहित आत्मा के गुण, कर्म व स्वभाव तथा जीवात्मा के जन्म का उद्देश्य व मनुष्य जीवन के लक्ष्य का भी बोध होता है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य पूर्व जन्म-जन्मान्तरों में किये हुए कर्मों का भोग करना तथा सृष्टिकर्ता ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना सहित देश, समाज तथा संसार के उपकार के लिये किये गये कर्मों को करके जन्म-मरण से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होना होता है। 
मनुष्य को अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिये सात्विक साधनों का ज्ञान भी वेद व वेद के ऋषियों द्वारा बनाये गये साहित्य वा शास्त्रों से ही होता है। वेदों को पढ़कर तथा उसके वास्तविक अर्थों व अभिप्राय को समझ कर ही हम वेदों के महत्व को जान सकते हैं तथा उससे लाभ उठा सकते हैं। मनुष्य जहां अनेकानेक सांसारिक कार्यों को करता है, वहीं उसे जीवन का कुछ समय नियमित रूप से वेदों के स्वाध्याय व अध्ययन के लिये भी देना चाहिये। वेदाध्ययन से लाभ ही लाभ है। मनुष्य यदि अधिक न भी करे तो केवल सन्ध्या के मन्त्रों सहित ईश्वर, प्रार्थना, उपासना, स्वस्तिवाचन, शान्तिकरण तथा अग्निहोत्र के मन्त्रों के अर्थों सहित उपनिषद एवं दर्शनों का अध्ययन करके ही अपने जीवन को उन्नत व महान बना सकता है। स्वाध्याय के लिये ऋषि दयानन्द का ‘‘सत्यार्थप्रकाश” भी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसका अध्ययन करने से वेद, उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों वा समस्त वैदिक साहित्य व शास्त्रों के मूल भूत सिद्धान्तों व आशय का ज्ञान हो जाता है। ऐसा करके हम वेदों सहित ईश्वर की उपासना का महत्व जान जाते हैं जिससे हमें स्वस्थ जीवन, दीर्घायु, आरोग्यता, शारीरिक सुख व मानसिक शान्ति तथा परमगति मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष प्राप्ति परम आनन्द की प्राप्ति का एकमात्र उपाय है। हमारे सभी ऋषि, मुनि, योगी तथा महापुरुष राम, कृष्ण तथा दयानन्द ने वेदाध्ययन एवं वेदाचरण का आचरण कर ही परमगति को प्राप्त किया था। इस जीवन में एक स्वर्णिम अवसर परमात्मा ने हमें भी दिया है। इस अवसर से हम सभी को लाभ उठाना चाहिये। महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश आदि अनेक ग्रन्थ लिखकर व सभी शंकाओं का समाधान कर हमें मोक्ष प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील होने का सन्देश दिया है और इसकी प्राप्ति के साधन, उपायों तथा मनुष्य के आचरण पर भी प्रकाश डाला है जिसे हमें जानना व अपनाना है। 
वेदाध्ययन करने से मनुष्य का जन्म लेना सार्थक होता है। मनुष्य का जन्म खाने, पीने व सुख भोगने मात्र के लिये प्राप्त नहीं हुआ है। मनुष्य जन्म हम सबको अपनी आत्मा और इस संसार के रचयिता, पालक व प्रलयकर्ता ईश्वर को जानने व उसकी उपासना कर दुःखों से सर्वथा मुक्त होने के लिये भी मिला है। सन्ध्या में हमें प्रतिदिन यह विचार करना चाहिये कि हम अपने जीवन में अपने कर्तव्यों व उद्देश्यों को पूरा कर रहे हैं अथवा नहीं? अकरणीय कार्यों का त्याग व करणीय को अपनाना ही सुधी मनुष्य का कर्तव्य है। ऐसा करके हम निश्चय ही वेदाध्ययन से प्राप्त होने वाले सद्गुणों को अपनी आत्मा में धारण कर सुखी व आनन्दित होंगे और परजन्म में हमें श्रेष्ठ मनुष्य योनि में उत्तम परिवेश में जन्म प्राप्त होने सहित आत्मा की मुक्ति की संभावनायें बनती है। यही सभी मनुष्यात्माओं के लिये प्राप्तव्य व करणीय है। इसी ओर परमात्मा तथा हमारे विद्वान वैज्ञानिक ऋषियों ने हमारा मार्गदर्शन व ध्यान दिलाया है। हमने परमात्मा व अपने पूर्वज ज्ञानी ऋषियों की आज्ञाओं की उपेक्षा नहीं करनी है अपितु उनसे लाभ उठाना है। ऐसा करके हम अपना, समाज, देश, संसार व समस्त मनुष्यजाति का उपकार व कल्याण कर पायेंगे। 
अपने-अपने समय में मर्यादापुरुषोंत्तम राम, योगेश्वर कृष्ण तथा वेदर्षि दयानन्द जी ने भी यही कार्य किया। ऋषि दयानन्द ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। ऋषि दयानन्द के समय में वैदिक धर्म व संस्कृति को जो चुनौतियां थीं, वह पूर्ववर्ती महापुरुषों के समय में नहीं थी। ऋषि दयानन्द ने ही सनातन वैदिक धर्म तथा संस्कृति को विधर्मी शक्तियों से बचाया है। उनके समय में वेद लुप्त हो रहे थे। उनका उन्होंने उद्धार व प्रचार किया। उन्होंने सभी शास्त्रों के तत्वज्ञान को अपनी पुस्तक सत्यार्थप्रकाश में साधारण हिन्दी पठित मनुष्यों के लिए सृष्टि के इतिहास में प्रथम बार प्रस्तुत किया। सत्यार्थप्रकाश ‘न भूतो न भविष्यति’ ग्रन्थ है। विधर्मियों से शास्त्रार्थ कर ऋषि दयानन्द ने उनके मतों की अविद्या का प्रकाश किया। ऋषि दयानन्द ने वैदिक धर्मियों के धर्मान्तरण वा मतान्तरण का निवारण किया, देश को आजादी दिलाने प्रेरणा की तथा देश से अविद्या का नाश तथा विद्या का प्रकाश करने के लिये गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत की। उनके अनुयायियों ने वेदों व वैदिक धर्म की रक्षा के लिए गुरुकुल खोले तथा आधुनिक शिक्षा के अध्ययन व अध्यापन के लिए डीएवी स्कूल व कालेजों का देश भर में प्रसार कर देश से अविद्या को दूर किया। समाज सुधार सहित अन्धविश्वासों को दूर करने में भी आर्यसमाज की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ऋषि दयानन्द ने ही सामाजिक असमानता दूर करने के लिये लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने जन्मना जातिवाद को वेदविरुद्ध बताया। उनके अनुसार वैदिक धर्म के अनुसार संसार के सभी मनुष्यों की एक ही जाति होती है। मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है। उन्होंने स्त्री व शूद्रों सहित मनुष्य मात्र को वेदाध्ययन, वेद प्रचार, पण्डित बनने, यज्ञ का ब्रह्मा बनने तथा अपने गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार अपने अभीष्ट सात्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रेरणा की। सारा संसार उनके देश व समाज हित में किये गये कार्यों के लिये उनका ऋणी एवं कृतज्ञ है। 
वेदाध्ययन और ईश्वर की उपासना से मनुष्य को ईश्वर व आत्मा सहित संसार का यथावत ज्ञान होता है तथा उपासना से आत्मा की उन्नति होकर ईश्वर की प्राप्ति व ईश्वर का साक्षात्कार होता है। उपासक मनुष्य के सभी अभीष्ट सिद्ध होते हैं। सबसे बड़ा लाभ उसे जन्म व मरण के दुःखों से मुक्ति मिल जाती है। वह मोक्ष को प्राप्त होकर ईश्वर के सान्निध्य में रहता हुआ सुख व आनन्द का उपभोग करता है और 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्षों से अधिक समय तक जन्म-मरण व दुःखों से सर्वथा मुक्त रहता है। यह कोई छोटी बात नहीं है। अपने जीवन के कल्याण के लिये हमें वेदों की ओर लौटना ही होगा। जीवन कल्याण का संसार में अन्य कोई उपाय नहीं है। 



-मनमोहन कुमार आर्य


शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव पार्क में “स्वतंत्रता दिवस समारोह” आयोजित



साहिबाबाद। शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव पार्क जी0 टी0 रोड साहिबाबाद के प्रांगण में “स्वतंत्रता दिवस समारोह” का आयोजन किया गया, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वीरेन्द्र यादव एडवोकेट जिला महासचिव समाजवादी पार्टी गाजियाबाद रहे, अध्यक्षता वार्ड 85 नगर निगम गाजियाबाद की पूर्व प्रत्याशी संजू शर्मा समाजवादी पार्टी ने, आयोजन इंजी0 धीरेन्द्र यादव, संचालन विधान सभा अध्यक्ष साहिबाबाद विधान सभा सरदार अवतार सिंह काले ने किया, समारोह में मुख्य वक्ता राम दुलार यादव वरिष्ट नेता समाजवादी पार्टी ने भी भाग लिया, ध्वजारोहण के बाद राष्ट्रगान गाया गया, महात्मा गाँधी अमर रहे, शहीदे आजम भगत सिंह अमर रहे, भारत माँ के उन अमर सपूतों को नमन किया गया, स्मरण किया गया, जिन लोगों ने जेलों में असहनीय कष्ट झेला, तथा आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दे दी।



   कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए समाजवादी पार्टी के वरिष्ट नेता राम दुलार यादव ने कहा हम आज यहाँ 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए है, हमें उन भारत माँ के अमर सपूतों को नमन करना है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व अर्पण कर ब्रिटिश शासन से देश को मुक्त कराया। शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों ने इसलिए अंग्रेजों को भारत से भगाया कि देश के लोगों के हाथ जब सत्ता आयेगी तो भारत में असमानता दूर होगी, सामाजिक न्याय मिलेगा, सभी को उन्नति करने का अवसर मिलेगा। समाज, देश में सद्भाव, भाईचारा, प्रेम होगा। कोई भी किसी से जाति, धर्म, रंग, नस्ल के कारण भेद-भाव नहीं करेगा। सबको शिक्षा, रोजगार मिलेगा, देश में समता, सम्पन्नता आयेगी। लेकिन 74वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हम कहना चाहते है कि जो सपना हमारे पूर्वजों ने देखा था उससे हम मीलों दूर है, यहाँ भूख, पीड़ा, दर्द, बीमारी, बेबसी में कोई कमी नहीं आयी, स्वतंत्रता की लड़ाई में हर धर्मों और वर्गों के लोग लड़े थे तथा सफलता प्राप्त की थी, लेकिन आज तो नफ़रत है, असमानता है, माननीय प्रधानमन्त्री जी ने भी यह स्वीकार कर लिया कि 80 से 90 करोड़ लोगों पर पूरी रोटी नहीं है, उन्हें 5 किलो चावल, 1 किलो चना महीने भर के लिए दिया जा रहा है, हम अभी देश वासियों की भूख भी नहीं मिटा पाये है अपने नागरिकों की, शिक्षा, स्वास्थ्य की हालत भी चिन्ता जनक है। बेरोजगारी, आर्थिक मन्दी ने देश में भयावह वातावरण बना दिया है। वैश्विक महामारी कोरोना ने लाखों मजदूरों को शहरों से उनके जन्म स्थान पर पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण जाने के लिए मजबूर कर दिया, मजदूर भाइयों, और उनका परिवार अपार कष्ट झेलते हुए अपने गंतब्य तक पहुंचे। शहरों में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया, जबकि बीर सपूतों ने ऐसे भारत की कल्पना की थी कि सबके साथ समान व्यवहार और न्याय मिलेगा, उनके सपनों का भारत तभी बनेगा जब सभी खुशहाल होंगें। बहुत कुछ हुआ है, बहुत कुछ करने की आवश्यकता है, हम सभी ने यहाँ आकर वीर सपूतों को स्मरण किया, स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभ कामना।
   समारोह में वीरेन्द्र यादव एडवोकेट, संजू शर्मा, पूनम तिवारी, अंशु ठाकुर, उपेन्द्र यादव, वीर सिंह सैन, दयाल शर्मा, धनपत सिंह, अमृतलाल चौरसिया, सुरेन्द्र यादव रवीन्द्र यादव, इंजी0 धीरेन्द्र यादव, राधेश्याम तिवारी, राम आसरे पटेल, अवधेश यादव, विनोद बाल्मीकि, मोहम्मद हीरा, हरिशंकर यादव, अमर बहादुर, हरेन्द्र, हरिकृष्ण, दिलीप यादव, प्रेम चन्द पटेल, अरुण कुमार पटेल, शिशिर यादव, विजय भारद्वाज, पप्पू आदि शामिल रहे। नंदिनी, आरती, निशांत यादव, अनव, अनमोल समर ने गीत प्रस्तुत किया।


