Tuesday 1 September 2020

“सत्य सिद्धान्तों के प्रचार से ही देश व समाज का कल्याण होगा”


-मनमोहन कुमार आर्य
समीक्षा न्यूज नेटवर्क
संसार के सभी मनुष्य एक समान हैं। जन्म से सब एक समान व अज्ञानी उत्पन्न होते हैं। जीवन में ज्ञान की मात्रा व आचरण से ही उनके व्यक्तित्व व जीवन का निर्माण होता है। ज्ञान का आदि स्रोत चार वेद ही हैं। वेद न होते तो ज्ञान भी न होता। वेदों का ज्ञान ही हमारी स्कूली किताबों व मत-मतान्तरों में प्राप्त होता है। मत-मतानतरों में जो ज्ञान विरुद्ध अविद्या की बातें हैं वह सब उनकी अपनी है। यदि वह वेदों का अध्ययन कर सत्य व असत्य का निर्धारण कर अपने मतों की मान्यताओं का विचार कर उन्हें वेद के आलोक में शुद्ध करें तो यह कार्य जब चाहें तभी हो सकता है। इसके विपरीत सभी मनुष्य समुदाय व मत-पन्थ आदि अपनी मान्यताआंे की सत्यता की परीक्षा करने व उन्हें सत्य की कसौटी पर कसने को तैयार नहीं हैं। ऋषि दयानन्द ने अपने अध्ययन, तप और पुरुषार्थ से जाना था कि सत्य से ही मनुष्य जाति की उन्नति व सुखों में वृद्धि हो सकती है तथा सत्य को प्राप्त होकर व उसका आचरण किये बिना मनुष्य, देश व समाज उन्नति, सुख व कल्याण को प्राप्त नहीं हो सकते। 
जब हम सत्य सिद्धान्तों की बात करते हैं तो हमें किसी एक विषय में वेद के विचारों व मान्यताओं की मत-मतान्तरों में तद्विषयक मान्यताओं को जानकर उनसे तुलना करनी होती है। ईश्वर का ही विषय लें तो वेदों से ईश्वर का जो सत्य स्वरूप मिलता है वह ऋषि दयानन्द के अनुसार सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता आदि गुण, कर्म व स्वभाव वाला प्राप्त होता है। ईश्वर वेद ज्ञान का देने वाला है। उसने अपनी सनातन प्रजा जीवों को उनके कर्मों का सुख व दुःख प्रदान करने के लिये इस सृष्टि को रचा है तथा वही इसको चला रहा वा पालन कर रहा है। संसार में जितने प्रमुख मत मतान्तर आदि हैं, उनमें ईश्वर के इस सत्य व तर्कसंगत स्वरूप को नहीं बताया व प्रचारित किया जाता। कुछ मतों में तो अजन्मा व सर्वव्यापक ईश्वर के कहानी व किससे भी सुने सुनाये जाते हैं। होना यह चाहिये कि वेद मत व अन्य मतों का अध्ययन व परीक्षा की जानी चाहिये और वेदों के सत्य को स्वीकार तथा अपनी अपनी असत्य मान्यताओं का परित्याग करना चाहिये। धार्मिक जगत में सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग का यही काम ऋषि दयानन्द ने किया था और वह ईश्वर सहित सभी विषयों में अपनी मान्यतायें व सिद्धान्त स्थिर कर पाये थे। अपनी सभी मान्यताओं व सिद्धान्तों को उन्होंने वेदों की तराजू पर तोला था और उन्हें वेदानुकूल, तर्कसंगत तथा सृष्टिक्रम के अनुकूल होने पर ही सत्य स्वीकार किया था। 
ऋषि दयानन्द ऐसे विद्वान ऋषि थे जिन्होंने अपनी किसी मान्यता के असत्य पाये जाने पर अपने अनुयायियों को उस पर सूक्ष्म दृष्टि से विचार कर उसे वेदानुकूल बनाने की भी प्रेरणा की थी। विगत 137 वर्षों में उनका कोई सिद्धान्त अपूर्ण, वेदविरुद्ध तथा सृष्टिक्रम के विरुद्ध नहीं पाया गया है। अतः उनका प्रतिनिधि संगठन आर्यसमाज उनके सभी सिद्धान्तों का देश देशान्तर में प्रचार करता है और संसार के सभी मतों व मनुष्यों को अवसर देता है कि वह वैदिक मान्यताओं की परीक्षा कर उस पर शंका कर सकते हैं जिसका समाधान आर्यसमाज के विद्वान करने के लिये कटिबद्ध होते हैं। यदि सब मत इस सिद्धान्त को स्वीकार कर लेते तो जो विद्वान व आचार्य किंवा मत-मतान्तर अपने अपने मत का प्रचार कर अपने अनुयायियों की संख्या के विस्तार के कार्य में लगे हुए हैं, इसकी उन्हें आवश्यकता न पड़ती। सब सत्य को जानने का प्रयत्न करते और उसे स्वीकार कर उस पर आचरण करते हुए ईश्वर को प्राप्त होकर जीवन के लक्ष्य सुख व शान्ति को प्राप्त होकर सन्तुष्ट जीवन व्यतीत करते। सब मनुष्य वेदानुसार यौगिक जीवन व्यतीत करते हुए ईश्वर का साक्षात्कार करने भी समर्थ होते हैं और शरीर व आत्मा को दुर्गुणों व दुव्र्यस्नों के कारण होने वाले दुःखों से भी मुक्त कर सकते थे। 



ईश्वर द्वारा वेदों में विश्व के सभी मनुष्यों के जीवन को सुखी व सफल करने का जो मार्गदर्शन किया गया है उसे क्रियान्वित करने करने के लिये ही ऋषि दयानन्द ने वैदिक मान्यताओं पर आधारित ‘‘सत्यार्थप्रकाश” ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ से मनुष्य जीवन की सभी भ्रान्तियां व अन्धविश्वास दूर होते हैं। इस ग्रन्थ से मार्गदर्शन प्राप्त कर जीवन को आनन्द प्राप्ति के लक्ष्य की ओर ले जाकर उसे प्राप्त किया जा सकता है। मत-मतान्तरों के अपने-अपने कारणों से इस सत्यार्थ का प्रकाश करने वाले ग्रन्थ को न अपनाने के कारण इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो सका। अतः यह आन्दोलन तब तक जारी रहेगा जब तक कि सभी मनुष्य वेदों के सत्य अर्थों को जानकर उसका पालन करना स्वीकार न करें। इसी से मनुष्य जीवन सहित देश व समाज की सभी समस्याओं का हल सम्भव है। सृष्टि के आरम्भ से महाभारत युद्ध के 1.96 अरब वर्षों तक वेदों की मान्यताओं व सिद्धान्तों के अनुसार भारत भूमि सहित सभी देशों के शासन व जीवन चलते थे। आश्चर्य होता है कि वर्तमान समय में लोग वेदों के सत्य विचारों व मान्यताओं को भी स्वीकार नहीं करते हैं और न ही अध्ययन ही करते हैं। 
सत्य ज्ञान को प्राप्त होने का मार्ग यह है कि मनुष्य विद्या को प्राप्त करे जो सत्य का ग्रहण व असत्य का त्याग कराती है। विद्या प्राप्ति की प्राचीन पद्धति गुरुकुलीय पद्धति है जिसमें 5 से 12 वर्षों की आयु के बालक बालिकाओं को गुरुकुलों में रखकर वहां उन्हें अक्षरों सहित शब्दों, शब्दार्थ एवं व्याकरण का ज्ञान कराया जाता है। व्याकरण पढ़ने के बाद बालक व बालिकाओं को अनेक विषयों के ग्रन्थ पढ़ाये जाते हैं। बच्चे उपनषिद, दर्शन, मनुस्मृति, रामायण व महाभारत सहित वेदों का अध्ययन करते हैं। पूर्व काल में आयुर्वेद सहित धनुर्विद्या व खगोल ज्योतिष का अध्ययन भी हमारे गुरुकुलों में कराया जाता था व वर्तमान में भी कराया जाता है। कृषि विज्ञान तथा वाणिज्य से सम्बन्धित विषयों का ज्ञान भी शिष्य अपने आचार्यों से प्राप्त करते रहे हैं। गुरुकुल में किसी भी विषय व विद्या का अध्ययन करने का निषेध नहीं था न अब है। आज भी वहां बच्चों को सत्यार्थप्रकाश सहित उपनिषद, दर्शन तथा वेद आदि ग्रन्थों का अध्ययन कराया जाता है और इसके साथ वह आधुनिक ज्ञान विज्ञान व गणित आदि का अध्ययन कर उन सब विषयों का अभ्यास करते हैं। वैदिक साहित्य के अध्ययन से मनुष्य को अपना जीवन सत्य नियमों पर आधारित बनाने की प्रेरणा व शक्ति प्राप्त होती है। मनुष्य का जीवन सत्य एवं अहिंसा के सिद्धान्तों पर आधारित होने सहित शारीरिक, आत्मिक तथा सामाजिक उन्नति पर केन्द्रित होना चाहिये। यह लक्ष्य गुरुकुलीय शिक्षा में आधुनिक ज्ञान व विज्ञान से युक्त सभी विषयों के अध्ययन को समाविष्ट कर प्राप्त किया जा सकता है। 
आजकल की शिक्षा मनुष्य को ईश्वर का सत्यस्वरूप बताकर उसे ईश्वर उपासना में प्रवृत्त करने के स्थान पर इसे अध्ययन में सम्मिलित न कर बालक व युवाओं को ईश्वर से दूर करती है जिससे उनके जीवन में ईश्वर की उपासना से होने वाले लाभों यथा मन की एकाग्रता, दुर्गुणों का नाश तथा आत्मा की उन्नति आदि होने की स्थिति नहीं बन पाती। ईश्वर का सच्चा ज्ञान व उपासना मनुष्य को दुर्गुणों को दूर कर उसे आत्मिक बल प्रदान करने का साधन होता है। आत्मा व परमात्मा का सच्चा स्वरूप व इनके गुण, कर्म व स्वभाव को जानकर मनुष्य के सभी भ्रम व शंकायें दूर हो जाते हैं। इससे मनुष्य जीवन में पुरुषार्थ करते हुए धनोपार्जन व भौतिक साधन अर्जित करने सहित उपासना से अपनी आत्मा को भी ऊंचा उठाता जाता है। प्राचीन काल में आत्मा की उन्नति को महत्व दिया जाता था परन्तु अब इसकी उपेक्षा की जाती है। यदि हमें सचमुच सभी देशवासियों के जीवन की उन्नति करनी है तो हमें निश्चय ही धर्म व संस्कृति विषयक सत्य सिद्धान्तों का निर्धारण कर उससे अपनी बाल व युवा पीढ़ी को संस्कारित व दीक्षित करना होगा। इससे न केवल बच्चों के जीवन सत्य ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हांेगे अपितु वह देश व समाज विरोधी सभी गतिविधियों व कार्यों से भी बचेंगे। ऐसा होने पर कोई शत्रु देश हमारे देशवासियों को लोभ व छल से प्रभावित कर देश विरोधी कार्य नहीं करा सकेगा। वर्तमान में बहुत से देश व संगठन मनुष्यों को लोभ देकर व उनकी बुद्धि विकृत कर उनसे समाज व देश विरोधी कार्य कराते हैं। सत्य धर्म व संस्कृति के पर्याय वेदों के अध्ययन से देश व समाज को सभी प्रकार के अनुचित कार्यों से बचाया जा सकता है। 
सत्य मान्यताओं पर आधारित देश व समाज को बनाना अत्यन्त कठिन कार्य है। ऋषि दयानन्द ने अपने जीवन में इस कार्य की नींव डाली थी। सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ की रचना व आर्यसमाज की स्थापना इसी उद्देश्य से किये गये कार्य कहे जा सकते हैं। यदि देश वेद व सत्यार्थप्रकाश को अपना ले तो देश विश्व का गुरु भी बन सकता है और संसार में एक आदर्श राष्ट्र बनकर और प्रत्येक दृष्टि से सुदृण होकर अपने सभी आन्तरिक व बाह्य शत्रुओं पर विजय पा सकता है। अन्य समाधान समस्या को एक सीमा तक ही हल कर सकते हैं। देश को विश्व के सर्वोत्तम धर्म व संस्कृति से युक्त करने हेतु देश भर में सत्य का प्रचार व असत्य का खण्डन आवश्यक है। वैदिक धर्म में पूरी तरह से दीक्षित युवा ही विद्या का प्रचार कर ऋषि दयानन्द के स्वप्न को पूरा कर देश को वैदिक राष्ट्र बना सकते हैं जहां किसी के साथ किसी प्रकार अन्याय नहीं होगा। सबको अपनी सभी प्रकार की उन्नति करने के अवसर मिलेंगे। पात्रों को अधिकार मिलेंगे और पात्रहीनों की उपेक्षा होगी। वर्तमान में भी ऐसा ही होता है तथापि लोग क्षणिक लाभ के लिए असत्य में प्रवृत्त देखे जाते हैं। वेद प्रचार की न्यूनता के कारण ऐसा हो रहा है। यदि महाभारत युद्ध के बाद ऋषि दयानन्द जैसे ऋषि देश में होते और उनके अनुरूप वेद विद्याओं के प्रचार का कार्य होता तो आज देश में अविद्यायुक्त मतों का प्रचार न होता। सब एक मत, एक मन, एक सुख-दुःख व परस्पर सुहृद मित्र होकर देश में सुखों की वृद्धि करते। अतः देश में प्रचलित सभी विचारों, मान्यताओं, सिद्धान्तों व मत-पन्थों में सत्य की पूर्ण प्रतिष्ठा आवश्यक है। इसी से मानव जाति का भला हो सकता है।


“परमात्मा सब जीवात्माओं के जन्मदाता व माता-पिता होने से उपासनीय हैं”