अपनी जीवन यात्रा को इसके लक्ष्य पर पहुंचाने का प्रयत्न करना चाहिये


मनुष्य वा इसकी आत्मा एक यात्री के समान हैं जो किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए अपने वर्तमान जन्म व जीवन में यहां तक पहुंची हैं। मनुष्यों की अनेक श्रेणियां होती हैं। कुछ ज्ञानी व बुद्धिमान होते हैं। वह अपने सब काम सोच विचार कर तथा विद्वानों की सम्मति सहित ऋषियों व विद्वानों के ग्रन्थों का अध्ययन कर निर्धारित करते हैं। ऐसे लोगों को ही अपने लक्ष्य व उसके प्राप्ति के साधनों का ज्ञान हो पाता है। जो व्यक्ति इन्हें जानने के प्रति सावधान नहीं होते वह लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते। जो मनुष्य कुसंगति, अज्ञानी तथा छली मार्गदर्शकों के भ्रमजाल में न फंस कर सच्चे विद्वानों की शरण को प्राप्त होकर अपने जीवन व लक्ष्य के प्रति उनसे शंका समाधान कर उनके द्वारा बताये गये साधनों का आचरण करते हैं, वह लक्ष्य की ओर अवश्य ही बढ़ते हैं। ऐसे मनुष्यों का लक्ष्य दिन प्रतिदिन निकट से निकटतर होता जाता है। हमारा सबसे बड़ा मित्र, आचार्य व गुरु हमारा सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अनादि, नित्य, अनन्त परमेश्वर है। वह अन्तर्यामी रूप से सदा हमारी आत्मा के भीतर विद्यमान रहकर हमारा मार्गदर्शन करता है। इसके लिये हमें अपनी ओर से भी सत्पुरुषों की संगति, सत्ग्रन्थ वेद व वैदिक साहित्य का स्वाध्याय, इनके चिन्तन व मनन सहित ध्यान, जप व यज्ञादि कर्म करने होते हैं। यह कार्य हमें अपने जीवन लक्ष्य सहित सुख व शान्ति की ओर ले जाते हैं और हमारा परम आनन्दमय लक्ष्य मोक्ष निकट व निकटतर होता जाता है। वेद, शास्त्र व हमारे सभी ऋषि मुनियों ने हमारी आत्मा सहित हमारे जीवन का लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम की प्राप्ति सहित परम लक्ष्य के रूप में मोक्ष को बताया है। इन्हें प्राप्त करने के लिये ही परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में हमें वेदज्ञान दिया तथा परमात्मा को जानने वाले सच्चे ज्ञानी पुरुषों ने वेदों की व्याख्याओं के द्वारा हमें हमारे कर्तव्यों व लक्ष्य प्राप्ति के साधनों को बताया है। वर्तमान समय में हमें सरलता से धर्म व मोक्ष प्राप्ति के साधन तथा इससे सम्बन्धित समस्त ज्ञान प्राप्त है। महाभारत के बाद तथा ऋषि दयानन्द (1825-1883) के आने व प्रचार करने से पूर्व हमारे पूर्वजों व तत्कालीन मनुष्यों को धर्म व मोक्ष आदि के सत्यस्वरूप का ज्ञान नहीं था। ऋषि दयानन्द के मौखिक उपदेशात्मक प्रचार तथा उनके ग्रन्थ ‘‘सत्यार्थप्रकाश”, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय तथा ऋग्वेद भाष्य आंशिक तथा यजुर्वेद भाष्य सम्पूर्ण से हमें धर्म व मोक्ष विषय की यथावत् जानकारी मिली है। इससे हमें अपने कर्तव्यों का बोध होता है और इसे अपनाकर ही मनुष्य का जीवन सफल होता है। वेद व वैदिक शास्त्र संसार के सभी मनुष्यों के लिये हैं। इसको जो जितना अपनायेगा व आचरण में लायेगा, उसका उतना ही शुभ, मंगल व कल्याण होगा। अतः हमें अपने हित व लाभों के लिये ही वेद व वैदिक साहित्य का अध्ययन करते हुए वैदिक शिक्षाओं के अनुरूप आचरण करना है। यही सत्यधर्म है तथा जीवन के लक्ष्य धर्म व मोक्ष की प्राप्ति का प्रमुख व एकमात्र साधन है। यदि किसी कारण हमने अपने इस जीवन में इन कार्यों को न किया तो हमें वर्षों व अनेक जन्मों तक यह सुअवसर प्रदान होगा, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। मनुष्य को अपने वर्तमान समय का सदुपयोग कर उससे अपने प्राप्तव्य लक्ष्य को सुलभ करने का प्रयत्न करना चाहिये। ऐसा करना ही मनुष्य की बुद्धिमत्ता का द्योतक होता है। हमें अपने लाभ, हानि, हित व अहित का ध्यान करते हुए आज ही उचित निर्णय लेना चाहिये। कल क्या होगा, हम रहेंगे या नहीं, भविष्य में हमें सत्संगति व सत्प्रेरणा करने वाले मनुष्य मिलेंगे या नहीं, कहा नहीं जा सकता। इसलिये हमें अपने जीवन के हित की किसी बात की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। हमें अपने देश के सच्चे महापुरुषों के जीवनों पर दृष्टि डालनी चाहिये और उनके जीवन व कार्यों से प्रेरणा लेकर उनका ही अनुसरण व अनुकरण करना चाहिये। ऐसा करके ही हम अपने पूर्वजों के ज्ञान व अनुभवों का लाभ प्राप्त कर दुःखों से मुक्त होकर यशस्वी होंगे तथा धर्म आदि सहित मोक्ष की प्राप्ति में भी सफल हो सकते हैं। हम जब किसी दूरस्थ स्थान की यात्रा पर जाते हैं तो हमें वहां की आवश्यकताओं के अनुरूप तैयारी करनी होती है। हम अपने वस्त्र व भोजन विषयक कुछ सामग्री तथा अन्य आवश्यक सामान साथ में रखते हैं। धन से प्रायः अधिकांश व सभी वस्तुयें प्राप्त होती हैं, इसलिये प्रचुर मात्रा में धन भी साथ ले जाते हैं। प्रवास में रहने के लिये होटल व स्थान भी आरक्षित कराते हैं। ऐसा भी होता है कि हम अपने प्रियजनों को यात्रा में साथ ले जायें। इसका कारण यह है सामूहिक सुख में जो आनन्द आता है वह अकेले सुख भोग में नहीं होता। ऐसा करने से हमें यात्रा व जीवन में सुख मिलता है तथा दुःख न होने की सम्भावना बनती है। इसी प्रकार से हम अनादि काल से अपनी आत्मा को यात्रा करा रहे हैं। नये नये जन्मों में हमारी आत्मा के प्रवास स्थान बहलते रहते हैं। जो पूर्वजन्मों में स्थान थे वह इस जन्म में नहीं हैं और जो प्रवासी स्थान परजन्मों में होंगे वह वर्तमान से सर्वथा भिन्न होंगे। हमारे जन्म व मरण निरन्तर होते रहते हैं व होते रहेंगे। इसका प्रमुख कारण ईश्वर व आत्मा का अविनाशी होना है। अनादि काल से अब तक अनन्त बार हमारे जन्म व मरण हो चुके हैं। यह क्रम आगे भी अनन्त काल तक जारी रहना है। अतः हमें इसी जीवन में अभी अपने जीवन के सबसे सुखद व आनन्ददायक स्थान व लक्ष्य का चयन कर उसी ओर जाने की तैयारी करनी चाहिये। यह सुखद व आनन्द दायक स्थान सभी मनुष्यों के लिये ईश्वर का सान्निध्य एवं मोक्ष वा मुक्ति की अवस्था है। इसी का उल्लेख हमारे सत्य शास्त्रों में मिलता है। इसी पथ पर हमारे विद्वान पूर्वज चले थे। उन्होंने ही नहीं अपितु परमात्मा ने भी हमें बताया है कि सद्कर्मों, परोपकार, जप, यज्ञ, उपासना आदि को करके मृत्यु को पार करो तथा विद्या व शुद्ध सद्ज्ञान से मोक्ष अर्थात् जन्म व मरण से रहित व जन्म व मरण से छुड़ाने वाले ईश्वर को प्राप्त हो। इसी लक्ष्य को हमें प्राप्त करना है तथा उस पर पहुंचना है। इस ‘मोक्ष’ नामक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये ही हमारे ऋषियों ने ईश्वरीय ज्ञान वेद के आधार पर पंचमहायज्ञों का विधान किया है। इन सभी यज्ञों को हमें निष्ठा व श्रद्धापूर्वक करना है। इनको करने से हमारी आत्मा पतन से बचेगी और इसके विपरीत आत्मा को ज्ञान व विद्या की प्राप्ति होकर आत्मोन्नति होगी। आत्मोन्नति ही मनुष्य की उन्नति व उत्कर्ष का प्रमुख साधन है। ऐसा करने पर हमें कभी किसी प्रकार का दुःख नहीं होगा। इन कार्यों को करके मानसिक व आत्मिक सन्तुष्टि प्राप्त होती है। ऐसा होने पर हमारी यात्रा सुखद व मुक्ति के मुख्य लक्ष्य को प्राप्त होकर सफल होगी। इसके विपरीत जीवन में भौतिक पदार्थों व धन आदि का संचय कर हम जो भौतिक सुख प्राप्त करते हैं उनके साथ अनेक प्रकार के दुःख व रोगादि जुड़े होते हैं। अधिक भोजन करने से हानि होती है। अधिक धन की रक्षा करना भी कठिन होता है। इसके साथ ही हमें धन प्राप्ति आदि में कई प्रकार से अकरणीय कर्मों को करना पड़ता है जिसका फल दुःख के रूप में ईश्वर से प्राप्त होता है। अतः जीवन में लोभ रहित होकर मनुष्य को सात्विक कर्म ही करने चाहियें जिससे अधिक सुख-भोग व भोग से होने वाले रोग एवं अन्य दुःखों से बचा जा सके। दुःखों से बचने के लिये वेदादि ग्रन्थों के स्वाध्याय सहित पंचमहायज्ञों से युक्त जीवन ही निरापद व चिर आनन्द की प्राप्ति को कराने वाला होता है। मनुष्य जीवन में हमें अपने वर्तमान व भविष्य को दुःखों से रहित व सुख व आनन्द से पूरित करने के उपायोें को जानने व उन्हें करने के कार्य को प्राथमिकता देनी चाहिये। इसमें विलम्ब करना उचित नहीं है। यह उपाय वैदिक धर्म को ग्रहण कर उसके अनुसार जीवन व्यतीत करना ही सिद्ध होता है। सत्य मान्यताओं व सिद्धन्तों का ज्ञान तथा उनका पालन ही वैदिक धर्म है। सत्याचरण ही धर्म है तथा इसके विपरीत किये जाने वाले सभी काम अधर्म होते हैं। मांसाहार, प्राणी हिंसा तथा दूसरों को अकारण दुःख देना आदि कार्य मनुष्य के कर्तव्य न होकर अकर्तव्य व अधर्म की कोटि में आते हैं। संसार में अविद्या से युक्त एक ही मत है और वह है वैदिक मत वा धर्म। इसे समझने का प्रयत्न कर इसी को ग्रहण व धारण करना विवेकी पुरुषों का कार्य है। इसी कारण ऋषि दयानन्द ने अविद्यादि दोषों से युक्त मान्यताओं व सिद्धान्तों को मानना छोड़ दिया था और जो सत्य सिद्धान्त उन्हें वेद व वैदिक साहित्य से प्राप्त हुए थे, उनकी सत्यता की परीक्षा व पुष्टि कर उन्होंने उन्हें अपनाया था। वह अपना सभी ज्ञान व अनुभव हमें सत्यार्थप्रकाश तथा वेदभाष्य आदि ग्रन्थों को लिखकर हमें प्रदान कर गये हैं। इमें निष्पक्ष होकर उनके जीवन व ग्रन्थों का अध्ययन व मनन करना है। सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग करना है। इसके साथ ही देश, समाज व संसार का उपकार व कल्याण करना है। इन्हीं कर्मों में जीवन की सफलता का रहस्य छिपा हुआ है। इन सब कर्तव्यों को करते हुए हम अपने जीवन की इस यात्रा को इसके लक्ष्य ‘मोक्ष’ के निकट व मोक्ष तक पहुंचा सकेंगे। 



-मनमोहन कुमार आर्य


संजीव शर्मा व सौरभ जायसवाल ने किया राघव ट्रेडिंग कंपनी के शोरूम का उद्घाटन


धनसिंह
गाजियाबाद। गांधीनगर स्थित राघव ट्रेडिंग कंपनी का जेंट्स एवं लेडीज वियर गारमेंट्स के शोरूम का उद्घाटन संजीव शर्मा पूर्व पार्षद गांधीनगर एवं वरिष्ठ भाजपा नेता सौरभ जायसवाल द्वारा किया गया शोरूम के संचालक अमित गुप्ता ने बताया कि शोरूम में सभी प्रकार के जेंट्स वियर एवं लेडीस वियर उपलब्ध है सभी प्रकार के जेंट्स में शर्ट टी शर्ट लोअर जींस ट्राउजर आदि सभी वैरायटी आ उपलब्ध है साथी लेडीज वेयर में गारमेंट्स एवं बेडशीट कंबल क्रोकरी एवं कॉस्मेटिक का सभी सामान भी उपलब्ध है इस अवसर पर सुशील गुप्ता मनीष कटियाल सचिन गोयल शरद जैन अंकित निरवाल एवं सभी श्याम परिवार मंडल के सदस्य मौजूद रहे।



Sunday 16 August 2020

सी.एस.एच.पी.पब्लिक स्कूल में मनाया गया स्वतंत्रता दिवस

धनसिंह
गाजियाबाद। "दिल में सद्भावों  के संकल्प उभरते हैं, कर्मों में सेवा करने से सपने पलते हैं" जी हां इन्हीं सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया है सी.एस.एच.पी. पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्या  सुश्री ममता शर्मा जी ने।
जिनके मार्गदर्शन में इस संकट काल के समय में भी असंभव को संभव करने करते हुए ऑनलाइन शिक्षा द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अग्रसर होने के साथ-साथ सभी शिक्षक गण छात्रों व अभिभावकों को भी हर उत्सव हर पल को   जीने की राह मिल रही है।
सी.एस.एच.पी. पब्लिक  स्कूल, प्रताप, विहार, गाज़ियाबाद में ऑनलाइन स्वतंत्रता दिवस का कार्यक्रम बड़े हर्षोल्लास से मनाया गया। 
सर्वप्रथम गायत्री मंत्र द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया तत्पश्चात छात्रों के रोल प्ले द्वारा विभिन्न स्वतंत्रता सेनानियों संबंधी  सुंदर प्रस्तुति दी गई।  विद्धयालय के शिक्षकगण  द्वारा  गीत तथा  अन्य  रंगारंग कार्यक्रम  आयोजित किए गए।  कार्यक्रम के अंत में  विद्यालय निदेशक निर्देशिका श्रीमती सविता गुप्ता जी प्रधानाचार्या सुश्री  ममता शर्मा जी,  स्कूल प्रबंधक श्री तुषार गुप्ता जी एकेडमिक हेड श्रीमती तानिया कौशिक जी व मैनेजमेंट मैम्बर  सुश्री मेघना गुप्ता जी ने   कार्यक्रम की सराहना करने के साथ-साथ सभी छात्रों को इस प्रकार के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया है साथ ही 74वें स्वतंत्रता दिवस की बधाई देते हुए गंभीरता से ऑनलाइन कक्षाएं लेने के लिए प्रेरित किया।



  मेरी शादी का दहेज पार्ट

 

घरवालों का मूड कैसे बढ़ेगी हमारी आबादी

दंगल करलें अशोक बेटा करो तुम भी शादी

तुम कौन सा देश चलाओगे, बतला दो बेटा

लाल किले झंडा लहराने को काफी है मोदी

 

क्या रिटायर होकर आत्मकथा छपवाओग

क्या मोदी की तरह चाय बेचने अब जाओगे

गर एक चप्पल पड़ी मुंह तुम्हारे समझ लेना

लाल किला अपने पिछवाड़े बने हुए पाओगे

 

करलो शादी चपरासी से अफसर है करवाते

लालू जी गए जेल राबड़ी मुख्यमंत्री बनवाते

कोई पूछे आज मियाँ तुम्हारे घर पर ठहरे है

बीबीयों को देखो झूठ से अपने ही है टरकाते

 

सुनो तुम्हारे सी पी डब्लू वाले जीजा है आये

उड़ाते माल रिश्वत का डकारें उसे नहीं आये

लोकतंत्र की हद में रिश्ता सुंदर सा वह लाये

राजनीति नाम की बहू सुना माल बहुत लाये

 

सुन पिताजी की देषभक्ति से खूं खोल गया

हाँ करूँगा शादी राजनीति यही मैं बोल गया

ज्ञान विवेक रूप जाती रख जूते के नोक पर

आते धन रूपी लक्ष्मी नजरो से मैं तौल गया

 

पर कर डाला सनसनी का मैंने भी कारोबार

कोपभवन में जा बैठा, कर कर मैं बहिष्कार

जनजागरण से मुझे क्या ,जाऊं डिस्कोबार

ग्रहमंत्रालय के बदले में मुझे दोगे मोटरकार

 

नहीं करनी चाकरी मुझे नेचर का आवारा 

कालेज वाली फ्रीडम दो मैं सबका प्यारा

प्यार दिखा बीबीया करे अक्सर शिकार

आदेशो उपदेशो को नहीं सुनना है गंवारा

मुझे तो पसन्द डिस्को माल ओ बियरबार

 

अग्रीमेंट पर दिलवा दो पिताजी बीबी

जैसे इंटरनेट में मिले डेटा कुछ जीबी

नाना किस्म के धंधे खूब फुले शहर में

फ्रिज फर्नीचर किराये जैसे मिले टीवी

कोख जिस्म से वीर्ये तक सब बिकता है

मैं भी तो इन जैसा कोई इक ख़रीददार

 

बस एग्रीमेंट में दहेज मुझे ये दिलवाओ

अखण्ड भारत के सपने मेरे यूँ सजाओ

हिटलर जैसी सनक मेरी चन्दू सी मूंछ है

अशोक महान था भारत मे ये कहलाओ

मैं भी बेच लूंगा स्टेषन पर चाय मोदी जी

बस शर्त लाहौर में ये तिरंगा मेरा लहराओ

 

बोलो फ़ौज को रावलपिंडी भी अपना हो

गिरा दो जाकर के चीन की भी तुम दीवार

पड़ोसी से मिलना अब के गले ऐसे हमको

जैसे वीर शिवाजी मिले थे रखकर के कटार

मन की मधुर उर्मियाँ चूमे भारत मां के माथा

तिरंगे में लिपटा आऊँ बीबी देवे नजर उतार

 


अशोक सपड़ा हमदर्द

होम टू होम खोजे कोरोना मरीज: जिलाधिकारी 


गाजियाबाद। कोविड-19 महामारी को दृष्टिगत रखते हुए सभी जनपद वासियों को कोरोना वायरस के संक्रमण से सुरक्षित करने एवं संभावित कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की खोज करने के संबंध में जिला अधिकारी अजय शंकर पांडेय की एक और कार्यवाही। संभावित कोरोना पीड़ितों की खोज के लिए हाउस टू हाउस सर्वे टीम के सदस्यों के लिए तैयार की गई विभिन्न एवं बृहद स्तर की जानकारी। सभी टीमें क्षेत्र में कार्य करते हुए क्या करेंगे इसके संबंध में विस्तृत जानकारी तैयार करते हुए टीमों को कराई गई उपलब्ध। कहीं पर भी कोरोना संक्रमित मिलने पर क्या होगी कार्यवाही इसके संबंध में निर्धारित की गई गाइडलाइन। हाउस टू हाउस सर्वे टीम को दृढ़ता के साथ संपन्न कराने के उद्देश्य से जिलाधिकारी के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा महत्वपूर्ण जानकारी तैयार करते हुए सभी टीमों के सदस्यों को कराई गयी उपलब्ध। 


अजय शंकर पांडेय ने किया कलेक्ट्रेट में झंडारोहण

गाजियाबाद। राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस का मुख्य कार्यक्रम जिला अधिकारी अजय शंकर पांडेय की अध्यक्षता में कलेक्ट्रेट प्रांगण में संपन्न हुआ। यहां पर सर्वप्रथम जिला अधिकारी के द्वारा निर्धारित समय पर झंडारोहण करने के उपरांत सामूहिक राष्ट्रगान में भाग लिया गया। इस अवसर पर जिलाधिकारी के द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए कलेक्ट्रेट में अपने उद्बोधन में समस्त जन सामान्य को स्वतंत्रता दिवस की बधाई दी गई एवं अपने उद्गार व्यक्त करते हुए स्वतंत्रता दिवस के इतिहास पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला गया। जिलाधिकारी ने कहा है कि प्रदेश सरकार पूरे प्रदेश के समग्र विकास हेतु कृतसंकल्प है और इस दिशा में गम्भीरता से प्रयास किए जा रहे है। लेकिन जनपद स्तर पर जब तक विकास कार्यो का गुणवत्तापूर्ण कियान्वयन नही होगा तब तक प्रदेश स्तर पर शासन की मंशानुरूप विकास परिलक्षित नही होगा। अतरू जनपद स्तर व अन्य निचले स्तर के विकास कार्यो में संलग्न सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी पूरी निष्ठा व ईमानदारी से कार्य करके प्रदेश के विकास में अपना योगदान दें। जिलाधिकारी ने आज कलेक्ट्रेट परिसर में गणतंत्र दिवस के अवसर पर झण्डारोहण के पश्चात उपस्थित अधिकारियों एवं कर्मचरियों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाए देते हुए कहां की हम सबको अपने कर्तव्यो को सेवा भाव से निर्वहन करना होगा। साथ ही आमजनता की समस्याओ को सम्वेदनशीलता व गम्भीरता से सुनकर उनका निस्तारण सुनिश्चित करना होगा, जिससे आमजन को सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं का सीधा लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि आज गणतंत्र दिवस पर सभी संकल्प ले कि अपने शासकीय कर्तव्यों व दायित्वों का निर्वहन पूरी निष्ठा व लगन से करके देश व प्रदेश के विकास में अपना योगदान देगें। जिलाधिकारी ने कहा कि आज का दिन हम सभी के लिए संकल्प लेने व चिन्तन करने का दिन है। हम सभी चिन्तन करके देखे कि देश किन मामलों मे अभी भी पिछडा है और इस पिछडेपन को दूर करने के लिए संकल्प लेकर सामूहिक रूप से उन कमियो का निराकरण करें जिससे राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सके। उन्होने राष्ट्र धर्म को सबसे बडा धर्म बताते हुए कहां कि हमें इसका पालन पूरी ईमानदारी एवं समर्पण भावना से करने की जरूरत है। उन्होंने  देश के शहीदों  को नमन करते हुए कहां की  उनके  अपार बलिदान के कारण  आज हम  स्वतंत्र भारत में  आजादी का पर्व  मना रहे हैं।  