-मनमोहन कुमार आर्य
समीक्षा न्यूज नेटवर्क
परमात्मा और आत्मा का सम्बन्ध व्याप्य-व्यापक, उपास्य-उपासक, स्वामी-सेवक, मित्र बन्धु व सखा आदि का है। परमात्मा और आत्मा दोनों इस जगत की अनादि चेतन सत्तायें हैं। ईश्वर के अनेक कार्यों में जीवों के पाप-पुण्यों का साक्षी होना तथा उन्हें उनके कर्मानुसार सुख व दुःख रूपी भोग प्रदान करना है। हमारा जो जन्म व मृत्यु होती है वह हमें परमात्मा से ही ईश्वरीय कर्म-फल विधान एवं और हमारे शरीर का जन्म व मृत्यु धर्मा होने के कारण से ही होती है। हम अपने किये हुए कर्मों को भूल जाते हैं परन्तु वह सभी कर्म ईश्वर के ज्ञान व स्मृति तब तक बने रहते हैं कि जब तक हम उनका फल न भोग लें। कर्म का फल भोग लेने के बाद ही उसका फल क्षय को प्राप्त व नष्ट होता है। यह भी जानने योग्य तथ्य है कि हमारे सभी शुभ व पुण्य कर्मों का फल सुख तथा अशुभ वा पाप कर्मों का फल दुःख होता है। कोई भी आत्मा वा मनुष्य दुःख को प्राप्त होना नहीं चाहता। इनसे बचने का उसके पास एक ही उपाय है कि वह अशुभ व पापकर्मों को करना छोड़ दे। अशुभ कर्म असत्य के मार्ग पर चलना होता है। असत्य बोलना अधर्म व पाप कहलाता है। असत्य का व्यवहार करने से मनुष्य का जीवन नीरस व सुखों से रहित हो जाता है। इसके विपरीत सत्य को जानकर सत्य का व्यवहार करने से मनुष्य का जीवन व उसकी आत्मा उन्नति को प्राप्त होकर उसे जीवन में सभी अभिलषित सुखों व उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। इसी कारण से हमारे प्राचीन ऋषियों ने आदि काल में ही लोगों को शुभ व सत्य कर्मों का आचरण करने की प्रेरणा की थी। 
सभी मनुष्य सुखी हों और स्वस्थ रहते हुए पूर्ण आयु को भोगें, इसके लिये हमारे ऋषियों ने वेद के आधार पर अनेक नियम बनाये हैं जिनमें एक नियम गृहस्थी मनुष्यों का प्रतिदिन पंचमहायज्ञों को करने का विधान है। इन पंचमहायज्ञों को जानकर इनको करने से मनुष्य की आत्मा की उन्नति होने सहित उसके इष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति होती है। अतः सभी मनुष्यों को पंचमहायज्ञों को जानकर उनका सेवन करना चाहिये। इनकी महत्ता के कारण ही महाराज मनु ने आदि काल में ही घोषणा की थी सभी मनुष्य पंचमहायज्ञों को करें और जो न करें उन्हें सभी द्विजों के कार्यों से पृथक कर देना चाहिये। पंचमहायज्ञों को करने से मनुष्य ईश्वर को प्राप्त होकर अपनी अविद्या व दुःखों को दूर करने में सफल होता है। देवयज्ञ अग्निहोत्र करने से वायु व जल आदि की शुद्धि होने सहित ईश्वर की उपासना भी होती है। इसे करने से मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ सहित अनेक आध्यात्मिक लाभ तथा उसकी कामनाओं की सिद्धि होती है। माता-पिता की सेवा करने से उसे उनका आशीर्वाद मिलता है तथा उनके पुत्र व पुत्री भी वृद्धावस्था में उनकी सेवा कर उनको प्रसन्न व सन्तुष्ट रखेंगे। विद्वान अतिथियों की सेवा करने से मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि व उनकी सभी शंकाओं का समाधान होता है। ऐसा करने से मनुष्य अन्धविश्वासों, पाखण्डों तथा कुरीतियों में नहीं फंसते। इस अतिथिसेवा-यज्ञ को करने से मनुष्य को विद्वान अतिथियों का आशीर्वाद भी मिलता है हो इष्ट कामनाओं की पूर्ति करता है। पांचवा दैनिक यज्ञ बलिवैश्वदेव-यज्ञ होता है। इसके अन्तर्गत पशु-पक्षियों को कुछ अन्न देने से हमें पुण्य प्राप्त होता है। यह पुण्य कार्य मनुष्य के जीवन में सभी क्षेत्रों में सुखदायक होता है। अतः पंचमहायज्ञों को हम सभी को करना चाहिये और इनसे मिलने वाले लाभों को प्राप्त करना चाहिये। 
हम अपनी आंखों से जिस संसार को देखते हैं इसमें जड़ और चेतन दो प्रकार के पदार्थ हैं। संसार में कुल तीन ही पदार्थ हैं जो ईश्वर, जीव व प्रकृति कहलाते हैं। ईश्वर सब जगत के ऐश्वर्य का स्वामी होने से ईश्वर कहलाता है। ईश्वर ने ही त्रिगुणात्मक कारण प्रकृति को कार्य सृष्टि में परिणत कर सभी जीवों को जन्म-मरण देकर सुख व मोक्ष प्राप्ति के अवसर दिये हैं। दूसरा चेतन पदार्थ है जीव है जो अनादि, नित्य, अविनाशी, अमर, अल्प परिणाम, अल्पज्ञ, एकदेशी, समीम, जन्म-मरण धर्मा, शुभाशुभ कर्मों को करने वाला तथा ईश्वर की व्यवस्था से उनके सुख व दुःखरूपी फलों को भोगने वाला है। मनुष्य योनि में जीवात्मा का कर्तव्य है कि वह ईश्वरीय ज्ञान वेदों का अध्ययन करे और वेदविहित कर्तव्य कर्मों को करते हुए ईश्वर के ज्ञान को प्राप्त होकर उसके साक्षात्कार सहित सुख व मोक्ष आदि को प्राप्त करने में प्रयत्नशील रहे। मनुष्य वेद विहित कर्मों को करता है तो उसे पाप-पुण्य बराबर होने व पुण्य अधिक होने पर मनुष्य का जन्म मिलता है। मनुष्य जितने अधिक पुण्य कर्मों को करेगा उतना ही उसे श्रेष्ठ परिवेश में मनुष्य का जन्म मिलेगा और उसके पुण्यों के अनुरूप ही उसे परजन्म में सुखों की प्राप्ति होती है। दर्शन ग्रन्थों में इसका तर्क एवं युक्तियों सहित विवेचन किया गया है। हमें दर्शनों व उपनिषदों के ज्ञान का लाभ प्राप्त करने के लिये इन ग्रन्थों का भी अध्ययन करना चाहिये। ऐसा करने से जीवात्मा के स्वरूप तथा जन्म मरण विषयक हमारी सभी शंकाओं का समाधान हो सकेगा। 
ईश्वर का सत्यस्वरूप भी वेद व वैदिक साहित्य से ही जाना जाता है। सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ वैदिक साहित्य का ही प्रमुख ग्रन्थ है। इसके अध्ययन से जीवात्मा, परमात्मा तथा प्रकृति के सत्यस्वरूप का ज्ञान होता है। ईश्वर को एक दो वाक्य में जानना व बताना हो तो आर्यसमाज के दूसरे नियम का उपयोग कर उसे प्रस्तुत किया जा सकता है। नियम में ईश्वर क्या व कैसा है प्रश्न का उत्तर दिया गया है। नियम है ‘ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी की उपासना करनी (चाहिये) योग्य है।’ हमें ईश्वर के स्वाध्याय, चिन्तन, मनन, ध्यान, सन्ध्या व उपासना के द्वारा ईश्वर के इसी सत्यस्वरूप को प्राप्त होना है। इसे प्राप्त कर लेने पर ही मनुष्य जीवन सफल होता है और मनुष्य जन्म व मरण के बन्धनों से छूट कर दीर्घ काल तक मोक्ष अवस्था को प्राप्त होतो है व हो सकता है। मोक्ष का वर्णन सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ के नवम् समुल्लास में हुआ है। इसका सभी को अध्ययन करना चाहिये। मोक्ष आनन्द की अवस्था है जिसमें जीवात्मा 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्षों के लिये जन्म व मरण के दुःखों से छूट जाता है। यही हम सब जीवात्माओं का लक्ष्य है। हमें मोक्ष प्राप्ति के पथ पर ही अपने जीवनों को चलाने का प्रयत्न करना चाहिये। जिस प्रकार से ईश्वर, जीवात्मा, कारण व कार्य जगत सृष्टि, वेद आदि सत्य हैं उसी प्रकार वेद और ऋषियों के ग्रन्थों में वर्णित मोक्ष व मोक्ष में प्राप्त होने वाले सुखों की प्राप्ति का होना भी सत्य है। मोक्ष की अवस्था अनेक जन्म में पुण्य कर्मों का संचय तथा अपने सभी पाप कर्मों का भोग कर लेने पर प्राप्त होती है। सत्याचरण ही धर्म है और यही मोक्ष का मार्ग भी है। इस का सभी मनुष्यों को चिन्तन करना चाहिये। सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ चिन्तन-मनन में सहायक है और जीवन की सभी शंकाओं व जानने योग्य विषयों पर निर्णायक ज्ञान देता है। 
परमात्मा हमारा माता, पिता व आचार्य आदि है। उसने अपनी प्रजा जीवों के लिये ही इस संसार की रचना की और इसका पालन कर रहा है। इस कारण से वह हमारी माता व पिता दोनों है। वेद ज्ञान देने सहित ऋषियों व परम्परा से हमें वेदज्ञान उपलब्ध कराने तथा आत्मा में उपस्थित रहकर हमें कर्तव्यों की प्रेरणा करने से वह हमारा आचार्य व गुरु भी है। हमें ईश्वर के साथ अपने इन सम्बन्धों को जानकर उन्हें निभाना चाहिये और ईश्वर के समान ही उसके जैसा उसका योग्य पुत्र व शिष्य बनने का प्रयत्न करना चाहिये। हमें जन्म व मृत्यु को देखकर न तो अत्यधिक प्रसन्न होना है और न ही अपनी व अपने प्रियजनों की मृत्यु को देखकर निराश व दुःखी होना है। ईश्वर की व्यवस्था को जानकर हमें उसमें विश्वास कर अज्ञानवतावश होने वाले दुःखों को समझना व उनसे उपर ऊठना है। गीता में कहा है ‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु ध्रुवं जन्म मृतस्य च’ अर्थात् जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु का होना निश्चित है और जिसकी मृत्यु होती है उसका जन्म होना भी धु्रव, अटल व निश्चित है। 



जन्म व मरण का यह नियम हम सभी जीवों पर लागू होता है और सबके जीवन में जन्म व मृत्यु का समय अवश्य ही आना है। जब हमें पता है कि हमारी व हमारे सभी सगे सम्बन्धियों की मृत्यु होनी है तो हमें मृत्यु आने व होने पर क्लेश व दुःखी नहीं होना चाहिये। हमें जानना चाहिये कि मृत्यु के समय जीवात्मा शरीर से निकल कर ईश्वर की प्रेरणा से आकाश व वायुमण्डल में रहता है। ईश्वर उस मृतक जीवात्मा का उसके कर्मानुसार माता-पिता का चयन कर उनके द्वारा पुनर्जन्म प्रदान करता है। यह अटल सत्य व सिद्धान्त है। वस्तुतः सभी के साथ ऐसा ही होना है। मृत्यु होने पर मृतक आत्मा के अपने परिवारजनों से सभी सम्बन्ध टूट जाते हैं। मृतक आत्मा को मृत्यु हो जाने पर अपने पूर्व सम्बन्धों व परिजनों का किंचित ज्ञान नहीं रहता। मृत्यु के बाद लगभग एक वर्ष व कुछ समय मनुष्य जन्म होने में लगता है। मृत्यु होने पर नया शरीर मिलता है। पुराने शरीर के मस्तिष्क, मन व बुद्धि आदि अंग होते हैं वह शरीर सहित सभी नष्ट हो जाते हैं। पुराना शरीर छूट जाने पर नया शरीर मिलता है जो 12 वर्ष तक बाल व किशोर अवस्था में होता है। अतः पुनर्जन्म में पूर्वजन्म की स्मृतियां विस्मृत हो जाती हैं। ऐसा होना मनुष्य के लाभकारी ही होता है। योगियों को इनका साक्षात्कार होना सम्भव होता है। अतः जिन परिवारों में कभी वियोग की कोई घटना हो तो ईश्वर के इस जन्म-मरण-पुनर्जन्म की व्यवस्था को विचार कर विषाद रहित रहना चाहिये। ईश्वर की उपासना व भक्ति में संलग्न रहना चाहिये। स्वाध्याय करने में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिये। दुःख कितना ही बड़ा क्यों न हो व वह कैसा भी हो, समय के साथ उसमें न्यूनता आती जाती है। कुछ समय बाद तो आहत मनुष्य उस दुःख को भूल ही जाता है। अतः जब कभी कोई वियोग आदि का दुःख आये तो मनुष्य को उससे विचलित नहीं होना चाहिये और वेद व वैदिक ग्रन्थों के स्वाध्याय सहित ईश्वर के ‘ओ३म्’ नाम के जप सहित गायत्री मन्त्र आदि के जप से अपने मन व आत्मा को शुद्ध कर उन्हें ईश्वर में लगाना चाहिये। इससे मनुष्य व परिवारजन अपने किसी प्रिय के वियोग के दुःख को कम व नष्ट कर सकते हैं।
 हम सब को जीवन में परमात्मा और आत्मा आदि का सत्य ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। परमात्मा हमारे माता-पिता, आचार्य, मित्र, सखा, बन्धु, हितैषी, सुखदाता तथा प्रेरणाओं के स्रोत है। उनकी शरण में जाकर सबको उनकी स्तुति, प्रार्थना, उपासना व भक्ति करनी चाहिये। इसी से हमारा कल्याण होगा। इसी के साथ इस लेख को विराम देते हैं।


"संतुलित आहार" पर ऑनलाइन गोष्ठी  व प्रणव दा को दी गयी श्रद्धांजलि


समीक्षा न्यूज नेटवर्क
गाज़ियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद की ओर से संतुलित आहार पर ऑनलाइन गोष्ठी व प्रणव दा को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। यह कोरोना काल मे परिषद का 82वां वेबिनार था।
मुख्य वक्ता डॉ करुणा चांदना ने कहा कि संतुलित आहार वह आहार है जिसमें शरीर को उर्जा देने के लिए पर्याप्‍त मात्रा में पोषक तत्‍व होने चाहिएं।हमारे अंगों और ऊतकों को कार्य करने के लिए उचित पोषण की आवश्यकता होती है।संतुलित आहार के अभाव में हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तथा शरीर धीरे-धीरे रोगों का घर बन जाता है।इससे हमारा शारीरिक एवं मानसिक विकास बाधित होता है तथा शारीरिक निष्‍क्रियता होती है।इस प्रकार की सभी समस्‍याओं से बचाव हेतु  दैनिक जीवन में ग्रहण किया जाने वाला आहार संतुलित व पौष्टिक होना चाहिए।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव दा आधुनिक युग के अजातशत्रु थे। उनका पक्ष और विपक्ष में प्रत्येक व्यक्ति सम्मान करता था।वे सरल व मिलनसार व्यक्तित्व के धनी, प्रखर वक्ता व  कुशल राजनीतिज्ञ रहे।उनके नेतृत्व में देश ने ऊंचाइयों को छुआ।उनके द्वारा किये गए कार्य सदियों तक समाज का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे।उनके निधन पर केन्द्रीय आर्य युवक परिषद अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
मुख्य अतिथि समाज सेवी सुषमा पाहुजा ने कहा कि भोजन मानव शरीर का वह अभिन्‍न अंग है जिसके माध्‍यम से इस शरीर रूपी वाहन को ईंधन मिलता है। 
 वर्तमान स्थिति को देखते हुए प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिए एक सुखद और स्‍वस्‍थ जीवन जीने हेतु संतुलित आहार लेना अत्‍यंत आवश्‍यक बन गया है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष आर्य नेता हरिचंद स्नेही ने कहा कि स्वस्थ आहार वह होता है जो कि स्वास्थ्य को स्वस्थ बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है कई चिरकालिक बीमारी जो कि स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है जैसे मोटापा,हृदय रोग,मधुमेह और कैंसर की रोकथाम के लिए स्वस्थ आहार अति महत्वपूर्ण है।
प्रान्तीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि एक स्वस्थ आहार में समुचित मात्रा में सभी पोषक तत्व और पानी का सेवन शामिल होता है पोषक तत्व कई खाद्य पदार्थो से प्राप्त किए जा सकते हैं,जिसमे सभी पोषक तत्व विद्यमान वह पोषक आहार, स्वस्थ आहार माना जाता है।
कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए प्रधान शिक्षक सौरभ गुप्ता ने कहा कि जीवन में नियमित संतुलन और संयमित भोजन को अपनाकर हम अपने भावी जीवन को स्‍वस्‍थ एवं लंबे समय तक सक्रिय बना कर रख सकते हैं।
गायिका संगीता आर्या,दीप्ति सपरा,माता सुलोचना देवी,ईश्वर आर्या(अलवर),वीना वोहरा, विजय पाहुजा,प्रतिभा सपरा, पुष्पा चुघ,सुषमा बुद्धिराजा,डॉ रचना चावला आदि ने ओजस्वी गीतों से समा बांध दिया।
मुख्य रूप से सूर्यदेव आर्य (जींद), विकास भाटिया,आनन्द प्रकाश आर्य,अशोक बंसल,राजश्री यादव,गीता गर्ग,के एल राणा, नरेश प्रसाद,यज्ञवीर चौहान आदि उपस्थित रहे।


जन मानव उत्थान समित्ति द्वारा बरखा कौशिक दिल्ली की प्रदेश उपाध्यक्ष नियुक्त


समीक्षा न्यूज नेटवर्क
गाजियाबाद। 1 सितंबर 2020 गाज़ियाबाद जन मानव उत्थान समित्ति द्वारा बरखा कौशिक को बनाया दिल्ली का प्रदेश उपाध्यक्ष बनया गया।
जन मानव उत्थान समित्ति की राष्ट्रीय अध्यक्ष हिमांशी शर्मा द्वारा  दिल्ली निवासी कर्मठ और ईमानदार एवम  समाजिक कार्य क्षेत्र में हमेशा अग्रणी रहने वाले बरखा कौशिक को  दिल्ली  प्रदेश का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया। राष्ट्रीय अध्यक्ष हिमांशी शर्मा ने आशा व्यक्त की कि बरखा जी संस्था के उद्देश्य एवम कार्य विश्व शांति व मानवता के  हित के हर कार्य को सम्पूर्ण प्रदेश में जन जागरूकता अभियान चला कर जन जन तक पहुचाने का कार्य करेगी एवम महिलाओं  व बेटियों पर बढ़ते अत्याचार के खिलाफ  अभियान चलाकर  अपराधों पर रोक लगाने एवम इस और मजबूत कार्य करके संगठन के कार्य को जन जन तक पहुचाने का कार्य करेगी। 



गरीब कन्याओं की विवाह योजना पुन: शुरू की जाए: राहुल प्रधान


समीक्षा न्यूज नेटवर्क
गाजियाबाद: वरिष्ठ समाजसेवी एवं भाजपा(किसान मोर्चा) राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य:राहुल प्रधान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि कोरोना के कारण बंद पड़ी मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना को गरीब परिवार की कर्मियों के हित में पुन: चालू किया जाना चाहिए श्री प्रधान ने लिखा कि वर्ष सन 2011 से वह लगातार गरीब कन्याओं के विवाह की व्यवस्था कराते हैं आ रहे हैं जिसमें वर्ष सन 2015 में तत्कालीन राज्यपाल राम नायक भी उपस्थित रहे थे तथा सन 2017 में कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल नंदी जी भी सम्मिलित हुए। श्री प्रधान ने बताया कि विवाह हेतु आवेदन जिला प्रशासन को उपलब्ध करा कर मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना का लाभ दिलाया जाता रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा वर्ष सन 2017 को अपनी शुभकामनाएं संदेश आया था तथा सन 2017 में हो उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा का शुभकामनाएं संदेश ट्रस्ट को प्राप्त हुआ, इससे ट्रस्ट के सदस्यों का सम्मान सेवा के प्रति और रूझान बढ़ गया। श्री प्रधान ने आग्रह किया कि मुख्यमंत्री विवाह योजना को एक गाइडलाइन के तहत पुन: चालू किया जाने का आदेश करने की कृपा करें ताकि गरीब परिवार की कन्याओं का विवाह हो सके।


Monday 31 August 2020

प्रधान मंत्री जन कल्याण योजना प्रचार प्रसार अभियान का किया स्वागत

समीक्षा न्यूज नेटवर्क
लोनी। प्रधान मंत्री जन कल्याण योजना प्रचार प्रसार अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय श्री प्रहलाद मोदी जी दिल्ली से कांधला एक सभा के लिये जा रहे थे लोनी पुस्ता चौकी पर भारतीय जनता पार्टी की लोनी नगरपालिका अध्यक्ष श्रीमती रंजीता धामा व पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष मनोज धामा जी ने अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ भव्य स्वागत किया । 



इस अवसर पर लोनी नगरपालिका अध्यक्ष रंजीता धामा ने आदरणीय प्रहलाद मोदी जी को बुके देकर स्वागत किया तथा देशभर मे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व एवं देश के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी के दूारा सभी महिलाओं के लिये चलायी जा रही विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं ( उज्जवला योजना, पेंशन योजना,आसरा योजना ) का लाभ जिस प्रकार से देशभर मे महिलाओं को समान रूप से मिल रहा है उसके लिये नरेन्द्र मोदीजी को धन्यवाद ज्ञापित किया तथा शीर्ष नेतृत्व का आभार प्रकट किया । 



इस अवसर पर प्रधान मंत्री जन कल्याण योजना प्रचार प्रसार अभियान के जिलाध्यक्ष देवैन्द्र ढाका, वीरेन्द्र राठौर, अशोक पटेल,प्रवीन दूहून, अंकित दूहून, रविन्द्र चौधरी, विजयंत तोमर, निखिल, प्रदीप अग्रवाल, शिव नन्दन शर्मा, मदन मोहन पांचाल, सोनू नांगल, दीपक धामा,साजिद चौधरी, दीपक सरोहा, छोटू मुखिया, लक्ष्मण कसाना, नीलम वर्मा सहित सैकड़ों की संख्या मे भारतीय जनता पार्टी के देवतुल्य कार्यकर्ता व पदाधिकारी उपस्थित रहे ।


“वेदाध्ययन व वेद प्रचार से अविद्या दूर होकर विद्या वृद्धि होती है”


-मनमोहन कुमार आर्य
समीक्षा न्यूज नेटवर्क
मनुष्य एक ज्ञानवान प्राणी होता है। मनुष्य के पास जो ज्ञान होता है वह सभी ज्ञान स्वाभाविक ज्ञान नहीं होता। उसका अधिकांश ज्ञान नैमित्तिक होता है जिसे वह अपने शैशव काल से माता, पिता व आचार्यों सहित पुस्तकों व अपने चिन्तन, मनन, ध्यान आदि सहित अभ्यास व अनुभव के आधार पर अर्जित करता है। मनुष्य एक एकदेशी व अल्पज्ञ प्राणी होता है। अतः इसका ज्ञान सीमित होता है। स्वप्रयत्नों से उपार्जित सभी ज्ञान प्रामाणित नहीं होता। ज्ञान की प्रामाणिकता की पुष्टि उसके वेदानुकूल होने पर होती है। प्राप्त ज्ञान के सत्य व असत्य की परीक्षा के लिए बने सिद्धान्तों का उपयोग करके की जाती है। सत्य ज्ञान का सृष्टिक्रम के अनुकूल तथा तथ्यों पर आधारित व तर्क एवं युक्तियों से सिद्ध होना आवश्यक होता है। तर्क ही एक प्रकार से ऋषि व विद्वान होता है जिसकी सहायता से हम किसी बात के तर्कसंगत व सत्य होने की परीक्षा कर उसे स्वीकार या अस्वीकार करते हैं। यही विधि देश-देशान्तर में सर्वत्र अपनाई जाती है। 
धर्म व मत-पन्थों की मान्यताओं के सन्दर्भ में भी सत्य की परीक्षा करने के सिद्धान्त लागू होते हैं। पांच हजार वर्ष हुए महाभारत युद्ध के बाद इतिहास में ज्ञान के सत्यासत्य होने की परीक्षा का प्रयोग ऋषि दयानन्द ने किया था और उन्होंने सभी धर्म व समाज विषयक मान्यताओं की समीक्षा व परीक्षा कर सत्य को प्राप्त कर उसे देश की जनता व समाज से साझा किया था। उन्होंने वेदाध्ययन, अपने ज्ञान व अनुभव के आधार पर जिन सत्य सिद्धान्तों को जाना था, उसका उन्होंने देश देशान्तर में प्रचार भी किया। इसका परिणाम यह हुआ कि देश से अविद्या दूर होने के साथ विद्या की वृद्धि व ज्ञान का प्रकाश हुआ। आज हम आधुनिक भारत व अपने समाज को मध्यकालीन समाज से कोसों दूर पाते हैं। मध्यकाल में हमारा देश व समाज धार्मिक एवं सामाजिक अन्धविश्वासों, पाखण्डों, अनेकानेक सामाजिक कुरीतियों से आबद्ध हो गया था जिससे देश व समाज को ऋषि दयानन्द ने ही बाहर निकाला था। आज का समाज ज्ञान व विज्ञान से युक्त तथा विद्या से भी आंशिक रूप से युक्त होने सहित अज्ञान व अविद्या से भी युक्त है। आज के समाज का बहुत बड़ा भाग ज्ञान व विद्या प्राप्त करने के साधनों से दूर है और जिन मनुष्यों को ज्ञान प्राप्ति के अवसर मिलते भी हैं, वह सभी लोग अपने हित व स्वार्थों के कारण उस ज्ञान विज्ञान व विद्या के सिद्धान्तों को जानने का प्रयत्न नहीं करते और न ही उन्हें अपनाते हैं। अपने स्वार्थों पर विजय प्राप्त किये बिना हम सत्य व सत्य ज्ञान से युक्त आचरण को प्राप्त नहीं कर सकते। सत्य को जानना, प्राप्त करना, सत्य का आचरण करना व दूसरों से करवाना ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य है। इसे प्राप्त होकर ही मनुष्य दुःखों से सर्वथा दूर तथा कल्याण को प्राप्त होते हंै। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हम अपने पूर्वज ऋषि व मुनियों के जीवन सहित राम, कृष्ण एवं दयानन्द आदि महापुरुषों के जीवन में भी देखते हैं। इन महापुरुषों से प्रेरणा ग्रहण कर हम अपने जीवन को अविद्या व दुःखों से मुक्त करने सहित जीवन को उत्तम व श्रेष्ठ कर्मों से युक्त बनाकर हम जीवन को सफल कर सकते हैं। 
मनुष्य जीवन के उद्देश्य पर विचार करते हैं तो यह विद्या की प्राप्ति ही सिद्ध होता है। बिना विद्या के मनुष्य पशुओं के समान अज्ञान से युक्त ही होता है। ज्ञान व विद्या मनुष्य को मनुष्यता व देवत्व प्रदान करते हैं। जो मनुष्य सत्य ज्ञान विद्या से विहीन होता है वह अच्छा व उत्तम मनुष्य नहीं कहा जा सकता। ज्ञान विज्ञान युक्त मनुष्य जो सत्य व श्रेष्ठकर्मों का आचरण करता है वही मनुष्य प्रशंसनीय एवं यशस्वी होता है तथा देश व समाज में आदर व सम्मान पाता है। अतः विद्या प्राप्ति में सभी मनुष्यों को तत्पर रहना चाहिये। यह जान लेने के पश्चात यह प्रश्न होता है कि विद्या प्राप्ति के साधन क्या हैं? इसका उत्तर है कि हमें शब्द, अर्थ, इनका परस्पर संबंध जानने के साथ संस्कृत आदि भाषाओं के व्याकरण को जानकर वेद एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन करना होता है। वेद एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन कर ही विद्या की प्राप्ति होती है। आधुनिक विज्ञान तो हम विज्ञान की पुस्तकों में पढ़ सकते हैं परन्तु उससे मनुष्य सभ्य, शिष्ट, संस्कारी तथा सज्जन प्रकृति व स्वभाव का बनता हो, यह आवश्यक नहीं है। मनुष्य को सुसंस्कृतज्ञ व संस्कारी बनाने के लिये उसका वेद एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन करना आवश्यक होता है। ऐसा ही प्राचीन काल से होता आया है। यही कारण था कि वेदाध्ययन से ही हमारे देश में ऋषि परम्परा चली और लोग ऋषियों से ज्ञान विज्ञान व आचरण की शिक्षा लेकर सभ्य व संस्कारी मनुष्य बनते थे जिससे देश व समाज में एक सुखद एवं समरसता का वातारण बनता था। समाज अन्धविश्वासों तथा कुरीतियों से रहित होता था और सर्वत्र सुख व शान्ति का वातावरण हुआ करता था। आज भी यदि वेदों के सत्य अर्थों का प्रचार हो और सभी मनुष्य व सम्प्रदाय सत्य को स्वीकार कर वेदों की शरण में आ जाये, तो हमारी पृथिवी स्वर्ग का धाम बन सकती है, ऐसा वैदिक समाज शास्त्री विद्वान स्वीकार करते हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये ही ऋषि दयानन्द ने अपना जीवन वेद, वैदिक साहित्य, वेद के सत्यार्थ, ईश्वर व जीवात्मा के यथार्थ स्वरूप को जानने, ईश्वर की उपासना की सत्य एवं कारगर विधि, मनुष्य के भिन्न भिन्न अवस्थाओं में कर्तव्य आदि को जानने व उनके प्रचार में लगाया था। उसे जान लेने के बाद उन्होंने विश्व के कल्याण के उद्देश्य से ही इन विचारों व मान्यताओं का देश-देशान्तर में प्रचार प्रसार किया और इसी के लिये उन्होंने अपने जीवन का बलिदान भी किया। अतः जीवन की उन्नति व सफलता के लिये सभी मनुष्यों को इसी मार्ग को अपनाना चाहिये। इसी पर चलकर उन्हें धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। सभी मनुष्य सुख व शान्ति से जीवन व्यतीत करते हुए स्वस्थ एवं बलवान होकर दीर्घायु को प्राप्त कर मोक्षगामी वा मोक्ष के निकट व निकटतर हो सकते हैं। यही मानवमात्र के लिये अभीष्ट व प्राप्तव्य है। 



वेदों से अविद्या दूर होती है इस बात को जानने के लिये यह जानना आवश्यक है कि वेद मनुष्य रचित रचना व ज्ञान न होकर सृष्टि के आरम्भ में सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा द्वारा अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न चार ऋषियों को दिया गया ज्ञान है। परमात्मा सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान तथा इस सृष्टि का कर्ता व धर्ता है। अतः परमात्मा को इस सृष्टि के बारे में समस्त व पूर्ण ज्ञान है। ऐसा ही ज्ञान की दृष्टि से पूर्ण ज्ञान वेदों में मिलता है। वेदों का ज्ञान भ्रान्तियों से रहित व सभी भ्रान्तियों को दूर करने वाला होता है। यह ज्ञान ईश्वर ने चार ऋषियों को किस विधि से दिया और उन ऋषियों ने इसका शेष मनुष्यों तक प्रचार किस प्रकार से किया, इसे ऋषि दयानन्द के विश्व प्रसिद्ध महनीय ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश को पढ़कर जाना जा सकता है। वेदों की तरह ही सत्यार्थप्रकाश भी अविद्या को दूर करने वाला ग्रन्थ है। गुजरात प्रान्त में जन्में और संस्कृत के शीर्ष विद्वान होकर भी ऋषि दयानन्द ने अपने विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश की हिन्दी में रचना व प्रचार कर देश की सामान्य जनता के प्रति परोपकार का महान कार्य किया है। यदि यह ग्रन्थ हिन्दी में न होता तो इससे देश के करोड़ों लोगों को जो लाभ हुआ है वह न होता। इससे एक सामान्य व साधारण मनुष्य भी धर्म विषयक गहन तत्वों को जान सकता है व असत्य को छोड़कर सकता है। सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन कर मनुष्य की सभी भ्रान्तियां दूर हो जाती हैं। आत्मा सत्य ज्ञान से प्रकाशित हो जाता है। ईश्वर व जीवात्मा का ठीक ठीक यथार्थ ज्ञान होता है। 
ज्ञान व विज्ञान के क्षेत्र में सबसे अधिक महत्व ईश्वर व जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना ही है। यह ज्ञान मत-मतान्तरों के अविद्यायुक्त ग्रन्थों से नहीं होता। इस आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति मनुष्य को वेद, उपनषिद, दर्शन तथा सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों से ही होती है। मनुष्य की अविद्या दूर हो जाने पर वह सत्कर्मों व सत्याचरण में प्रवृत्त होता है। सत्याचरण व ईश्वर की सत्य विधि से उपासना ही मनुष्य का एकमात्र सत्य धर्म होता है। यह भी ज्ञातव्य है कि संसार में धर्म एक ही है और वह सत्य वैदिक मान्यताओं व सिद्धान्तों का नाम है। वेद के सभी सिद्धान्त एवं मान्यतायें असत्य व अज्ञान से रहित तथा सद्ज्ञान व विद्या से युक्त हैं। वेदों का अध्ययन कर तथा वेदानुकूल योगदर्शन के अभ्यास से मनुष्य ध्यान व समाधि को प्राप्त होकर ईश्वर का प्रत्यक्ष व साक्षात्कार तक कर सकता है। ईश्वर का साक्षात्कार होने पर ही मनुष्य की समस्त अविद्या दूर होती है। वह जन्म व मरण के चक्र से मुक्त होकर ईश्वर के सान्निध्य में निवास करने की अवस्था मोक्ष को प्राप्त होता है। यही वेदाध्ययन या वेदप्रचार का महत्व है। ईश्वर व आत्मा का ज्ञान, वेद विहित यौगिक विधि से जीवनयापन व इससे प्राप्त सुख व कल्याण अन्यथा प्राप्त नहीं होता। वैदिक जीवन शैली वा जीवन पद्धति ही संसार में श्रेष्ठतम जीवन शैली है। इसी की शरण में आकर मनुष्य की सर्वांगीण उन्नति होती है। इसी कारण से वैदिक संस्कृति को प्रथम विश्ववारा संस्कृति कहा जाता है। संसार में विश्व के सभी लोगों की वरणीय एक ही संस्कृति वैदिक संस्कृति है जो मनुष्य का पूर्ण विकास कर उसे जन्म व मृत्यु के बन्धनों से मुक्त कर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति कराती है। यह लाभ वेदाध्ययन व वेदप्रचार से अविद्या दूर होने पर प्राप्त होता है। इसीलिये हमने आज इसे अपने लेख का विषय बनाया। हम आशा करते हैं कि पाठक इस लेख की विषय-वस्तु से लाभ को प्राप्त होंगे।


वृद्धॊं को भी मिले सभी सुख-सुविधाएं:राहुल प्रधान


समीक्षा न्यूज नेटवर्क
गाजियाबाद: वरिष्ठ समाजसेवी एवं भाजपा(किसान मोर्चा) राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य: राहुल प्रधान ने संयुक्त परिवार प्रणाली परवल देते हुए कहा की वृद्धॊं को समाज में उपलब्ध सभी सुख और सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए श्री प्रधान ने सोमवार को सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक पर वृद्धावस्था पर लिखे एक लेख ने कहा कि हमारे शहर और वहां की सुविधाएं वृद्धॊं के लिए सुगम्य सुलभ होनी चाहिए। बुजुर्गों का अधिकार है कि सर्वजनिक स्थान और सुविधाएं उनके लिए बाधा रहित एवं सुगम हों। सरकार ने सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए अनेक योजनाएं और कार्यश्रम चलाया है, इनमें प्रधानमंत्री वय वन्दन योजना तथा वरिष्ठ नागरिक कल्याण निधि तथा असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों और खादी कामगारों की सामाजिक सुरक्षा के लिए योजनाएं शामिल है। श्री प्रधान ने कहा, इन सरकारी योजनाओं के बावजूद भी हम देखते हैं कि वरिष्ठ नागरिकों को विभिन्न सुविधाएंओ का लाभ लेने के लिए भी मुश्किलें झेलनी पड़ती है।


एसआरसीए एकेडमी अभ्यास के लिए 1 सितम्बर से खुलेगी


समीक्षा न्यूज नेटवर्क


गाजियाबाद। एसआरसीए क्रिकेट एकेडमी लॉकडाउन के बाद से बंद हैं अनलॉक 4 मे 1सितम्बर से एकेडमी खुलने जा रही हैं एसआरसीए के प्रबंधक एवं एनआईएस कोच अंकित यादव ने बताया भारत सरकार के द्वारा जारी सभी दिशा निर्देशों का पालन किया जायेगा, साथ ही एसआरसीए मैनेजमेंट की तरफ से खिलाड़ियों के लिए अभ्यास के लिए गाइडलाइन्स जारी की गयी हैं सभी खिलाड़यों को अभ्यास के दौरान मास्क लगाना, फील्डिंग के दौरान ग्लॉव्स पहना, फोन मे आरोग्य सेतु एप डाउनलोड होना चाहिए, सभी खिलाडी अपनी पानी की बोतल एवं सैनीटाइजर आपने साथ अवश्य रखें, बीमार व्यक्ति खासी जुखाम आदि लक्षण वाले व्यक्ति को प्रवेश नहीं दिया जायेगा भारत सरकार के द्वारा सभी प्रोटोकॉल का पालन किया जायेगा इस मौक़े पर एसआरसीए के अध्यक्ष   रामप्रकाश, क्रिकेट कोच विकास कुमार, बाबर अली, एडवोकेट मुशीर खान आदि लोग मौजूद रहे।


त्यागी महासभा चुनाव में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेगी: विजेन्द्र त्यागी


समीक्षा न्यूज नेटवर्क
लोनी। त्यागी महासभा के अध्यक्ष राजीव त्यागी के नेतृत्व में महासभा के लोगों  ने रामकुमार त्यागी के भूमि विकास बैंक का चेयरमैन बनाये जाने पर उनके निवास मंडोला में जाकर पटका पहनाकर ओर मिठाई खिलाकर उनका स्वागत कर बधाई दी इस अवसर पर महासभा के सरक्षक ओमकार त्यागी ,विजेन्द्र त्यागी ,मीडिया प्रभारी प्रदीप त्यागी ने अपनी शुभकामनाएं दी इस अवसर पर त्यागी महासभा के सरक्षक विजेन्द्र त्यागी ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश से अश्वनी त्यागी जी को  प्रदेश महामंत्री ओर रामकुमार त्यागी को चेयरमैन बनने से समाज के सभी लोगो मे हर्ष का माहौल ह आने वाले समय मे त्यागी महासभा लोनी में संघटन को मजबूत कर हर चुनाव में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेगी।


Sunday 30 August 2020

“ईश्वर विषयक कतिपय शंकाओं के ऋषि दयानन्द के समाधान”


-मनमोहन कुमार आर्य
समीक्षा न्यूज नेटवर्क
आज हम वेदों के अविद्वतीय विद्वान वेद-ऋषि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी द्वारा ईश्वर विषय में की जाने वाली कुछ शंकाओं के समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने प्रश्न उपस्थित किया है कि आप ईश्वर-ईश्वर कहते हो परन्तु ईश्वर की सिद्धि किस प्रकार करते हो? इसका उत्तर देते हुए वह कहते हैं कि वह सब प्रत्यक्षादि प्रमाणों से ईश्वर को सिद्ध करते हैं। इसका स्वयं प्रतिवाद करते हुए वह कहते हैं कि ईश्वर में प्रत्यक्षादि प्रमाण कभी नहीं घट सकते। इस प्रतिवाद का उत्तर देते हुए वह न्याय दर्शन का एक सूत्र प्रस्तुत कर उसके अर्थ पर प्रकाश डालते हुए बताते हैं कि जो श्रोत्र, त्वचा, चक्षु, जिह्वा, घ्राण और मन का शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, सुख, दुःख, सत्यासत्य विषयों के साथ सम्बन्ध होने से ज्ञान उत्पन्न होता है उसको प्रत्यक्ष कहते हैं। यह जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह निभ्र्रम अर्थात् भ्रान्तिरहित होना चाहिये। अब इस विषय में विचार करना चाहिये कि इन्द्रियों और मन से गुणों का प्रत्यक्ष होता है गुणी का नहीं। इसका अर्थ यह है कि इन्द्रियों व मन से हमें किसी पदार्थ के गुणों का प्रत्यक्ष होता है, उस गुणी जिसके वह गुण है, उस गुणी पदार्थ का प्रत्यक्ष व ज्ञान नहीं होता। जैसे नेत्र, जिह्वा, नासिका और त्वचा आदि चार इन्द्रियों से रूप, रस, गन्ध और स्पर्श गुणों का ज्ञान होने से गुणी जो पृथिवी उस का आत्मायुक्त मन से प्रत्यक्ष किया जाता है, वैसे ही इस प्रत्यक्ष सृष्टि में रचना विशेष आदि ज्ञानादि गुणों के प्रत्यक्ष होने से परमेश्वर का भी प्रत्यक्ष होता है। उदाहरण के रूप में हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि संसार में हमें इस सृष्टि को देखकर सृष्टिकर्ता के सर्वज्ञता, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु आदि गुणों का प्रत्यक्ष होता है। सृष्टि की रचना एवं सृष्टि के पालन आदि गुणों का गुणी परमात्मा भी इन गुणों से ही जाना जाता व प्रत्यक्ष होता है। इसका कारण यह है कि कोई भी गुण बिना गुणी के आधार पर अस्तित्ववान् नही रहते। सृष्टिकर्ता ईश्वर के इन गुणों को हम संसार में विद्यमान पाते हैं। अतः इन गुणों के गुणी परमेश्वर का प्रत्यक्ष उसके इन व अन्य गुणों के द्वारा ही होता है। इस प्रकार से ईश्वर के कार्य जगत वा सृष्टि में विद्यमान गुणों से ईश्वर का प्रत्यक्ष होता और वह सिद्ध भी होता है। 
ऋषि दयानन्द जी ने इस प्रसंग में आगे कहा है कि जब आत्मा मन और मन इन्द्रियों को किसी विषय में लगाता वा चोरी आदि बुरी वा परोपकार आदि अच्छी बात के करने का जिस क्षण में आरम्भ करता है, उस समय जीव की इच्छा, ज्ञानादि उसी इच्छित विषय पर झुक जाते हैं। उसी क्षण में आत्मा के भीतर से बुरे काम करने में भय, शंका और लज्जा तथा अच्छे कामों के करने में अभय, निःशंकता और आन्दोत्साह उठता है। यह भय, लज्जा, आनन्द व उत्साह आदि जीवात्मा में अपनी ओर से नहीं किन्तु परमात्मा के द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं। परमात्मा का उद्देश्य जीवों को बुरे कामों को करने से रोकना व परामर्श देना होता है। इस परामर्श को बहुत से लोग मान लेते हैं और जिन कामों को करने में भय व लज्जा होती है, उन्हें नहीं करते। मनुष्य का आत्मा स्वतन्त्र होने से ईश्वर उसे रोकता नहीं अपितु प्रेरणा मात्र ही करता है। बहुत से लोग ईश्वर की प्रेरणा को ठुकरा देते और बुरे कामों को कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं जिसके कारण वह कर्म बन्धनों में फंस कर कुछ काल पश्चात वा परजन्मों में अपने बुरे कर्मों का फल भोगते हैं। 