हमारे देश के  अमर शहीदों के द्वारा  भारत के लिए  जो सपने सजाए गए थे  आज  उनको साकार करने के लिए  हम सभी को  कृत संकल्पित होकर  अपने दायित्वों को  निर्वहन करना होगा  ताकि देश के अमर शहीदों का  सपना साकार हो सके और भारत देश की स्वतंत्रता  आगे भी अक्षुण बनी रहे। इस अवसर पर जिला अधिकारी के द्वारा भारत के माननीय प्रधानमंत्री  के आत्मनिर्भर भारत  कार्यक्रम का जिक्र करते हुए  कहा गया कि  देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सभी अधिकारियों एवं समाज के नागरिकों को  भारत सरकार के महत्वपूर्ण कार्यक्रम से  जोड़ना होगा ताकि हम भारत को आत्मनिर्भर बना सकें।  जिला अधिकारी के द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत सरकार के नशा मुक्ति कार्यक्रम का भी  शुभारंभ किया गया और यहां पर उन्होंने नशा मुक्ति के संबंध में शपथ भी दिलाई। इसके उपरांत जिला अधिकारी अजय शंकर पांडेय  के द्वारा विकास भवन में स्थापित कोविड कंट्रोल रूम का भी स्थल निरीक्षण करते हुए  संबंधित अधिकारियों एवं कर्मचारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में कोरोना  के संक्रमण को दृष्टिगत रखते हुए कंट्रोल रूम में अपनी सेवा प्रदान कर रहे अधिकारी एवं कर्मचारियों  का महत्वपूर्ण दायित्व है। अतः सभी अधिकारी कर्मचारी  कंट्रोल रूम पर आने वाली समस्याओं एवं शिकायतों का तत्परता के साथ निराकरण करने के लिए आज संकल्प लें ताकि महामारी के इस युग में हम सभी जन सामान्य को कोरोना वायरस के संक्रमण से सुरक्षित बनाते हुए संक्रमित व्यक्तियों का इलाज प्रोटोकॉल के अनुरूप संभव करा सकें। इस अवसर पर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व यशवर्धन श्रीवास्तव, अपर जिलाधिकारी प्रशासन  संतोष कुमार वैश्य, अपर जिलाधिकारी भूमि अर्जन मदन सिंह गर्ब्याल, नगर मजिस्ट्रेट  शिव प्रताप शुक्ल सहित अन्य अधिकारीगण एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।


डा0एपीजे अब्दुल कलाम नि:शुल्क पुस्तकालय में स्वतंत्रता दिवस समारोह आयोजित


साहिबाबाद। “स्वतंत्रता दिवस समारोह” का आयोजन ईदगाह रोड गरिमा गार्डन पसोंडा में डा0 ए0 पी0 जे0 अब्दुल कलाम नि:शुल्क पुस्तकालय, वाचनालय के प्रांगण में आयोजित किया गया, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सपा के वरिष्ट नेता राम दुलार यादव समाजवादी विचारक ने ध्वजारोहण किया, अध्यक्षता, चौधरी इल्यास ने, आयोजन माजिद चौधरी, संचालन सरदार अवतार सिंह (काले) अध्यक्ष साहिबाबाद विधान सभा क्षेत्र ने किया, जिला महासचिव वीरेन्द्र यादव एडवोकेट, अंशु ठाकुर, नेता अमरुद्दीन ने भी कार्यक्रम को सम्बोधित किया। ध्वजारोहण के बाद राष्ट्रगान व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के निमित्त दवा का वितरण किया गया। समारोह में स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों, बीर बलिदानियों को नमन करते हुए स्वतंत्रता दिवस की बधाई दी गयी।
   कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए वीरेन्द्र यादव एडवोकेट जिला महासचिव समाजवादी पार्टी गाजियाबाद ने कहा कि आज का दिन भारत के इतिहास का महत्वपूर्ण दिन है इसी दिन हमें गुलामी से मुक्ति मिली, हमारे देश के संसाधनों की लूट ब्रिटिश सरकार कर रही थी उससे भी देश आजाद हुआ, भारत की आजादी में हँसते-हँसते फांसी के फंदों को चूमने वाले शहीदों को तथा जेलों में असह्य पीड़ा सह देश को आजाद कराने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को ह्रदय से नमन करते हुए देश की आजादी के लिए हर बलिदान करने के लिए तैयार रहेंगें। स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और क्रांतिकारियों का जो सपना आजाद भारत का देखा था कि जब देश आजाद होगा तो सामाजिक समानता होगी, शोषण मुक्त, सामंतवाद मुक्त भारत होगा, समान अवसर मिलेगा, अवसर की असमानता नहीं होगी, जातिवाद समाप्त होगा, शिक्षा व स्वास्थ्य में सबकी समान भागीदारी होगी। सद्भाव, भाईचारा, न्याय और बंधुत्व पर आधारित समाज होगा, लेकिन आजादी के 74 साल बाद भी हम नफ़रत, असहिष्णुता के शिकार है, देश के संसाधनों पर चन्द लोगों का कब्ज़ा हो गया है, बेरोजगारी बढ़ गयी है, आर्थिक मन्दी, वैश्विक महामारी कोरोना ने और भी संकट पैदा कर दिया है, हम लोगों को आज के दी संकल्प लेना है कि हम समाज में मिलकर महामारी से लड़ेंगें तथा समता मूलक समाज बनाने में एक दूसरे के साथ मिलकर रहेंगें।



   स्वतंत्रता दिवस समारोह में प्रमुख रूप से राम दुलार यादव, वीरेन्द्र यादव एडवोकेट, सरदार अवतार सिंह काले, अंशु ठाकुर, सुरेन्द्र यादव, उपेन्द्र यादव, गुड्डू यादव, माजिद, वाजिद, फौजुद्दीन, वसीम, इल्यास प्रधान, अमरुद्दीन, तसब्बुद्दीन, ताज मोहम्मद, आस मोहम्मद, हनीफ मलिक, अमीर, सद्दाम, सलीम, अनीस चौधरी, तन्सीर, साजिद चौधरी, जमालुद्दीन, आरिफ, शहीद, डी0 एम0 चौधरी आदि उपस्थित रहे।


आरकेआई ने मनाया जश्न ए भारत पर्व आयोजित


गाजियाबाद। जनपद के संजय नगर सेक्टर 23 स्थित राम किशन इंस्टीट्यूट स्कूल के प्रांगण में आज स्वतंत्रता दिवस यानी कि भारत पर्व आज सोशल डिस्टेंस को ध्यान में रखते हुए धूमधाम से मनाया गया। कोविद 19 के कारण जश्न ए आजादी का यह पर्व इतिहास में पहली बारऑनलाइन मनाया गया ।इस मौके पर स्कूल के निदेशक डॉ आलोक गर्ग ने स्कूल प्रांगण में पहुंचकर परंपरागत ढंग से  ध्वजारोहण किया और ऑनलाइन इस मौके पर सभी छात्रों और शिक्षकों  को संबोधित किया उन्होंने कहा कि बहुत जल्द कोरोना वैक्सीन मार्केट में आने वाली है ।इसके बाद covid-19 से उत्पन्न हुई सभी शैक्षणिक अवरोध समाप्त हो जाएंगे।श्री गर्ग ने कहा कि हम आशा करते हैं  आगामी गणतंत्र दिवस हम परंपरागत ढंग से मनाएंगे ।उन्होंने कहा कि 17 अगस्त से यूपी बोर्ड ने शैक्षणिक कार्य शुरू करने का ऐलान कर दिया है। हमें आशा है कि सीबीएसई बोर्ड भी बहुत जल्द इस सिलसिले में अपनी गाइडलाइन जारी कर देगा। उन्होंने माता-पिताओं का आव्हान किया है किऑनलाइन पढ़ाई के दौरान वे बच्चों का साथ दें ताकि ऑनलाइन पढ़ाई में कोई बाधा उत्पन्न न हो ।खास बात यह है कि स्कूल की संगीत अध्यापिका नीना जैन ने ऑनलाइन बच्चों के साथ राष्ट्रीय गान गाकर सभी को सराबोर कर दिया। इसी क्रम में स्कूली छात्रों ने देशभक्ति से जुड़े गीतों को पेश कर समा बांध दिया।अंत में आरकेआई की प्रधानाचार्य डॉ मालती गर्ग व उपप्रधानाचार्य नमिता शर्मा ने इस सफल आयोजन के लिए सभी शिक्षकों , छात्रों और स्कूल की प्रबंध समिति के सदस्यों को बधाई दी।इस मौके पर रविंदर चौधरी ,सुनील चौधरी, कविता भटनागर, लीना अग्रवाल, दीपक राय आदि प्रमुख रूप से मौजूद थे।