ऋषि दयानन्द इस प्रकरण में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण बात यह लिखते हैं कि जब जीवात्मा शुद्ध होके परमात्मा का विचार करने में तत्पर रहता है (तब) उस को उसी समय दोनों प्रत्यक्ष होते हैं। जब परमेश्वर का प्रत्यक्ष होता है तो अनुमानादि से परमेश्वर के ज्ञान होने में क्या सन्देह है? क्योंकि कार्य को देख के कारण का अनुमान होता है। इससे यह अभिप्राय लिया जा सकता है कि जगत में सृष्टि वा अपौरुषेय पदार्थों सूर्य, पृथिवी, अग्नि, वायु, जल, आकाश, मनुष्यों व अन्य प्राणियों के शरीर, वृक्ष, वनस्पति, अन्न, ओषधियों आदि को देखकर इनके रचयिता व पालक ईश्वर का ज्ञान होता है। ईश्वर सभी अपौरुषेय पदार्थों का निमित्त कारण, प्रकृति उपादान कारण तथा यह सृष्टि व प्राणियों के शरीर, वृक्ष, वनस्पति, ओषधि आदि ईश्वर से उत्पन्न कार्य हैं। 
ईश्वर की सिद्धि हो जाने पर शंका होती है कि ईश्वर व्यापक है वा किसी देश व स्थान विशेष में रहता है? इस शंका का समाधान करते हुए ऋषि बताते हैं कि ईश्वर व्यापक वा सर्वव्यापक है। वह व्यापक इसलिये है क्योंकि जो एक देश में रहता तो सर्वान्तर्यामी, सर्वज्ञ, सर्वनियन्ता, सब का स्रष्टा, सब का धत्र्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता था। अप्राप्त देश में कर्ता की क्रिया का होना असम्भव है। ऐसा ही एक प्रश्न है कि परमेश्वर दयालु और न्यायकारी है अथवा नहीं? इसका उत्तर है कि ईश्वर दयालु और न्यायकारी दोनों है। 
इस उत्तर पर शंका होती है और लगता है कि ये दया और न्याय दोनों गुण परस्पर विरुद्ध हैं। यदि ईश्वर न्याय करे तो दया और दया करे तो उससे न्याय छूट जाये। ऐसा इसलिये कि न्याय उस को कहते हैं कि जो कर्मों के अनुसार न अधिक न न्यून सुख दुःख पहुंचाना ओर दया उस को कहते हैं जो अपराधी को बिना दण्ड दिये छोड़ देना। यह शंकायें प्रस्तुत कर इनका समाधान करते हुए ऋषि बतातें हैं कि न्याय और दया का नाममात्र ही भेद है क्योंकि जो न्याय से प्रयोजन सिद्ध होता है वही दया से। दण्ड देने का प्रयोजन है कि मनुष्य अपराध करना छोड़ कर दुःखों को प्राप्त न हों, वही दया कहलाती है। जो पराये दुःखों का छुड़ाना और जैसा अर्थ दया और न्याय का शंका करने वाले मनुष्यों ने किया व करते हैं वह ठीक नहीं क्योंकि जिस मनुष्य ने जैसा व जितना बुरा कर्म किया हो, उस को उतना व वैसा ही दण्ड देना चाहिये। उसी का नाम न्याय है। और जो अपराधी को दण्ड न दिया जाय तो दया का नाश हो जाय। क्योंकि एक अपराधी डाकू को छोड़ देने से सहस्रों धर्मात्मा पुरुषों को दुःख देना होता है। जब एक के छोड़ने से सहस्रों मनुष्यों को दुःख प्राप्त होता है तो वह दया किस प्रकार हो सकती है? अर्थात् वह दया नहीं हो सकती। 
दया वही है कि चोरी डकैती का काम करने वाले उस डाकू को कारागार में रखकर पाप करने से बचाना और उस डाकू को मार देने से अन्य सहस्रों मनुष्यों पर दया प्रकाशित होती है। इस विवेचन से परमेश्वर दयालु और न्याय करने वाला सिद्ध हो जाता है। ऋषि दयानन्द जी इस प्रकरण में दया और न्याय शब्दों के वास्तविक अर्थ भी बतायें हैं। वह लिखते हैं कि देखो! ईश्वर की पूर्ण दया तो यह है कि जिस ने सब जीवों के सुख आदि प्रयोजन सिद्ध होने के अर्थ जगत् में सकल पदार्थ उत्पन्न करके दान दे रक्खे हैं। इस से भिन्न दूसरी बड़ी दया कौन सी है? अब न्याय का फल प्रत्यक्ष दीखता है कि जीवों के कर्मानुसार सुख दुःख की व्यवस्था, अधिक और न्यूनता से, फल को प्रकाशित कर रही है। इन दोनों का इतना ही भेद है कि जो मन में सब को सुख होने और दुःख छूटने की इच्छा और क्रिया करना है वह दया और बाह्य चेष्टा अर्थात् बन्धन छेदनादि यथावत् दण्ड देना न्याय कहाता है। दोनों (दया और न्याय) का एक प्रयोजन यह है कि सब को पाप और दुःखों से पृथक् कर देना। 
ईश्वर के स्वरूप के विषय में धार्मिक व सामाजिक जगत में कई मत हैं। कुछ ईश्वर को साकार मानते हैं और कुछ निराकार। इस प्रश्न वा शंका को करते हुए ऋषि ने प्रश्न उपस्थित किया है कि ईश्वर साकार है वा निराकार? ऋषिकृत इस शंका का समाधान है कि ईश्वर निराकार है। क्योंकि जो ईश्वर साकार होता तो व्यापक नहीं हो सकता। जब व्यापक न होता तो सर्वज्ञादि गुण भी ईश्वर में न घट सकते। क्योंकि परिमित वस्तु में गुण, कर्म, स्वभाव भी परिमित रहते हैं तथा शीतोष्ण, क्षुधा, तृषा और रोग, दोष, छेदन, भेदन आदि से रहित नहीं हो सकता। इससे यही निश्चित है कि ईश्वर निराकार है। जो साकार हो तो उसके नाक, कान, आंख आदि अवयवों का बनानेवाला दूसरा होना चाहिये। क्योंकि जो संयोग से उत्पन्न होता है उसको संयुक्त करनेवाला निराकार चेतन अवश्य होना चाहिये। जो कोई यहां ऐसा कहे कि ईश्वर ने स्वेच्छा से आप ही आप अपना शरीर बना लिया तो भी वही सिद्ध हुआ कि शरीर बनने के पूर्व निराकार था। इसलिए परमात्मा कभी शरीर धारण नहीं करता किन्तु निराकार होने से सब जगत् को सूक्ष्म कारणों से स्थूलाकार बना देता है। 
हमने इस लेख में ईश्वर विषयक कुछ प्रश्नों व शंकाओं को प्रस्तुत किया है। इस विषय को विस्तार से जानने के लिए पाठकों को सत्यार्थप्रकाश का सातवां समुल्लास पढ़ना चाहिये। इससे ईश्वर विषयक उनकी सभी प्रकार की शंकाओं का निराकरण होगा। ईश्वर विषयक भ्रान्तियां दूर होने पर मनुष्य को ईश्वर की उपासना व सत्कर्मों को करने की प्रेरणा भी मिलेगी। ऐसा होना मनुष्य, देश व समाज के लिए शुभ लक्षण है। वेदाध्ययन से ही मनुष्य के जीवन व व्यक्तित्व का पूर्ण विकास होता है। मनुष्य पूर्ण पुरुष अर्थात् सभी मानवीय गुणों से युक्त होता है। अतः सबको वेद एवं सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन अवश्य करना चाहिये। इससे उन्हें अनेक लाभ होंगे जो अन्य किसी साधन से नहीं होंगे। 


महर्षि दयानंद का समाज निर्माण में योगदान पर आर्य गोष्ठी सम्पन्न


समीक्षा न्यूज नेटवर्क
गाज़ियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में "महर्षि दयानंद का समाज निर्माण में योगदान" विषय पर ऑनलाइन "आर्य गोष्ठी" का आयोजन किया गया।यह कोरोना काल मे परिषद का 81वां वेबिनार था।
चंडीगढ़ के सुप्रसिद्ध पंजाबी गायक राकेश शास्त्री ने गीतों व ग़ज़लों के माध्यम से महर्षि दयानंद के चरित्र व उपलब्धियों का गुणगान किया और उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश के बारे में बताते हुए कहा कि महर्षि दयानंद ने इस पुस्तक में अध्याय के स्थान पर सम्मुल्लास शब्द का प्रयोग किया अर्थात उत्साह,प्रसन्नता के रूप में दर्शाया गया है।हम सभी को अपने जीवन मे भी उत्साह व प्रसन्नता के भाव रखने चाहिए।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नई शिक्षा नीति के माध्यम से पाठ्यक्रमों में बदलाव करके युवाओं को देश की संस्कृति व शहीदों के बारे में जानकारी देने का निर्णय सराहनीय व राष्ट्र हित मे है।इस संदर्भ में देश के सभी आर्य शिक्षाविदों को आगे आना चाहिए जिससे पाठ्यक्रमों में हुई मिलावट को ठीक करें जिससे देश की भावी पीढ़ी देश के पुरातन गौरव पूर्ण भारतीय संस्कृति पढ़े जाने और गर्व करना सीखें।महर्षि दयानंद युग दृष्टा थे उन्होंने वैदिक जीवन पद्धति को बढ़ावा दिया।वैदिक जीवन पद्धति ही जीवन का मूल हो सकता है।शिक्षा केवल किताबी या अक्षर ज्ञान नही है बल्कि संस्कारों व संस्कृति का निर्माण है।महर्षि दयानंद स्वदेशी के सर्वप्रथम समर्थक थे।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आत्म निर्भर भारत का संकल्प महर्षि दयानंद के सिद्धांतों की ही देन है।
अध्यक्षता करते हुए आर्य केन्द्रीय सभा गाज़ियाबाद के प्रधान आर्य नेता सत्यवीर चौधरी ने कहा कि महर्षि दयानंद के दिखाए मार्ग पर चलकर राष्ट्र का उद्धार सम्भव है और आज उनके द्वारा बताई शिक्षा को जन सामान्य तक पहुचाने का प्रयत्न प्रत्येक आर्य को करना चाहिए।हम सभी महर्षि दयानंद के संदेश को जन जन तक पहुचाने का संकल्प लें।
प्रान्तीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि आज के समय मे युवा वर्ग आसानी से भ्रमित होकर अपने देश की संस्कृति का मज़ाक उड़ाने में संलिप्त हो जाते है।हमे उनको अपनी भारतीय संस्कृति व संस्कारों से परिचित करवाना चाहिए।
प्रधान शिक्षक सौरभ गुप्ता ने कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी कच्चे घड़े के समान है उसे जिस तरीके से ढाला जाता रहा है उसी तरीके से वे ढल रहे थे आज परिवर्तन का समय है और सरकार के निर्णय का हम सभी स्वागत करते हैं।
गायिका संगीता आर्या,मृदुला अग्रवाल,दीप्ति सपरा,नरेश खन्ना, संध्या पाण्डेय,प्रतिभा सपरा, पुष्पा चुघ,गीता गर्ग,रवींद्र गुप्ता आदि ने ओजस्वी गीतों से समा बांध दिया।
आचार्य महेंद्र भाई,यशोवीर आर्य, विश्वपाल जयंत,अमरनाथ बत्रा, आनन्द प्रकाश आर्य,वीना वोहरा, अशोक बंसल,राजश्री यादव,के एल राणा,नरेश प्रसाद,यजवीर चौहान आदि उपस्थित थे।


जनसंख्या नियंत्रण कानून देश के लिए बेहद जरूरी: राहुल प्रधान


समीक्षा न्यूज नेटवर्क
गाजियाबाद: वरिष्ठ समाजसेवी एवं भाजपा (किसान मोर्चा) राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य राहुल प्रधान ने जनसंख्या नियंत्रण कानून के मुद्दे पर केंद्र मंत्री और भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह के हालिया बयानों का समर्थन करते हुए कहा कि जब तक जनसंख्या नियंत्रण कानून पास नहीं हो जाता तब इस देश की समस्याए खत्म होने वाली नहीं है। उन्होंने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं का जिक्र करते हुए स्पष्ट किया कि आने वाले 10 सालों में ना तो शुद्ध जल मिल पाएगा और ना ही रोजगार।क्योंकि तब तक देश पर जनसंख्या का बहुत भारी दबाव बढ़ जाएगा और ऐसे में इंसानी जीवन बिल्कुल कठिन हो जाएगा।श्री प्रधान ने देश की पूर्वती सरकारों की गलत नीतियों को जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि जनसंख्या वृद्धि मोदी जी के विकास कार्यों में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हुआ है वरना जिस तरीके से पीएम मोदी ने देश के चार मुखी विकास के लिए कार्यक्रम चलाया है। वह अद्धतऔर अद्वितीय है। उन्होंने अल्प संख्या वाद दलित समुदाय के बीच इसके लिए जागरूकता अभियान की शुरुआत करने की सलाह देते हुए कहा कि गरीबी और अशिक्षा के कारण जिस तरीके से इन तबको में जनसंख्या बढी है वाकई चिंता का विषय है और जरूरी है कि दलित एवं मुस्लिम भी इस बारे में जागरूक बने और इस पर सोचना शुरू कर दे ताकि देश को जनसंख्या विस्फोटक से बचने का प्रयतृ हो सके। यदि ऐसा नहीं हुआ तब वास्तव में भारत तबाह हो जाएगा। क्योंकि हमारे यहां बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रकृति संसाधनों का बुरी तरह से दोहन हो रहा है और एक दिन सब कुछ खत्म हो जाएगा और पूरा भारत बर्बाद हो जाएगा।


वार्ड 76 के पाषर्द ने सुनी जनसमस्याये, कई का मौके पर निस्तारण


समीक्षा न्यूज
गाजियाबाद। शिवानी गौरव सोलंकी निगम पार्षद, वैशाली-गाजियाबाद ने अपने वार्ड 76 की विभिन्न विभिन्न गालियों में जाकर जनता से मुलाकात की। सेक्टर 3ए की रचना वेल्फ़ेर सोसाइटी के सम्मानित निवासियों व आरडब्लूए के साथ तात्कालिक निस्तारण योग्य समस्याओं का हल करते हुए व शेष बची समस्याओं को सुनकर हल निकालने का प्रयास करते हुए।



Saturday 29 August 2020

केन्द्रीय आर्य युवक परिषद ने मनाया राष्ट्रीय खेल दिवस


समीक्षा न्यूज नेटवर्क
गाज़ियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद द्वारा राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर फिट इंडिया मूवमेंट के अंतर्गत परिषद की अनेक शाखाओं के विद्यार्थियों व अधिकारियों ने फिट इंडिया फ्रीडम रन में भाग लिया।इस कार्यक्रम में सैकड़ों लोगों ने अलग अलग स्थान पर सोशल डिस्टेन्स का ध्यान रखते हुए वर्चुअल दौड़ में भाग लिया।
गाज़ियाबाद में राजनगर स्थित सेंट्रल पार्क से शिवम अस्पताल तक परिषद के 50 युवकों ने व्यायामाचार्य सौरभ गुप्ता के नेतृत्व में फिट इंडिया फ्रीडम रन में भाग लिया।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त को हॉकी के महान् खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती के दिन मनाया जाता है। दुनिया भर में हॉकी के जादूगर के नाम से प्रसिद्ध भारत के महान् व कालजयी हॉकी खिलाड़ी 'मेजर ध्यानचंद सिंह' जिन्होंने भारत को ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलवाया,उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त को हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस वर्ष परिषद ने फिट इंडिया फ्रीडम रन के माध्यम से युवाओं को इस कोरोना काल मे  स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का आह्वान किया।
कार्यक्रम के मुख्य संयोजक सौरभ गुप्ता ने बताया कि 15 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अभियान का शुभारंभ किया,जिसके तहत दो अक्टूबर तक छात्र खिलाड़ी,छात्र व समस्त देशवासियों से अपनी इच्छानुसार समय निकालकर अपने नियत स्थान पर प्रत्येक दिन दौड़ या वॉक करने की अपील की थी।इसके लिए शारीरिक दूरी का ख्याल रखना आवश्यक था।इसकी फोटो, वीडियो व दूरी नापने के पैरामीटर अपनी स्वेच्छा से चयनित कर प्रयोग करना था।इसके तहत फिट इंडिया फ्रीडम रन के माध्यम से सैकड़ों व्यक्तियों ने तीन किलोमीटर दौड़ व वॉक में हिस्सा लिया,जिसमें फिट इंडिया फ्रीडम रन के माध्यम से प्रमाण पत्र दिए जायेंगे।
प्रान्तीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि इस प्रकार के खेल आयोजन प्रत्येक आयु वर्ग के लोगों के मन में उत्साह के साथ साथ प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा देता है और यह हमारी नींद कम करता है इससे हमें सुबह उठने पर तकलीफ नहीं होती हृदय रोग, रक्तवाहिका रोग,टाइप 2 मधुमेह और मोटापा जैसे समृद्धि के रोगों को रोकने में मदद करता है।यह मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है और तनाव को रोकने में मदद करता है।
इस अवसर पर केन्द्रीय आर्य युवक परिषद की विभिन्न शाखाओं ने गाजियाबाद, लखनऊ,दिल्ली,बिहार,जम्मू, करनाल,मथुराअलीगढ़,बादली आदि अनेक स्थानों पर खेल कूद व दौड़ के कार्यक्रमों का आयोजन किया।


Monday 24 August 2020

शराब के ठेके को हटाने के लिए प्रदर्शन जारी


समीक्षा न्यूज नेटवर्क
गाजियाबाद। लाजपत नगर के स्वरूप पार्क मैं अंग्रेजी शराब की दुकान को हटवाने के लिए महिलाओं ने कई दिनों तक धरना प्रदर्शन किया इसका संज्ञान लेकर  जिला प्रशासन द्वारा  ठेका हटाने के लिए निर्देश दिया ठेका मालिक ने विरोध प्रदर्शन को देखते हुए ठेका बंद कर दिया सभी महिलाओं ने ठेका मालिक  तथा पुलिस और जिला प्रशासन के साथ इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने के लिए मीडिया का भी धन्यवाद किया।  
इस मौके पर शिव शक्ति विहार आरडब्लूए सचिव संजू शर्मा, शालिनी शर्मा, श्यामा सोनी तरियाल मृदुला शर्मा, मनीषा शर्मा  इंदिरा शर्मा, मधु, सुनीता, हेमा रावत, सीमा,  रूमा दास आदि महिलाएं मौजूद रही। 