संसार में ईश्वर एक ही है और वह सबसे महान और महानतम है

हमारा यह संसार मनुष्यों वा जीवात्माओं के सुख के लिये बनाया गया है। बनाने वाली सत्ता को हम ईश्वर के नाम से जानते हैं। ईश्वर ने इस संसार को बनाया भी है और वही इसको व्यवस्थित रूप से चला भी रहा है। सूर्य समय पर उदय होता है। सूर्य अपनी धूरी पर घूमता है और अपनी चारों ओर ग्रहों व उपग्रहों को अपनी परिक्रमा कराता है। संसार में समय पर ऋतु परिवर्तन होता है। मनुष्य जन्म लेते, सुख व दुःखों का भोग करते हुए ससार से विदा होते है तथा मृतक आत्मायें पुनः संसार में जन्म लेती हैं। आत्मा अनादि, नित्य एवं अमर हैं। जन्म व मृत्यु आत्मा का गुण व स्वभाव है। जन्म का कारण आत्मा के जन्म-जन्मान्तरों वह कर्म होते हैं जिनका फल उसे भोगना होता है। कर्म के दो मुख्य भेद पाप व पुण्य होते हैं। पाप कर्मों का फल दुःख होता है तथा पुण्य कर्मों का फल सुख व आनन्द होता है। मनुष्य का उद्देश्य एक ओर जहां अपने पाप-पुण्य कर्मों का भोग करना है वहीं उसे अपने भविष्य के लिये नये शुभ व दुःखों को दूर करने वाले कर्मों को भी करना होता है। हमारे वेद आदि शास्त्र हमें सुखी व आनन्द से युक्त जीवन व्यतीत करने सहित जन्म व मरण में होने वाले दुःखों से मुक्त कराने के लिये हमें मुमुक्ष बनने की प्रेरणा करते हैं। मुमुक्षु मनुष्य को यद्यपि जीवन में सत्य के मार्ग पर चलना होता है परन्तु तप व व्रत पालन से उसे परिणाम में निश्चय ही इच्छित सुख व आनन्द की प्राप्ति होती है। इसी लिये मनुष्य उत्साह में भरकर अपने वेदविहित कर्तव्यों का पालन करते हुए देश व समाज के हित में अपनी सेवायें अर्पित करते हंै। हमारे देश के महापुरुष ऋषि, मुनि, साधु, सन्तों सहित हमारे प्रातःस्मरणीय महापुरुष श्री राम, श्री कृष्ण तथा ऋषि दयानन्द हमारे आदर्श हैं। इनके जीवन चरितों जो हमें रामायण, महाभारत, दयानन्द-प्रकाश आदि के माध्यम से उपलब्ध होते हैं, उनका अध्ययन कर हमें इन महापुरुषों जैसा महान बनने व कर्तव्य एवं धर्म पालन करने की प्रेरणा मिलती है। ऐसा करके हम अपने जीवन के लक्ष्य के निकट व निकटतर होते जाते हैं और ईश्वर की व्यवस्था से हमें अपने प्रयत्नों के अनुरूप अभीष्ट सुखों व कल्याण की प्राप्ति होती जाती है। संसार में ईश्वर की सत्ता एक ही है। उसके समान व उससे अधिक किसी दूसरी सत्ता के होने का प्रश्न ही नहीं है। उसी सत्ता से यह संसार अस्तित्व में आया है। ईश्वर ने इस संसार की उत्पत्ति अपनी अनादि चेतन व अल्पज्ञ प्रजा जीवात्माओं के लिए की है। अपनी सन्तानों को सुख पहुंचना प्रत्येक माता, पिता व आचार्य का कर्तव्य होता है। ईश्वर ने भी माता, पिता तथा आचार्य के समान अपने कर्तव्यों को इस सृष्टि की रचना करके निभाया है। बहुत ही सहज रूप से ईश्वर इस सृष्टि का संचालन कर रहा है। ईश्वर के सभी कार्यों में हम श्रेष्ठता एवं उत्तमता के दर्शन करते हैं। उसका बनाया, सूर्य, चन्द्र, पृथिवी तथा पृथिवीस्थ पदार्थ अग्नि, जल, वायु एवं आकाश सभी उत्तम हैं। ईश्वर ने मनुष्य नाना प्राणी, वृक्ष, वनस्पति, ओषधियां, फल, फूल, जलचर, थलचर तथा नभचर आदि जो प्राणी व पदार्थ बनाये हैं तथा पृथिवी पर जो समुद्र, पर्वत, रेगिस्तान तथा नदियां आदि बहाईं हैं वह सभी उत्तम रूपों व गुणों से युक्त हैं। इनसे मनुष्य जाति व संसार को होने वाले लाभों का विचार करते हैं तो विवेकी मनुष्यों का सिर ईश्वर के चरणों में झुक जाता है। ईश्वर सचमुच महान एवं अविद्वीय है। उसके समान संसार में हमारा मित्र व सखा दूसरा नहीं है। वह हमें प्रत्येक क्षण उपलब्ध रहता है। हम जब चाहें उसकी भक्ति व उपासना कर सकते हैं। वह हमारे सभी कर्मों को देखता तथा हमारी प्रार्थनों को सुनता ही नहीं अपितु हमारे मन में उठने वाली एक एक बात व विचार को भी जानता है। हम जब दुःख में होते हैं तो असली सान्त्वना ईश्वर ही देता है और कुछ समय बाद ही हम हमनें छोटे व बड़े सभी दुःखों से उबर जाते हैं। ईश्वर के सभी मनुष्यों व जीवों पर अनादि काल से अनन्त उपकार हैं। ईश्वर ने हमसे अपने उपकारों के लिये कभी कुछ मांगा नहीं है। हम स्वयं विचार करते हैं कि हमारे पास ईश्वर को देने के लिये कुछ नहीं है। हमारे पास जो भी पदार्थ है वह सब ईश्वर के ही दिये हुए हैं। हमारे पास यदि अपना कुछ है तो वह हमारी आत्मा ही है। अतः आत्मा को ईश्वर की आज्ञा पालन में समर्पित करके ही हम ईश्वर के सच्चे पुत्र, शिष्य या भक्त बनते हैं। हमने सभी महापुरुषों यथा राम, कृष्ण व दयानन्द जी आदि के जीवन में यही देखा कि वह ईश्वर की आज्ञा पालन में नतपस्तक रहे। उन्होंने मानवजाति के उपकार के लिये अपना पूरा जीवन लगाया। अपने लिये उन्होंने कभी कोई अनुचित कार्य नहीं किया। अपने देश, समाज, वैदिक धर्म व संस्कृति के उन्नयन व प्रचार के लिये ही वह अपने जीवन भर प्रयत्नशील रहे और यही सन्देश हमें देकर गये हैं कि हमें भी वेद व ऋषि मुनियों के प्रति सदा उनका अनुगामी एवं समर्पित रहना है। हमें वही काम करने हैं जो हमारे आदर्श पूर्वज राम, कृष्ण व दयानन्द जी आदि करते रहे हैं। आज संसार जिस स्थिति में है, उन सब समस्याओं को दूर करने के लिये सबको मिलकर वेद प्रतिपादित ईश्वर की शरण में आकर और वेदानुकूल पुरुषार्थ कर अपना व विश्व का कल्याण करना है। यही सत्य मार्ग है जिस पर चलकर मनुष्य का अभ्युदय होने सहित विश्व का कल्याण होकर मनुष्यों को निःश्रेयस का सुख प्राप्त हो सकता है। ऋषि दयानन्द ने हमें ईश्वर के सत्य स्वरूप का परिचय कराया है। आर्यसमाज के नियमों में उन्होंने ईश्वर के सत्यस्वरूप का अति संक्षिप्त चित्रण भी किया है। उन्होंने बताया है कि ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। ईश्वर हमारे कर्मों का फल प्रदाता है। वह सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों को वेदों का ज्ञान देता है जिससे सभी मनुष्य व सृष्टि का कल्याण होता है। ईश्वर ही हमें वृद्धावस्था में होने वाले दुःखों से मृत्यु प्रदान कर छुड़ाता है और फिर हमारे कर्मानुसार नये माता, पिता, भाई, बन्धु, मित्र, सखा, आचार्य व प्रियजन सुलभ कराता है। हम वृद्धहोने के बाद पुनः शिशु, किशोर, युवा, प्रौढ़ आदि बनते हैं। यह सब ईश्वर की ही कृपा है। हमें अपनी आत्मा का स्वरूप भी विदित होना चाहिये। हमारी आत्मा सत्य व चित्त है। यह एकदेशी, ससीम, सूक्ष्म, आंखों से अदृश्य, अनादि, नित्य, अमर, अविनाशी, जन्म-मरण धर्मा, मुक्ति को प्राप्त होकर सभी दुःखों से मुक्त होने वाली, वेदाध्ययन और योगाभ्यास कर ईश्वर व सृष्टि के सभी रहस्यों को जानने वाली है। हमें वेदाध्ययन कर अपनी आत्मा को पूर्ण विकसित करने का प्रयास करना चाहिये। हमें वैदिक धर्म के सभी महापुरुषों से प्रेरणा लेनी चाहिये। ऐसा करना ही कल्याण का व श्रेय का मार्ग है। हमारे प्राचीन सभी पूर्वज इसी श्रेय मार्ग पर चले थे और मुक्ति को प्राप्त हुए थे। उनके वंशज होने के कारण हमें उन जैसा ही बनना चाहिये। हमें पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति की नकल न कर वेद एवं ऋषियों से ही प्रेरणा लेनी चाहिये। इसी से हमारा वर्तमान एवं भविष्य तथा परजन्म का जीवन भी उत्तम बनेगा तथा संवरेगा। हम इस ब्रह्माण्ड की श्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम सत्ता जो हमारा पिता, माता, आचार्य, राजा व न्यायाधीश है, उसको नमन करते हैं। ईश्वर कृपा कर हमारी बुद्धियों को श्रेष्ठ मार्ग पर चलायें और हम श्रेष्ठ आचरणों से युक्त हों। 


 


-मनमोहन कुमार आर्य


हेलमेट मैन ने स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर भारत सड़क दुर्घटना मुक्त संकल्प का किया शुभारंभ 


बिहार। बिहार के कैमूर जिला मोहनिया टोल प्लाजा पर परिवहन पदाधिकारी डीटीओ रामबाबू, एमवीआई दिव्य प्रकाश हेलमेट मैन के साथ फीता काटकर उद्घाटन किया.सड़क हादसों को रोकने के लिए मोहनिया टोल प्लाजा पर लोगों को निशुल्क हेलमेट दिया जाएगा और साथ में 5 लाख की दुर्घटना बीमा भी 1 हजार में मिलेगा. ताकि भविष्य में कोई भी दुर्घटना होने पर किसी भी परिवार को 5 लाख की सहायता राशि मिल सके. जो व्यक्ति हेलमेट निशुल्क लेगा उसे आधार नंबर देकर 5 लाख की दुर्घटना बीमा लेना अनिवार्य हैं.
 कैमूर जिले में एनएच पर प्रतिदिन हादसे हो रहे हैं और 4 से 5 लोगों की मृत्यु हो जा रही है. यातायात नियमों का पालन नहीं करने की वजह से हादसे हो रहे हैं. 
पिछले साल 5 नवंबर को कैमूर एसपी दिलनवाज अहमद ने बिना हेलमेट टोल टैक्स नहीं पार करने की नियम की हरी झंडी दी थी हेलमेट मैन के साथ.
लोगों को जागरूक करने के लिए हेलमेट मैन पिछले 6 साल से भारत के अलग-अलग राज्यों में लोगों को निशुल्क हेलमेट बांट रहे हैं. महानगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक छोटे-छोटे बच्चों से पुरानी पुस्तक लेकर उन्हें उन्हें हेलमेट देते रहते हैं क्योंकि भारत सरकार ने 4 साल के उम्र के बच्चों पर भी टू व्हीलर सवारी पर हेलमेट लगाने का नियम लागू है.
अपने अभियान से लाखों जरूरतमंद बच्चों को निशुल्क पुस्तक देते रहते हैं. ताकि भारत सौ प्रतिशत साक्षर बन सके.
हेलमेट मैन जिस राज्य में जाते हैं दुर्घटना से मौत होने वाले परिवारों से भी मिलते हैं क्योंकि उस क्षेत्र में भविष्य में दुर्घटना ना हो लोगों से मिलकर उन्हें जागरूक करते हैं. और जिस परिवार में दुर्घटना हो चुकी है उस परिवार की स्थिति लोगों से भी शेयर करते हैं आपकी एक छोटी सी गलती आपके जीवन के साथ आपके परिवार को भी भुगतना पड़ता है.
दुर्घटना होने पर उस परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत पीछे चली जाती है. ऐसे ही हजारों परिवार से मिलकर हेलमेट मैन अपने अभियान में एक नया अध्याय की शुरुआत की है.
भविष्य में कोई भी दुर्घटना होने पर उस परिवार को आर्थिक सहायता की मदद करना चाहते हैं. इसलिए लोगों को निशुल्क हेलमेट देकर 5 लाख की दुर्घटना बीमा भी दे रहे हैं यह राशि हेलमेट के ऊपर भी लिखी हुई है ताकि लोगों को सुरक्षा के साथ भविष्य में कोई दुर्घटना होने पर उस परिवार को आर्थिक सहायता भी मिल सके. इस योजना की शुरुआत हेलमेट मैन भारत के सभी राज्य करने वाले हैं मात्र 1000 के चालान में एक हेलमेट के साथ 5 लाख की दुर्घटना बीमा भी साथ में ले सकें. इस कार्य के लिए भारत के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी ट्वीट के माध्यम से हेलमेट मैन को रोड सेफ्टी का हीरो कहां है. और बिहार सरकार के परिवहन मंत्री संतोष कुमार निराला ने भी कार्य के लिए सम्मानित कर चुके हैं.
भारत सड़क दुर्घटना के मामले में विश्व में पहले स्थान पर है जो सबसे ज्यादा मौत अपने देश में होती है. इस कॉल से आजादी के लिए हेलमेट मैन राघवेंद्र कुमार ने नए अध्याय की स्वतंत्रता दिवस पर शुरुआत की है.
इस कार्यक्रम में मौजूद मोहनिया टोल प्लाजा मैनेजर अभिषेक सिंह इंस्पेक्टर मनोज सिंह थाना इंचार्ज वीरेंद्र पांडे शुभम सिंह, जब्बार अहमद इत्यादि.


सुदर्शनम बाल आश्रम एवं घरौंदा बाल आश्रम के बच्चों ने 74वां स्वतन्त्रता दिवस धूम धाम से मनाया



गाजियाबाद। भरतपुरिया शिक्षा समिति द्वारा संचालित लाल बहादुर शास्त्री सुदर्शनम बाल आश्रम एवं घरौंदा बाल आश्रम के बच्चों ने आश्रम में 74वां स्वतन्त्रता दिवस बड़ी धूम धाम से मनाया इस अवसर पर ध्वजारोहण अध्यक्ष रोटरी क्लब श्री एस. के. माहेश्वरी जी, श्रीमती शालिनी माहेश्वरी जी, श्री ओंकार सिंह, श्री हरेन्द्र कुमार के द्वारा सामूहिक रूप से किया गया जिसमें बच्चों ने देश भक्ति के गीतों पर नृत्य एवं  गीत प्रस्तुत किये। रोटरी क्लब गाजियाबाद द्वारा नास्ते के पैकेट्स, फल एवं गिफ्ट आदि वितरण किया गया।




इस शुभावसर पर श्री ऋषि बंसल, श्री राजेंद्र कालिया, श्री भंवर सिंह, श्रीमती मेघा गोयल, श्रीमती कुसुमलता, श्री सुनील कुमार, श्रीमती अनुपम, श्रीमती गीता, श्रीमती दीपाली जी, डॉ0 दिनेश जी आदि गणमान्य लोग उपस्थित रहे।