Thursday 20 August 2020

सदभावना दिवस के मौके पर अधिकारियों ने ली प्रतिज्ञा


गाजियाबाद। पूर्व प्रधानमंत्री स्व0श्री राजीव गॉधी की जयंती को प्रत्येक वर्ष 20 अगस्त को श्सदभावना दिवसश् के रूप में मनाया जाता है। ’इस उपलक्ष में कलेक्ट्रेट सभागार में अपर जिलाधिकारी भूमि अर्जन मदन सिंह गर्ब्याल की अध्यक्षता में समस्त अधिकारीगण एवं कर्मचारीगण द्वारा सदभावना दिवस प्रतिज्ञा ली गई। इस अवसर पर उन्होंने बताया कि सदभावन का विषय सभी धर्मो, भाषाओं और मजहबों के लोगो के बीच राष्ट्रीय एकता और साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देना है। उन्होंने सभी को सद्भावना दिवस की प्रतिज्ञा दिलाते हुए कहा कि हमें जाति, संप्रदाय, क्षेत्र, धर्म अथवा भाषा का भेदभाव किए बिना सभी भारत वासियों की भावनात्मक एकता और सद्भावना के लिए कार्य करना चाहिए। हम सबको हिंसा का सहारा लिए बिना सभी प्रकार के मतभेद बातचीत और संवैधानिक माध्यमों से सुलझाने चाहिए जिससे समाज में एकता बनी रहे। इस अवसर पर अपर जिलाधिकारी प्रशासन संतोष कुमार वैश्य सहित अन्य अधिकारीगण एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।



स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 में सर्वाधिक अवार्ड प्राप्त करने वाला प्रदेश बना उ0प्र0


लखनऊ। भारत सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी अखिल भारतीय स्तर पर कराये गये स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 में उ0प्र0 राज्य की 19 निकायों ने विभिन्न श्रेणियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान पाने वाले निकायों में अपना स्थान बनाया है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 का परिणाम कोविड-19 के कारण बहुप्रतीक्षित था और पुरस्कृत किये जाने वाले नगरों की सूची को अब आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा घोषित कर दिया गया है। 
यह गौरव की बात है कि स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 के परिणामों के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश, देश में सर्वाधिक पुरस्कार पाने वाला राज्य है। प्रदेश की 19 नगर निकायों को जिनमें दो कैण्ट क्षेत्र भी शामिल हैं, यह सम्मान प्रदान किया जा रहा है। शीर्ष 12 अवार्डों में से 02 अवार्ड उ0प्र0 को मिले। 
अवार्ड का कार्यक्रम 20 अगस्त 2020 को प्रातः 11ः00 बजे वर्चुअल आरम्भ हुआ और मा० मंत्री श्री हरदीप पुरी जी, आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा कार्यक्रम के आरम्भ में स्वच्छ भारत मिशन (नगरीय) के महत्वपूर्ण घटकों से जुड़े विभिन्न सस्थाओं स्वच्छताकर्मीध्लाभार्थियों एवं कचरे का पुनरूपयोग कर आय अर्जित करने वाले स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधियों के साथ सीधे ऑनलाइन संवाद किये जाने के दौरान फिरोजाबाद नगर में कार्य कर रहे स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधियों से भी वार्ता की गई। 
संवाद कार्यक्रम के पश्चात मा0 मंत्री जी द्वारा देश के चुने हुए 12 शहरों को पुरस्कृत किया गया और उक्त कैटेगरी में राज्य के 02 नगर निगमों वाराणसी एवं शाहजहाँपुर के महापौर तथा वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के साथ राज्य स्तर पर उपरोक्त पुरस्कार समारोह में मा0 नगर विकास मंत्री श्री आशुतोष टंडन जी, मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश, नगर विकास के पूर्व प्रमुख सचिय, श्री मनोज कुमार सिंह के साथ वर्तमान प्रमुख सचिय, श्री दीपक कुमार द्वारा प्रतिभाग किया गया।
उपरोक्त 02 नगर निगमों के अतिरिक्त प्रदेश के अन्य 17 निकाय जो सम्मानित किये गये है, वह निम्नवत हैंः-
1-लखनऊ 2-फरीदाबाद, 3-कन्नौज, 4-चुनार, 5-गंगाघाट, 6-आवागढ़ 7-मेरठ कैण्ट -गजरौला 9-मुरादनगर 10-स्याना, 1-पलियाकला 12-मल्लावां, 13-बरूआसागर 14-बकेवर 15-बलदेव 16-अछलदा 17-मथुरा कैण्ट
उल्लेखनीय है व स्वच्छ सर्वेक्षण प्रतियोगिता अखिल भारतीय स्तर पर प्रत्येक वर्ष आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित करायी जाती है और विगत 03 वर्षों से राज्य द्वारा सतत रूप से उत्तरोत्तर प्रगति की गयी है। जहां वर्ष 2018 में राज्य की 03 निकाय और वर्ष 2019 में 14 निकायों को सम्मान मिला था, वहीं इस वर्ष 2020 के सर्वेक्षण परिणाम में यह संख्या बढ़ कर 19 हो गयी है। 



स्वच्छ भारत मिशन (नगरीय) के अन्तर्गत मा0 मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में प्रदेश ने महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। प्रदेश में व्यक्तिगत शौचालयों का लक्ष्य शत-प्रतिशत पूर्ण कर लिया गया है और लगभग 60,000 सीटों के सामुदायिकध्सार्वजनिक शौचालय का निर्माण कराया गया है। प्रदेश की समस्त नगरीय निकायों में महिलाओं के लिये विशेष रूप से पिंक शौचालय का निर्माण कराया गया है। प्रदेश के समस्त निकाय खुले में शौच से मुक्त हो चुके है तथा उन्हें फब्प् से प्रमाणित भी किया जा चुका ह। साथ ही प्रदेश में 413 निकाय व्क्थ़् और 17 नगर निकाय व्क्थ़़् का स्तर हासिल कर चुके हैं। 
प्रतिबंधित प्लास्टिक के संबंध में प्रदेश के सभी नगर निकायों में चलाये गये अभियान के अन्तर्गत 731.59 टन प्लास्टिक जब्त की गई तथा दण्ड स्वरूप रू 10.95 करोड़ का जुर्माना वसूल किया गया है। 
उपरोक्त आयोजित स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 पुरस्कार समारोह के दौरान ही ‘‘स्वच्छ सर्वेक्षण-2020 परिणाम डैश बोर्ड‘‘ लोकार्पण भी किया गया और जिसके बाद उक्त सर्वेक्षण के परिणाम ऑनलाइन उपलब्ध हो गये। 10 लाख से अधिक आबादी वाले नगरों की श्रेणी में भी प्रदेश के कई नगरों द्वारा अपनी रैकिंग में काफी सुधार किया गया है। लखनऊ 12वें स्थान, आगरा 16वें स्थान, गाजियाबाद 19वें स्थान, प्रयागराज 20 स्थान, कानपुर 25वें स्थान और वाराणसी को 27वां स्थान मिला है। कार्यक्रम का प्रसारण विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से व्यापक रूप से कराये जाने हेतु मंत्रालय द्वारा व्यवस्था की गयी है और प्रदेश में भी सभी निकायों में उक्त कार्यक्रम का प्रसारण व्यापक रूप से देखे जाने के प्रबन्ध किये गये।


लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट द्वारा श्री नारायण गुरु का जन्म दिवस समारोह आयोजित


साहिबाबाद। “लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट” द्वारा ज्ञानपीठ केन्द्र 1, स्वरुप पार्क जी0टी0 रोड साहिबाबाद के प्रांगण में “समता क्रान्ति” के प्रणेता, अस्पृश्यता, अगम्यता के घोर विरोधी अन्धविश्वास, आडम्बर, रूढ़िवाद, पाखण्ड, परम्पराओं से आम-जन के मुक्तिदाता श्री नारायण गुरु का “जन्म दिवस समारोह” आयोजित किया गया, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समाजवादी विचारक शिक्षाविद राम दुलार यादव रहे, अध्यक्षता मुकेश शर्मा लोक शक्ति अभियान के संयोजक ने, आयोजन इंजी0 धीरेन्द्र यादव, संचालन विजय मिश्र ने किया, कार्यक्रम में श्री नारायण गुरु के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें स्मरण किया गया, तथा समाज के कमजोर वर्गों में फल वितरित किया गया।
   जन्म दिन समारोह को सम्बोधित करते हुए लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट के संस्थापक / अध्यक्ष राम दुलार यादव ने कहा कि श्री नारायण गुरु का जीवन त्याग, तपस्या, सन्यास से ओतप्रोत था, उन्होंने 19वीं सदी में व्याप्त अशिक्षा, अन्धकार, अन्धविश्वास, अस्पृश्यता को दूर करने में सारा जीवन लगा दिया, वाल्यकाल से ही वे विद्रोही रहे तथा परिवार द्वारा देवता पर चढाने के लिए रखे मेवा, मिष्ठान को पूजा से पहले खा जाते थे, तथा परिवार के विरोध करने पर कहा करते थे कि यदि मै प्रसन्न रहूँगा, तो देवता स्वत: प्रसन्न हो जायेंगें। अन्धविश्वास पर गहरी चोट की थी, जब वे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तभी उन्हें आभाष हो गया था कि समाज में विषमता व्याप्त है, वह अशिक्षा के कारण है, दूसरा कारण आर्थिक रूप से विपन्नता है। उन्होंने लोगों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया तथा कई पुस्तकालय का निर्माण करवाया, स्वास्थ्य के लिए उन्होंने आयुर्वेदिक औषधालय की स्थापना की। श्री नारायण गुरु का मानना था लोगों को आत्मनिर्भर होने के लिए कृषि, व्यापार, उद्योग लगाना चाहिए, तथा तकनीकी शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, आर्थिक दृष्टि से जब समाज ताकतवर होगा और शिक्षित हो जायेगा तो अपने अधिकारों, कर्तव्यों के प्रति सचेत हो समाज की मुख्यधारा में आ जायेगा, अन्धकार से प्रकाश की ओर कदम बढ़ायेगा। उन्होंने महिलाओं के जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन के लिए संस्था का निर्माण किया जिसका संचालन महिलाओं द्वारा ही किया जाता था। उन्होंने सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए पूरे जीवन संघर्ष किया, आज 21वीं सदी में भी हम सामंतवाद, सामाजिक शोषण, आर्थिक असमानता के शिकार है। शैक्षणिक, अध्यात्मिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में भी जातिवाद, धार्मिक पाखण्ड, अन्धकार और अन्धविश्वास से उबर नहीं पाये है। हमें संकल्प लेना है कि हम श्री नारायण गुरु जी के द्वारा सामाजिक परिवर्तन के लिए किये गये कार्यों को आगे बढ़ाते हुए समाज को नई दिशा मिले संघर्ष करते रहेंगें। उनके जन्म दिवस की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 



  कार्यक्रम में भाग लिया, राम दुलार यादव, मुकेश शर्मा, इंजी0 धीरेन्द्र यादव, विजय मिश्र, मोहम्मद सलाम, श्री भगवान, पप्पू, हरिकृष्ण, प्रेम चन्द पटेल, अंकित राय, राजीव गर्ग, मो0 फूल हसन, सुरेश कुमार भारद्वाज, अमर बहादुर, सुभाष यादव, मो0 हीरा, हरिशंकर यादव आदि।


जनता की सेहत से खिलवाड़ है राष्ट्रद्रोह: विधायक नंदकिशोर गुर्जर


लोनी। गुरुवार को लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने जिलाधिकारी गाजियाबाद को पत्र लिखकर क्षेत्र में प्रदूषण एवं जलदोहन कर रही फैक्ट्रियों को तत्काल बन्द करवाने को कहा है। विधायक ने पत्र में कहा है कि लोनी नगर पालिका क्षेत्र के रूपनगर, आर्य नगर, चमन विहार, कृष्णा विहार, लक्ष्मी गार्डन, नाईपुरा, बेहटा, इंद्रापुरी आदि स्थानों पर एनजीटी एवं केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के नियमों का खुलेआम उल्लंघन करते हुए जीन्स रंगाई, बर्फ निर्माण व हानिकारक रसायन आदि की फैक्ट्रियां संचालित की जा रही है। साथ ही विधायक ने कहा कि इन फैक्ट्रियों के पास न तो केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के प्रमाण पत्र है और न ही प्रदूषण विभाग द्वारा प्रदान किया गया अनापत्ति प्रमाण पत्र।
विधायक ने कहा फैक्ट्रियों से क्षेत्र में फैल रही है गंभीर बीमारियां, लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने पर गंभीर धाराओं में दर्ज हो मुकदमा:
विधायक ने पत्र में कहा है कि बर्फ की फैक्ट्रियों द्वारा 'नॉन ड्रिंकिंग' यानी कि कच्चे पानी का लाइसेंस लेकर 'ड्रिंकिंग वाटर' पेयजल का दोहन किया जा रहा है और इनके पास किसी भी प्रकार का कोई इटीपी प्लांट तक नहीं है। प्रदूषण फैला रही फैक्टरियां अपशिष्ट पदार्थों को सीधे ज़मीन में उतार रही है जिससे खतरनाक रसायन भूजल में मिल रहे है और भूजल प्रदूषित हो रहा है। विधायक ने प्रदूषण फैला रही फैक्ट्रियों के आस-पास क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में  प्रदूषित भूजल के कारण जलजनित बीमारियों की शिकायतें प्राप्त होने की बात कहते हुए क्षेत्र में पेयजल संकट गहराने पर चिंता व्यक्त की है। विधायक ने क्षेत्र की जनता के सेहत से खिलवाड़ कर रही इन फैक्ट्रियों द्वारा किये जा रहे प्रदूषण और भूजल-दोहन को राष्ट्रद्रोह बताते हुए इन्हें तत्काल बन्द कर गंभीर धाराओं में फेक्ट्री संचालकों पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की है।


पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी आधुनिक भारत के निर्माता थे: आशीष शर्मा


मोदीनगर। गुरूवार को प्रातः शहर काग्रेंस कमेटी मोदीनगर के तत्वाधान में शहर अध्यक्ष आशीष शर्मा की अध्यक्षता में शहर के कांग्रेसजनों ने आधुनिक भारत निर्माता पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 श्री राजीव गांधी जी की 76वी, जंयती कार्यालय पर मनाई । कार्यक्रम का संचालन पीसीसी सदस्य सुनील शर्मा ने किया।
शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष आशीष शर्मा ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 76वी जयंती के अवसर पर कहा कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को आधुनिक भारत के निर्माता कहा जाता है। उन्होंने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में आधुनिक भारत की नींव रखने की दिशा में काम किया । उन्होनं अपने कार्यो से देश की जनता के दिलांे दिमाग में अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने भारत देश के युवाओं को सरकार चुनने के मौका दिया और युवा वर्ग को 18 वर्ष की आयु में वोट डालने का अधिकार दिया। उन्होनें अपने कार्यकाल में कई ऐसे कार्य जैसे पंचायती राज, औद्योगिक, ग्राम का विकास कैसे हो, जैसे कार्य के महत्वपूर्ण कदम उठायें । जिसके लिए आज भी उन्हें याद किया जाता है।
इस मौके पर मुख्यवक्ताओं राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश शर्मा, शहर कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सुभाष त्यागी , व्यापार प्रकांेष्ठ के संयोजक राधाकृष्ण शर्मा, महासचिव रजत राणा, राहुल शर्मा राष्ट्रीय संयोजक एनएसयूआई ,डा0 मंुजला शर्मा, पंकज सोई ,राम किशन शर्मा, हरिवन्द्र भूटानी, आत्मा प्रकाश शर्मा, संजीव सैन, सुनील कुमार, आकाश वर्मा, नंद किशोर शर्मा, मामता शर्मा, बीना ठाकुर आदि ने सयुक्त रूप से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा किये गये कार्यो पर प्रकाश डालते हुए उन्हें याद किया और कांग्रेस पार्टी को और मजबूत करने का आवहान किया ।
इस मौके पर राकेश भारद्वाज, चांदवीर सिह, सुनील वत्स, अभय शर्मा, गुलवीर भारद्वाज, ईशांत सहगल, हरिश कौशिक, शिवसागर पांडे, अनुभव शर्मा, दिनेश कुमार, अजय, रोहित सिंह, आरिफ रिजवी, हिमाशु कुमार डांगी, अशोक शर्मा, श्रीओम शर्मा, अकिंत कुमार, नीरज कुमार, आदित्य पाण्डे, मोहक, यश, अंशुल रितीक सहित काॅफी संख्या में कांगे्रसजन मौजूद रहे।


गौ रक्षा हिन्दू दल के अध्यक्ष वेद नागर को मिल रही धमकी


दादरी। गौ रक्षा हिन्दू दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष वेद नागर ने एक प्रेस नोट के ​जरिए बताया कि उनको पिछले कई दिनों से जान से मारने की धमकी दी जा रही है वेद नागर को धमकी में कमलेश तिवारी की हत्या का हवाला दिया जा रहा है वेद नागर ने बताया धमकी देने वाले सभी नम्बरों की रिकॉर्डिंग पेनडराइव में कर आज ज़िला पूलिस आयूक्त को लिखित में शिकारी भेजी गयी है वेद नागर ने बताया पूर्व में भी मेरे ऊपर जान से मारने की नियत से हमला किया गया है मेरे द्वारा दर्जनों मुक़दमे कसाई आदियो पर कराये गये है वेद नागर ने बताया मेरे द्वारा योगी आदित्य नाथ जी के आदेश अनुसार बिसाडा कांड का नेतृत्व किया गया है जिसमें बिसाडा कांड के दोरान बिसाडा के पीड़ित लड़कों को योगी जी से मिलवाया था मुख्यमन्त्री बनने के बाद भी योगी जी से मिलवाया था वेद नागर ने बताया मेरी जान को ख़तरा बना हूआ है पूर्व में कई ज़िलों के विधायकों ने मेरी जान को ख़तरा को देखते हूये प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर ख़तरे से अवगत कराया है ज़िला प्रशासन से निवेदन है तुरंत कार्यवाही कर ऐसे लोगों का पर्दाफ़ाश होना चाहिये मेरे द्वारा राष्ट्रीय हित में किये जा रहे कार्यों को देखते हूये गौचर भूमी पर क़ब्ज़ा करने वाले भूमाफ़ियों व गौ हत्या करने वाले कसाई आदि से मेरी जान को ख़तरा है ज़िला प्रशासन को गम्भीरता से लेना चाहिये। वेद नागर ने बताया योगी आदित्य नाथ जी को भी लिखित में पत्र भेजकर इस गम्भीर मामले से अवगत कराया गया है।