Saturday 15 August 2020

मनुष्य जीवन का कल्याण वेदज्ञान के धारण व आचरण से ही संभव


परमात्मा ने हमें मनुष्य जीवन दिया है। हमारा सौभाग्य है कि हम भारत में जन्में हैं जो सृष्टि के आरम्भ से वेद, ऋषियों व देवों की भूमि रही है। मानव सभ्यता का आरम्भ इस देवभूमि आर्यावर्त वा भारत से ही हुआ था। मनुष्य जीवन की उन्नति व कल्याण के लिए परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों को चार वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का ज्ञान दिया था। यह वेदज्ञान मनुष्य की समग्र वा सर्वांगीण उन्नति का आधार है। बिना वेदज्ञान के मनुष्य अपनी आत्मा व जीवन की उन्नति नहीं कर सकता। वेदों का कुछ कुछ ज्ञान परवर्ती व वर्तमान साहित्य में यत्र तत्र भी सुलभ होता है परन्तु शुद्ध वेदज्ञान वेदों व ऋषियों के ग्रन्थों यथा उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, आर्याभिविनय आदि से ही प्राप्त होता है। इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिये हमें संस्कृत या हिन्दी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। इन दोनों व इनमें से किसी एक भाषा का ज्ञान होने पर हम इन ग्रन्थों का स्वाध्याय कर तथा वैदिक विद्वानों की संगति कर अपनी आत्मा को वेदज्ञान से युक्त कर सकते हैं और इसके अनुरूप आचरण से हम अपने जीवन के उद्देश्य दुःख निवृत्ति, सुखों की प्राप्ति, अभ्युदय, निःश्रेयस सहित ईश्वर साक्षात्कार आदि भी कर सकते हैं। ऐसा ही प्राचीन काल में सभी विज्ञजन किया करते थे। इसी कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था। विश्व के लोग भारत में वेदज्ञान के अध्ययन व प्राप्ति के लिये आते थे और यहां रहकर ऋषियों से ज्ञान की प्राप्ति करके अपने देशों में जाकर वेदों का ही अध्यापन व प्रचार करते थे। अध्ययन से हम यह भी पाते हैं कि महाभारत के समय तक पूरे विश्व में एक ही वैदिक धर्म प्रचलित था। इसका कारण था वेदों का अज्ञान से सर्वथा रहित होना तथा पूर्णरुपेण ज्ञान व विज्ञान पर आधारित होना जिससे मनुष्य को सुख लाभ होने सहित दुःखों की सर्वथा निवृत्ति होती थी, अब भी होती है तथा परजन्म में सुखों व ज्ञान से युक्त परिवेश में परमात्मा द्वारा मनुष्य जीवन की उपलब्धि होती है। वेदों का ज्ञान परमात्मा प्रदत्त ज्ञान है। सृष्टि के आरम्भ में और उसके बाद प्रत्येक काल में मनुष्यों को ज्ञान की आवश्यकता होती है। सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा ने युवावस्था में अमैथुनी सृष्टि की थी। ज्ञान प्राप्ति के लिये आदि काल में अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न मनुष्यों के पास अपने माता-पिता व आचार्य आदि नहीं थे। ज्ञानवान सत्ता एक ही थी जो ईश्वर के रूप में संसार में व्यापक होने सहित सबकी आत्माओं में सर्वान्तर्यामी रूप में विद्यमान थी। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक तथा सर्वान्तर्यामी है। आत्मा एवं परमात्मा दोनों चेतन सत्तायें होने से ज्ञानवान व ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता से युक्त होते हैं। जड़ प्रकृति ज्ञान से सर्वथा शून्य होती है। जड़ पदार्थों का मुख्य गुण ज्ञानशून्य वा जड़ होना ही होता है। अतः सृष्टि की आदि में अमैथुनी सृष्टि में सभी स्त्री, पुरुषों को ज्ञान परमात्मा से ही प्राप्त हुआ था। यह ज्ञान चार वेदों के रूप में था। इसी कारण हम परमात्मा को आदि माता, पिता तथा आचार्य भी मानते हैं और वह है भी। परमात्मा सर्वज्ञ एवं अविद्या से सर्वथा रहित है। ऐसा ही वेदज्ञान है जिसमें सब सत्य विद्यायें विद्यमान हैं और अविद्या व अज्ञान का लेश भी नहीं है। इस तथ्य की पुष्टि ऋषि दयानन्द सहित सभी ऋषि एवं विद्वान करते आये हैं और इसके लिए प्रमाण भी देते हैं। सत्यार्थप्रकाश तथा ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका में भी इस विषय पर प्रकाश डाला गया है। वेदोत्पत्ति का वर्णन भी सत्यार्थप्रकाश में हुआ है। इस अध्ययन से निभ्र्रान्त रूप से यह स्पष्ट हो जाता है कि वेद ज्ञान परमात्मा से प्राप्त हुआ था। वेदों की भाषा संस्कृत भी वेदों से ही प्राप्त हुई है जो संसार की सभी भाषाओं की जननी व मूल भाषा है। वेदों से ही संसार के सब पदार्थ प्रसिद्ध अर्थात् नाम व गुणों के द्वारा प्रकाश में आये हैं। इस कारण वेद मनुष्यमात्र की ईश्वर प्रदत्त सम्पत्ति है। सब मनुष्यों का वेदों पर समान अधिकार है। कोई किसी भी देश में किसी भी वर्ण, जाति व परिस्थिति में उत्पन्न हुआ हो, सब वेद पढ़ सकते हैं। परमात्मा ने यर्जुवेद के 26/2 मन्त्र में संसार के सभी मनुष्यों को वेद पढ़ कर ज्ञानी बनने का अवसर व अधिकार दिया है। सब मनुष्यों का पावन पुनीत कर्तव्य भी है कि वह वेदों को पढ़े और उसकी उदात्त शिक्षाओं को ग्रहण कर उसके अनुसार न केवल अपना जीवन बनायें अपितु अज्ञानी लोगों में प्रचार कर वेदों का प्रकाश करें जिससे हमारा देश व समाज अज्ञान तिमिर से दूर होकर सत्य ज्ञान पर आधारित एक अग्रणीय उन्नत व विकसित समाज बन सके। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि जो मनुष्य जीवन में वेदध्ययन नहीं करता व उसका आचरण नहीं करता वह ईश्वर की आज्ञा पालन न करने का दोषी होता है। इसी को ध्यान में रखकर ऋषि दयानन्द ने नियम दिया है कि वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना तथा सुनना-सुनाना सब आर्यों अर्थात् श्रेष्ठ गुणों वाले मनुष्यों का परम धर्म है। जो मनुष्य परमधर्म की अवज्ञा करेगा वह निश्चय ही दुःखों को प्राप्त होगा।वेदों में हमें ईश्वर, जीवात्मा तथा कारण व कार्य सृष्टि का सत्यस्वरूप प्राप्त होता है। वेदों से हम ईश्वर की महानता से परिचित होते हैं और हमें जीवात्माओं की अल्पज्ञता एवं इसके कारण उसमें लोभ, मोह, काम, क्रोध आदि दुर्गुणों के होने का ज्ञान भी होता है। जीवों की इन दुर्बलताओं का शमन वेदाध्ययन एवं वेद की शिक्षाओं को आत्मसात कर उसे आचरण में लाने से ही होता है। मनुष्य जीवन की उन्नति में ईश्वर के ज्ञान एवं ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना सहित वैदिक ग्रन्थों के स्वाध्याय का महत्व निर्विवाद है। वेद के ज्ञान व उसके आचरण से दूर मनुष्य को पतन के गर्त में गिरता देखा जाता है। संसार में जो लोग व देश अकारण हिंसा, शोषण व अन्याय आदि करते देखे जाते हैं, उसका कारण उनका वेदज्ञान से दूर होना ही होता है। यही कारण था कि प्राचीन काल में राजा व उनके मन्त्री एवं परामर्शदाता वेदों के विद्वान होते थे जो स्वयं वेदमार्ग पर चलते हुए राजाओं को वेदमार्ग पर चलने की प्रेरणा करने करते थे। इसके साथ ही राजाओं के सभी निर्णय ईश्वर को सर्वव्यापक एवं साक्षी मानकर मानवता के हितों अनुरूप लिये जाते थे। राम, कृष्ण एवं आर्य राजाओं का जीवन ऐसा ही होता था। ऐसी स्थिति होने पर ही सभी परस्पर देश सुख व शान्ति से रहते थे और यहां के मनुष्यों का जीवन भी सुख व आनन्द से युक्त होता था। जैसे जैसे संसार वेदों से दूर जाता गया, संसार में अज्ञान की वृद्धि होकर परस्पर संघर्ष की स्थिति बनती गई और लोभवश शक्तिशाली राजा दूसरे धार्मिक व निर्बल राज्यों पर अधिकार करते रहे। वेदों का राजधर्म धार्मिक राजाओं पर सीमाओं के विस्तार की दृष्टि से आक्रमण की आज्ञा नहीं देता अपितु सभी देशों से मैत्री की संधि कर सबके हित के लिए सहयोग करने की शिक्षा व प्रेरणा करता है। हमारे देश के चक्रवर्ती आर्य राजा पड़ोसी व दूसरे देशों पर आक्रमण कर अपने देश में मिलाने के स्थान पर वहां वैदिक व्यवस्था कायम कर उनसे नाममात्र का कर वसूल करते थे और उनकी रक्षा का आश्वासन देते थे। यही कारण है कि वैदिक राज्य व व्यवस्था रामराज्य का पर्याय कहलाती है। इस संसार का पूर्ण हित भी तभी होगा जब लोग वेदों को जानेंगे और वेद की शिक्षाओं के आधार पर देश की सभी व्यवस्थाओं का संचालन होगा। वेदज्ञान को प्राप्त कर हम सत्य ज्ञान को प्राप्त होते हैं। वेदज्ञान से सभी मनुष्यों को अपने अपने कर्तव्यों का बोध होता है। कर्तव्यों का बोध और उनका पालन करने से ही हम धर्मयुक्त आचरण करते हुए अपने व दूसरों के जीवनों को अभ्युदय तथा निःश्रेयस के मार्ग पर अग्रसर करने की प्रेरणा कर सकते हैं। धर्म की एक परिभाषा है कि धर्म उन कर्मों व कर्तव्यों का नाम है जिससे मनुष्य का अभ्युदय होता हो मृत्यु होने पर निःश्रेयस अर्थात् जन्म व मरण से अवकाश होता है। इसे ही मुक्ति व मोक्ष कहा जाता है। मोक्ष की अवस्था जन्म व मरण से रहित पूर्ण आनन्द की अवस्था होती है जो जीव को ईश्वर के सान्निध्य में रहकर प्राप्त होता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सभी मनुष्यों को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन सहित वेदाध्ययन करना भी आवश्यक होना चाहिये। वैदिक जीवन ही सुखी एवं धर्मपूर्वक समृद्धि का आधार होता है। वैदिक जीवन में ज्ञान प्राप्ति सहित जीवन को यम व नियमों (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर-प्रणिधान) पर आधारित बनाने पर बल दिया जाता है। यम व नियमों में बंधा जीवन ही सुखी, निरोग, स्वस्थ, उन्नत, दीर्घजीवी एवं देश एवं समाज के लिए हितकारी होता है। अतः सबको वेदाध्ययन सहित वेदों के प्रवेशद्वार सत्यार्थप्रकाश एवं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिये। ऐसा करके हम अपने जीवन को दिव्य एवं सार्थक बना सकेंगे और हमारा इहलोक व परलोक सुधरेगा। हम सबको धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होगी।



-मनमोहन कुमार आर्य


देश की आजादी में ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज का योगदान


माना जाता है कि देश 15 अगस्त, 1947 को  अंग्रेज़ों की दासता से मुक्त हुआ था। तथ्य यह है कि सृष्टि के आरम्भ से पूरे विश्व पर आर्यों का चक्रवर्ती राज्य रहा। आर्यों वा उनके पूर्वजों ने ही समस्त विश्व को बसाया है। सभी देशों के आदि पूर्वज आर्यावर्तीय आर्यों की ही सन्तानें व वंशज थे। सृष्टि का आरम्भ 1.96 अरब वर्ष पूर्व तिब्बत में अमैथुनी सृष्टि से हुआ था। ईश्वर ने अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा को चार वेदों का ज्ञान दिया था। सृष्टि में अमैथुनी सृष्टि में जो स्त्री व पुरुष उत्पन्न हुए वह सभी ईश्वर के पुत्र होने, सभी एक ही वर्ण व जाति के होने तथा किसी का कोई गोत्र आदि न होने से वेदों के अनुसार गुण, कर्म व स्वभाव से सब आर्य कहलाये। इतिहास की लम्बी यात्रा में अनेक उत्थान पतन हुए और सामाजिक ढांचा मुख्यतः विगत पांच छः हजार वर्षों में काफी तेजी से विकृतियों को प्राप्त हुआ। संसार में आज दो सौ से अधिक जितने भी देश हैं उनका इतिहास महाभारत युद्ध के बाद व विगत पांच हजार वर्षों की अवधि तक सीमित है। इस अवधि में अविद्या के कारण देश देशान्तर में वेदेतर मतों का आविर्भाव होता रहा। ऋषि दयानन्द ने मत-मतान्तरों की समीक्षा की तो पाया कि मत मतान्तरों में वेदों से पहुंची हुई कुछ सत्य मान्यतायें हैं और कुछ मान्यतायें उन मतों के आविर्भाव काल में समाज में प्रचलित अविद्या पर आधारित उनके आचार्यों के विचार हैं। सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल तक 1.96 अरब वर्षों तक भारत के कभी गुलाम व दास बनने का कोई संकेत रामायण एवं महाभारत आदि इतिहास ग्रन्थों में नहीं मिलता। वस्तुतः महाभारत काल तक वेदानुयायी आर्यों का ही पूरे विश्व पर सार्वभौम चक्रवर्ती राज्य था। इस विषय में ऋषि दयानन्द ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास में लिखा है ‘सृष्टि से ले के पांच सहस्र वर्षों से पूर्व समय पर्यन्त आर्यों का सार्वभौम चक्रवर्ती अर्थात् भूगोल में सर्वोपरि एकमात्र राज्य था। अन्य देशों में माण्डलिक अर्थात् छोटे-छोटे राजा रहते थे क्योंकि कौरव पाण्डव पर्यन्त यहां के राज्य और राजशासन में सब भूगोल के सब राजा और प्रजा चले थे क्योंकि यह मनुस्मृति, जो सृष्टि की आदि में हुई है, उसका का प्रमाण (मनुस्मृति का श्लोक यथा एतद्देशप्रसूतस्य सकाशाद् अग्रजन्मनः। स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः।।) है। (इस श्लोक का अर्थ है कि) इसी आर्यावर्त देश में उत्पन्न हुए ब्राह्मण अर्थात् विद्वानों से भूगोल के मनुष्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, दस्यु, मलेच्छ आदि सब अपने-अपने योग्य विद्या व चरित्रों की शिक्षा लें और विद्याभ्यास करें। और महाराजा युधिष्ठिर जी के राजसूय यज्ञ और महाभारत युद्धपर्यन्त यहां के राज्याधीन सब राज्य थे।’देश का पतन महाभारत युद्ध के बाद वेदाध्ययन में शिथिलता के कारण हुआ। वेदाध्ययन में प्रमाद के कारण ही देश में ऋषि परम्परा बन्द हो गई और सर्वत्र अविद्या व अविद्यायुक्त मतों का प्रचार प्रसार हुआ। वैदिक मान्यताओं के विरुद्ध एक वाममार्ग पन्थ भी स्थापित हुआ था जिसका व इससे मिलते जुलते सभी अविद्यायुक्त मतों का वर्णन ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में किया है। देश छोटे छोटे राज्यों व रियासतों में बंटता गया। पहले देश में मुसलमान आये। उन्होंने देश में प्रचलित अन्धविश्वासों मूर्तिपूजा, फलित ज्योतिष, जातिवाद, छुआछूत, भेदभाव आदि का सहारा लिया और देश को लूटा। यह प्रवृत्ति जारी रही और बाद में विदेशी मुस्लिम शासकों ने देश के कुछ भागों को पराधीन भी किया। देश में जघन्य अन्याय व अत्याचार किये गये। छल, बल व लोभ से आर्य हिन्दुओं का धर्मान्तरण किया गया। आर्य व हिन्दुओं का सगठन छिन्न-भिन्न हो गया तथापि देश के अनेक भागों में आर्य हिन्दू राजा शक्तिशाली थे। महाराष्ट्र, राजस्थान व दक्षिण के अनेक राजा पराक्रमी रहे जिन पर विधर्मी विजय प्राप्त नहीं कर सके अपितु उनकी जो भी कोशिशें होती थी, वह विफल की जाती रही। वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप तथा वीर गोविन्द सिंह जी आदि देश व धर्म रक्षक महापुरुषाओं का इतिहास सभी भारतीयों को पढ़ना चाहिये। इससे उन्हें अपने इन पूर्वजों की गौरव गाथाओं को जानने का अवसर मिलेगा और उन्हें जो दूषित इतिहास पढ़ाया गया उसके प्रभाव से वह बच सकेंगे।
 भारत पर आठवीं शताब्दी में मुस्लिमों के आक्रमण आरम्भ हुए थे। हमारे हिन्दू राजा धर्म पारायण थे और उसी के अनुसार व्यवहार करते थे जबकि विधमी विदेशी आक्रमणकारी किसी नीति व नियम को नहीं मानते थे। अन्याय, अत्याचार तथा जघन्य हिंसा व लूटपाट करना उनका स्वभाव था। हमारी आपस की फूट एवं यथायोग्य व्यवहार की नीति न होने के कारण हमारे कुछ राजाओं को पराधीनता का दंश झेलना पड़ा। कालान्तर में यह प्रक्रिया जारी रही और अनेक छोटे छोटे राज्यों पर विदेशी लूटेरे आक्रान्ताओं का कब्जा हो गया। मुस्लिमों के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में व्यापार आरम्भ किया। उन्होंने देश की कमजोरियांे का अध्ययन किया और अपनी राजनीतिक शक्ति के प्रसार व विस्तार की योजना को बीज रूप में लेकर काम करने लगे। उसका विस्तार ही देश पर अंग्रेज राज्य की स्थापना के रूप में सामने आया। शनैः शनैः देश के अधिकांश भागों पर अंग्रेजों का राज्य हो गया। इनके काल में भी सुनियोजित ढंग से ईसाई मत का प्रचार प्रसार किया गया और छल, बल व लोभ का सहारा लेकर लोगों को ईसाई मत में परिवर्तित किया गया। देश की जनता पर अंग्रेजों के अत्याचार बढ़ रहे थे। देश के संसाधनों का शोषण व दोहन किया जा रहा रहा था। संस्कृत को भी समाप्त किया गया और लोगों को स्थाई रूप से गुलाम बनाने व उनसे प्रशासनिक कार्य कराने के लिये अंग्रेजी का प्रचलन किया गया। अंग्रेजी पढ़कर नौकरी व कुछ रुतबा प्राप्त होता था, अतः माता-पिता अपनी सन्तानों को अंग्रेजी शिक्षा दिलाने लगे। यह शिक्षा हमारे देश के लोगों का अपने प्राचीन धर्म एवं संस्कृति के प्रति हीनता का भाव उत्पन्न करने के साथ विदेशी ईसाई परम्पराओं को अच्छा मानने लगी जिससे सनातन वैदिक धर्म का प्रभाव न्यून होता गया। आर्य हिन्दुओं की संख्या भी निरन्तर घटती रही। ऐसे समय में देश के विज्ञ जन असंगठित रूप से इसका विरोध करते थे जिनको दबा दिया जाता था। इन अन्याय व अत्याचारों का परिणाम ही सन् 1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम था जो किन्हीं कारणों से असफल हो गया। इस आजादी की प्रथम लड़ाई में हमें महाराणी लक्ष्मी बाई व अन्य देशभक्त आर्य हिन्दू योद्धाओं का पराक्रम व शौर्य देखने को मिलता है। अंग्रेजों की शक्ति अधिक थी। उनकी सेना भारतीय लोग भी उनके साथ थे जो अपने ही देशवासियों पर अत्याचार करते थे। यह ऐसा समय था कि अंग्रेजों ने पुलिस व सेना के भारतीय लोगों द्वारा ही भारतीयों पर अमानुषिक अत्याचार किये व कराये। हजारों की सख्यां में लोगों को अमानवीय तरीके से मार डाला गया और समाज में भय व आतंक का वातावरण उत्पन्न किया गया। सन् 1857 में ऋषि दयानन्द 32 वर्ष के युवक थे। वह इस अवधि तक देश के अनेक भागों का भ्रमण कर चुके थे और देशवासियों के बदहाल जीवन तथा अंग्रेजों के अत्याचारों से सुपरिचित थे। देश की दुर्दशा के कारणों पर भी वह चिन्तन करते थे। वह जड़ पूजा के विरोधी तो बचपन से ही थे इसलिये वह तर्क, युक्ति एवं ज्ञान के अनुरूप मान्यताओं व सिद्धान्तों को ही मानते थे। इस कारण उन्होंने देश का सुधार कैसे हो सकता है, इस पर भी तत्कालीन विद्वानों व देशभक्तों के साथ विचार किया होगा। उनके भावी विचारों को देखकर तो वह सन् 1857 की क्रान्ति में एक क्रान्तिकारी विचारों के युवक ही दृष्टिगोचर होते हैं। सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में उनकी वास्तविक क्या भूमिका थी इसके प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अनुमान से ही कहा जा सकता है कि इस आजादी की लड़ाई में उनकी सक्रिय भूमिका हो सकती है। न केवल ऋषि दयानन्द अपितु अनेक क्रान्तिकारी जिन्होंने आजादी की प्रथम लड़ाई में अपना योगदान दिया, इतिहास के पृष्ठों पर नहीं आ सके। ऋषि दयानन्द ने प्रथम स्वतन्त्रता आन्दोलन के बाद सन् 1860 से सन् 1863 के लगभग 3 वर्षों तक मथुरा के दण्डी स्वामी प्रज्ञाचक्षु गुरु विरजानन्द सरस्वती जी से वेदांग ग्रन्थों के अन्तर्गत शिक्षा, अष्टाध्यायी, महाभाष्य तथा निरुक्तादि का अध्ययन किया था। विद्या पूरी होने पर उन्होंने वेदमन्त्रों के सत्यार्थ जानने व उनका जन जन मे प्रचार करने की योग्यता प्राप्त कर ली थी। विद्या पूरी होने पर गुरु विरजानन्द से उन्हें देश की परतन्त्रता व अन्धविश्वास आदि सभी समस्याओं का कारण अविद्या का प्रचलन व प्रभाव ज्ञात हुआ था। गुरुजी ने स्वामी दयानन्द को देश से अविद्या दूर करने की प्रेरणा भी की थी। इसी कार्य को उन्होंने अपने भावी जीवन में किया। वह देश देशान्तर में घूम कर सृष्टि में निहित सत्य ज्ञान व अज्ञान से लोगों को परिचित कराते थे। उन्होंने वेदों के आधार पर जन सामान्य में ईश्वर व आत्मा सहित प्रकृति का सत्य स्वरूप भी प्रचारित किया। मूर्तिपूजा, फलित ज्योतिष तथा वेद विरुद्ध सभी मान्यताओं को उन्होंने आर्यजाति के पतन का मुख्य कारण बताया। उन्होंने मूर्तिपूजा सहित अनेक विषयों पर स्वधर्मी पौराणिक सनातनी हिन्दुओं सहित अन्य विषयों पर विधर्मी ईसाई व मुसलमानों से भी शास्त्रार्थ व चर्चायें की थी। सभी विद्वान उनकी विद्वता का लोहा मानते थे। वैदिक धर्म की सत्य एवं सर्वहितकारी मान्यताओं के प्रचार के लिये ही उन्होंने 10 अप्रैल, 1875 को मुम्बई में अविद्या निवारणार्थ वेदप्रचार आन्दोलन ‘‘आर्यसमाज” की स्थापना की थी। वैदिक मान्यताओं से परिचित कराने के लिये उन्होंने ‘‘सत्यार्थप्रकाश” नामक ग्रन्थ लिखा। इस ग्रन्थ में सभी वैदिक मान्यताओं को संक्षेप में प्रस्तुत किया है। सत्यार्थप्रकाश से वेदों सहित अविद्यायुक्त मत-मतान्तरों का सत्यस्वरूप जानने को मिलता है। इसकी एक अन्य प्रमुख विशेषता यह भी है कि यह ग्रन्थ लोक भाषा ‘‘आर्यभाषा हिन्दी” में लिखा गया है जिसे अक्षरज्ञानी अल्प पठित मनुष्य भी पढ़ व समझ सकता है। यह विशेषता इतर मत-मतान्तरों के ग्रन्थों में नहीं है। वेदाध्ययन करने वाला कोई भी व्यक्ति गुलामी व दासता को पसन्द नहीं करता अपितु उससे मुक्त होने के लिये निरन्तर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रयत्नशील रहता है। सत्यार्थप्रकाश से हम ऋषि दयानन्द के स्वदेशीय राज्य की सर्वोपरि उत्तमता तथा विदेशी राज्य किसी भी स्थिति में पूर्ण सुखदायक नहीं होता विषयक देशभक्ति से पूर्ण विचारों के दर्शन करते हैं। इस विषय में सत्यार्थप्रकाश के अष्टम् समुल्लास में ऋषि दयानन्द ने लिखा है ‘‘कोई कितना ही करे परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है वह सर्वोपरि उत्म होता है। अथवा मत-मतान्तर के आग्रहरहित अपने और पराये का पक्षपातशून्य, प्रजा पर पिता माता के समान कृपा, न्याय और दया के साथ विदेशियों (अंगरेजों) का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है।” इन पंक्तियों में देश को अंग्रेजी राज्य से मुक्त कराने की स्पष्ट प्रेरणा व घोषणा दृष्टिगोचर होती है। सत्यार्थप्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास में स्वामी जी ने कहा है ‘‘जब संवत् 1914 (अर्थात् सन् 1857 में) के वर्ष में तोपों के मारे (तोपों से गोले दाग कर) मन्दिर मूर्तियां (मन्दिर व उसकी मूर्तियां) अंगरेजों ने उड़ा (नष्ट कर) दी थीं तब मूर्ति (की शक्ति) कहां गई थी? प्रत्युत (द्वारका के) बाघेर लोगों ने जितनी वीरता की और (अंग्रेजों की सेना से) लड़े, शत्रुओं को मारा परन्तु मूर्ति एक मक्खी की टांग भी न तोड़ सकी। जो श्री कृष्ण के सदृश कोई (वीर, देशभक्त और वैदिक धर्म प्रेमी) होता तो इनके (अंगरेजों के) धुर्रे उड़ा देता और ये भागते फिरते (देश छोड़ कर चले जाते)। भला यह तो कहो कि जिस का रक्षक (मूर्ति) मार खाये उस के शरणागत (अनुयायी) क्यों न पीटे जायें?’’ इन पंक्तियों में भी प्रथम आजादी की लड़ाई की पृष्ठ भूमि में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े द्वारका के बाघेर लोगों की वीरता की प्रशंसा कर देश को आजाद कराने की प्रेरणा संकेत रूप में विद्यमान है। ऐसे अनेक वचन ऋषि दयानन्द जी के ग्रन्थों व वेदभाष्य में मिलते हैं। इनकी प्रेरणा से ही सभी ऋषि भक्त और आर्यसमाज के अनुयायियों ने देशभक्ति रूपी धर्म का धारण कर देश की आजादी में योगदान दिया था। स्वामी श्रद्धानन्द, पं. श्यामजी कृष्ण वम्र्मा, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द, पं. रामप्रसाद बिस्मिल, शहीद भंगत सिंह आदि अनेक प्रमुख देशभक्तों ने देश की आजादी की प्रेरणा ऋषि दयानन्द के जीवन एवं ग्रन्थों से ही ली थी। ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में जो उद्बोधन दिया है वही आजादी के आन्दोलन की प्रेरणा बना और जिसकी परिणति देश की स्वतन्त्रता के रूप में प्राप्त हुई। हमारी अपनी आन्तरिक कमजोरियों के कारण हम वैदिक धर्म व संस्कृति को भली प्रकार से प्रचारित एवं प्रसारित नहीं कर पाये जिसका कारण देश का विभाजन हुआ और हमारे लाखों भाईयों को अपना जीवन इस आजादी के बाद भी बलिदान करना पड़ा। वर्तमान में भी हमें देश की आजादी की रक्षा के लिये सत्यार्थप्रकाश पढ़कर उससे प्रेरणा लेकर धर्मरक्षा के कार्यों को करने की महती आवश्यकता है। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो इतिहास सनातन वैदिक धर्मियों को कभी क्षमा नहीं करेगा। 