गाजियाबाद प्राइवेट चिकित्सक वेलफेयर एसोसिएशन की मासिक बैठक सम्पन्न


गाजियाबाद। गाजियाबाद प्राइवेट चिकित्सक वेलफेयर एसोसिएशन की मासिक बैठक 107 एलजीएफ दुर्गा टावर आर डी सी राजनगर एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष बी के शर्मा हनुमान की अध्यक्षता में संपन्न हुई बी के शर्मा हनुमान ने बताया कि प्राइवेट चिकित्सक वेलफेयर एसोसिएशन रजिस्टर्ड के तत्वाधान में समाज हित, राष्ट्र हित, आयुर्वेद चिकित्सकों की रक्षार्थ व देश की एकता, अखंडता, संस्कृति, व आयुर्वेदिक चिकित्सा वैध परंपराओं तथा देश को समृद्धशाली बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इतिहास साक्षी है कि चिकित्सक चाहे कोई भी पेथी से अपनी योग्यता हासिल की हो ।वह सर्वे भवंतु सुखिनः तथा विश्व के प्राणी मात्र के कल्याण की कामना करने वाला है प्राइवेट चिकित्सक वेलफेयर एसोसिएशन की ऐतिहासिक व सामाजिक प्रतिष्ठा को निरंतर बनाए रखने हेतु, व संस्थापक अध्यक्ष बी के शर्मा हनुमान के सिद्धांतों व संस्कारों से प्रेरित प्राइवेट चिकित्सक वेलफेयर एसोसिएशन रजिस्टर्ड आपसे अपेक्षा करती है कि संगठन के मूल उद्देश्यौ को  साकार रूप देने हेतु। इस महान अभियान में सहयोग प्रदान करेंगे ।आज दिनांक 20,8, 2020 को आपकी संगठन के प्रति जागरूकता, एवं सक्रियता, एवं कर्मठता की दृष्टिगत करते हुए आपको एसोसिएशन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देते हुए। डॉ डीपी नागर को कार्यकारी अध्यक्ष  पद पर मनोनीत किया जाता है और डॉक्टर मुसव्विर अली को  मीडिया प्रभारी व डॉक्टर सपन सिकदर को संगठन मंत्री का कार्यभार सौंपा गया है ।हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास भी है। कि प्राइवेट चिकित्सक वेलफेयर एसोसिएशन के व्यापक प्रचार-प्रसार तथा उद्देश्यों की पूर्ति एवं आजीवन सदस्य बनाने में अपना अतुलनीय योगदान देते हुए। आप संगठन को सशक्त संबल प्रदान करेंगे तथा एसोसिएशन के संगठन एवं हितों की रक्षा में पूर्ण समर्पण भावना से हमारा सहयोग करेंगे एवं समय-समय पर अपने द्वारा एसोसिएशन के लिए किए गए कार्यो की प्रगति की सूचना से संस्थापक अध्यक्ष को अवगत कराते रहेंगे। भगवान धन्वंतरी का  अनुग्रह  एवं आशीर्वाद सदा आप सब को प्राप्त हो इसी मंगल कामना के साथ।
बी के शर्मा हनुमान
संस्थापक अध्यक्ष प्राइवेट चिकित्सक वेलफेयर एसोसिएशन


ब्रह्मचर्य ईश्वर में विचरण, संयम और कर्तव्यों का पालन करना है


वेद एवं वैदिक साहित्य में ब्रह्मचर्य की चर्चा मिलती है। प्राचीन काल में मनुष्य जीवन को चार आश्रमों में बांटा गया था। प्रथम आश्रम ब्रह्मचर्य आश्रम कहलाता था। इसके बाद गृहस्थ आश्रम का स्थान था। ब्रह्मचर्य आश्रम जन्म से 25 वर्ष की आयु तक मुख्य रूप से माना जाता है परन्तु ब्रह्मचर्य का पालन मनुष्य को मृत्युपर्यन्त करने का विधान है। शास्त्रों में ब्रह्मचर्य की बड़ी महिमा गाई गई है। यहां तक कहा गया है ब्रह्मचर्य रुपी तप के पालन से राजा राष्ट्र की भली प्रकार से रक्षा कर सकता है। ब्रह्मचर्य के पालन से यवुती अपने सदृश युवा पति को प्राप्ती करती है। ब्रह्मचर्य का पालन योगदर्शन में भी आवश्यक कहा गया है। ब्रह्मचर्य को पाचं यमों में सम्मिलित किया गया है। जो मनुष्य ब्रह्मचर्य का पालन नही करता उसका योग सफल नहीं होता। मनुष्य को स्वस्थ रहने, शारीरिक, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति करने के लिये ब्रह्मचर्य पालन की महती आवश्यकता होती है। ब्रह्मचर्य के पालन से मनुष्य का शरीर स्वस्थ, निरोग, बलवान, विद्या ग्रहण करने की क्षमताओं से युक्त, दीर्घायु तथा यशस्वी बनता है। ब्रह्मचर्य के पालन से ही मनुष्य व देव मृत्यु रूपी दुःख को सहजता से पार होकर ब्रह्मलोक व मोक्ष को प्राप्त होकर जन्म व मरण के बन्धनों से छूट जाते हैं। ब्रह्मचर्य की महिमा अपरम्पार है। विदेशी विधर्मियों व पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव तथा वैदिक धर्म की विशेषताओं से दूर होने के कारण मनुष्य ब्रह्मचर्य जैसी अमृतमय महौषधि से दूर हो गया है जिसका परिणाम हम अल्पायु में नाना प्रकार के रोगों व अकाल मृत्यु के रूप में पाते हैं। शरीर को स्वस्थ रखने तथा विश्व में भारत को गौरवपूर्ण स्थान दिलाने के लिए हमें ब्रह्मचर्य की उपेक्षा छोड़कर इसके यथार्थ महत्व को जानकर इसका सेवन करना होगा जिससे मनुष्य को वह सुख प्राप्त होगा जो साधरणतया आधुनिक व भौतिक जीवन जीने वाले मनुष्यों को प्राप्त नहीं होता। 
ब्रह्मचर्य ब्रह्म अर्थात् ईश्वर में अपनी आत्मा में लगाने व उसमें ही अवस्थित रहने को कहते हैं। ब्रह्म इस संसार को उत्पन्न करने तथा पालन करने वाली शक्ति है और इसी के द्वारा सृष्टि की अवधि पूरी होने पर प्रलय भी की जाती है। इस सृष्टि की आधेय शक्ति ब्रह्म सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अनादि व नित्य है। उस ब्रह्म को उसके यथार्थस्वरूप में जानना सभी मनुष्यों का प्रथम कर्तव्य है। ब्रह्म को धार्मिक व ज्ञानी माता-पिताओं सहित आचार्यों के उपदेशों से जाना जाता है। वेद एवं वैदिक ग्रन्थों के स्वाध्याय से भी ब्रह्म अर्थात् ईश्वर को जाना जाता है। आर्य विद्वानों ने ईश्वर विषय पर अनेक उत्तम ग्रन्थों की रचना की है। उन ग्रन्थों को पढ़कर ब्रह्म को जाना जा सकता है। ऋषि दयानन्द का सत्यार्थप्रकाश, इसका प्रथम व सप्तम् अध्याय, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, आर्याभिविनय, ऋषि दयानन्द एवं आर्य विद्वानों के वेदभाष्य, आर्य विद्वानों के ग्रन्थ स्वाध्याय-सन्दोह, वेदमंजरी, श्रुति-सौरभ, वैदिक विनय आदि भी ईश्वर विषयक ज्ञान में सहायक हैं। ईश्वर को जानकर मनुष्य ईश्वर का उपासक बनता है। सद्ज्ञान व उपासना से ही मनुष्य अपनी इच्छाओं को नियंत्रित कर उन्हें सन्मार्ग पर चलाता है जिससे वह इन्द्रियों के अनेक दोषों व उनके हानिकारक प्रभावों से बच जाता है। ब्रह्मचर्य संयम को भी कहते हैं। सभी इन्द्रियों पर पूर्ण संयम रखना ब्रह्मचर्य होता है। अपनी सभी इन्द्रियों को संयम वा नियंत्रण में रखना और उन्हें मर्यादा के अनुसार चलाना व उनका उपयोग लेना ब्रह्मचर्य ही है। ब्रह्मचर्य में हम अपनी पांच ज्ञान व पांच कर्म इन्दियों का अपने शरीर व आत्मा की उन्नति के लिये उपयेाग करते हैं। उनका दुरुपयोग किंचित नहीं होने देते। यह भी ब्रह्मचर्य ही है। ब्रह्मचर्य पालन से शरीर में शक्ति का जो संचय होता है उसी से मनुष्य स्वाध्याय व साधना पर चल कर ईश्वर को जान पाता है और इसी से वह जीवन के लक्ष्य ईश्वर का साक्षात्कार करने में सफल होता है। यही जीवन मार्ग हमें वेदाध्ययन तथा ऋषियों के ग्रन्थों का अध्ययन करने पर विदित होता है। स्वाध्याय एवं उपासना करना ब्रह्मचर्य से युक्त जीवन के आधार है। इससे मनुष्य के जीवन की रक्षा सहित ज्ञान व बल की उन्नति होती है। ब्रह्मचर्य की इन कुछ विशेषताओं के कारण ही रामायणकाल में हनुमान जी, महाभारत काल में भीष्म पितामह तथा आधुनिक काल में ऋषि दयानन्द ने ब्रह्मचर्य का सेवन कर अनेक महत्वपूर्ण महान कार्यों को सम्पादित किया। यदि यह महान आत्मायें ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली न होती तो इनके जीवन की जिन उपलब्धियों पर सभ्य संसार गौरव करता है, वह शायद इनके जीवन में न होती। 
महर्षि दयानन्द के जीवन पर दृष्टि डालते हैं तो उनका जीवन अनेक महान कार्यों को सम्पादित करने वाला अपूर्व जीवन दृष्टिगोचर होता है। वह ऐसे महापुरुष थे जिनके समान विश्व में अब तक कोई महापुरुष उत्पन्न नहीं हुआ। सभी महापुरुषों ने अपने समय में अनेक महान कार्यों को किया परन्तु जिन चुनौतियों का ऋषि दयानन्द को सामना करना पड़ा, वैसी चुनौतियां अन्य महापुरुषों के जीवन में देखने को नही मिलती। ऋषि दयानन्द के समय में वैदिक धर्म एवं संस्कृति अधोगति को प्राप्त थी। देश की स्वतन्त्रता विधर्मियों ने वैदिक धर्म में आयी विकृतियों के कारण छीन ली थी। हम पर शताब्दियों से नारकीय अत्याचार किये जा रहे थे। ऐसा कोई महापुरुष उत्पन्न नहीं हुआ जो हमें इन आघातों से बचाता। ऐसे समय में ऋषि दयानन्द (1825-1883) का प्रादुर्भाव हुआ था। उन्होंने संसार में फैली हुई अविद्या का अध्ययन किया था। इसके कारण व समाधान ढूंढने में भी उन्हें सफलता मिली थी। उन्होंने पाया था कि वेदाध्ययन में जो बाधायें आयी हैं उन्हीं से देश व विश्व अविद्या फैली है और अन्याय, पक्षपात, शोषण, अत्याचार व अन्य अन्धविश्वास व कुरीतियां समाज में फैली हैं। यही मनुष्य जाति की अधोगति का कारण बनी हैं। इन्हें दूर करने के लिये ऋषि दयानन्द ने सृष्टि की आदि में ईश्वर प्रदत्त वेद ज्ञान का देश देशान्तर में प्रचार किया। इससे अविद्या के बादल छंटे थे। हिन्दू जाति का विभिन्न अवैदिक मतों द्वारा किया जाने वाला धर्मान्तरण वा मतान्तरण रूका था अथवा कम हुआ था। उनके अभियान से देश व समाज उन्नति को प्राप्त हुआ। देश को स्वतन्त्रता प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर करने की प्रेरणा भी ऋषि दयानन्द की ही देन है। देश से अविद्या को दूर कर उसे विद्या व ज्ञान से युक्त करने का स्वप्न भी ऋषि ने देखा था तथा अविद्या व अज्ञान को दूर करने के लिये गुरुकुलीय शिक्षा का प्रचलन करने की प्रेरणा भी उन्होंने की थी जिसका उनके अनुयायियों ने पालन किया। इस कारण से आज हमारे पास वेद एवं वैदिक साहित्य के शताधिक व सहस्रों विद्वान है। आधुनिक शिक्षा के लिये भी आर्यसमाज ने डीएवी स्कूल व कालेज खोल कर देश को उन्नत करने का महनीय कार्य किया है। 
ऋषि दयानन्द ने अपने जीवन में समाज कल्याण तथा देशोन्नति सहित ईश्वर की उपासना के क्षेत्र में जिन अविद्यायुक्त कृत्यों का प्रकाश कर उपासना की सत्य विधि का प्रकाश किया उसके पीछे ऋषि दयानन्द का ब्रह्मचर्य से युक्त जीवन ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यदि ऋषि दयानन्द आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन न करते तो जो उलब्धियां उन्हें अपने जीवन में प्राप्त हुई तथा जो उपलब्धियां देश को प्राप्त हुई हैं वह कदापि नहीं होती। उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए ज्ञान प्राप्ति, ईश्वर प्राप्ति तथा समाज सुधार के क्षेत्र में जो पुरुषार्थ किया, वह उनके ब्रह्मचर्य रूपी तप की ही देन थी। जीवन में सबसे बड़ा तप यदि कोई है तो वह ब्रह्मचर्य ही है। इस व्रत का जीवन भर पालन करना अत्यन्त कठिन एवं प्रायः असम्भव ही है। इसी तप व व्रत का ऋषि दयानन्द ने सफलतापूर्वक आजीवन पालन किया था। एक बार उनसे पूछा गया कि क्या आपके मन में काम विषयक विचार कभी नहीं आये? इस प्रश्न को सुनकर ऋषि दयानन्द मौन हो गये थे। कुछ दूर बाद अपने पूरे जीवन पर दृष्टि डालकर उन्होंने कहा था कि वह जीवन भर ईश्वर के चिन्तन, विद्या के अर्जन व प्रचार के कामों में इतने व्यस्त रहे कि काम का विचार उनके मन में कभी उत्पन्न नहीं हुआ। यदि काम ने कभी उनके निकट आने की चेष्टा की भी होगी तो वह द्वार पर खड़ा अवकाश मिलने की प्रतीक्षा करता रहा होगा। ऐसा अवसर न मिलने पर वह स्वयं लौट गया होगा। ब्रह्मचर्य के पालन की इच्छा करने वाले युवाओं व स्त्री-पुरुष सभी को पं. लेखराम, स्वामी सत्यानन्द, पं. देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय तथा डा. भवानीलाल भारतीय आदि आर्य विद्वानों द्वारा लिखित ऋषि दयानन्द के जीवन चरित अवश्य पढ़ने चाहियें। इससे उन्हें अनेक प्रेरणायें प्राप्त होगीं और उनका जीवन भी ऋषि दयानन्द की प्रेरणा से उन्नत, सफल व महान बनेगा। 


 ब्रह्मचर्य विषय पर प्रवर वैदिक विद्वान स्वामी ओमानन्द सरस्वती तथा डा. सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार आदि ने विषयक केन्द्रित उच्च कोटि के ग्रन्थों का प्रणयन किया है। सभी बन्धुओं को इन ग्रन्थों को पढ़ना चाहिये। इन ग्रन्थों को पढ़कर ब्रह्मचर्य का सत्यस्वरूप व इनसे जीवन में होने वाले लाभों का ज्ञान प्राप्त होता है। इससे मनुष्य अनेक बुराईयों व पापों से बच जाता है। इसके परिणामस्वरूप उसे सुख व यश की प्राप्ति होती है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से ही सभी दुःखों की निवृत्तिरूप मोक्ष की प्राप्ति भी सम्भव होती है। अतः शरीर व आत्मा की उन्नति तथा दुःखों की निवृत्ति के लिये वैदिक मान्यताओं के अनुरूप ‘‘ब्रह्मचर्य” का पालन सभी को करना चाहिये। यह आश्चर्य है कि हमारा आधुनिक ज्ञान-विज्ञान स्वास्थ्य एवं जीवन उन्नति के इस महान साधन की उपेक्षा करता रहा है और अब भी कर रहा है। किशार व युवा पीढ़ी को ब्रह्मचर्य का यथार्थ ज्ञान एवं महत्व विशेष रूप से विदित होना चाहिये। ब्रह्मचर्य के पालन से ही हमारे देश की युवापीढ़ी उन्नति को प्राप्त हागी जिससे देश, धर्म एवं मानवता की भी उन्नति होगी। ब्रह्मचर्य के पालन से जीवन अपने लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति की ओर बढ़ सकता है। इससे मनुष्य का परजन्म सुधरेगा और मृत्यु के समय में उद्विग्नता व पश्चाताप न होकर शान्ति होगी। 



-मनमोहन कुमार आर्य


Wednesday 19 August 2020

विश्व मानवतावादी दिवस पर आर्य गोष्ठी सम्पन्न


गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद की ओर से विश्व मानवतावादी दिवस पर ऑनलाइन आर्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।यह कोरोना काल मे परिषद का 76वां वेबिनार था।
मुख्य अतिथि सी बी सुरतिया (पूर्व उपायुक्त,दिल्ली पुलिस) ने कहा कि प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को विश्व मानवतावादी दिवस मनाया जाता है।यह दिन उन लोगों की स्मृति में मनाया जाता है जिन्होंने विश्व स्तर पर मानवतावादी संकट में अपनी जान गंवाई या मानवीय उद्देश्यों के कारण दूसरों की सहायता हेतु अपने प्राणों की बाजी लगा दी हो।उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम सभी को मानवीय संवेदनाओं का ध्यान रखते हुए अपने कर्मों को करना चाहिए।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि आज के समय मे विश्व भर में फैली अशांति और संघर्ष में लाखों लोग अपने देश से विस्थापित हुए हैं।ऐसे लोगों की संख्या साढ़े 6 करोड़ से अधिक है।बच्चों को सशस्त्र समूहों में भर्ती किया जाता है और उन्हें लड़ाइयों में झोंक दिया जाता है। महिलाओं का उत्पीड़न और अपमान किया जाता है।राहतकर्मी मदद करते हैं और चिकित्साकर्मी जरूरतमंदों को राहत पहुंचाते हैं,इसलिए अक्सर उन्हें भी निशाना बनाया जाता है और धमकियां दी जाती हैं।आर्य समाज का छठा नियम कहता है कि संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात शारीरिक,आत्मिक व सामाजिक उन्नति करना वेद की आज्ञा भी मानव कल्याण के लिए हीं है। विश्व के सभी देशों को कठोर कानून बना कर इस प्रकार के अपराधों पर रोक लगाने का संकल्प लेना चाहिए। 
अध्यक्षता करते हुए आर्य नेत्री विजयारानी शर्मा ने कहा कि आज के समय में मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन बना बैठा है आज वेद व महर्षि दयानन्द के उपदेशों को जीवन मे अपना कर मानवता को बचाया जा सकता है।
प्रान्तीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि कोरोना काल मे इस प्रकार के आयोजन ने सभी को मानसिक रूप से मजबूत बनाया है लोग तनाव व अवसाद से मुक्त हुए हैं।सर्वे भवन्तु सुखिनः का मंत्र भी मानवता का परिचायक है।
प्रधान शिक्षक सौरभ गुप्ता ने कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए कहा कि आज के दिन प्रत्येक मनुष्य को एक दूसरे की सहायता करने का संकल्प ले कर मानवता की रक्षा करनी चाहिए।
संगीतज्ञ संगीता आर्या 'गीत', देवेन्द्र गुप्ता, किरण सहगल,संध्या पाण्डेय,नरेश खन्ना,उषा मलिक, विचित्रा वीर,सुषमा वर्मा,नरेन्द्र आर्य 'सुमन',शकुन्तला वर्मा,नरेश चंद आर्य आदि ने ओजस्वी गीतों से समा बांध दिया।
आचार्य महेंद्र भाई,यशोवीर आर्य, प्रकाशवीर शास्त्री,पुष्पा शास्त्री, सुरेन्द्र शास्त्री,अमरनाथ बत्रा,डॉ रचना चावला,चंद्रप्रभा अरोड़ा, आशा कपूर आदि उपस्थित थे।
भवदीय,
प्रवीण आर्य


जलभराव से सड़के दिखी गड्ढ़ा मुक्त :पं मनमोहन झा गामा


गाजियाबाद। ये तस्वीर यू पी बॉर्डर की है जहाँ सूचना पट पर लिखा जाना अनिवार्य है कि आपका योगी सरकार गाजियाबाद उत्तप्रदेश के आगमन पर हार्दिक अभिनंदन करता है।
हद हो गया साहब गड्ढा मुक्त सड़क तो सरकार नही कर पाया, परंतु जीडीए एवं ठेकेदार की लापरवाही से आज अप्सरा बॉर्डर पर गड्ढा बिल्कुल नजर नही आ रहा, मेन जीटी रोड दिल्ली से यूपी में घुसते ही आपको एहसास हो जाएगा कि हम जुमले बाज सरकार के प्रदेश में प्रवेश हो गया।



    झूठी सरकार झूठे वादे सरकार के अधिकारी वे परवाह कौन सुनेगा किसको सुनाए इसलिए जनता चुप बैठी है परंतु 2022 में साइकिल चलेगी कीचड़ हटेगा ,जनता पैदल तो छोड़े साहब गाड़ी से भी चलने को डरता है भगवान भरोसे विकास की गंगा बह रही है,विधायक सुनील शर्मा जी अस्वस्थ्य है उनके स्वस्थ होने की कामना करता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि 3 वर्षो में जब स्थिति जस की तस है तो आने वालों 2 वर्षो में विधायक जी से ढाक के तीन पात की उम्मीद करता हूँ। 
पं मनमोहन झा गामा जिला उपाध्यक्ष समाजवादी पार्टी प्रभारी साहिबाबाद विधानसभा


समता क्रान्ति के प्रणेता श्री नारायण गुरु के जन्म दिवस पर विशेष


राम दुलार यादव
समता क्रान्ति के प्रणेता, अस्पृश्यता, अगम्यता के घोर विरोधी, अशिक्षा, अंधविश्वास, रूढ़िवाद, परम्पराओं और प्रथाओं से समाज को मुक्ति का सन्देश देने के लिए प्रयत्नशील, महामानव श्री नारायण गुरु का जन्म 20 अगस्त 1854 को केरल की राजधानी त्रिवेन्द्रम के चम्पदंती कस्बे में इढवा जाति में हुआ था। वे धार्मिक पाखण्ड के घोर विरोधी थे, देवी, देवताओं के रखे मेवा, मिठाइयों को परिवार द्वारा चढाने से पहले खा जाते थे, तथा कहते थे कि मै खुश रहूँगा तो देवगण स्वयं प्रसन्न रहेंगें। उनकी बुद्धि तीक्ष्ण, याददास्त बेजोड़ थी। वे जब ग्रामीण पाठशाला में अध्ययन करने लगे तो अल्प समय में ही मलयालम, संस्कृत व तमिल भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। इसके बाद इन्हें करुनाग पल्ली स्थित पटुपल्ली रामन आशन के स्कूल में अध्ययन के लिए भेजा गया, वह एक प्रसिद्द शिक्षण संस्थान था, इनकी विलक्षण प्रतिभा को देखकर शिक्षक भी चकित हो गये, इन्हें स्कूल मानीटर और सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने वहां अपना प्रभाव जमा लिया, तथा उनके विचार में यह घर कर गया कि अज्ञानता और अन्धविश्वास ही सबसे बड़ी सामाजिक बुराई है, जिसने जातिवाद, धार्मिक पाखण्ड और अस्पृश्यता समाज में पैदा किया है, मै संकल्प लेता हूँ कि इसे जड़-मूल से नष्ट करने के लिए काम करूँगा, मानवतावादी समाज की स्थापना करूँगा।
नारायण गुरु के समय में केरल में जातिवादी व्यवस्था चरम पर थी, सामाजिक व्यवस्था गर्हित अवस्था में थी, ब्राह्मण, नायर से 32 फीट, नायर, इढवा से 64 फीट, इढवा, पुतया और परया से 1000 फीट की दूरी से बात करने की प्रथा थी, वह भी बोलते समय मुंह को एक हाथ से बन्द रखना पड़ता था, कि प्रभू, मनुवादी अपवित्र न हो जाय। कितना कलंक और अभिशाप पूर्ण गली-सड़ी व्यवस्था अहंकारयुक्त उसके बाद भी शिक्षा ग्रहण कर लेने पर भी इनके साथ अमानवीय व्यवहार में कोई कमी नहीं आती थी, न सरकारी नौकरी में प्रवेश मिलाता था, न मन्दिर में पूजा भी कर सकते थे, मन्दिर की बाहरी दीवार से एक निश्चित, निर्धारित दूरी से पूजा देखने की व्यवस्था थी, इतना घोर अन्याय मानव के द्वारा मानव का देख श्री नारायण गुरु द्रवित हो गये, तथा उन्होंने घर छोड़ दिया। सन्यासी का जीवन जीते हुए गाँव-गाँव जाकर दीन-दुखियों, पिछडो, दलितों, मुस्लिम, ईसाईयों में भी अज्ञानता, रूढ़िवाद, अस्पृश्यता के विरुद्ध अलख जगाते रहे, तथा मुक्ति का मार्ग बताते रहे। उनका जन-जन में सन्देश था कि मानव जाति एक है, शराब जहर है, न उसका उत्पादन करना चाहिए, न दूसरों को देना चाहिए, न स्वयं पीना चाहिए। लोगों के कल्याण के लिए उन्होंने “नारायण धर्म नारायण गुरु समझ गये थे जनता की प्रगति और समृद्धि में सबसे बड़ी बाधा अशिक्षा, अज्ञानता, अन्धविश्वास, परम्पराएं, प्रथाएँ, धार्मिक पाखण्ड है। यह शिक्षा से ही दूर हो सकता है, तथा संगठित हो शक्ति प्राप्त कर स्वतंत्रता मिल सकती है, अन्धविश्वास, जाति, वर्ण व्यवस्था, असमानता, अस्पृश्यता, पर कठोर प्रहार किया, उनके कार्य से प्रभावित हो महात्मा गाँधी, विनोवाभावे, रवीन्द्रनाथ टैगोर व स्वामी श्रद्धानंद उनसे मिलने उनके आश्रम में गये, उन्होंने अनेकों पुस्तकालय, कताई-बुनाई केन्द्र, काजीवरम में आयुर्वेदिक औषधालय स्थापित किये। वे सभी धर्मों का आदर करते थे, तथा समतामूलक समाज बनाने के प्रबल पक्षधर थे, उनका मानना था सबको समान अधिकार मिले, सभी शिक्षित हो, देश, समाज को संपन्न बनाने के लिए पूरी ताकत लगायें, अंधभक्ति, अन्धविश्वास, अंधश्रद्धा के घोर विरोधी रहे| नारायण  गुरु महिलाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए असहाय व अनाथ महिलाओं के लिए “सेविका समाज” संस्था स्थापित की, यह संस्था महिलाओं द्वारा ही संचालित थी। उन्होंने मानव को शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा अवसर प्राप्त हो अनगिनित पुस्तकालयों की सथापना की।



    19वीं सदी में भारत की दशा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक दृष्टि से दयनीय थी, केरल भी उससे अछूता नहीं था, यहाँ नवजागरण श्री नारायण गुरु के माध्यम से ही चरमोत्कर्ष पर पहुंचा व जीवन के हर क्षेत्र कला, साहित्य, विज्ञान, धर्म, राजनीति तथा समाज में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन का सूत्र पात हुआ। उन्होंने दैत्य पूजा, शराब, जीवबलि को समाप्त करवाया। उन्होंने अपने अनुयायिओं को शिक्षा, उद्योग धंधे, कृषि, व्यापार, गृह उद्योग, तकनीक ज्ञान प्राप्त करने के लिए लोगों को जागृति करने में लगाया। मानव-मानव में कोई अन्तर नहीं है, समान अवसर प्राप्त होने पर सभी संपन्न हो सकते है। जाति, रंग, नस्ल, वेशभूषा में विभिन्नता के बाद भी सब एक जाति के हैं। 
    रैपेलियसप्रोफिट के लेखक का कहना है कि “नारायण गुरु सही मायने में क्रान्तिकारी थे, जीवन के हर क्षेत्र में पाखंडियों के विरुद्ध उन्होंने बगावत की, वे सन्यासी थे, वे समता, न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के आकांक्षी थे। जातियता को निर्ममूल के लिए उन्होंने आन्दोलन किया। महामानव नारायण गुरु ने वंचितों, दलितों, अस्पृश्यों को अधिकारों, कर्तव्यों का बोध कराते हुए सम्मान से आत्मनिर्भर बनने का सन्देश दिया, जातिविहीन, वर्गविहीन समाज की स्थापना के लिए, जाति बंधन की मुक्ति के लिए सारा जीवन लगा दिया”।
  मानव जाति को शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, उद्योग, तकनीक का रास्ता दिखाकर समता क्रांति का प्रणेता वह महामानव 20 सितम्बर 1928 को शिवगिरी में संसार से विदा ले प्रकृति के गोद में स्थान बनाया। हमें इस महामानव के त्याग, बलिदान, मानव समाज के लिए किये गये क्रान्तिकारी परिवर्तन से प्रेरित हो देश, समाज में सद्भाव, भाईचारा, न्याय, बंधुत्व, प्रेम, सहयोग कायम करना चाहिए।
                                                            लेखक
राम दुलार यादव                                                                   शिक्षाविद, समाजवादी चिन्तक                                    


“आर्यसमाज सत्य के प्रचार और असत्य को छुड़ाने का एक सार्वभौमिक आन्दोलन है”

 


आर्यसमाज विश्व का ऐसा एक अपूर्व संगठन है जो किसी मनुष्य व महापुरुष द्वारा प्रचारित मत का प्रचार नहीं करता अपितु सृष्टि में विद्यमान सत्य की खोज कर सत्य का स्वयं ग्रहण करता व उसके प्रचार द्वारा विश्व के सभी मनुष्यों से उसे अपनाने, ग्रहण व धारण करने का आग्रह करता है। ऋषि दयानन्द के जीवन पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि उन्होंने अपने परिवार में प्रचलित अतार्किक मूर्तिपूजा का इस कारण से विरोध किया था कि मूर्ति में अपने उपर ऊछल कूद करने वाले चूहों को भी हटाने व भगाने की शक्ति नहीं है। उन्होंने अपने पिता व पण्डितों से मूर्ति के ईश्वर होने व उसमें दैवीय शक्ति होने पर प्रश्न किये थे? तत्कालीन कोई विद्वान उनकी शंकाओं का समाधान नहीं कर सका था। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि ईश्वर के नाम पर बनाई जाने वाली मूर्तियों व उनकी पूजा किये जाने पर भी उन मूर्तियों में ईश्वर की दैवीय शक्ति का किंचित न्यून अंश भी विद्यमान नहीं है। उसके बाद ऋषि दयानन्द ने तथा उनके अनुगामी सभी बुद्धिमान विवेकयुक्त मनुष्यों ने भी इस बात का अनुभव किया। वेद सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर से चार ऋषियों को प्राप्त ज्ञान है। उनमें ईश्वर के सत्यस्वरूप का विस्तार से वर्णन है। ईश्वर की उपासना का भी वेदों में विस्तृत वर्णन है। वेदों के आधार पर ही ऋषि पतंजलि ने ईश्वर की उपासना की विधि व उसके विवेचन पर ‘‘योगदर्शन” ग्रन्थ का प्रणयन किया था। इनमें से किसी भी ग्रन्थ में ईश्वर की मूर्ति बनाकर पूजा व उपासना करने का विधान नहीं है। विचार व परीक्षा करने पर भी मूर्तिपूजा द्वारा ईश्वर की पूजा व उपासना होनी सिद्ध नहीं होती और न ही इससे मनुष्य को कोई लाभ होता है। हानियां अवश्य होती हैं जिनका दिग्दर्शन ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ के ग्यारहवें समुल्लास में कराया है। अतः ईश्वर का सत्यस्वरूप जानने के बाद ईश्वर की उपासना का एक ही विधान विदित होता है और वह है ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभाव का चिन्तन, मनन, विचार व ध्यान करते हुए उसकी उसके सत्य गुण, कर्म व स्वभाव से स्तुति, प्रार्थना व उपासना करना। ऐसा ही आदि काल से वर्तमान काल के सभी धार्मिक विद्वान, विचारक, चिन्तक, वेदानुयायी करते आ हैं और इस ध्यानोपासना मार्ग से ही ईश्वर को काई भी मनुष्य प्राप्त कर सकता है। ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग यही है कि उसके वेदवर्णित गुणों का चिन्तन, मनन, विचार व ध्यान किया जाये और अष्टांग योग का अभ्यास कर समाधि अवस्था को प्राप्त होकर उसके ध्यान के द्वारा उसका साक्षात् किया जाये। 
ऋषि दयानन्द को अपने जीवन में ईश्वर का साक्षात्कार करने तथा वेदाध्ययन से जो यर्थाथ ज्ञान प्राप्त हुआ उसमें उन्होंने पाया कि संसार में ईश्वर ही सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, सृष्टिकर्ता, अनादि व नित्य स्वरूप वाला है़। ईश्वर से इतर जीवात्मा सूक्ष्म, अल्प प्रमाण, एकदेशी, ससीम, अल्पज्ञ एवं अल्पशक्तियों वाली जन्म व मरण धर्मा सत्ता है। जीवात्मा का कल्याण ईश्वर को जानकर वेद की ज्ञान-विज्ञान पर आधारित ध्यान विधि से स्तुति, प्रार्थना व उपासना करने से होता है। इस उपासना में मूर्तिपूजा का कोई स्थान व महत्व नहीं है। ईश्वर सर्वव्यापक होने से मूर्ति के भीतर व बाहर दोनों स्थानों पर होता है। वह हमारी आत्मा के भीतर व बाहर तथा शरीर के भीतर व बाहर सर्वत्र विद्यमान है। वह संसार के प्रत्येक पदार्थ व वस्तु में व्यापक व समाया हुआ है। अतः सभी पदार्थों व वस्तुओं में उसकी समान रुप से उपस्थिति व विद्यमानता को जानना, उसका अनुभव करना व उसके गुणों का चिन्तन करते हुए उससे एकाकार हो जाना ही उसकी स्तुति, प्रार्थना व उपासना होती है। इस वेदादि सम्मत उपासना ही संसार के प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य व धर्म होता है। इन तथ्यों व रहस्यों का देश व विश्व में प्रचार करने के लिये ऋषि दयानन्द को आर्यसमाज नामी संगठन को स्थापित करना पड़ा था। 
ऋषि दयानन्द ने अपने जीवन में देश के अधिकांश भागों का भ्रमण किया था। वह देश के अधिकांश धार्मिक स्थानों पर गये थे जहां कोई विद्वान, मनीषी, चिन्तक व विचारक हो सकता था। वह हिमालय प्रदेश के धर्म स्थलों सहित पर्वतों की कन्दराओं में भी गये और वहां उन्होंने तपस्वी योगी व ध्यान व समाधि का अभ्यास करने वाले सिद्ध पुरुषों व विद्वानों की खोज की थी। उन्होंने सभी मनीषी व विद्वानों से वार्तालाप कर उनसे ज्ञान प्राप्त किया था। उन्होंने अपने समय में देश में उपलब्ध समस्त धार्मिक साहित्य का भी अध्ययन किया था। वह संस्कृत के विद्वान थे, अतः प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों का अध्ययन करने में उन्हें किसी प्रकार की सुविधा नहीं होती थी। अपनी अध्ययनशीलता के कारण ही वह समाधि अवस्था को प्राप्त कर ईश्वर का साक्षात्कार लेने के बाद भी सन्तुष्ट नहीं हुए थे। उनकी विद्या की भूख अतृप्त बनी हुई थी। ईश्वर का साक्षात्कार कर लेने पर भी विद्या की न्यूनता के कारण सन्तुष्ट नहीं थे। अपने गुरु स्वामी पूर्णानन्द सरस्वती से उन्हें मथुरा के दण्डी स्वामी प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द जी के वेदज्ञानी होने का ज्ञान हुआ था। उनकी प्रेरणा से ही सन् 1860 में वह स्वामी विरजानन्द जी को प्राप्त हुए और तीन वर्ष तक उनके सान्निध्य में रहकर वेद व वेदांगों का अध्ययन किया। इस अध्ययन के परिणाम से वह वेदविद विद्वान बने और वेदों के मर्मज्ञ बनकर ऋषित्व को प्राप्त हुए थे। 
गुरु विरजानन्द जी की प्रेरणा व परस्पर चर्चा से ऋषि दयानन्द को यह विदित हुआ था कि संसार में दुःखों का कारण अविद्या ही है। उन दिनों जितने मत प्रचलित थे वह सब अविद्या से ग्रस्त थे। ज्ञान व विद्या एक ही व सर्वत्र एक समान हुआ करता है। वह परस्पर भिन्न व परिस्पर विपरीत कदापि नहीं होता। यदि सभी मतों में अविद्या न होती तो वह एक समान विचार, समान नियमों, मान्यताओं व सिद्धान्तों को मानने वाले होते। उनके नियम व परम्परायें पृथक पृथक कदापि न होती। अविद्या के कारण ही मत-मतान्तरों में भेद व अन्तर विद्यमान है। इस अविद्या रूपी अज्ञान को विद्या वा वेद के प्रचार से ही दूर किया जा सकता था। गुरु की इस प्रेरणा से ही उन्होंने अविद्या के विरुद्ध आन्दोलन किया और देश के भिन्न-भिन्न स्थानों पर जाकर वहां के लोगों को असत्य व अविद्या को छोड़ने तथा सत्य और विद्या का ग्रहण करने का प्रचार वा आन्दोलन किया था। ऋषि दयानन्द ने अपने प्रचार में अविद्या व असत्य पर आधारित सभी असत्य मान्यताओं पर आधारित अन्धविश्वासों एवं पाखण्डों का खण्डन भी किया था। उन्होंने अविद्या पर आधारित सभी सामाजिक कुरीतियों व परम्पराओं का खण्डन कर विद्या पर आधारित सुरीतियों व परम्पराओं को ग्रहण व धारण करने का आन्दोलन व प्रचार किया। उनके अनुयायियों ने भी उनके बाद इसी कार्य को जारी रखा है जिसका प्रभाव देश व विश्व सर्वत्र पड़ा है। 
ऋषि दयानन्द के प्रचार रूपी आन्दोलन के परिणामस्वरूप मत-मतान्तरों ने अपनी मान्यताओं पर विचार किया और उनकी व्याख्यायें बुद्धि पूर्वक करने के उनके प्रयत्न देखे गये हैं। देश से अविद्या को दूर करने के लिये भी ऋषि दयानन्द के विचारों के अनुकूल उनके अनुयायियों ने गुरुकुल व दयानन्द ऐंग्लो वैदिक स्कूल व कालेज खोले जिससे देश से अविद्या रूपी अन्धकार दूर करने में सफलता मिली है। देश को आजादी की प्रेरणा भी ऋषि दयानन्द ने ही की थी। ऐसा माना जाता है कि देश की आजादी के आन्दोलन में 80 प्रतिशत लोग ऋषि दयानन्द व आर्यसमाज के देश भक्ति व स्वतन्त्रता के विचारों से प्रेरित थे। स्वामी श्रद्धानन्द, पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द, पं. रामप्रसाद बिस्मिल तथा वीर भगत सिंह आदि अगणित लोग ऋषि दयानन्द से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े व प्रभावित थे। 
समाज कल्याण व उत्थान का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज ने आन्दोलन कर उसका सुधार न किया हो। अतः आर्यसमाज सत्य का प्रचारक विश्व एक अपूर्व संगठन है। आर्यसमाज की सभी मान्यतायें व सिद्धान्त सत्य पर आधारित हैं। अन्धविश्वासों व अविद्या का उनमें किंचित भी अंश नहीं है। मनुष्यों व विश्व के व्यापक हित में आर्यसमाज सत्य मान्यताओं व सिद्धान्तों को सभी मनुष्यों के जीवन में स्थापित करना चाहता है। इस कारण यह प्रचलित मत-मतान्तरों से सर्वथा भिन्न सत्य विद्याओं का प्रचार करने वाला वेद प्रचार का आन्दोलन है। इसी से मनुष्यों का कल्याण होकर न केवल हमारे देश का अपितु विश्व का भी कल्याण होगा। सर्वत्र शान्ति स्थापित होगी। घृणा, द्वेष व हिंसा समाप्त होकर प्रेम तथा अहिंसा का वातावरण बनेगा। सबके सुख व उन्नति के लिये ही ऋषि दयानन्द ने अपना जीवन वेद प्रचार आन्दोलन के लिये समर्पित किया था। भविष्य में विश्व को वेद रूपी वट वृक्ष की छांव में आकर बैठने से शान्ति प्राप्त होगी। मनुष्य जीवन, समाज तथा देश सहित विश्व में शान्ति स्थापना का प्रमुख आधार व उपाय वेदों का अध्ययन व उसकी शिक्षाओं का प्रचार सहित उनका धारण व पोषण करना ही सिद्ध होता है। आईये! वेदों के अध्ययन का व्रत लें और दूसरों को भी वेद को अपनाने की प्रेरणा करें। वेदाध्ययन से हम ईश्वर सहित सुख व शान्ति को प्राप्त होंगे और हमारा मनुष्य जीवन अपने इष्ट लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त होगा। 