-मनमोहन कुमार आर्य


आत्मनिर्भर भारत समय की आवश्यकता है


आजकल देश में आत्मनिर्भरता की बात हो रही है। आत्मनिर्भरता का अर्थ है स्वावलम्बी होना तथा दूसरों पर आश्रित व निर्भर न होना। हम जब आत्मनिर्भर नहीं होते तो जिन लोगों से हम अपनी आवश्यकता की वस्तुयें प्राप्त करते हैं, वह लोग हमसे अनुचित मूल्य लेने सहित हमारे हितों की अनदेखी कर हमें कमजोर करने व हमें आत्मनिर्भर न बनने देने के षडयन्त्र करते रहते हैं। वर्तमान समय में देश में ऐसा ही देखा जा रहा है। आजकल हमारे देश में पड़ोसी देश चीन से बहुत सा सामान आयात होकर आता है। कुछ सस्ता होने के कारण हम उसे आंखें बन्द कर खरीद लेते हैं। हम इस बात की उपेक्षा कर देते हैं कि जिस सामान को हमने खरीदा है वह टिकाऊ है भी अथवा नहीं? अपनी अज्ञानता के कारण हम मामूली महंगा सामान जो अधिक टिकाऊ और स्वदेश में बना होता है, उसकी उपेक्षा कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि स्वदेशी उद्योग व उससे जुड़े लोग आर्थिक दृष्टि से कमजोर बनते हैं और हमारे शत्रु देश हमारे पैसे से हमारी भूमि पर कब्जा ही नहीं करते अपितु हमारे अन्य शत्रुओं को हथियार व अन्य सहायता देकर हमें व हमारे देश को कमजोर करने के  उपाय करते जाते हैं। इसका एक ही समाधान व उपाय है कि हम अपनी निजी व अन्य सभी आवश्यकतायें कम से कम रखें। मितव्ययता तथा अपनी आवश्यकताओं को यथासम्भव कम से कम रखना ही स्वावलम्बी एवं आत्मनिर्भर बनने की पहचान है। ऐसा करके हम स्वस्थ, निरोग एवं दीर्घायु भी बनते हैं। हमारी अपनी व देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है और हमें अपने व देश की आवश्यकता के लिये विदेशों से ऋण आदि नहीं लेना पड़ता। हमने बहुत से अल्प आय के व्यक्तियों को बहुत साधारण एवं सुखी जीवन व्यतीत करते देखा है जिन्होंने अपने बच्चों को सस्ते विद्यालयों में पढ़ाया और जो आगे चलकर ऊंचे-ऊंचे पदों पर नियुक्त हुए जबकि धनवान लोगों की सन्तानें जो साधन एवं धन-सम्पन्न थी, वह उस स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकीं। हमारे अपने मित्रों में ऐसे उदाहरण देखने को उपलब्ध हैं। मनुष्य को मितव्ययी होने के साथ तपस्वी या पुरुषार्थी होना चाहिये। ऐसा करना सफलता की गारण्टी होता है। पुरुषार्थी व्यक्ति ही आत्मनिर्भर जीवन व्यतीत करते हुए जीवन में अनेकानेक प्रकार से उन्नति एवं सफलतायें प्राप्त कर सकते हैं। 


आत्मनिर्भर बनने के लिये एक महत्वपूर्ण सूत्र व सिद्धान्त यह है कि परिवार, समाज व देश के लोगों का एक समान विचारधारा व मत को मानें व असत्य का त्याग तथा सत्य का ग्रहण करें। यदि परिवार व देश में एक से अधिक विचारधारा के लोग होंगे तो इससे परिवार व देश कमजोर होता है। ऐसी अवस्था में उन्नति के स्थान पर अवनति होती है। इसके लिये यह आवश्यक है कि हमारे सभी विचार सत्य एवं परस्पर हित साधन करने वाले हों। हमारे देश में अनेकानेक विचारधारायें, मत व पन्थ हैं। यह सब देश की उन्नति व आत्मनिर्भरता में साधक नहीं अपितु बाधक हैं। सब मनुष्य एक मत, एक विचार, एक भाव, एक सुख-दुःख वाले हो सकते हैं, ऐसा होना सम्भव है, इसके लिये हमें अपना ज्ञान बढ़ाना होगा, सत्य ग्रन्थों का स्वाध्याय करना होगा, सच्चे विद्वानों की संगति करनी होगी तथा दुष्ट प्रवृत्तियों के व्यक्तियों से दूर होना होगा। हमें अपने अनुचित स्वार्थों का त्याग भी करना होगा और पात्र निर्बल व्यक्तियों की उन्नति में सहयोग करते हुए उनकी उन्नति में प्रसन्न व सुखी होना होगा। हमें अपनी सभी मान्यतायें व सिद्धान्तों को सत्य व युक्तिसंगत बनाना होगा। हमारे किसी कार्य से किसी के प्रति अन्याय, पक्षपात व शोषण कदापि नहीं होना चाहिये। यदि सब देशवासी इन बातों का ध्यान रखें तो देश में सब मनुष्यों में परस्पर एकता स्थापित हो सकती है। ऐसी स्थिति में सत्य पर आधारित एक मत का होना देश हित में व देश को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 


समाज में हम देखते हैं कि लोग बड़ी बड़ी बातें तो करते हैं परन्तु वह दूसरों के हितों की अनदेखी व उपेक्षा करते हैं तथा अपने अनुचित स्वार्थों की पूर्ति करने में तत्पर रहते हैं और अनुचित व अपराधिक कार्य करने से भी परहेज नहीं करते। ऐसा करने से समाज कमजोर होता है और देश की आत्मनिर्भरता का लक्ष्य दूर होता है। लोगों में परस्पर वैमनस्य उत्पन्न होता है जो देश को आत्मनिर्भर बनाने में बाधक होता है। अतः हमें ‘सब सुखी हों, सब उन्नति करें, सब बलवान हों, निरोगी व स्वस्थ हों, सब एक दूसरे से परस्पर प्रेम करें, गरीबी दूर करने में सब सहायक हों और गरीबों की शिक्षा व सहायता द्वारा हित करने के कार्यों को करें।’ विदेशों में विशेषतः यूरोप आदि के देशों आदि में हम इन नियमों का कुछ कुछ पालन होते हुए देखते हैं। आज विश्व में जो सबसे विकसित, उन्नत व आत्मनिर्भर देश हैं वह अधिकतर यूरोप व उनके निकटवर्ती वह देश हैं जहां उपर्युक्त नियमों का पालन किया जाता है। देश की आत्मनिर्भरता के लिये हम यह भी अनुभव करते हैं कि हमें व्यवस्था के सभी नियमों पर पुनर्विचार करना चाहिये और इनकी वैदिक मान्यताओं से तुलना कर इन्हें वेद व वैदिक ग्रन्थों के अनुरूप, सत्य, तर्क एवं युक्ति पर आधारित करना चाहिये। ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये कि कमजोर व गरीबों के अधिकारों का कोई शिक्षित व धनवान हनन, हरण व शोषण न कर सके। सबको न्याय मिलना चाहिये और अपराध करने वाले अपराधियों को तुरन्त दण्डित किया जाना चाहिये और साथ ही पीड़ितों को उचित राहत भी दी जानी चाहिये। हमारे देश में अनेक अवसरों पर पीड़ितों से भी भेदभाव किया जाता है, जो कि उचित नहीं है। 


हमें देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिये अपने देश में आवश्यकता की सभी वस्तुओं का गुणवत्ता से युक्त तथा देश की आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना होगा जिससे हम बाहर की वस्तुओं को न खरीदें और अपनी अतिरिक्त वस्तुओं को विदेशों में भेजकर उचित धन व लाभ प्राप्त कर सकें। इसके साथ बहुत सी ज्ञान विज्ञान से बनने वाली वस्तुओं में हम विश्व के अनेक देशों से पीछे हैं। हमें यह वस्तुयें व पदार्थ विदेश से मंगाने पड़ते हैं और इसके बदले में भारी विदेशी मुद्रा व्यय करनी पड़ती है। इसका उपाय यही है कि हम विदेशों से वस्तुओं को न खरीद कर विदेशी कम्पनियों को उन वस्तुओं को भारत में बनाने की सुविधा प्रदान करें जिससे हम उन्हें यहां प्राप्त कर सकें और वही वस्तुयें विश्व के दूसरे देश हमारे देश की विदेशी कम्पनियों से खरीदें जिससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था सुदृण हो। हमारे देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है। यह स्थिति आजादी के बाद से अब तक नहीं थी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने विदेशी में भारत की विश्वनीयता को बढ़ाया है। अनेक विदेशी कम्पनियां भारत में बड़ी मात्रा में निवेश कर रही हैं। स्वच्छता की ओर भी एक आन्दोलन चल रहा है और इसमें भी काफी सफलतायें प्राप्त हुई हैं। ऐसे सभी उपाय निश्चय ही देश को आत्मनिर्भर बनायेंगे। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिये सभी मनुष्य एक परमात्मा के बनाये हुए हैं। हमें किसी भी मनुष्य के प्रति भेदभाव व पक्षपात नहीं करना है। सभी देशवासी परमात्मा के एक परिवार के सदस्य हैं जिसका मुख्या परमात्मा है। जिस दिन हम इस विचार को आत्मसात कर लेंगे, उस दिन देश से सभी प्रकार के भेदभाव मिट सकते हैं। इसके लिये हमें वेदों की ओर लौटना होगा। ऐसा करके हमारा निजी जीवन आत्मनिर्भर बनेगा और आने वाले समय में देश भी आत्मनिर्भरता के सभी लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।
 



-मनमोहन कुमार आर्य