-मनमोहन कुमार आर्य


Tuesday 18 August 2020

नागरिकता रद्द कर आमिर को भेजा जाए तुर्की: पं ललित शर्मा


समीक्षा न्यूज
लोनी। भाजपा नेता और लोनी विधायक प्रतिनिधि पं ललित शर्मा ने मंगलवार को बॉलीवुड एक्टर आमिर खान की भारत विरोधी रुख रखने वाले तुर्की के राष्ट्रपति की पत्नी से मुलाकात पर नाराज़गी जताते हुए लोनी के संगम विहार में पुतला फूंकते हुए आमिर खान मुर्दाबाद की नारेबाजी की।
भाजपा नेता ललित शर्मा ने पुतला दहन के बाद कहा कि जिस देश ने आमिर खान को प्यार दौलत शौहरत सब दिया वही आमिर खान हमेशा देश के ख़िलाफ़ जाकर खड़ा होता है चाहें वो पाकिस्तानी जमात के मौलाना के साथ दोस्ती हो या टर्की के राष्ट्रपति की पत्नी से मुलाकात। जबकि टर्की कश्मीर, सीएए मसले पर हमेशा पाकिस्तान के साथ रहकर भारत के ख़िलाफ़ ज़हर उगलता आया है तो आमिर खान को क्या क्या जरूरत पड़ी थी वहां जाकर उनसे मुलाकात की। यहीं आमिर खान भारत के मित्र देश इजरायल के प्रधानमंत्री से मुलाकात नहीं करेंगे। ऐसे लोगों को भारत जैसे शांतिप्रिय देश में डर लगता है लेकिन तुर्की जैसे कट्टरपंथी देशों में डर नहीं लगता। ऐसे लोगों की नागरिकता रद्द कर इन्हें तुर्की भेजना चाहिए। यह लोग देश को खोखला करने का कार्य कर रहे है।
इस दौरान संगम विहार मंडल के महामंत्री कमल प्रकाश पूर्व सभासद अजीत पाल कश्यप प्रिंसिपल राजकुमार गौड़, प्रवासी विकास मंच के अध्यक्ष सुशील श्रीवास्तव, आकाश राजपूत, विक्की पंडित, विवेक कश्यप, नितेश ठाकुर, लक्ष शर्मा, अमित गुप्ता संजीव ठाकुर राजकुमार यादव आदि उपस्थित रहे


विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने किया सकलपुरा पुलिया का शिलान्यास


समीक्षा न्यूज
लोनी। मंगलवार को लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने विधायक निधि से लगभग 14 लाख की राशि से सकलपुरा में राजेश पायलट डिग्री कॉलेज के नजदीक यमुना कनाल पर बहुप्रतीक्षित पुलिया निर्माण कार्य का नारियल फोड़कर शिलान्यास किया। वहीं विधायक ने कहा कि इस पुलिया की काफी समय से स्थानीय लोगों द्वारा मांग की जा रही थी जिसका कार्य आज शिलान्यास करके शुरू कराया गया है इससे हजारों लोगों को फायदा होगा। इस दौरान विधायक प्रतिनिधि पं ललित शर्मा, सिंचाई विभाग के जेई सचिन त्यागी, पवन कुमार और प्रधानाचार्य चंद्रशेखर मौजूद रहें।



विधायक ने कहा लोनी का सर्वांगीण विकास है लक्ष्य, नियत समय पर होंगे सभी विकास कार्य:
पुलिया निर्माण कार्य का शुभारंभ करने के बाद विधायक ने बताया कि पूरा विश्व आज कॉरोना संक्रमण के कारण आर्थिक संकटों का सामना कर रहा है। प्रदेश में और लोनी में भी कई विकास कार्य इससे प्रभावित हुए है लेकिन हमारा प्रयास है कि विभागों के समन्वय से लोनी का विकास कार्य अवरुद्ध न हो।  लोनी में कॉरोना से पूर्व स्वीकृत हो चुके विकास कार्य जो चल रहे सभी नियत समय पर होंगे और लोनी देहात और पालिका क्षेत्र का सर्वांगीण विकास ही हमारा लक्ष्य है। शून्य से लोनी में विकास कार्य हमने शुरू किया था आज लोग बदलाव महसूस कर रहे है। बिजली व्यवस्था लगभग 90 प्रतिशत तक दुरुस्त हुई है जिसमें हमने करीब 200 कऱोड के लागत से विद्युत आपूर्ति हेतु 9 नए बिजली घर का निर्माण करवाया है। बिजली विभाग से जुड़े अन्य शेष कार्यों की भी मंजूरी मिल चुकी है। शिक्षा के क्षेत्र में हमने करोड़ों रुपये से प्राथमिक विद्यालयों की सूरत वहां के इंफ्रास्ट्रक्चर आदि बदलने का कार्य किया है। क्षेत्र में आजादी के 74 साल तक 1 भी डिग्री कॉलेज नहीं था आज 3 डिग्री कॉलेज है। चिकित्सा के क्षेत्र में लोनी को देश की आज़ादी के बाद पहला अपना सुपर स्पेशियलिटी सुविधाओं से लैस अस्पताल मिलने जा रहा है, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का विस्तार चल रहा है। दर्जनों आयुर्वेदिक व यूनानी डिस्पेंसरी खुलने जा रही हैं। जल्द लाखों लोगों के घर तक शुद्ध पीने का पानी पहुंचने वाला है। सड़क के मामलें में लोनी में अभूतपूर्व कार्य हुए है सभी मुख्य मार्गों का चौड़ीकरण, बन्थला फ्लाईओवर, पुश्ता मार्ग आदि ने क्षेत्र की पहचान बदली है आज लोग लोनी में आ रहे है। कानून व्यवस्था में सभी ने बदलाव महसूस किया है। अंधेरा कभी लोनी की पहचान होती थी आज करोड़ों की लागत से इसकी जगह रंग-बिरंगी एलईडी लाइट्स से लोनी रौशन हुई है। जलनिकासी के लिए पूरा लेआउट बना लिया गया है चरणबध्द तरीके से लोनी में जलभराव की समस्या दूर करने के लिए कार्य शुरू कर दिया गया है। बरसात खत्म होने के  तुरंत बाद शानदार दिल्ली-सहारनपुर मार्ग निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा और वर्षों का यह कलंक भी गुजरे जमाने की बात होगी। हमारे जेहन में लोनी के सर्वांगीण विकास, हर समस्या के निस्तारण हेतु ले-आउट और नक्शा है। लोनी आने वाले समय में एक आदर्श विधानसभा बनेगी।



विधायक ने बताया पुलिया निर्माण से आधा दर्जन गांव के हजारों लोगों के साथ छात्रों और किसानों  को मिलेगा विशेष लाभ:
विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने कहा कि स्व. राजेश पायलट डिग्री कॉलेज के नजदीक बनने वाले इस पुलिया के निर्माण से प्रतिदिन हजारों लोगों का आवागमन सुगम होगा। छात्रों और किसानों को विशेष तौर पर इस पुलिया से फायदा होगा। साथ ही पुल जोड़ने का कार्य करता है तो इससे करीब आधा दर्जन गांव के लोग लाभान्वित होंगे जिसमें हमारा सकलपुरा, मेवला भट्टी, सिरौली, कोतवालपुर आदि के लिए आवागमन सुगम होगा।
इस दौरान सूबेदार शकलपुरा, शिवानंद प्रधान, प्रवीण कसाना, नानकचन्द, विक्की कसाना आदि उपस्थित रहें।



अति अम्लता-हृदय रोग व नेताजी सुभाष की 75वीं पुण्य तिथि पर गोष्ठी संम्पन्न


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गाज़ियाबाद। मंगलवार को केन्द्रीय आर्य युवक परिषद की ओर से "अति अम्लता-हृदय रोग व नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 75वीं पुण्य तिथि पर ऑनलाइन गोष्ठी आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय अभिलेखागार के अनुसार सुभाषचंद्र बोस जी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हुई थी।
आयुर्वेदाचार्या डॉ सुषमा आर्या ने कहा कि हाइपर एसिडिटी या अम्लपित्त वर्तमान समय में सबसे अधिक पाए जाने वाले रोगों में से एक है,जो दोषपूर्ण जीवन शैली की उपज होता है।आज के दौर में लगभग 70 प्रतिशत लोग इसी रोग से पीड़ित हैं। हमारे शरीर में उपस्थित पित्त में अम्लता का गुण आने के कारण यह रोग उत्पन्न होता है।इसी के अधिकता से ह्रदय रोग भी उत्पन्न होने लगते है।घरेलू उपाय जैसे दालचीनी, जीरे,अजवाइन का प्रयोग व अधिक जल का सेवन साथ हीं दिनचर्या में बदलाव व चाय का प्रतिकार करके इससे बचाव संभव है।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि नेताजी सुभाष युवाओं के सदैव प्रेरणा स्रोत्र रहेंगे।उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना करके सशस्त्र क्रांति का शंखनाद किया । केवल चरखे तकली से आजादी नहीं आयी और न ही आ सकती है इसके लिए हजारों लोगों ने अपना बलिदान किया और अंग्रेज सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया।आजादी कभी भीख मांगने से नहीं मिला करती इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है। आज हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 75वीं पुण्य तिथि पर उन्हें नमन करते है।उनका बलिदान सदियों तक समाज का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।भले ही उनकी मृत्यु पर कुछ संशय रहे हो लेकिन उनके त्याग,बलिदान, संघर्ष को याद कर श्रद्धांजलि तो अर्पित की ही जा सकती है ।
मुख्य अतिथि आर्य नेता ओमप्रकाश आर्य (संरक्षक,आर्य केन्द्रीय सभा,गाज़ियाबाद) ने कहा कि आज के समय मे योग व प्राकृतिक उपचार मनुष्य के लियर वरदान साबित हो रहा है प्रत्येक मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए अपने जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव करना आवश्यक है।
अध्यक्षता करते हुए समाजसेवी गीता गर्ग ने कहा कि प्रातः काल योग को जीवन का अभिन्न अंग बना कर नियमित रूप से प्राणायाम व आसनों से भी इस प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है।उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य का ऑनलाइन कार्यक्रम एक ज्योति के समान है जो निरंतर सफलतापूर्वक अनगिनत विषयों की जानकारी घर बैठे जन जन तक पहुंचा रहा है।
प्रान्तीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि खाली पेट ज्यादा देर तक रहने से या अधिक तला भुना खाना खाने के बाद खट्टी डकार व पेट में गैस आदि बनने लगती। मुंह में पानी भर आना, पेट में दर्द, गैस की शिकायत,जी मिचलाना आदि लक्षण महसूस होते हैं।समय रहते इसका उपचार करना आवश्यक है।इसे नजरअंदाज न करें।
प्रधान शिक्षक सौरभ गुप्ता ने कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन चरित्र को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए और विश्वविद्यालयों में शोध का विषय बनाया जाए।
श्रीमती संगीता आर्या 'गीत',प्रतिभा सपरा,देवेन्द्र गुप्ता, किरन सहगल,संध्या पाण्डेय, नरेश खन्ना आदर्श सहगल,नरेन्द्र आर्य 'सुमन' आदि ने ओजस्वी गीतों से समा बांध दिया।
आचार्य महेंद्र भाई,यशोवीर आर्य, प्रकाशवीर शास्त्री,यज्ञवीर चौहान, डॉ रचना चावला,वीना वोहरा, विजय भूषण आर्य आदि उपस्थित थे।


महेंद्र सिंह धोनी ने वनडे व टी-20 से सन्यास


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महेंद्र सिंह धोनी ने वनडे व टी-20 से सन्यास की घोषणा कर दी उसी अंदाज में, जिसमें उन्होंने भारतीय क्रिकेट को ऊंचाइयों पर पहुंचाया, धोनी की खासियत रही कि उन्होंने अपने फैसलों से हमेशा विरोधियों को चौंकाया चाहे वो टी-20 वर्ल्ड कप में जोगिंदर शर्मा से आखरी ओवर डलवाना हो या विश्व कप फाइनल में युवराज सिंह से पहले बैटिंग कराना, उन्होंने हमेशा कुछ अलग करके विरोधियों को चकित किया इसका प्रमुख कारण उनकी एकाग्रता जो आम खिलाड़ियों की तरह जल्द भांग नहीं होती थी, जिसके कारण वो दबाव में भी अच्छे फैंसले ले पाते थे, दुनिया में बड़े से बड़ा खिलाड़ी भी दबाव में आ जाता है जिससे उसका प्रदर्शन प्रभावित हो जाता है चाहे वो तेंदुलकर हो या लारा लेकिन धोनी अक्सर दबाव में अच्छा प्रदर्शन करता था जिसके कारण वो एक महान खिलाड़ी व कप्तान बनने में सफल रहे, हालांकि धोनी को वो विदाई नहीं मिली जो एक मैच विनर व महान कप्तान को मिलनी चाहिए थी ऐसे महान खिलाड़ी की विदाई भी महान होनी चाहिए ऐसा हर देशवासी चाहते हैं,धोनी के साथ ऑस्ट्रेलिया के महान कप्तान स्टीव वॉ का भी नाम लिया जा सकता है दोनों खिलाड़ियों में कुछ समानताएं थी जैसा दोनों ने अपनी टीम को विश्व विजेता बनाया व दोनों अपने समय के टफ फाइटर रहे स्टीव व धोनी दोनों दबाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन करते थे जब उनकी टीम संकट में होती थी तो उनका प्रदर्शन संकट मोचक की तरह टीम के काम आता था दोनों ही मैच को अंतिम गेंद तक ले जाकर जिताने में विश्वास रखते थे दोनों में एक और खासियत थी कि दोनों की एकाग्रता गजब की थी, हालांकि दोनों टीमों की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि स्टीव के पास एक चैंपियन ऑस्ट्रेलिया टीम थी जिसमें है कई मैच विनर थे जबकि धोनी ने युवाओं को मैच विनर बनना सिखाया भारतीय क्रिकेट टीम को नई ऊंचाई पर पहुंचाने वाले धोनी ने भी कई मौकों पर असफलता पाई पिछले साल हुए वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में धोनी नाजुक मौके पर रन आउट हुए जबकि अगर वो मैच वो जीता देते तो उनके लिए बहुत बड़ी विदाई होती परंतु यही क्रिकेट का स्वरूप है बड़े-बड़े योद्धाओं को भी पराजय देखनी पड़ती है धोनी ने अपने क्रिकेट जीवन में देश को बहुत कुछ दिया सबसे बड़ा मंत्र युवा पीढ़ी को उनका यही है कि कभी हार मत मानो, आखिर तक लड़ाई लड़ो, शांत व एकाग्र रहो, अपने ऊपर दबाव मत आने दो, अपना स्वाभाविक खेल खेलो जिससे जीतने वह लड़कर हारने की संभावना सदा रहेगी धोनी के फैंस के लिए यह दुख की बात, क्योंकि वो उसे अभी टी-20 विश्व कप खेलते देखना चाहते थे परंतु आईपीएल में एक दो सीजन हम धोनी को देख सकेंगे।



लेखक: वरिष्ठ समाजसेवी सिकंदर यादव